धनवान व्यक्ति और लाजर का दृष्टान्त

धनवान व्यक्ति और लाजर का दृष्टान्त

संन्दर्भ :- लूका 16ः19-31 -
‘‘एक धनवान मनुष्य था जो बैंजनी कपड़े और मलमल पहिनता और प्रति दिन सुख-विलास और धूमधाम के साथ रहता था। और लाजर नाम का एक कंगाल घावों से भरा हुआ उस की डेवढ़ी पर छोड़ दिया जाता था। और वह चाहता था, कि धनवान की मेज पर की जूठन से अपना पेट भरे; बरन् कुत्ते भी आकर उसके घावों को चाटते थे। और ऐसा हुआ कि वह कंगाल मर गया, और स्वर्गदूतों ने उसे लेकर इब्राहीम की गोद में पहुंचाया; और वह धनवान भी मरा; और गाड़ा गया। और अधोलोक में उस ने पीड़ा में पड़े हुए अपनी आंखे उठाई और दूर से इब्राहीम की गोद में लाजर को देखा। और उस ने पुकार कर कहा, हे पिता इब्राहीम, मुझ पर दया करके लाजर को भेज दे, ताकि वह अपनी अंगुली का सिरा पानी में भिगोकर मेरी जीभ को ठण्डी करे। क्योंकि मैं इस ज्वाला में तड़प रहा हूं। परन्तु इब्राहीम ने कहा; हे पुत्र स्मरण कर, कि तू अपने जीवन में अच्छी वस्तुएं ले चुका है, और वैसे ही लाजर बुरी वस्तुएं : परन्तु अब वह यहां शान्ति पा रहा है, और तू तड़प रहा है। और इन सब बातों को छोड़ हमारे और तुम्हारे बीच एक भारी गड़हा ठहराया गया है कि जो यहां से उस पार तुम्हारे पास जाना चाहें, वे न जा सकें, और न कोई वहां से इस पार हमारे पास आ सके। उस ने कहा; तो हे पिता मैं तुझसे बिनती करता हूं, कि तू उसे मेरे पिता के घर भेज। क्योंकि मेरे पांच भाई हैं, वह उन के सामने इन बातों की गवाही दे, ऐसा न हो कि वे भी इस पीड़ा की जगह में आएं। इब्राहीम ने उस से कहा, उनके पास तो मूसा और भविष्यवक्ताओं की पुस्तकें हैं, वे उन की सुनें। उसने कहा; नहीं, हे पिता इब्राहीम; पर यदि कोई मरे हुओं में से उनके पास जाए, तो वे मन फिराएंगे। उसने उन से कहा, कि जब वे मूसा और भविष्यवक्ताओं की नहीं सुनते, तो यदि मरे हुओं में से कोई जी भी उठे तो भी उसकी नहीं मानेंगे।’’

प्रस्तावना एवं पृष्ठभूमि :- प्रभु यीशु मसीह के समय में शास्त्री एवं फरीसी परमेश्वर को अपने हृदय में स्थान देने के बजाय सतही धार्मिकता को प्राथमिकता देते थे। वे धार्मिक कट्टरपन को बहुत तूल देते थे। ऐसा करने से वे स्वयं को स्वर्ग के हकदार समझते थे। इब्राहीम के वंशज होना उनके लिए घमंड की बात थी। धन-दौलत एवं सम्पन्नता को धार्मिकता की कसौटी जानकर वे गरीब लोगों को पापी ठहराते थे। वे सामाजिक रूप से तिरस्कृत एवं नैतिक रूप से पतित लोगों से कोई सरोकार नहीं रखते थे। वे उनकी दशा को पापों का परिणाम बताकर उनकी मदद करने से मुकरते थे। वे उन्हें प्रेम, दया, एवं क्षमा से वंचित रखते थे। वे सोचते थे कि मूसा एवं भविष्यवक्ताओं की पुस्तकें उपलब्ध हैं इसलिए हर कोई स्वयं उनसे सबक ले सकता हैं। मनुष्यों को इन पुस्तकों के द्वारा चिताना उनकी जिम्मेदारी नहीं है।

प्रभु यीशु मसीह इस दुनिया में रहते हुए अपने पास आए हुए हर व्यक्ति को अपने प्रेम एवं सहभागिता के द्वारा परमेश्वर के प्रेम से परिचित कराया। उसका यह प्रयास रहता था कि लोग परमेश्वर के अनुग्रह, दया एवं क्षमा को पहचानें। सबके साथ उसका मित्रतापूर्ण व्यवहार शास्त्रियों एवं फरीसियों को खलता था। उन्हें प्रभु यीशु मसीह का ऐसे तुच्छ समझे जाने वाले लोगों से मेल-जोल गवारा नहीं था।

वे प्रभु यीशु पर इस बात के लिए क्रोधित होते और बड़बड़ाते थे। शास्त्रियों एवं फरीसियों के ऐसे व्यवहार का खुलासा करने के लिए और इस व्यवहार का परिणाम प्रगट करने के लिए प्रभु यीशु मसीह ने धनवान व्यक्ति एवं लाजर का दृष्टान्त सुनाया।

विषय वस्तु :- इस दृष्टान्त में एक व्यक्ति का वर्णन है, जो बहुत ही धनवान था। वह कीमती वस्त्र पहनता था। वह अपने दिन शाही दावतों में बिताता था। इसी में वह सन्तुष्ट रहता था और वह इब्राहीम का वंशज भी था। उसके पांच भाई थे। मूसा और व्यवस्था की किताबें उनके घर पर थीं किन्तु वे कभी उन पर ध्यान नहीं देते थे। सब भाइयों के लिए पैसा और भोग-विलास ही सब कुछ था।

इस धनवान व्यक्ति के नाम का जिक्र नहीं किया गया है। उसके घर के सामने एक अपंग, लाचार, गरीब भिखारी व्यक्ति को छोड़ दिया जाता था। इस भिखारी का नाम लाजर था। लाजर अपनी अपंगता के कारण घूम-फिरकर भीख नहीं मांग सकता था क्योंकि वह एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने के लिए दूसरों की दया एवं सहारे पर आश्रित था। उसके सम्पूर्ण शरीर पर घाव थे, जिन्हें कुत्ते चाटा करते थे। भूख, दर्द एवं पीड़ा ही उसके साथी थे। उसकी बहुत ही दयनीय स्थिति थी। वह धनवान की शाही दावतों से बची उस जूठन पर आश्रित रहता था जिसे उसके नौकर झाड़कर बाहर फेंक देते थे।

कुछ समय बाद दोनों की मृत्यु हुई। लाजर स्वर्गलोक गया और धनवान अधोलोक। धनवान ने लाजर को इब्राहीम की गोद में देखा तो उसे तुरन्त पहचान लिया। उसे उसका लाजर नाम भी मालूम था। उसने इब्राहीम को पिता कहकर सम्बोधित किया, और उससे निवेदन किया कि लाजर को वह उसके पास भेज दे जिससे लाजर अपनी उंगली पानी में भिगोकर प्यास से जलती उसकी जीभ को ठण्डा करे। इब्राहीम ने लाजर को उसके पास भेजने से इन्कार किया और कहा कि अधोलोक और स्वर्गलोक के बीच एक अथाह खाई है जिसे चाहकर भी कोई पार नहीं कर सकता है।

धनवान ने पुनः इब्राहीम से बिनती की कि वह लाजर को उसके पिता के घर भेज दे, जहां उसके पांच भाई हैं। वे सब भी परमेश्वर के न्याय से बेखबर हैं। यदि लाजर उनके पास उन्हें चितौनी देने चला गया तो वे नर्क की पीड़ा से बच जाएंगे। धनवान के इस निवेदन को भी इब्राहीम ने अस्वीकार कर दिया, और कहा उनके पास मूसा और भविष्यवक्ता हैं, वे उनकी सुनें।

धनवान ने तीसरी बार पुनः इब्राहीम से बिनती की और कहा कि यदि लाजर को नहीं, तो तू मरे हुओं में से किसी को भी मेरे भाईयों के पास भेज दे क्योंकि वे मूसा और नाबियों की बातें नहीं सुनते, शायद मरे हुओं में से कोई उनके पास जाए तो वे उनकी सुनें और समय रहते मन फिराएं। धनवान के इस अनुरोध को भी इब्र्राहीम ने यह कहकर ठुकरा दिया कि यदि वे मूसा और नाबियों की नहीं सुनते तो वे मृतकों में से जीवित होकर जाने वाले की भी नहीं सुनेंगे।

व्याख्या :- इस दृष्टांत में धनवान व्यक्ति से प्रभु यीशु मसीह को सीधा इशारा शास्त्रियों और फरीसियों की ओर था। उन्हें इब्राहीम के वंश होने का एवं स्वयं की धार्मिकता का अत्याधिक घमंड था। वे स्वर्ग में प्रवेश को अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते थे। उनके हृदय में परमेश्वर का स्थान सतही और दिखावटी धार्मिकता ने ले लिया था। वे किसी गैर यहूदी, गरीब, नैतिक रूप से पतित और सामाजिक रूप से तिरस्कृत व्यक्तियों से संबंध रखना अपनी शान के खिलाफ समझते थे। वे ऐसों की किसी प्रकार से कोई मदद नहीं करते थे। (इस दृष्टांत में लाजर ऐसे लोगों का प्रतिनिधित्व करता है।) वे लोगों की कठिन परिस्थितियों में उनकी मदद करने के बदले उन्हें उनके पापों का परिणाम बताकर तथा उनकी कटु आलोचना करके अपनी तथाकथित धार्मिकता का सिक्का जमाते थे। उन शास्त्रियों और फरीसियों के लिए जैसे यह व्यवसाय सा बन चुका था। वे लोगों को परमेश्वर के प्रेम और क्षमा से परिचित करा के उसके पास लाने के बदले उन्हें उससे और दूर कर देते थे। इस प्रकार वे आत्मिक भोजन से भी लोगों को भूखा और प्यासा रहने देते थे। धार्मिक परम्पराओं एव रीति रिवाजों को पूरा करने में ही वे संतुष्ट रहते थे। जब कभी नबी और भविष्यवक्ता उनकी इस खोखली धार्मिकता की भर्त्सना करते और उनको परमेश्वर का सही मार्ग बताते तो ये ही शास्त्री और फरीसी धर्म की आड़ में उन्हें विभिन्न यातनाएं देकर खामोश करने का प्रयास करते थे और बहुतेरों की हत्याएं तक करा देते थे।

इस दृष्टांत में धनवान शास्त्रियों एवं फरीसियों के व्यवहार को प्रगट करता है। उसके द्वार के सामने लाजर को बैठाया जाता था। वह उसको देखता था। वह जानता था कि लाजर को उपचार की आवश्यकता है किन्तु उपचार के लिए उसके पास पैसे नहीं हैं। वह जानता था कि लाजर काम नहीं कर सकता क्योंकि वह अपंग है और लाचार है। कुछ लोग उसे धनवान की डेवढ़ी पर लाकर छोड़ देते थे। वह भोजन के लिए, वस्त्रों के लिए दूसरों पर अश्रित था। धनवान के पास सब कुछ बहुतायत से था। उसे यह अवसर था कि वह एक जरूरतमंद की मदद करे। वह उसे पीने के लिए पानी, खाने के लिए भोजन, तन ढकने के लिए वस्त्र, उपचार आदि की व्यवस्था सब कुछ बगैर किसी बड़े त्याग के आसानी से कर सकता था। परन्तु उसने लाजर की अपने जीवन में निरंतर उपेक्षा की। उसने परमेश्वर द्वारा दी गई आशीषों को दूसरे के साथ बांटने के बदले उन्हें स्वयं तक ही सीमित रखा। सम्पूर्ण धन दौलत का स्वयं के भोग विलास और आत्मसंतुष्टि के लिए उपयोग किया। उसके परिवार में मूसा और नबियों की बातों की अवहेलना की गई। उसके सभी भाई भी परमेश्वर के वचन और शिक्षाओं के प्रति लापरवाह रहे। उसने हमेशा सब कुछ स्वयं की महिमा और आनन्द के लिए किया।

लाजर ने जीवन भर दुःख सहा किन्तु वह हमेशा परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य रहा। इतनी पीड़ाजनक और दयनीय स्थिति में पूरे दृष्टान्त में कहीं भी उसकी परमेश्वर या मनुष्यों से किसी प्रकार की कोई शिकायत का जिक्र नहीं है। उसने खामोशी से सब कुछ सहा।

कुछ समय बाद धनवान और लाजर दोनो की मृत्यु हो गई। जितने भी मनुष्य इस संसार में पैदा होते हैं, चाहे वे धनवान हों या गरीब। एक न एक दिन सबकी मृत्यु होना निश्चित है, मरने के पश्चात मनुष्य की आत्मा स्वर्गलोक जाती है या अधोलोक। स्वर्गलोक में स्वर्गीय आनन्द का परिचय होता है और अधोलाक में नरकीय पीड़ा, तपन और प्यास का। यहां परमेश्वर का न्याय होता है। स्वर्गलोक और अधोलोक के बीच गहरी खाई है जिसे चाहकर भी कोई पार नहीं कर सकता है। दोनों लोकों से मनुष्य एक-दूसरे को देख सकते हैं और पहचान सकते हैं। यहां से वह स्वर्ग या नरक को जाते हैं, जो बिल्कुल अलग-अलग हैं। मृत्यु के पश्चात् धनवान अधोलोक गया और लाजर स्वर्गलोक।

धनवान की सारी धन-संपत्ति, ऐशो-आराम और भोग विलास की जिन्दगी इसी संसार में रह गई। खाली हाथ इस संसार में आया था और खाली ही हाथ इस संसार से विदा हुआ। परमेश्वर के साथ उसका कोई संबंध था नहीं, उस के हृदय में और जीवन में परमेश्वर के लिए कोई जगह भी नहीं थी। जिसके कारण मृत्यु के पश्चात् वह सीधे अधोलोक पहुंचा। अधोलोक से उसने अपनी आंखें उठाकर देखा कि लाजर बहुत ही सुख-चैन और आराम से इब्राहीम की गोद में बैठा है। उसने इब्रहीम को पिता कहकर सम्बोधित किया और इब्राहीम ने भी उसे पुत्र कहकर सम्बोधित किया। इब्राहीम का वंशज होते हुए भी वह नरक की पीड़ा से नहीं बचा क्योंकि उसने इब्राहीम के परमेश्वर की और अपने सृष्टिकर्ता की जीवन भर उपेक्षा की थी। धनवान ने इब्राहीम से अनुरोध किया कि वह लाजर को उसकी सहायता हेतु भेज दे। जिससे लाजर उसकी आसह्नीय प्यास को पानी से शान्त कर सके। धनवान यहां भी इस भ्रम में था कि वह धनी है और लाजर गरीब, जो दास के रूप में उसकी आज्ञा पर उसकी सेवा के लिए हाजिर हो जायेगा। यहां भी लाजर चुपचाप रहा, उसने धनवान से किसी भी प्रकार की कोई जिरह नहीं की या नहीं कहा कि, तूने पृथ्वी पर मेरी कभी सुधि ली ? क्या तूने कभी भोजन, वस्त्र, उपचार आदि से मेरी मदद की ? तूने तो मुझे पानी के लिए भी कभी नहीं पूछा, अब तू अपनी करनी का फल भुगत, मुझे तुझसे कोई सरोकार नहीं। लाजर चाहता तो उसे बहुत कुछ कह सकता था परन्तु फिर भी वह खामोश रहा। इब्राहीम ने ही धनवान के पास लाजर को भेजने से इन्कार कर दिया। इसके बाद धनवान ने पुनः दूसरी बार इब्राहीम से अनुराध किया कि वह लाजर को उसके पिता के घर भेज दे जिससे वह वहां जाकर उसके अन्य पांच भाइयों को चेतावनी दे कि वे जिस मार्ग पर चल रहें है, वह मनुष्य को नरक को पहुंचाता है। वह नहीं चाहता था कि उसके भाई भी उसके समान इस असहनीय पीड़ा के भागीदार हों। धनवान की इस याचना को भी इब्राहीम ने यह कहकर ठुकरा दिया कि उनके पास मूसा और नबी हैं वे उनकी सुनें। परन्तु उसने कहा कि उसके भाई मूसा और नबियों की बातें नहीं सुनते यदि मृतकों में से कोई उनके पास जाएगा, तो वे अवश्य मन फिराएंगे। धनवान की इस तर्कपूर्ण विनती को भी इब्राहीम ने इस तर्क के साथ ठुकरा दिया कि यदि वे मूसा और नबियों की नहीं सुनते तो यदि मृतकों में से कोई उनके पास जाएगा तो वे उनकी भी नहीं सुनेंगे।

(1 शमूएल 28ः7-18) में इब्राहीम के इस तर्क का उदाहरण भी हमें मिलता है। यहां वर्णन है राजा शाऊल का, उसने एन्दोर में भूत सिद्धि करने वाली स्त्री से शमूएल को बुलवाया किन्तु शमूएल की बातें सुनकर भी उसने परमेश्वर की ओर मन नहीं फिराया।

यूहन्ना 12ः10 मे वर्णन है मरियम और मार्था के भाई लाजर का, जिसको मरे चार दिन हो गये थे। प्रभु यीशु मसीह की ईश्वरीय सामर्थ के अनुसार से वह कब्र से जिन्दा निकल आया। बहुतेरों शास्त्रियों और फरीसियों ने उसके इस महान आश्चर्यकर्म को देखा किन्तु मन नहीं फिराया, उल्टे प्रभु यीशु के साथ लाजर को भी मारने की युक्ति ढूंढने लगे।

मूसा और नबियों की किताबें में भी परमेश्वर के अद्भुत सामर्थ के कामों का और परमेश्वर की आज्ञाओं का वर्णन है। साथ ही इस बात का भी कि किस प्रकार धर्म के ठेकेदारों ने स्वयं के स्वर्थ के लिए परमेश्वर की और उसकी आज्ञाओं की उपेक्षा की। किस प्रकार उन नबियों को जो परमेश्वर का संदेश लोगों तक पहुचाते थे, उन्हें अपनी हानि के भय से निर्ममता पूर्वक मौत के घाट उतार दिया। इन धार्मिक अगुवों के लिए सब कुछ स्वयं तक केन्द्रित था, वे अपने जीवन और व्यवहार से परमेश्वर एवं मनुष्य दोनों ही की उपेक्षा करते थे। उन्हें धर्मशास्त्र मुखाग्र याद रहते थे किन्तु परमेश्वर की सर्वप्रमुख आज्ञा कि तू अपने परमेश्वर से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख और अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख, की वे अपने स्वार्थ और घमण्ड के कारण अवहेलना करते थे। (लूका 10ः27 के अनुसार)

परमेश्वर धन को आशीष के रूप में हमें देता है। (नीति वचन 10ः22 के अनुसार) धन स्वयं मे बुरा नहीं। धन ही के द्वारा हमारी बहुत सी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। बात प्रमुख यह है कि कहीं धन को हमने अपना स्वामी और ईश्वर तो नहीं मान लिया ? कहीं हम इस धन के नशे में इतने चूर तो नहीं हो गये कि दूसरों की जरूरतों के प्रति हम में जरा भी संवेदनशीलता नहीं रही ? कहीं दूसरों का अहित करके या किन्हीं गलत तरीकों से तो हम धन अर्जित नहीं कर रहें हैं ?

यहां उल्लेखनीय है कि धनवान इसलिए नरक नहीं गया क्योंकि उसके कार्य बुरे थे परन्तु इसलिए नरक गया क्योंकि उसने समय के महत्व को नहीं पहचाना। उसने अपने जीवन में परमेश्वर के प्रेम को नहीं पहचाना। उसके वचन के प्रति वह लापरवाह रहा और लाजर की आवश्यकताओं के प्रति असंवेदनशील रहा। याकूब 4ः17 के अनुसार ‘‘इसलिए जो कोई भलाई करना जानता है पर नहीं करता उसके लिए यह पाप है।’’

तीसरी बार धनवान ने इब्राहीम से अपने भाइयों को सावधान करने के लिए पुनः मरे हुओं में से किसी को भी भेजने की विनती की; किन्तु इब्राहीम ने कहा कि उनके पास नबी और भविष्यवक्ता हैं यदि वे उनकी नहीं सुनते तो मरे हुओं में से भी कोई उनके पास जाए तो वे उसकी भी नहीं सुनेंगे।

शास्त्रियों एवं फरीसियों के पास नबियों की किताबें थीं। उत्पत्ति से लेकर सभी पुस्तकों में प्रभु यीशु मसीह के संबंध में भविष्यवाणियां थीं, जो अक्षरशः पूरी हुई। उसके आश्चर्य कर्म उसकी दिव्य शक्ति के प्रमाण थे। उसने बार-बार लोगों पर प्रगट किया कि वह परमेश्वर का पुत्र है, वही मार्ग सत्य और जीवन है बिना उसके उद्धार प्राप्त करना असंभव है। फिर भी अपने हृदय की कठोरता के कारण और स्वयं के स्वार्थ के कारण शास्त्रियों एवं फरीसियों ने प्रभु यीशु मसीह का तिरस्कार किया और उसको मार डालने की योजना तैयार की।

प्रभु यीशु मसीह उनके हृदय के छल, कपट और कठोरता से वाकिफ था अतः उसने धनवान मनुष्य के माघ्यम से उन्हें स्पष्ट बताया कि इस संसार में परमेश्वर के वचन के अलावा और किसी भी प्रकार से किसी को चिताया नहीं जाएगा।

प्रभु यीशु मसीह स्वयं मरकर जी उठा और 40 दिन तक बहुतेरों को दिखाई देता रहा। परन्तु फिर भी बहुत से लोगों ने हृदय की कठोरता के कारण उस पर विश्वास नहीं किया। प्रभु यीशु यह सब कुछ होने के पहले ही सब कुछ जानता था, अतः उसने धनवान के माघ्यम से इस दृष्टान्त में शास्त्रियों एवं फरीसियों की ओर सीधा इसारा किया। उन्हें समय का महत्व बताया कि इस पृथ्वी पर सबके दिन गिने हुए हैं। यदि हम समय रहते परमेश्वर को अपना जीवन नहीं देते, अपने विश्वास को कार्यों एवं व्यवहार द्वारा प्रगट नहीं करते तो मृत्यु के पश्चात् भयंकर अनंत त्रासदी के अलावा हमारे लिए कोई दूसरी व्यवस्था नहीं।

व्यवहारिक पक्ष एवं आत्मिक शिक्षा :- 

1. परमेश्वर की आशीषों को स्वयं तक ही सीमित नहीं रखना है परन्तु उसे दूसरों के साथ भी बांटना है।

2. दूसरों के जरूरतों के प्रति संवेदनशील रहना है, जिस प्रकार परमेश्वर ने हम पर दया की, हमें दूसरों पर भी दया करना है।

3. हमें अपने जीवन में परमेश्वर को और उसके वचन को सर्वप्रमुख स्थान देना है। उसकी शिक्षाओं के अनुसार जीना है। उसके अनुसार अपना आत्मावलोकन करना है। उसके अनुग्रह के काल को बेखबरी से नहीं गंवाना है, तभी हम स्वर्ग की ओर निश्चितता से बढ़ सकते हैं।

4. परमेश्वर की ओर फिरने के लिए दर्शन या आश्चर्यजनक कार्यों या प्रमाणों की प्रतीक्षा करना व्यर्थ है। परमेश्वर ने अपनी ओर से मनुष्य को बचाने की कोई कसर नहीं छोड़ी। जीवन जीने का सही शैली उसने हमें प्रभु यीशु के द्वारा सिखाई। आज परमेश्वर का वचन बाइबिल के रूप मे हमारे पास है हमें उसका अध्ययन करना है, उसकी शिक्षाओं के अनुसार जीना है एवं उसके बताए मार्ग पर आगे बढ़ना है।


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