उगने वाले बीज का दृष्टान्त

 उगने वाले बीज का दृष्टान्त

सन्दर्भ :- मरकुस 4ः26-29 - ‘‘फिर उस ने कहा; परमेश्वर का राज्य ऐसा है, जैसे कोई मनुष्य भूमि पर बीज छींटे। और रात को साए और दिन को जागे और वह बीज ऐसे उगे और बढ़े कि वह न जाने। पृथ्वी आप से आप फल लाती है पहिले अंकुर, तब बाल, और तब बालों में तैयार दाना। प्ररन्तु जब दाना पक जाता है, तब वह तुरन्त हंसिया लगाता है, क्योंकि कटनी आ पहुंची है।’’

प्रस्तावना एवं पृष्ठभूमि :- इस दृष्टान्त का उल्लेख केवल मरकुस रचित सुसमाचार में ही मिलता है। यह दृष्टान्त प्रभु यीशु मसीह ने गलील की झील में एक नाव पर चढ़कर उस विशाल जन समूह को सुनाया जो उसके पास एकत्रित था। दृष्टान्तों के माध्यम से स्वर्ग की बड़ी-बड़ी बातें प्रभु यीशु मसीह ने साधारण लोगों को बहुत ही छोटे एवं आसान उदाहरण देकर सरलता पूर्वक समझायीं।

इस दृष्टान्त के माध्यम से प्रभु यीशु मसीह लोगों को बताना चाहता था कि लोग परमेश्वर के राज्य के प्रति अपनी जिम्मेदारी पूरी करें। इस राज्य को बढ़ाना उसकी अद्भुत सामर्थ और अनुग्रह से ही संभव है और एक दिन उसका अन्तिम न्याय निश्चित है।

विषय वस्तु :- किसी मनुष्य ने किसी भूमि पर बीज छिटके। (यहां किसी विशेष खेत का या भूमि तैयार करने का उल्लेख नहीं है) छिटकने अर्थात् बीज को विधिवत् बोने खाद डालने एवं सींचने का भी कोई वर्णन नहीं है। फिर आगे उस मनुष्य की सामान्य दिनचार्या का वर्णन है कि वह रात में सोता है और दिन में जागता है। उसके छींटे हुए बीज उगतें हैं, बढ़ते हैं और फिर उनमें बालें आती हैं। जब ये बालें पककर तैयार होती हैं तब मनुष्य समझता है कि फसल कटनी के लिये तैयार है और वह फसल को हंसिया चलाकर काटता है।

व्याख्या :- इस दृष्टान्त से प्रभु यीशु मसीह लोगों को प्रचार की और गवाही की प्रमुखता बताना चाहता था। वह चाहता था कि लोग परमेश्वर के राज्य के प्रति अपनी इस महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को समझें। वचन के बीज बोने का कार्य हमारा है। चाहे यह कार्य हम आर्थिक सहायता तथा प्रार्थना के द्वारा योग्य लोगों के माध्यम से कराएं। इस कार्य को हमें विश्वासयोग्यता से पूरा करना है। परमेश्वर हमारी इस सेवकाई को अशीषित करता है। इस दृष्टान्त में व्यक्ति ने केवल बीज बाने का कार्य किया। इसके लिए न ही उसने भूमि जोतकर या खाद डालकर तैयार की, न ही उसने बीजों की कोई देखरेख की।

परमेश्वर ने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा अपने राज्य की स्थापना के लिये यह पूरा संसार हमें दिया है। भूमि के रूप में पड़ोस, समाज, कस्बा, गांव, शहर, देश-प्रदेश एवं सम्पूर्ण संसार उपलब्ध है। हमारी जिम्मेदारी केवल इस भूमि में वचन के बीज बोना है। इन बीजों को परमेश्वर अपनी सामर्थ और अपने अनुग्रह से फलवन्त करता है। जिस प्रकार एक बीज अंकुरित होता और उसमें अनेकों दाने लगते है, उसी प्रकार वचन के प्र्रचार से परमेश्वर के राज्य की आश्चर्यजनक रीति से बढ़ती होती है।

यहां बीज बोने वाले मनुष्य की सामान्य दिनचर्या का उल्लेख है, जिसका अर्थ है कि हमें वचन के प्रचार के साथ ही साथ एक सामान्य जीवन भी व्यतीत करना है। वचन के प्रचार के बाद के परिणामों पर चिन्तन करना अथवा उस पर टीका टिप्पणी करना हमारा कार्य नहीं है। हमें धीरज के साथ उसके परिणाम को परमेश्वर के हाथ में छोड़ देना है। जिस प्रकार याकूब 5ः7-8 में लिखा है, ‘‘सो हे भाइयो प्रभु के आगमन तक धीरज धरो, देखो गृहस्थ पृथ्वी के बहुमूल्य फल की आशा रखता हुआ प्रथम और अन्तिम वर्षा होने तक धीरज धरता है। तूम भी धीरज धरो और अपने हृदयों को दृढ़ करो।’’ जो सेवकाई परमेश्वर के नाम में विश्वास, समर्पण एवं लगन से प्रांरभ की जाती है उसे परमेश्वर आशीषित करता है। पौलुस ने फिलिप्पियों 1ः6 में कलीसिया के लोगों को निश्चयता से लिखा है कि ‘‘मुझे इस बात का भरोसा है कि जिसने तुम में अच्छा काम आरम्भ किया है वही उसे यीशु मसीह के दिन तक पूरा करेगा।’’ जिस प्रकार से बोने वाला बीज बोता है किन्तु उस बीज को परमेश्वर ही अंकुरित करता, बढ़ाता और फलवन्त करता है। हमें परमेश्वर के महान प्रेम एवं उद्धार की योजना के विषय में सबको बताना है। हो सकता हैं हमारी गवाही बहुत बार व्यर्थ सी नजर आए। मगर इससे हमें निराश होकर हिम्मत नहीं हारना है। यदि हमारी गवाही के बीजों का एक भाग भी अच्छी भूमि में गिरेगा तो वह हमारी आशा से कहीं अधिक बढ़कर फलेगा। (मरकुस 4ः3-8 के अनुसार) यह परमेश्वर की अद्भुत सामर्थ है जो हमारी सीमित बुद्धि एवं समझ से परे है। इसकी थाह हम नहीं पा सकते। हमसे अपेक्षा है कि हम प्रभु यीशु मसीह के अनुग्रह और पहचान में बढ़ते जाएं। (2 पतरस 3ः18)

29 वें पद में प्रभु यीशु मसीह ने परमेश्वर के अन्तिम न्याय की ओर इशारा किया है। इसी बात का जिक्र क्रमशः मत्ती 3ः12 एवं मत्ती 13ः30 में भी मिलता है। ये बातें पवित्रात्मा से भरकर यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने कहीं और फिर बाद में स्वयं प्रभु यीशु मसीह ने कहीं। परमेश्वर का अन्तिम न्याय निश्चित है। वह धीरज से प्रतीक्षा कर रहा है कि हर एक मनुष्य बचाया जाए। कोई भी नाश न हो। (2 पतरस 3ः9) इस न्याय से बचना अनहोना है। यूहन्ना ने प्रकाशित वाक्य 14ः12-16 में भी यही लिखा है कि, ‘‘पवित्र लोगों का धीरज इसी में है जो परमेश्वर की आज्ञाओं को मानते और यीशु पर विश्वास रखते हैं। और मैनें स्वर्ग से यह शब्द सुना, कि लिख; मुरदे प्रभु में मरते है, वे अब से धन्य हैं, आत्मा कहता है, हां क्योंकि वे अपने परिश्रमों से विश्राम पाएंगे, और उनके कार्य उनके साथ हो लेते हैं। और मैं ने दृष्टि की, और देखो, एक उजला बादल है, और उस बादल पर मनुष्य के पुत्र सरीखा कोई बैठा है, जिसके सिर पर सोने का मुकुट और हाथ में चोखा हंसुआ है। फिर एक और स्वर्गदूत ने मन्दिर में से निकलकर उस से जो बादल बैठा था, बड़े शब्द से पुकारकर कहा, कि अपना हंसुआ लगाकर लवनी कर, क्यांकि लवने का समय आ पहुंचा है इसलिये कि पृथ्वी की खेती पक चुकी है। सो जो बादल पर बैठा था उसने पृथ्वी पर अपना हंसुआ लगाया और पृथ्वी की लवनी की गई।’’

फसल की कटनी अर्थात् अन्तिम न्याय की बात पूर्ण रूप से परमेश्वर के अधिकार की बात है। हमको अपनी जिम्मेदारी धीरज, शान्ति और विश्वासयोग्यता से पूरी करना है। हमें किसी के पापी और धर्मी होने का न्याय करने का अधिकार नहीं है। यह न्याय परमेश्वर करेगा। उसकी कटनी का यह समय कब आ जाएगा। यह बात भी किसी को नहीं मालूम। लिखा है वह ‘तुरन्त’ हंसिया लगाएगा। अर्थात् अनुग्रह के काल के खत्म होने पर किसी को भी हृदय परिवर्तन के लिए अन्तिम चेतावनी देकर अतिरिक्त समय नहीं दिया जाएगा।

व्यवहारिक पक्ष एवं आत्मिक शिक्षा :- 

1. परमेश्वर के राज्य के विस्तार की निम्मेदारी सभी विश्वासियों की है। हमें विश्वासयोग्यता से इस जिम्मेदारी को पूर्ण करना है।

2. एक दिन परमेश्वर का अन्तिम न्याय निश्चित है, उस समय से पूर्व हमें उसके न्याय के लिये तैयार रहना है।


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