दस मोहरों का दृष्टान्त
दस मोहरों का दृष्टान्त
संदर्भ :- लूका 19ः11-27 - ‘‘जब वे ये बातें सुन रहे थे, तो उसने एक दृष्टान्त कहा, इसलिये कि व
ह यरूशलेम के निकट था, और वे समझते थे, कि परमेश्वर का राज्य अभी प्रगट हुआ चाहता है। सो उस ने कहा, एक धनी मनुष्य दूर देश को चला ताकि राजपद पाकर फिर आए। और उस ने अपने दासों में से दस को बुलाकर उन्हें दस मुहरें दीं, और उन से कहा, मेरे लौट आने तक लेन-देन करना। परन्तु उसके नगर के रहने वाले उस से बैर रखते थे, और उसके पीछे दूतों के द्वारा कहला भेजा, कि हम नहीं चाहते, कि यह हम पर राज्य करे। जब वह राजपद पाकर लौट आया, तो ऐसा हुआ कि उस ने अपने दासों को जिन्हें रोकड़ दी थी, अपने पास बुलवाया कि मालूम करे कि उन्होंने लेन-देन से क्या-क्या कमाया है। तब पहिले ने आकर कहा, हे स्वामी तेरे मोहर से दस और मोहरें कमाई हैं। उसने उससे कहा; धन्य हे उत्दातम दास, तुझे धन्य है, तू बहुत ही थोड़े में विश्वासी निकला अब दस नगरों पर अधिकार रख। दूसरे ने आकर कहा; हे स्वामी तेरी मोहर से पांच और मोहरें कमाई हैं। उस ने उससे भी कहा, कि तू भी पांच नगरों पर हाकिम हो जा। तीसरे ने आकर कहा; हे स्वामी देख, तेरी मोहर यह है, जिसे मैं ने अंगोछे में बान्ध रखी। क्योंकि मैं तुझसे डरता था, इसलिए कि तू कठोर मनुष्य है : जो तू ने नहीं रखा उसे उठा लेता है, और जो तू ने नहीं बोया, उसे काटता है। उस ने उससे कहा, हे दुष्ट दास, मैं तेरे ही मुंह से तुझे दोषी ठहराता हूं : तू मुझे जानता था कि कठोर मनुष्य हूं, जो मैं ने नहीं रखा उसे उठा लेता, और जो मैंने नहीं बोया, उसे काटता हूं। तो तू ने मेरे रूपये कोठी में क्यों नहीं रख दिए, कि मैं आकर ब्याज समेत ले लेता ? और जो लोग निकट खड़े थे, उस ने उन से कहा वह मोहर उस से ले लो और जिसके पास दस मोहरें हैं उसे दे दो। (उन्होंने उससे कहा, हे स्वामी, उसके पास दस मोहरें तो हैं)। मैं तुम से कहता हूं, कि जिसके पास है, उसे दिया जाएगा; और जिसके पास नहीं, उससे वह भी जो उसके पास है ले लिया जाएगा। परन्तु मेरे उन बैरियों को जो नहीं चाहते थे कि मैं उन पर राज्य करूं, उनको यहां लाकर मेरे सामने घात करो।’’
प्रस्तावना एवं पृष्ठभूमि :- यह दृष्टान्त प्रभु यीशु मसीह ने लोगों को उस समय सुनाया जब वह यरीहो से होकर यरूशलेम को जा रहा था कि सम्पूर्ण मानव जाति के पापों का दण्ड स्वयं सहे, क्रूस पर चढ़ाया जावे और मनुष्य के उद्धार की महानतम योजना को पूर्ण करे। लोग समझ रहे थे कि यरूशलेम में उसका राज्यभिषेक होगा, वह राजा बनेगा और लोगों को रोमी साम्राज्य के अत्याचारों से मुक्ति दिलाएगा।
लोग सोचते थे कि परमेश्वर का राज्य अभी शीघ्र ही प्रगट होने पर है। प्रभु यीशु ने इस दृष्टान्त के द्वारा लोगों को बताया कि उसका राज्य तो प्रगट होने पर है साथ ही उसे स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार भी दिया जाएगा किन्तु वह सांसारिक राज्य की नहीं परन्तु आत्मिक राज्य की बातें कर रहा था। उसने लोगों पर प्रगट किया कि पहले उसका स्वर्गारोहण होगा। वह दूर देश को जाएगा फिर कुछ समय बाद वह वापस लौटेगा और देखेगा कि किसने उसकी उनुपस्थिति में कितनी विश्वासयोग्यता से अधिक से अधिक कार्य किये हैं।
यह दृष्टान्त मत्ती के तोड़ों के ही दृष्टान्त के समान प्रतीत होता है किन्तु दोनों में कुछ भिन्नता है जिसका उल्लेख यहां किया जा रहा है।
मत्ती 25ः14-30 के अनुसार प्रभु यीशु मसीह ने तोड़ो का दृष्टान्त जैतून के पहाड़ पर चेलों को उस समय सुनाया, जब वे उसके द्वितीय आगमन का समय जानने के लिए अत्यन्त उत्सुक थे। वह उन्हें बताना चाहता था कि उसका दूसरा आगमन कब होगा, इस पर चर्चा करके समय गंवाना व्यर्थ है। प्रमुख ध्यान देने योग्य बात यह है कि हर एक को उसकी क्षमता के अनुसार भिन्न-भिन्न योग्यताएं और जिम्मेदारियां परमेश्वर ने सौंपी है। कुछ लोगों को अधिक कुछ को कम। मगर सभी से अपेक्षा है कि उसकी इस संसार में प्रत्यक्ष अनुपस्थिति में अपनी योग्यताओं का भरपूरी से उपयोग करें और जिम्मेदारियों को विश्वासयोग्यता से निभाएं। हमें कर्मठता एवं सूझबूझ से स्वयं को स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के योग्य बनाना है ताकि जब भी स्वर्ग का राज्य प्रगट हो, हम उसमें प्रवेश कर सकें।
लूका में प्रभु यीशु मसीह द्वारा दिए गए दृष्टान्त के अनुसार केवल पास्टर या प्रचारक को ही नहीं किन्तु हर एक विश्वासी को एक ही समान, जिम्मेदारी सौंपी गई है और प्रभु यीशु मसीह की इस संसार मे प्रत्यक्ष अनुपस्थिति में उसे पूरी विश्वासयोग्यता और भरपूरी से निभाने की अपेक्षा की गई है।
दोनों ही दृष्टान्तों में ये बातें निश्चित हैं कि एक दिन हमें प्रभु यीशु मसीह को लेखा देना है और विश्वासयोग्यता के आधार पर वह हमें इनाम देगा।
दोनों दृष्टान्तों में प्रभु यीशु मसीह का यह अभिप्राय कतई नहीं कि धनवान और धनवान होते जावेंगे तथा गरीब और गरीब। प्रमुख बात यह है कि छोटी से छोटी जिम्मेदारी को लगन, परिश्रम और विश्वासयोग्यता से पूरा करना है और छोटी से छोटी योग्यताओं का भरपूरी से उपयोग करना है। मसीही जीवन कर्मठता एवं अवसर का भरपूर लाभ उठाने का जीवन है। जो ऐसा करने में असफल होता है उसे परमेश्वर आशीषित नहीं करता और जो कुछ उसके पास है वह भी उससे ले लेता है।
लूका में जिन दासों ने विश्वासयोग्यता से जिम्मेदारी निभायी, उनसे यह नहीं कहा गया कि बहुत काम कर लिया अब आराम करो और चैन से रहो किन्तु उन्हें और भी बड़ी जिम्मेदारियां सौंपी गई। यहां विश्वासियों के पृथ्वी पर के जीवन के विस्तार की बात है जबकि मत्ती के तोड़ों के दृष्टान्त में पृथ्वी का जीवन विश्वासयोग्यता से पूर्ण कर स्वर्ग के राज्य में प्रवेश की बात है।
मोहरों के दृष्टान्त में एक ही जिम्मेदारी प्रत्येक विश्वासी को सौंपे जाने का तात्पर्य यह है कि प्रत्येक विश्वासी को परमेश्वर पिता, पुत्र एवं पवित्रआत्मा की गवाही देना है तथा भटकी हुई आत्माओं को उसके राज्य के लिए जीतना है। अन्त में प्रभु यीशु मसीह प्रत्येक विश्वासी से लेखा लेगा कि हमारा जीवन उसके लिए कितना उपयोगी रहा ? हमने कितनी विश्वासयोग्यता और परिश्रम से उसके राज्य की बढ़ती के लिए प्रयास किया ? हमें हाथ पर हाथ रखकर उसके राज्य की बाट नहीं जोहना है, किन्तु, उसके लिए अधिक से अधिक कार्य करना है।
स्वयं उद्धार प्राप्त कर लेना तो प्रमुख है ही परन्तु साथ ही साथ दूसरों को भी बचाना अनिर्वाय है। आत्मकेन्द्रित होकर हम परमेश्वर के लिए विश्वासयोग्य नहीं हो सकते। जो मौका हमें परमेश्वर ने सौंपा है उसे वैसे ही वापस नहीं लौटाना है बल्कि उसका भरपूरी से उपयोग करना है। उससे बहुतेरों को परमेश्वर के राज्य के लिए प्रभावित करना है।
इस दृष्टान्त में प्रभु यीशु मसीह ने यह भी प्रगट किया कि उसकी संसार में अनुपस्थिति के समय लोगों को यह निर्णय करने की स्वतंत्रता रहेगी कि वे उसके प्रति विश्वासयोग्य रहें। वे उसकी सेवकाई का कार्य विश्वासयोग्यता से करें या उसका इन्कार करें। किन्तु साथ ही उसने यह भी प्रगट किया कि ऐसे बागी और विद्रोही निश्चित रूप से धात किये जाएंगे। प्रत्येक मनुष्य को स्वयं की नियति के लिए निर्णय अभी करना है।
व्यवहारिक पक्ष एवं आत्मिक शिक्षा :- हमारे कार्यक्षेत्र भिन्न-भिन्न हो सकते हैं किन्तु हम सबसे परमेश्वर यह अपेक्षा करता है कि हम परिश्रम, लगन और सच्चाई से अपनी सभी जिम्मेदारियों को पूरा करें। उसकी अनुपस्थिति में भी निरन्तर कर्मठता पूर्वक आज्ञाकारिता एवं विश्वासयोग्यता का जीवन जिएं। अवसर को बहुमूल्य जानकर उसके राज्य की बढ़ती के लिए अधिक से अधिक कार्य करें। हममें से प्रत्येक धन से नहीं तो कम से कम अपनी जीवन शैली से तो मसीह की गवाही दे ही सकता है। किसी भी कारण से उसकी गवाही न देना या इसमें आनाकानी करना तथा ऐसा करके उसके साथ विश्वासघात करना परमेश्वर के क्रोध को आमंत्रण देना होगा।
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