खोए हुए सिक्के का दृष्टांत
खोए हुए सिक्के का दृष्टांत
प्रस्तावना एवं पृष्ठभूमि :- खोई हुई भेड़ के दृष्टांत के बाद ही उसकी निरन्तरता में दूसरे उदाहरण के रूप में प्रभु यीशु मसीह ने खोए हुए सिक्के का दृष्टांत बताया।
प्रभु यीशु मसीह चुंगी लेने वालों और पापियों से घिरा हुआ था। वे प्रभु यीशु मसीह की बातें सुनने आए थे। शास्त्री और फरीसी ऐसे सामाजिक एवं नैतिक रूप से पतित मनुष्यों को प्रभु यीशु मसीह की निकटता में नहीं देखना चाहते थे। वे चाहते थे कि प्रभु यीशु मसीह यदि वास्तव में परमेश्वर का जन है तो उसका इन पापियों से उनके समान ही कोई संबधं नहीं होना चाहिये। परन्तु, प्रभु यीशु मसीह यह प्रगट करना चाहता था कि वो पापियों को ढूंढने और बचाने के लिए इस दुनिया में आया है। वो चाहता था कि लोग यह जानें कि मनुष्य चाहे कितनी भी पापमय दशा में क्यों न हो; यदि वह पश्चाताप करता है तो परमेश्वर उसे आनन्दपूर्वक स्वीकार करेगा। उसे जीवन से मायूस होने की अथवा इधर-उधर भटकने की आवश्यकता नहीं।
विषय-वस्तु सारांश :- एक स्त्री के पास 10 चांदी के सिक्के थे। उनमें से एक खो गया। स्त्री ने बड़े यत्न से उस सिक्के को ढूंढ निकाला और उसके मिलने पर सभी परिचितों को बुलाकर सबके साथ खुशी मनायी।
इसी प्रकार एक मन फिराने वाले पापी के लिए भी परमेश्वर के स्वर्गदूतों में आनन्द मनाया जाता है।
व्याख्या :- सर्वप्रथम यह जान लेना आवश्यक है यह एक सिक्का उस स्त्री के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों था ? उस समय में यह प्रथा थी कि शादी के समय में दुल्हन को विशिष्ट श्रृंगार या गहने के रूप में पहनने के लिए एक ऐसी माला दी जाती जिसमें चांदी के 10 सिक्के होते थे। जैसे आजकल शादी की अंगूठी की प्रथा है। वह माला उतनी ही महत्वपूर्ण होती थी जैसे आज का कोई रत्नजड़ित कीमती आभूषण होता है। जिस प्रकार आभूषण का एक भी नग निकल जाए तो उसकी खूबसूरती नहीं रह जाती उसी प्रकार उस चांदी के सिक्के का महत्व था। शादी की निशानी होने के कारण शायद यह और भी कीमती था। बाकि 9 सिक्के तो उस स्त्री के पास थे किन्तु इस एक सिक्के के खो जाने से वह अत्यन्त परेशान, दुःखी और चिन्तित हो गई थी। उसे यह निश्चय था कि सिक्का घर पर ही खोया है। उसने पूरी सावधानी और लगन से प्रयास कर सिक्के को ढूंढ निकाला और सिक्के के मिलने पर वह अत्यन्त खुश हो गई। उसने अपने सभी परिचितों को बुलाया और धूमधाम से सिक्के के मिलने की खुशी मनाई। ठीक इसी प्रकार एक मन फिराने वाले पापी के लिए भी परमेश्वर के स्वर्गदूतों की उपस्थिति में आनन्द मनाया जाता है।
व्यवहारिक पक्ष एवं आत्मिक शिक्षा :- 1. मसीही परिवारों में माता-पिता को विशेष रूप से सजग रहना है। घर में ही खोए हुए सिक्के की तरह आज बहुत से परिवारों में बच्चे घर में ही रहते हुए संसार के अंधेरों में, बुराइयों में गुम हो जातें है। माता पिता ऐसे बच्चों के प्रति निश्चिन्त तो नहीं है ? ऐसे बच्चों को उन्हें यत्न से बचाना है।
2. कलीसियाओं को आत्मिक रूप से भटके हुए लोगों के प्रति निश्चिन्त नहीं होना है बल्कि उन्हें ढूंढने तथा बचाने का प्रयास करना है। उन तक परमेश्वर की क्षमा, प्रेम और उद्धार का संदेश पहुंचाना है।
3. प्रभु यीशु मसीह ने शुभ संदेश दिया जो अन्य सभी धर्मों से भिन्न है कि परमेश्वर स्वयं पापी को ढूंढता है। परमेश्वर को ढूंढने के लिए मनुष्य को इधर-उधर भटकने की आवश्यकता नहीं है। सिक्का पड़ा था, स्वयं अपनी सहायता करने में असमर्थ था किन्तु स्त्री ने स्वयं प्रयास कर उस को ढूंढ निकाला।
4. जैसे सिक्का स्त्री के लिए बहुमूल्य था वैसे ही प्रत्येक मनुष्य परमेश्वर की दृष्टि मे बहुमूल्य है, जिसकी कीमत उसने अपने एकलौते निष्पाप बेटे के लहू से अदा की है। परमेश्वर चाहता है कि एक-एक मनुष्य बचाया जाए। कोई भी नाश न हो। एक मनुष्य भी यदि पश्चाताप करता है और परमेश्वर की ओर फिरता है तो स्वर्ग में आनन्द मनाया जाता है।
आवश्यकता है कि प्रत्येक मनुष्य अपनी कीमत पहचाने और स्वयं को संसार की व्यर्थ की महत्वहीन बातों में न उलझाए। परन्तु, अनन्त जीवन के परिप्रेक्ष्य में ही अपने जीवन की प्राथमिकताओं का निर्धारण कर आगे बढ़े।
5. जैसे स्त्री ने सिक्के को यत्न से ढूंढा वैसे ही परमेश्वर ने पापियों के बचाने के लिए सभी प्रयास किये। स्वर्ग का सिंहासन छोड़ दिया। दास का सा रूप धारण कर लिया। ना सिर्फ मुख से प्रेम, दया, क्षमा आदि के संदेश दिये किन्तु उन उपदेशों को जीकर दिखाया। जीवन जीने की सही शैली मनुष्य के रूप में होकर व्यवहारिक रूप में जीकर बतायी। सब कुछ सहा, सब कुछ किया कि हर एक मनुष्य बचाया जाए।
6. जैसे अकेले सिक्के का कोई विशेष महत्व नहीं था, खोया हुआ था, अंधेरे में पड़ा हुआ था परन्तु माला के साथ जुड़कर ही उसका विशेष महत्व था। वैसे ही यदि मनुष्य का परमेश्वर के साथ संबंध नहीं तो धन, पद आदि सब कुछ होते हुए भी उसके जीवन का कोई महत्व नहीं। सब कुछ व्यर्थ, आशाहीन एवं अंधकारमय है क्योंकि यदि मनुष्य सारे संसार को प्राप्त करे परन्तु अपने प्राणों की हानि उठाए तो उसे क्या लाभ ? (लूका 9ः25 के अनुसार) एक दिन सब कुछ समाप्त हो जाता है किन्तु परमेश्वर के साथ जुड़कर मनुष्य का जीवन सार्थक है और अनन्त सुरक्षित है।
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