उड़ाऊ पुत्र का दृष्टांत

उड़ाऊ पुत्र का दृष्टांत

सन्दर्भ :- लूका 15ः11-32 -‘फिर उसने कहा, किसी मनुष्य के दो पुत्र थे। उनमें
से छुटके ने पिता से कहा कि हे पिता संपत्ति में से जो भाग मेरा हो, वह मुझे दे दीजिए। उसने उन को अपनी 
संपत्ति बांट दी। और बहुत दिन न बीते थे कि छुटका पुत्र सब कुछ इकट्ठा करके एक दूर देश को चला गया और वहां कुकर्म में अपनी संपत्ति उड़ा दी। जब वह सब कुछ खर्च कर चुका, तो उस देश में बड़ा अकाल पड़ा, और वह कंगाल हो गया। और वह उस देश के निवासियों में से एक के पास जा पड़ा : उसने उसे अपने खेतों में सूअर चराने के लिए भेजा। और वह चाहता था, कि उन फलियों से जिन्हें सूअर खाते थे अपना पेट भरे; और उसे कोई कुछ नहीं देता था। जब वह अपने आपे में आया, तब कहने लगा, कि मेरे पिता के कितने ही मजदूरों को भोजन से अधिक रोटी मिलती है, और मैं यहां भूखा मर रहा हूं। मैं अब उठकर अपने पिता के पास जाऊंगा और उस से कहूंगा कि पिता जी मैनें स्वर्ग के विरोध में और तेरी दृष्टि में पाप किया है। अब इस योग्य नहीं रहा कि तेरा पुत्र कहलाऊं, मुझे एक मजदूर की नाई रख ले। तब वह उठकर, अपने पिता के पास चला : वह अभी दूर ही था, कि उसके पिता ने उसे देखकर तरस खाया, और दौड़कर उसे गले लगाया, और बहुत चूमा। पुत्र ने उससे कहा; पिता जी, मैंने स्वर्ग के विरोध में और तेरी दृष्टि में पाप किया है; और अब इस योग्य नहीं रहा, कि तेरा पुत्र कहलाऊं। परन्तु पिता ने अपने दासों से कहा; झट अच्छे से अच्छे वस्त्र निकालकर उसे पहनाओ, और उसके हाथ में अंगुठी, और पांवों में जूतियां पहिनाओ। और पला हुआ बछड़ा लाकर मारो ताकि हम खाएं और आनन्द मनावें। क्योंकि मेरा यह पुत्र मर गया था, फिर जी उठा हैः खो गया था, अब मिल गया है : और वे आनन्द करने लगे। परन्तु उसका जेठा पुत्र खेत में था : और जब वह आते हुए घर के निकट पहुंचा, तो उसने गाने-बजाने और नाचने का शब्द सुना। और उस ने एक दास को बुलाकर पूछा; यह क्या हो रहा है ? उसने उस से कहा, तेरा भाई आया है। और तेरे पिता ने पला हुआ बछड़ा कटवाया है, इसलिये कि उसे भला चंगा पाया है। यह सुनकर वह क्रोध से भर गया, और

भीतर जाना न चाहा : परन्तु उसका पिता बाहर आकर उसे मनाने लगा। उस ने पिता को उधार दिया, कि देख; मैं इतने वर्ष से तेरी सेवा कर रहा हूं। और कभी भी तेरी आज्ञा नहीं टाली, तौ भी तू ने मुझे कभी एक बकरी का बच्चा भी न दिया, कि मैं अपने मित्रों के साथ आनन्द करता। परन्तु जब तेरा यह पुत्र, जिस ने तेरी संपत्ति वेश्याओं में उड़ा दी है, आया, तो उसके लिए तू ने पला हुआ बछड़ा कटवाया। उसने उससे कहा; पुत्र, तू सर्वदा मेरे साथ है; और जो कुछ मेरा है वह सब तेरा ही है। परन्तु अब आनन्द करना और मगन होना चाहिए क्योंकि यह तेरा भाई मर गया था फिर जी गया है; खो गया था, अब मिल गया है।’’

प्रस्तावना एवं पृष्ठभूमि :- शास्त्री एवं फरीसी सामाजिक रूप से निचले तबके के लोगों को तथा नैतिक रूप से पतित लोगों को और गैर यहूदी लोगों को पापी और घृणित समझते थे। वे ऐसे लोगों से कोई संबंध नहीं रखते थे। वे उन्हें परमेश्वर के प्रेम और उसकी दया से पूर्ण रूप से अनभिज्ञ रखते थे और उन्हें आशाहीन समझते थे।

प्रभु यीशु मसीह की ऐसे लोगों के साथ सहभागिता शास्त्रियों एवं फरीसयों को बिल्कुल नापसन्द थी। वे उस पर ‘‘महसूल लेने वाले और पापियों का मित्र’’ होने का दोषारोपण करते थे।

एक दिन जब वे इसी बात पर प्रभु यीशु पर क्रोधित हो रहे थे तब प्रभु यीशु मसीह ने उनका यह व्यवहार प्रगट करने के लिए उन्हें उड़ाऊ पुत्र का दृष्टांत सुनाया। साथ ही उसने वहां उपस्थित ‘पापियों’ की संज्ञा पाये हुए लोगों को भी यह बताया कि उन्हें निराश होने की आवश्यकता नहीं है। समय रहते यदि वे परमेश्वर के पास लौट आते हैं तो उन्हें परमेश्वर एक नयी शुरूआत दे सकता है। वह प्रेमी, दयालु और क्षमा करने वाला परमेश्वर है।

विषय वस्तु :- प्रभु यीशु मसीह ने यह दृष्टांत प्रारम्भ किया कि एक मनुष्य के दो पुत्र थे। पहला पुत्र आज्ञाकारी था। पिता के काम में हाथ बंटाया करता था और उसके साथ रहता था।

दूसरा पुत्र स्वतंत्र विचारधारा का था। वह पिता के नियंत्रण में नहीं रहना चाहता था।


वह सब के साथ रहने में असंतुष्ट था। वह अपनी इच्छा से स्वतंत्रतापूर्वक जीवन जीना चाहता था। एक दिन उसने पिता से सम्पिŸा का अपना हिस्सा मांगा। पिता ने उसे उसका हिस्सा दे दिया। वह अपने हिस्से की संपत्ति लेकर विदेश चला गया। वहां उसने अपनी संपत्ति कुकर्म में उड़ा दी। जब उसके पास कुछ नहीं बचा तब उसी समय उस देश में एक बड़ा अकाल पड़ा जिससे उसकी स्थिति और भी बदतर हो गई। नौकरी मिलना कठिन हो गया। अन्त में उसे उस देश के एक निवासी ने अपने खेतों में सूअर चराने की नौकरी दी। अब उसकी यह स्थिति थी कि कोई उसे कुछ नहीं देता था यहां तक कि उसे अपना पेट भी उन्हीं फलियों से भरना पड़ता था, जिन्हें सूअर खाते थे। एक दिन अचानक पुनः उसे अपने पिता का ध्यान आया। उसने सोचा कि मेरे पिता के घर में कितने लोगों को पर्याप्त मात्रा में भर पेट भोजन उपलब्ध होता है और मैं यहां भूखा मर रहा हूं। मैं अपने पिता के पास वापस लौट जाऊंगा। मैं, उससे यह कहकर क्षमा मांगूंगा कि मैंने वास्तव में स्वर्ग के विराध में और तेरी दृष्टि में पाप किया है। मैं अब तेरा पुत्र कहलाने के योग्य नहीं। तू मुझे एक मजदूर के समान अपने यहां रख ले। यह विचार आते ही उसने और समय नहीं गवाया, वह उठा और वापस अपने पिता के घर लौट आया।

जब वह घर से कुछ दूरी पर ही था तभी उसके पिता ने उसे देखा। उस पर तरस खाया। दौड़कर उसे गले लगाया, और उसे बहुत चुमा। पुत्र ने पश्चाताप किया और पिता से क्षमा याचना की और कहा कि मैंने पाप किया है और अब तेरा पुत्र कहलाने के योग्य नहीं।

ऐसा प्रतीत होता है कि पिता उसके लौटने से ही इतना खुश था कि बेटा क्या कह रहा है, इस पर उसने गौर ही नहीं किया। उस ने अपने दासों को आज्ञा दी कि वे उसके बेटे को सर्वोत्कृष्ट वस्त्र पहनाएं। अंगूठी पहनाएं। नई जूतियां पहनाएं। इतना ही नहीं पला हुआ बछड़ा भी काटें। सब मित्रों और पड़ोसियों के साथ बड़े भोज का आयोजन करें। नाच गाने और संगीत का प्रबधं करें। सभी आनन्द के इस उत्सव में सम्भागी हों क्योंकि मेरा यह बेटा जो मर गया था, फिर जी गया है, खो गया था, अब मिल गया है।

यह दृष्टांत यहीं समाप्त नहीं होता क्योंकि प्रारंभ में ही प्रभु यीशु ने दो पुत्रों की बात कही थी।

जब शाम को ज्येष्ठ पुत्र अपना काम समाप्त कर घर लौटता है तो उसे मालूम होता है कि उसका छोटा भाई वापस लौट आया है। उसके वापस लौटने की खुशी में पिता ने भारी जश्न किया है औ


र पला बछड़ा कटवाया है। यह सुनकर वह क्रोधित होता है। वह घर के अन्दर भी नहीं जाना चाहता है। तब उसका पिता आकर उसे समझाता है कि बेटा तू तो सदैव मेरे साथ है, जो कुछ मेरा है वह सब तेरा ही है। वह उससे कहता है कि तुझे भी अपने भाई की वापसी से दुःखी न होकर आंनन्द मनाना चाहिए।

यह दृष्टांत प्रभु यीशु मसीह ने पिता के अपने बड़े बेटे को इस आमंत्रण के साथ ही समाप्त किया। यह निर्णय बेटे पर निर्भर था कि वह अपने वापस लौटे हुए भाई की खुशी में शामिल हो या घर में प्रवेश करने से इन्कार करे।

व्याख्या :- प्रभु यीशु मसीह के दृष्टांतों की यह विशेषता थी कि वह इन छोटी-छोटी घटनाओं के माध्यम से बड़ी सारगर्भित बातें लोगों को समझा दिया करता था। इस दृष्टांत में पिता, परमेश्वर का; बड़ा बेटा धार्मिक अगुवों शास्त्रियों एवं फरीसियों का और छोटा बेटा, सामाजिक रूप से तुच्छ एवं तिरस्कृत और नैतिक रूप से पतित मनुष्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

दृष्टांत की शुरूआत पिता के दो पुत्रों से होती है। परमेश्वर ने सभी मनुष्यों


को अपने स्वरूप में बनाया है। उन सब को जो प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करते है, उसने अपने पुत्र और पुत्रियां होने का अधिकार दिया है। उन सबको अपनी आज्ञाओं के दायरे में भरपूरी का जीवन बिताने का उसने अवसर दिया है। परन्तु, कुछ लोग ‘छोटे पुत्र’ की तरह परमेश्वर के साथ जीवन बिताने में संतुष्ट नहीं रह पाते। उनकी नजरें दुनिया के प्रलोभनों पर रहती हैं। वे परमेश्वर की आज्ञाओं के दायरे से बाहर निकलकर अपनी मर्जी अनुसार जीना चाहते हैं। ऐसे लोगों को परमेश्वर उनकी इच्छा पर छोड़ देता है। परमेश्वर ने मनुष्य को स्वतंत्र इच्छा दी है। वह जोर जबरदस्ती से मनुष्य को अपने पीछे चलने के लिए बाध्य नहीं करता।

कई मनुष्यों के पास बहुत योग्यताएं होती है। वे साधन सम्पन्न होते हैं, परन्तु सभी सम्पन्नता के बावजूद वे परमेश्वर से संबंध तोड़कर उससे बहुत दूर हो जाते हैं। ठीक उसी प्रकार जैसे इस दृष्टांत में छोटा पुत्र अपने हिस्से की संपत्ति लेकर दूर विदेश चला गया।

दृष्टान्त में आगे पिता की सुरक्षा से उसके प्रेम और परवरिश से दूर होने पर बेटे की बदतर स्थिति का वर्णन है। पिता की आशीष के बिना और उसकी इच्छा के विरूद्ध दूर आकर वह संपत्ति होने के बावजूद कुछ सार्थक कार्य न कर सका। उसने अपने पिता की सम्पूर्ण सम्पिŸा वेश्याओं के साथ कुकर्म में और गलत संगति में उड़ा दी। परमेश्वर हमारा रक्षक है। वह शैतान की शक्तियों और उसकी युक्तियों से हमें बचाता है। जब हम परमेश्वर से दूर चले जाते हैं और उसकी आज्ञायों को तोड़कर मनमानी करने लगते हैं, तब परमेश्वर हमें हमारे हाल पर छोड़ देता है और हम अपने चालचलन से उससे दूर होते जाते हैं। शैतान हमें आकर्षक प्रलोभनों से अप


ने जाल में फसाता जाता है। वह पाप को बहुत आकर्षक बनाता है परन्तु उसके घातक परिणामों से हमें पूर्णतः अनभिज्ञ रखता है। उसके आकर्षणों में मनुष्य को क्षणिक सुख का भले ही अहसास होता हो किन्तु यह सुख वास्तव में उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व के लिए विनाशकारी होता है। यह ऐसा सुख होता है जो बाद में मनुष्य को और भी दुःखी कर देता है। इससे ऐसी सतही संतुष्टि होती है जो उसमें और भी अधिक आन्तरिक असंतुष्टि उत्पन्न करती है। इसमें मृग मरीचिका की भांति कभी मनुष्य तृप्त नहीं होता सिर्फ भागता जाता है; और एक दिन जब थककर चूर होता है तब उसे अपनी दयनीय स्थिति का अहसास होता है। तब उसे लगता है कि परमेश्वर ने तो उसे अपने स्वरूप में सृजा था और आज अपनी इच्छा पर चलकर उसने अपने स्वरूप को कितना कुरूप और विकृत कर दिया है। उसे अहसास होता है कि परमेश्वर ने संपत्ति के रूप में ये जीवन और योग्यताएं उसे दी थीं परन्तु उसने अपनी योग्यताएं और जीवन, सब व्यर्थ में बरबाद कर दीं। कुछ भी सार्थक नहीं किया। उसे अपनी ऐसी स्थिति से आत्मग्लानि होती है।

छोटे पुत्र ने जब अपने पिता की सम्पूर्ण संपत्ति कुकर्म में उड़ा दी, तब जीवन की वास्तविकता से उसका सामना हुआ तथा आटे-दाल की कीमत का अहसास हुआ; जो कि अब तक मुफ्त में बिना मेहनत किये उसे बहुतायत में उपलब्ध था। पिता के प्रेम, दया और अनुग्रह के कारण उसने उसकी कीमत नहीं पहचानी थी बल्कि उसे तुच्छ जाना था। अब उसे अपनी आधारभूत आवश्यकता पूरी करने के लिए, अपने जीवन यापन के लिए एक विदेशी के यहां सूअर चराने की नौकरी करना पड़ी।

कितने लोग परमेश्वर के प्रेम, दया और अनुग्रह को जो बहुतायत से उस पर विश्वास करने वालों को उपलब्ध रहता है तुच्छ जानते है, उसकी कीमत नहीं पहचानते। परन्तु परमेश्वर से दूर होकर उसकी


आशीषों के बिना किसी नैतिक रूप से भ्रष्ट व्यक्ति (दृष्टान्त के अनुसार विदेशी) के लिए कार्य करने से मनुष्यों की दशा ठीक वैसे ही होती है जैसे इस दृष्टांत में छोटे पुत्र की हुई। सूअरों को चराना निम्नतम स्तर का कार्य समझा जाता था। इतना ही नहीं वह उनके भोजन से ही स्वयं अपना पेट भरने का प्रयास भी करता था क्योंकि खाने के लिए उसका स्वामी उसे कुछ भी भोजन नहीं देता था। अब न उसके कोई शुभचिन्तक थे, न मित्र, न कोई संबंधी और न ही प्यार करने वाले पिता या भाई। वह सामाजिक रूप से सबसे अलग हो चुका था। वह सोचता होगा कहां पिता के घर का राजसी ठाठ, इज्जत, आराम और जरूरत की सभी वस्तुओं की भरपूरी और कहां ऐसी निम्नतम दयनीय स्थिति। खाने के लिए पिता के घर कैसा स्वादिष्ट भोजन मिलता था और अब खाने के लिए सूअरों के भोजन के अलावा और कुछ नहीं। न चाहते हुए भी अब उसे वही खाना है।

छोटे पुत्र की ऐसी स्थिति से प्रभु यीशु मसीह ने चुंगी लेने वाले और पापियों की स्थिति प्रगट की। चुंगी लेने वाले यहूदी भी रोमियों के हाथ बिके हुए समझे जाते थे। वे अपनी भ्रष्टता से लोगों का अहित कर
ने में नहीं चूकते थे, उन्हें शास्त्री और फरीसी पापियों की ही श्रेणी में रखते थे। बाकि सभी गरीब भी इनकी दृष्टि में चोर, डाकू, हत्यारे, वेश्याओं आदि जैसे पापियों की श्रेणी में आते थे क्योंकि आर्थिक  सम्पन्नता ही इनकी धार्मिकता का मापदण्ड बन चुकी थी।

यहां यह बताया गया है कि जिस प्रकार छोटे पुत्र की पिता से दूर होकर दुर्दशा हुई, वैसे ही दुर्दशा विश्वासियों की; परमेश्वर से दूर होकर होती है। परमेश्वर के पास रहने में जहां आत्मिक भोजन भरपूरी से उपलब्ध रहता है जिससे वास्तव में आत्मा तृप्त होती है। वहीं परमेश्वर से दूर होकर किसी भ्रष्ट के साथ रहने से ऐसा नैतिक पतन होता है जिसका परिणाम त्रासदीपूर्ण आत्मिक अकाल होता है। जिसमें आत्मा को भूख और प्यास तो लगती है परन्तु खाने को सूअरों का भोजन अर्थात शैतान की संसार में फैलायी हुई गंदगी ही खाने को मिलती है। और जब तक उसे ठोस आत्मिक भोजन न मिले वह इस गंदगी को खाकर अपनी आत्मा को चाहकर भी कभी तृत्प नहीं कर सकता । परमेश्वर के बिना मनुष्य आत्मिक रूप से पूरी तरह कंगाल है।

यहां भ्रष्ट और पापियों की स्थिति का चित्रण है, जिनके बीच में घोर आत्मिक अकाल होता है। अच्छा आत्मिक भोजन चाहने पर भी उनके बीच नहीं मिल सकता क्योंकि उनके पास देने के लिए सांसारिक भ्रष्टता के अलावा और कुछ नहीं। ऐसी स्थिति में सामान्यतः मनुष्य की दो प्रकार की प्रतिक्रियाएं होती हैं। वे या तो अपनी आशाहीन स्थिति से निराश होकर तथा हार मानकर आत्महत्या कर लेते हैं या फिर कुछ अपने हृदय में यह निश्चय करते हैं कि वे उसी स्थिति में नहीं रहेंगे, वे अपनी कमजोरियों पर विजय प्राप्त करेंगे, खराब संगति छोड़ेंगे और सही मार्ग पर आगे बढ़ेंगे।

एक दिन छोटे पुत्र को अपने गलत निर्णय का परिणाम समझ में आता है और जब वह पिता के साथ रहने के समय की स्थिति का अपनी वर्तमान की स्थिति से तुलना करता है तब उसे अपनी पतित अवस्था का और भी अच्छी तरह से अहसास होता है। वह अपने किये पर पछताता है और पिता के पास वापस लौटने का निर्णय करता है। अब वह अपने निर्णय को कुछ और समय के लिए नहीं टालता, किन्तु निर्णय पर अमल करता है और पिता के घर वापस लौट जाता है। यह उसके सच्चे पश्चाताप को प्रगट करता है। वह पिता के पैरों पर गिरता है और यह कहकर अपनी गलती स्वीकार करता है कि उसने स्वर्ग के विरोध में और पिता की दृष्टि में पाप किया है और अब उसका बेटा कहलाने के योग्य भी नहीं। किन्तु फिर भी वह उसे अपने एक मजदूर के ही समान अपने घर में रहने दे।

अब चित्रण है पिता के प्रेम का। ऐसा बेटा जो उत्तराधिकार  ठुकरा चुका था। पिता की मेहनत की कमाई कुकर्म में उड़ा चुका था। जिसने पिता के इच्छा के विपरीत ही कार्य किये थे और जिसने अपने गलत चालचलन से पिता को शर्मिन्दा किया था, वह बेटा वापस लौटता है। इस दृष्टांत में ऐसा प्रतीत होता है मानो उड़ाऊ पुत्र के पिता और भाई ने उसके संबंध में पूर्ण जानकारी रखी थी; कि वह कहां जा रहा है, क्या कर रहा है, कैसे उसकी स्थिति बद से बदतर होती जा रही है, कैसे वह भोजन के लिए तरस रहा है और अकाल से जूझ रहा है। यहां यह भी प्रश्न मन में आता है कि पिता यदि इतना दयालु और प्रेमी था तो उसने बेटे की ऐसी दशा में उसकी सहायता क्यों नहीं की ? उसे वापस अपने पास क्यों नहीं बुलाया ? और शायद इसका सही  उत्तर यह है  कि ऐसा करने से संभव था कि यदि पिता अपने इस बेटे की सहायता करता रहता तो वह कभी नहीं सुधरता और पिता की संपत्ति कुकर्म में ही उड़ाता रहता। यह भी संभंव था कि यदि पिता स्वयं उसे बुलाता तो वह पिता के आमंत्रण को ठुकरा देता। इसलिए पिता ने धीरज से उसके स्वयं वापस लौटने की प्रतीक्षा की। पिता के हृदय में यह बात जरूर आई होगी कि अब कंगाली और भुखमरी की अवस्था में शायद बेटा वापस लौट ही आएगा, इसलिए ऐसा लगता है मानो पिता उसके आने की ही प्रतीक्षा कर रहा था और दूर से ही देखकर वह ‘दौड़कर’ उससे मिलता है। ऐसे बेटे को हृदय से लगा लेता है जिसने अपने कार्यों से  और चालचलन से निरन्तर उसका दिल दुखाया था। पुत्र पश्चाताप के शब्द कह रहा था किन्तु पिता तो उसकी वापसी से ही उसका पश्चाताप समझ गया था। उसे अब शब्दों की आवश्यकता नहीं थी। उसने अपने जिस बेटे को राजकुमार की तरह रखा था अब एक भिखारी की नाई चीथड़ों में उसके सामने खड़ा था फिर भी पिता को सबके सामने उसकी ऐसी स्थिति में भी उसे गले लगाने में कोई हिचक नहीं हुई। वह उसे वैसी ही स्थिति में स्वीकार करता है, चूमता है। अपना प्रेम और असीम आनन्द प्रगट करता है। ऐसा करके पिता यह भी प्रगट करता है कि उसने उसे बेटे के रूप में ही पुनः स्वीकार कर लिया है।

यहां प्रभु यीशु मसीह ने यह प्रगट किया कि मनुष्य चाहे कितनी ही पतित अवस्था में क्यों न हो यदि समय रहते वह पश्चाताप करे तो उसे उसी स्थिति में रहने की आवश्यकता नहीं । उसे परमेश्वर के पास आना है और उसे क्षमा मांगना है। परमेश्वर उसे वैसी ही स्थिति में स्वीकार करेगा और उससे प्रेम करेगा और उसे जीवन की नई शुरूआत करने का एक और मौका देगा।

पिता ने न सिर्फ पुत्र को गले लगाकर चूमा और अपना प्रेम प्रगट किया परन्तु इसके साथ ही अपने दासों को निर्देश दिया कि बेटे को सबसे अच्छे वस्त्र पहनाओ, जो आदर और इज्जत के प्रतीक थे और प्रमुख अतिथियों के लिए रखे जाते थे। उसने बेटे को हाथ में अंगूठी पहनायीं जो अधिकार का प्रतीक थी। पैरों में जूतियां पहनायीं जो स्वतंत्रता का प्रतीक थीं। गुलाम, दास और गरीब नंगे पांव रहते थे। वे जूतियां नहीं पहना करते थे। इन प्रतीक चिन्हों से पिता ने सब पर यह बात प्रकट की कि उसने अपने इस बेटे को पुनः बेटे के ही रूप में पूर्ण रूप से स्वीकार किया है और वह चाहता है कि सब उसके बेटे का अधिकार समझें और उसकी इज्जत करें।

यह उड़ाऊ पुत्र ऐसी स्थिति में पहुंच गया था कि वह स्वयं अपनी मदद करने में असमर्थ था। कोई दूसरे भी उसकी मदद करने को तैयार नहीं थे। वह अपने आप से निराश हो चुका था, परिस्थितियों से जूझकर टूट चुका था। वह असहाय, बेसहारा और नितांत अकेला हो चुका था। ऐसी स्थिति में उसने आत्महत्या जैसा जघन्य पाप न कर पुनः पिता के पास लौटने का निर्णय लिया। वह अपने जीवन में एक गलत निर्णय का परिणाम भुगत चुका था और अब उसने सही निर्णय का भी परिणाम देखा। उसे पिता का प्रेम मिला और एक बार पुनः जीवन की नई शुरूआत करने का मौका मिला जो उसके स्वयं के बस की बात नहीं बल्कि एक असंभव सी बात थी।

पिता ने सब परिचितों को आमंत्रित किया और खोए हुए बेटे के मिलने की खुशी में एक बड़ा जश्न किया और सब के साथ आनन्द मनाया।

जब स्वर्ग में एक पापी के मन फिराने से परमेश्वर और स्वर्गदूत आनन्द मनाते हैं, तब यह पृथ्वी पर सभी विश्वासियों के लिए भी बहुत आनन्द की बात होना चाहिए।

बिछड़े हुए बेटे का पिता से मिलने और जश्न पर ही दृष्टांत समाप्त नहीं होता। बड़ा बेटा कार्य समाप्त कर घर लौटता है। उसे नाच-गाने और संगीत का शोर सुनाई देता है। जल्द ही उसे मालूम पड़ता है कि उसका छोटा भाई वापस लौट आया है और इसी खुशी में पिता ने पला हुआ बछड़ा कटवाया है और भारी जश्न किया है। उसे लगता है कि पिता का यह कैसा पक्षपातपूर्ण व्यवहार है। जिस बेटे ने उसकी संपत्ति कुकर्म में उड़ा दी , जिसने उन सबके साथ रहने से इन्कार कर दिया, जिसने घर की मान-मर्यादा के विरोद्ध कार्य किया, उसके वापस लौटने पर पिता की इतनी खुशी उसे पूर्ण रूप से अनुचित पतीत होती है। उसे यह जानकर और भी ईर्ष्या होती है कि छोटे भाई के आने की खुशी में पिता ने पला हुआ बछड़ा भी कटवाया है। इस ईर्ष्या और नकारात्मक विचार से बड़़ा बेटा क्रोधित होता है और घर के अन्दर आने से इन्कार करता है।

पिता जो एक बार छोटे पुत्र के स्वागत के लिए घर से निकला था, अब दूसरी बार पुनः बड़े बेटे के स्वागत के लिए भी निकलता है। वह उससे भी उतने ही प्यार से अन्दर आने का आग्रह करता है। छोटे बेटे ने अपने कुकर्मों से स्वयं को पिता से दूर कर लिया था और अब बड़े बेटे ने अपने हठ और डाह के कारण स्वयं को पिता से दूर कर लिया। उसने पिता से जिरह करते समय न ही उसे पिता कहकर सम्बोधित किया और न ही अपने भाई को भाई कहकर। वह स्वयं को पिता के पुत्र नहीं बल्कि एक आज्ञाकारी सेवक के रूप में देखता है। जिसके लिए पिता के हृदय में कोई प्रेम नहीं। पिता के हृदय में प्रेम है तो सिर्फ उस बेटे के लिए जिसने उसकी सम्पूर्ण संपत्ति कुकर्म में उड़ा दी। इस प्रकार वह पिता और भाई के प्रति कडुवाहट से भर जाता है।

पिता अपने बड़े बेटे को बहुत प्यार से समझाता है कि तू हमेशा मेरे साथ है। तू ही मेरा उत्तराधिकारी है परन्तु तेरा भाई जो मर गया था वह फिर जी गया है; खो गया था अब मिल गया है। अतः अब आनन्दित और मगन हो।

प्रभु यीशु मसीह ने बड़े बेटे के व्यवहार से शास्त्रियों और फरीसियों की ओर इशारा किया। जो प्रभु यीशु मसीह के पापियों के साथ संगति रखने पर कुड़कुड़ाते थे, और उस पर क्रोधित होते थे। वे सोचते थे कि वे तो हमेशा से व्यवस्था को मानते हैं। विधिवत सभी रीति-रिवाजों को पूरा करते हैं। अपनी इसी सतही धार्मिकता के घमंड में वे इस भ्रम में रहते थे कि सिर्फ वे ही स्वर्ग के राज्य में प्रवेश के ‘अधिकारी’ हैं बाकि ‘पापियों’ के लिए सिर्फ परमेश्वर का क्रोध और दण्ड है। प्रभु यीशु मसीह का ‘पापियों’ के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार उन्हें नागवार लगता था। उनके साथ प्रभु यीशु मसीह की संगति को वे अनुचित समझते थे। अपनी धार्मिकता के अहं और हृदय की कठोरता के कारण वे परमेश्वर के प्रेम और क्षमा को समझते ही नहीं थे और यद्यपि वे कुकर्म नहीं करते थे परन्तु इन्हीं कारणों से वे वास्तव में परमेश्वर से दूर रहते थे। वे पापियों के मन फिराने से कभी भी खुशी का अनुभाव नहीं करते थे। 

प्रभु यीशु मसीह ने उन्हें इस दृष्टांत के माध्यम से बताया कि पश्चातापी को भी परमेश्वर ग्रहण करता है। क्षमा करता है और नयी शुरूआत का अवसर भी देता है। इससे शास्त्रियों और फरीसियों को भी दुःखी न होकर आनन्द मनाना चाहिये। प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने वाले सभी परमेश्वर के पुत्र हैं और वह उन सबका प्रेमी, दयालु और अनुग्रहकारी पिता है।

इस दृष्टांत में पिता ने बड़े बेटे को भी घर के अन्दर आने का आमंत्रण दिया। उसके घर के द्वार खुले थे। अब निर्णय स्वयं बड़े बेटे पर था कि वह या तो अन्दर चला जाए ये पिता के आमंत्रण को ठुकरा दे।

प्रभु यीशु मसीह ने स्वष्ट किया कि स्वयं के लेखे में धर्मी और घमंडी मनुष्य जो दूसरों के न्यायी बन बैठते हैं, उन्हें आत्मावलोकन करना है। वे भी ऊपरी तौर पर परमेश्वर के साथ रहते हुए आन्तरिक रूप से परमेश्वर से दूर तो नहीं ? कहीं अपने पाखण्ड को अहमियत देने के कारण वे परमेश्वर के आमंत्रण को ठुकरा तो नहीं रहे ? 

व्यवहारिक पक्ष एवं आत्मिक शिक्षा :- 1. प्रत्येक सच्चे पश्चातापी को परमेश्वर स्वीकार करता है। चाहे वह कितनी भी निम्न और पतित अवस्था में हो वह उसे क्षमा करता है और उसे नयी शुरूआत करने का अवसर देता है। वह हमारे सब पापों को क्षमा करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है।

मनुष्य को आवश्यकता है कि वह अपनी गलतियों को समझे, पश्चाताप करे और परमेश्वर के पास जाए तथा उसकी सामर्थ और आशीषों के साथ जीवन में आगे बढ़े।

2. जब हम पिता के घर अर्थात कलीसिया में रहते हैं तब हमें अच्छा वातावरण और अच्छी संगति मिलती है और खाने को उत्तम आत्मिक भोजन मिलता है। परन्तु जब हम पिता के घर से दूर हो जाते हैं और उसकी आज्ञाओं की अवहेलना करने लगते हैं तो हम बुरी संगति और खराब आदतों के गुलाम बनते जाते हैं। तब हमारी आत्मा को इस संसार में शैतान द्वारा फैलायी हुई गंदगी ही (सूअरों का भोजन) मिलती है। जिससे हमारा जीवन कभी स्वस्थ एवं सुखी नहीं रह सकता। इसलिए हमें परमेश्वर पिता से, कलीसिया से एवं विश्वासी भाई बहनों से उचित संबंध रखना है और उसी में संतुष्ट रहकर आगे बढ़ना है।

जब कोई सच्चा पश्चातापी परमेश्वर के पास लौटता है तो परमेश्वर स्वर्गदूतों के साथ आनन्द मनाता है क्योंकि वह नहीं चाहता कि कोई भी नाश हो।

धार्मिक अगुवों, प्रचारकों एवं अन्य सभी विश्वासियों को भी एक आत्मा के बचाए जाने पर खुश होना चाहिए और उस नये विश्वासी को अपने भाई के रूप में स्वीकार करना चाहिए।


Comments

  1. Another notable insurance coverage that many businesses want is Workers’ Compensation Insurance. If your corporation will have employees, it’s an excellent probability that your state will require you to hold Workers' Compensation Coverage. Just as with licenses and permits, your corporation wants insurance in order to to} operate safely and lawfully. Business Insurance protects your company’s monetary wellbeing within the event of a covered loss. Additionally, studying method to|tips on how to} construct business CNC machining credit score might help you get bank cards and other financing in your corporation's name , better rates of interest, greater strains of credit score, and more. You can type an LLC your self and pay only the minimal state LLC prices or hire one of many Best LLC Services for a small, additional fee.

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

पाप का दासत्व

श्राप को तोड़ना / Breaking Curses

भाग 6 सुसमाचार प्रचार कैसे करें?