अन्तिम न्याय का दृष्टान्त

अन्तिम न्याय का दृष्टान्त

सन्दर्भ :- मत्ती 25ः31-46 जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा, और सब स्वर्गदूत उसके साथ आएंगे तो वह अपनी महिमा के सिंहासन पर विराजमान होगा। और सब जातियां उसके सम्हने इकट्ठी की जाएंगी; और जैसा चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग कर देता है, वैसा ही वह उन्हें एक दूसरे से अलग करेगा। और वह भेड़ों को अपनी दहिनी ओर और बकरियों को बाईं ओर खड़ी करेगा। तब राजा अपनी दाहिनी ओर वालों से कहेगा, हे मेरे पिता के धन्य लोगो, आओ, उस राज्य के अधिकारी हो जाओ, जो जगत के अदि से तुम्हारे लिये तैयार किया हुआ है। क्योंकि मैं भूखा था, और तुम ने मुझे खाने को दिया; मैं प्यासा था, और तुम ने मुझे पानी पिलाया, मैं परदेशी था, तुम ने मुझे अपने घर में ठहराया। मैं नंगा था, तुम ने मुझे कपड़े पहिनाए; मै बिमार था, तुम ने मेरी सुधि ली, मैं बन्दीगृह में था, तुम मुझ से मिलने आए। तब धर्मी उस को उत्तर देंगे कि हे प्रभु, हम ने कब तुझे भूखा देखा और खिलाया ? या पियासा देखा, और पिलाया ? हम ने कब तुझे परदेशी देखा और अपने धर में ठहराया या नंगा देखा, और कपड़े पहिनाए ? हम ने कब तुझे बीमार या बन्दीगृह में देखा और तुझ से मिलने आए ? तब राजा उन्हें उत्तर देगा, मैं तुमसे सच कहता हूं, कि तुम ने जो मेरे इन छोटे से छोटे भाइयों में से किसी एक के साथ किया, वह मेरे ही साथ किया। तब वह बाईं ओर वालों से कहेगा, हे स्त्रापित लोगो, मेरे सम्हने से उस अनन्त आग में चले जाओ, जो शैतान और उसके दूतों के लिये  तैयार की गई है। क्योंकि मैं भूखा था, और तुम ने मुझे खाने को नहीं दिया, मैं पियासा था, और तुमने मुझे पानी नहीं पिलाया। मैं परदेशी था, और तुम ने मुझे अपने घर में नहीं ठहराया; मैं नंगा था, और तुम ने मुझे कपड़े नहीं पहिनाए ; बीमार और बन्दीगृह में था, और तुम ने मेरी सुधि न ली। तब वे उत्तर देंगे, कि हे प्रभु, हम ने तुझे कब भूखा, या पियासा, या परदेशी, या नंगा, या बीमार या बन्दीगृह में देखा, और तेरी सेवा टहल न की ? तब वह उन्हें उत्तर देगा, मैं तुम से सच कहता हूं कि तुम ने जो इन छोटे से छोटों में से किसी एक के साथ नहीं किया, वह मेरे साथ भी नहीं किया। और यह अनन्त दण्ड भोगेंगे परन्तु धर्मी अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे। ’’

प्रस्तावना एवं पृष्ठभूमि :- यह दृष्टान्त प्रभु यीशु मसीह ने चेलों को जैतून के पर्वत पर सुनाया। उस समय चेलों ने यह जानने की जिज्ञासा से उससे प्रश्न किया था कि उसका दूसरा आगमन ‘कब’ होगा ? और उसके आने का और जगत के अन्त का क्या चिन्ह होगा ? ( मत्ती 24ः3) उनके इन प्रश्नों के उत्तर में प्रभु यीशु मसीह ने उन्हें कई दृष्टान्त बताए। इन दृष्टान्तों के माध्यम से उसने उनसे स्पष्ट कहा कि ‘‘उसका आगमन कब होगा’’ इस बात पर चिन्तन करना व्यर्थ है क्योंकि यह समय पूर्णतः गुप्त रखा गया है। इसकी गोपनीयता की गहराई को प्रगट करने के लिये उसने यहां तक कहा कि, ‘‘उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता; न स्वर्ग के दूत, और न पुत्र परन्तु केवल पिता।’’(मत्ती 24ः36) उसने उस दिन और उस समय की तैयारी के लिए उन्हें चैतन्य किया।

इस दृष्टान्त के माध्यम से प्रभु यीशु मसीह ने अपनी महिमा युक्त द्वितीय आगमन की भविष्यवाणी की तथा अपने अन्तिम न्याय के संबंध में जानकारी दी। साथ ही उस दिन के लिये हम किस प्रकार से तैयार रहें ? इस बात का भी उल्लेख किया। 

विषय वस्तु :- प्रभु यीशु मसीह ने शिष्यों को बताया कि एक दिन किस प्रकार से उसका महिमायुक्त पुनरागमन होगा। सब स्वर्गदूत उसके साथ आएंगे। वह अपने महिमा के सिंहासन पर विराजमान होगा।

उस समय संसार की सभी जातियां उसके सामने इकट्ठी की जाएंगी और जैसा चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग कर देता है वैसा ही वह उन्हें एक दूसरे से अलग करेगा। वह भेड़ो को अपनी दाहिनी ओर बकरियों को बाईं ओर खड़ी करेगा। तब राजा अपनी दाहिनी ओर वालों से कहेगा, हे मेरे पिता के धन्य लोगो आओ उस राज्य के अधिकारी हो जाओ, जो जगत के अदि से तुम्हारे लिये तैयार किया हुआ है। क्योंकि ‘‘मैं’’ भूखा था और तुमने मुझे खाने को दिया; ‘‘मैं’’ पियासा था और तुम ने मुझे पानी पिलाया; ‘‘मैं’’ नंगा था, तुम ने मुझे कपड़े पहनाए; ‘‘मैं’’ बीमार था, तुम ने मेरी सुधि ली, ‘‘मैं’’ बन्दीगृह में था, तुम मुझसे मिलने आए। तब धर्मी उसे उत्तर देंगे कि हे प्रभु हम ने कब तुझे बीमार या बन्दीगृह में देखा और तुझसे मिलने आए ? तब राजा उन्हे उत्तर देगा, मैं तुम से सच-सच कहता हूं कि तुमने जो मेरे इन छोटे से छोटे ‘भाइयों’ में से किसी एक के साथ किया वह मेरे ही साथ किया।

तब वह बाईं ओर वालों से भी यही प्रश्न करेगा और उनसे कहेगा कि तुम ने जो इन छोटे से छोटों में से किसी एक के साथ नहीं किया वह मेरे साथ भी नहीं किया। तब उन्हें स्त्रापित ठहराएगा और उनसे कहेगा मेरे सामने से उस अनन्त आग में चले जाओ जो शौतान और उसके दूतों के लिये तैयार की गई है और वे अनन्त दण्ड भोगेंगे किन्तु धर्मी अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे।

 व्याख्या :- इस दृष्टान्त को प्रभु यीशु मसीह ने बहुत ही विस्तार से सुनाया है। दृष्टान्त का प्रारंभ उसने अपने पुनरागमन से किया। उसने अपने शिष्यों पर स्पष्ट रूप से प्रगट किया कि वह सम्पूर्ण महिमा के साथ स्वर्गदूतों के साथ आएगा। वह महिमा के सिंहासन पर विराजमान होगा।

प्रभु यीशु मसीह स्यमं को हमेशा ‘‘मनुष्य का पुत्र’’ कहकर सम्बोधित करता था। यह सम्बोधन वह अपने मानवीय पहलू को अधिक प्रबल रूप से प्रगट करने के लिये करता था। वह इस संसार में एक मानव रूप धर कर आया था। सम्पूर्ण ईश्वर होने के बावजूद उसने दीनता से अपने आप को परमेश्वर की इच्छा के आधीन किया था। उसने एक दास के रूप में बहुत ही साधारण एवं सामान्य मनुष्य बनकर रहना स्वीकार किया था। प्ररन्तु यहां न सिर्फ स्वमं को मनुष्य के पुत्र के रूप में किन्तु उसने एक महिमायुक्त राजा के रूप में भी प्रगट किया।

सैकड़ां वर्ष पूर्व दानिय्येल ने मनुष्य के पुत्र के पुनरागमन का दर्शन देखा था। उसने स्वप्न में देखा कि, ‘‘मनुष्य के सन्तान सा कोई आकाश के बादलों समेत आ रहा था और वह उस अति प्राचीन के पास पहुंचा और उसको वे उसके समीप लाए। तब उसको ऐसी प्रभुता, महिमा और राज्य दिया गया, कि देश-देश ओर जाति-जाति के लोग और भिन्न-भिन्न भाषा बोलने वाले सब उसके अधीन हों; उसकी प्रभुता सदा तक अटल और उसका राज्य अवनाशी ठहरा।’’ (दानिय्येल 7ः13-14) 

मत्ती 16ः27 एंव 19ः28 में भी प्रभु यीशु मसीह ने अपने महिमायुक्त पुनरागमन की बात दोहराई है। अश्चर्य की बात है कि जिस दर्शन का सैकड़ों वर्ष पूर्व दानिय्येल ने जिक्र किया। उसी के अक्षरशः पुनरावृत्ति प्रभु यीशु मसीह ने स्वयं अपने मुख से की।

प्रभु यीशु मसीह ने बताया कि संसार की सब जातियां उसके सामने इकट्ठी की जाएंगी और वह सबका न्याय करेगा। प्रभु यीशु मसीह की इस भविष्यवाणी का भी ठीक ऐसा ही वर्णन मसीह के इस दुनिया में प्रथम आगमन से सैकड़ों वर्ष पूर्व योएल नबी ने अपने दर्शन में किया है। जहां लिखा है, ‘‘हे चारों ओर के  जाति-जाति के लोगो, फुर्ती करके आओ और इकट्ठे हो जाओ। हे यहोवा तू भी अपने शूरवीरों को वहां ले जा। जाति-जाति के लोग उभरकर चढ़ जाएं क्योंकि वहां मैं चारो ओर की सारी जातियों का न्याय करने को बैठूंगा।’’ (योएल 3ः11,12 के अनुसार)

प्रभु यीशु मसीह ने स्पष्ट किया कि उसके न्याय आसन के सामने एक दिन सबको एकत्रित होना है। इस न्याय से कोई भी नहीं बच सकता। एक दिन सबको निश्चत रूप से उसके न्याय का सामना करना है।

जैसा चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग करता है, वैसे ही प्रभु यीशु मसीह लोगों को एक-दूसरे से अलग करेगा। जिस प्रकार भेड़ों और बकरियों में बहुत सी भिन्नताएं होते हुए भी वे लगभग एक ही सी प्रतीत होती हैं उसी प्रकार इस संसार में धर्मी और पापी भी एक से ही प्रतीत होते हैं। वचन में भी लिखा है कि,‘‘शैतान आप भी ज्योतिर्मय स्वर्गदूत का रूप धारण करता है। सो यदि उसके सेवक भी धर्म के सेवकों का सा रूप धरें। तो कुछ बड़ी बात नहीं परन्तु उनका अन्त उनके कामो के अनुसार होगा।’’ (2 कुरिन्थियों 11ः14-15)

भेड़ों को सबसे भोले स्वाभव का पशु माना जाता है। ये दिशा एंव चारे-पानी के लिये पूर्ण रूप से चरवाहे पर निर्भर होती हैं। ये चरवाहों का आदेश सुनती हैं और उन्ही के पीछे-पीछे चलती हैं। ऊन के कारण ये अधिक उपयोगी और अधिक कीमती होती हैं। बकरियां भेड़ों की अपेक्षा कहीं अधिक चालाक और तेज होती हैं। चरवाहे के न रहने पर ये स्वयं ही इधर-उधर जाकर अपने चारे-पानी की व्यवस्था कर लेती हैं। ये भेड़ों से कम उपयोगी एवं कम कीमती होती हैं।

पुराने समय में यहूदी संस्कृति में लोग बकरियों से हमेशा पापियों और दुष्टों की ओर इशारा करते थे तथा भेड़ों को धार्मिकता एवं पवित्रता के प्रतीक के रूप में मानते थे। उसी प्रकार दाहिने ओर का प्रतीक वे मित्र लोगों के पक्ष के लिये करते थे तथा बाईं ओर से उनका इशारा पापियों एवं शत्रुओं के लिये होता था।

इस संसार में पापी एवं धर्मी एक ही साथ रहते हैं। दोनों में बड़ा अन्तर दिखाई नहीं देता किन्तु यह बात मत्ती ने बार-बार दोहराई है कि न्याय के दिन धर्मियों को पापियों से अलग किया जाएगा। उसने लिखा है कि गेहूं को भूसी से  - मत्ती 3ः12 गेहूं के पौधों को जंगली दानों के पौधों से - मत्ती 13ः30, दुष्टों को धर्मियों से - मत्ती 13ः49, मूर्ख कुंवारियों को बुद्धिमान कुंवारियों से - मत्ती 25ः12, तथा मूर्ख और आलसी दास को परिश्रमी एवं समझदार दासों से - मत्ती 25ः30, अलग किया जाएगा।

जब राजा धर्मियों को पापियों से अलग करेगा, तब वह उन्हें धन्य एवं आशीषित ठहराएगा। वह उन्हें पिता के उस स्वर्गीय राज्य में प्रवेश करने एवं उसके अधिकारी होने का आमंत्रण देगा, जिसे संसार की सृष्टि के पूर्व ही उनके लिये तैयार किया गया है।

यहां प्रभु यीशु मसीह ने धमियों की अन्तिम विजय की निश्चितता प्रगट की। उन्हें बताया कि मनुष्य और सृष्टि की सृजना के पूर्व ही परमेश्वर पिता ने मनुष्य के उद्धार की योजना बना ली थी। परमेश्वर ने अपने हाथों से स्वर्ग में धर्मियों के लिए चिरस्थायी घर बनाए हैं। (2 कुरिन्थियों 5ः1) धर्मियों की विश्वासयोग्यता, समर्पण एवं आज्ञाकारिता के पुरस्कार स्वरूप उन्हें प्रभु यीशु मसीह के द्वारा स्वर्ग में अनन्त जीवन मिलेगा। वहां धर्मी हर प्रकार के संसारिक एवं शारीरिक कष्टों से मुक्ति पाकर सुख और चैन से विश्राम करेंगे।

प्रभु यीशु मसीह ने इन कथनों (मैं भूखा था और तुमने मुझे खाने को दिया, मैं प्यासा था, और तुमने मुझे पानी पिलाया, मैं परदेशी था, तुमने मुझे अपने धर में ठहराया) से हम पर अपनी अपेक्षाएं प्रगट कीं। उसने बताया कि स्वर्ग राज्य में प्रवेश की तैयारी के लिए हमें क्या-क्या करना चाहिये।

नये नियम में प्रभु यीशु मसीह ने स्वयं को अपने शिष्यों से अलग नही समझा। जब पौलुस मसीहियों को सताता था तथा उनकी हत्याएं कराता था। तब दमिश्क के रास्ते पर प्रभु यीशु मसीह ने उससे यह प्रश्न नहीं किया कि तू मेरे शिष्यों को क्यों सताता है ? किन्तु उसने पौलुस से कहा तू ‘मुझे’ क्यों सताता है ? (प्रेरितों के काम 9ः4-5) अर्थात् यदि पौलुस शिष्यों को सताता था तो वह मसीह को ही सताता था।

मत्ती ने ‘भाई’ शब्द का उपयोग ऐसे लोगों के लिए किया है जिन्होंने मसीह पर विश्वास किया, उसे अपना उद्धारकर्ता मुक्तिदाता स्वीकार किया है तथा जो मसीह की देह अर्थात् कलीसिया के अगं हैं। (मत्ती 12ः49-50) इन्हें प्रभु यीशु मसीह ने आज्ञाकारिता द्वारा अपना प्रतिनिधित्व करने की जिम्मेदारी सौंपी है। ‘‘छोटे से छोटे भाई’’ का अर्थ नये विश्वासियों से है। हालांकि बाइबिल हर एक ज़रूरतमंद (पड़ोसी - दयालु सामरी का दृष्टान्त - लूका 10ः25-37) के प्रति संवेदनशील रहने को अपरिहार्य बताती है और उनकी भरसक मदद करने को प्रेरित करती है किन्तु यहां विशेष रूप से सभी जरूरतमंदों की मदद करने की बात से भिन्नता लिए हुए विश्वासियों की मदद करने की बात की गई है।

प्रभु यीशु मसीह जानता था कि विश्वासियों पर विश्वास की गवाही पर अडिग रहने के लिये सताव आएंगे। उन्हें विभिन्न विषम परिस्थितियों से होकर गुज़रना पड़ेगा। हो सकता है भूख और प्यास से गुज़रना पड़े। वे बीमारी से होकर गुज़रें। वचन के प्रचार में दर-दर भटकें और रूकने का कोई ठिकाना न हो। अभावों में वस्त्रहीनता की स्थिति तक से भी होकर गुज़रें। बन्दीगृह में डाले जाएं। विश्वासी के जीवन में क्रूस का आना तो निश्चित है। आसान और सरल जीवन की प्रतिज्ञा उनसे नही की गई है। पौलुस भी 2 कुरिन्थियों  11ः23-27 में ऐसे ही परिस्थितियों का उल्लेख किया है, जिनसे वह विश्वास की गवाही के कारण गुज़रा। वह लिखता है ‘‘अधिक परिश्रम करने में; बार-बार कैद होने में, कोड़े खाने में, बार-बार मृत्यु के जाखिमों में। पांच बार मैं ने यहूदियों के हाथ से उन्तालीस उन्तालीस कोड़े खाए। तीन बार मैं ने बेंतें खाई; एक बार पत्थरवाह किया गया; तीन बार जहाज जिन पर मैं चढ़ा था, टूट गए; एक दिन मैं ने समुद्र में काटा। मैं बार-बार यात्राओं में; नदियों के जोखिमों में, डाकुओं के जोखिमों में, अपने जाति वालों से जोखिमों में, अन्य जातियों से जाखिमों में, नगरों में के जोखिमों में, जंगल के जोखिमों में, समुद्र के जोखिमों में, झूठे भाइयों के बीच जोखिमों में। परिश्रम और कष्ट में, बार-बार जागते रहने में, भूख पियास में, बार-बार उपवास करने में, जाड़े में, उघाड़े रहने में।’’ ऐसी विषम परिस्थितियों से जब कोई विश्वासी, विश्वास की गवाही के कारण होकर गुज़रता है तो कलीसिया के दूसरे विश्वासियों का कर्तव्य है कि उनकी भरसक मदद करें। यहां प्रार्थना करके अपने कर्त्तव्य की इतिश्री समझने की बात नहीं की परन्तु जरूरत के अनुसार कुछ करने की बात की गई है। याकूब 2ः15-20 में भी यह बात स्पष्ट है कि ‘‘यदि कोई भाई या बहिन नंगे उघाड़े हों, और उन्हे प्रतिदिन भोजन की धटी हो। और तुम में से कोई उन से कहे, कुशल से जाओ, तुम गरम रहो और तृप्त रहो; पर जो वस्तु देह के लिये आवश्यक हैं वह उन्हें न दे, तो क्या लाभ ? वैसे ही विश्वास भी, यदि कर्म सहित न हो तो अपने स्वभाव में मरा हुआ है। बरन कोई कह सकता है कि तुझे विश्वास है, और मैं कर्म करता हूं : तू अपना विश्वास मुझे कर्म बिना तो दिखा; और मैं अपना विश्वास अपने कर्मां के द्वारा तुझे दिखाऊंगा। तुझे विश्वास है कि एक ही परमेश्वर है : तू अच्छा करता है : दुष्टात्मा भी विश्वास रखते, और थरथराते हैं। पर हे निकम्मे मनुष्य क्या तू यह भी नहीं जानता, कि कर्म बिना विश्वास व्यर्थ है ?’’

धर्मियों की विश्वासी भाई-बहनों के लिए अन्जाने में की गई स्वार्थ रहित सेवा को परमेश्वर न्याय के दिन उनके पुरस्कृत किये जाने के कारण ठहराएगा। पौलुस ने इब्रानियों 13ः1-3 में भी ठीक यही बात लिखी है कि, ‘‘भाई चारे की प्रीति बनी रहे। पहुनाई करना न भूलना, क्यांकि इस के द्वारा कितनों ने अनजाने स्वर्गदूतों की पहुनाई की है। कैदियों की ऐसी सुधि लो, कि मानो उन के साथ तुम भी कैद हो; और जिन के साथ बुरा बर्ताव किया जाता है, उन की भी यह समझकर सुधि लिया करो, कि हमारी भी देह है।’’

ध्यान देने योग्य बात है कि न्याय के दिन परमेश्वर व्यक्ति के सांसारिक जीवन की धन-दौलत एवं शौहरत के आधार पर उसे धन्य नहीं ठहराएगा। वह यह देखेगा कि उसने अपने विश्वासी भाई बहन से कितना प्रेम किया। वह उनकी जरूरतों के प्रति कितना संवेदनशील रहा। उसने ऐसों पर तरस खाकर उनके लिए कुछ किया कि नहीं किया। मत्ती 10ः42 में भी प्रभु यीशु मसीह ने कहा कि ‘‘जो कोई इन छोटों में से एक को चेला जानकर केवल एक कटोरा ठंडा पानी पिलाए, मैं तुम से सच कहता हूं, वह किसी रीति से अपना प्रतिफल न खोएगा।’’

इन सभी सन्दर्भों में एक बात स्पष्ट है कि स्वर्ग राज्य में प्रवेश करने के लिये प्रभु यीशु मसीह को अपना व्यक्तिगत उद्धारकर्ता तथा मुक्तिदाता करके स्वीकार करना आवश्यक है। इसके द्वारा ही हम परमेश्वर को अपना पिता कहकर पुकारने का अधिकार पाने और उसकी देह के अंग अर्थात् उसके परिवार का सदस्य बनते हैं। गलतियों 3ः24-29 में लिखा है कि, ‘‘इसलिए व्यवस्था मसीह तक पहुंचने को हमारा शिक्षक हुई है, कि हम विश्वास से धर्मी ठहरें। परन्तु जब विश्वास आ चुका, तो अब हम शिक्षक के अधीन न रहे। क्योंकि तुम सब उस विश्वास करने के द्वारा जो मसीह यीशु पर है, परमेश्वर की सन्तान हो। और तुम में से जितनों ने मसीह में बपतिस्मा लिया है उन्होंने मसीह को पहिन लिया है। अब न कोई यहूदी रहा और न यूनानी; न कोई दास न स्वतंत्र; न कोई नर, न नारी; क्योंकि तुम सब मसीह यीशु में एक हो। और यदि तुम मसीह के हो, तो इब्राहीम के वंश और प्रतिज्ञा के अनुसार वारिस भी हो।’’ गलतियों 4ः4-7 में लिखा है कि, ‘‘परन्तु जब समय पुरा हुआ, तो परमेश्वर ने अपने पुत्र को भेजा, जो स्त्री से जन्मा, और व्यवस्था के आधीन उत्पन्न हुआ। ताकि व्यवस्था के अधीनों को मोल लेकर छुड़ा ले, और हम को लेपालक होने का पद मिले। और तुम जो पुत्र हो, इसलिये परमेश्वर ने अपने पुत्र के आत्मा को, जो हे अब्बा, हे पिता कहकर पुकारता है, हमारे हृदय में भेजा है। इसलिये तू अब दास नहीं, प्ररन्तु पुत्र है; और जब पुत्र हुआ, तो परमेश्वर के द्वारा वारिस भी हुआ।’’ हम या तो पभु यीशु मसीह को स्वीकार करें या अस्वीकार करें। बीच का कोई और विकल्प है नहीं। केवल भले कर्मों के द्वारा मनुष्य का उद्धार हो नही सकता क्योंकि गलतियों 2ः16 में स्पष्ट लिखा है कि, ‘‘मनुष्य व्यवस्था के कामों से नहीं, पर केवल यीशु मसीह पर विश्वास करने के द्वारा धर्मी ठहरता है, हम ने आप भी मसीह यीशु पर विश्वास किया, कि हम व्यवस्था के कामों से नहीं, पर मसीह पर विश्वास करने से धर्मी ठहरें; इसलिये कि व्यवस्था के कामों से कोई प्राणी धर्मी न ठहरेगा।’’

अन्त में प्रभु यीशु मसीह ने धमियों की विश्वासयोग्यता उनकी सेवकाई का परिणाम बताया कि उन्हें पुरस्कार स्वरूप अनन्त जीवन मिलेगा और वे लोग जिन्होंने यद्यपि चोरी, डकैती, व्यभिचार आदि जैसे कोई बड़े पाप नहीं किये। किन्तु जो कुछ उन्हें विश्वासी भाई-बहनों के लिये करना चाहिये था वह नहीं किया, वे परमेश्वर के अनन्त दण्ड के भागी होंगे।

यह दृष्टान्त वास्तव में प्रभु यीशु मसीह की अपने पुनरागमन की भविष्यवाणी है, उसने अन्तिम न्याय के दृष्य को प्रगट किया है और साथ ही विश्वासियों की विश्वासियों के प्रति जिम्मेदारी को स्पष्ट किया है।

व्यवहारिक पक्ष एवं आत्मिक शिक्षा :- 

1. विश्वासियों की जरूरतों के प्रति प्रत्येक विश्वासी को संवेदनशील रहना है और उनकी हर संभव मदद करना है।

2. प्रभु यीशु मसीह को अपना व्यक्तिगत उद्धारकर्ता स्वीकार किये बगैर केवल भले कर्मों के द्वारा उद्धार असंभव है। अतः समय रहते उसे अपना मुक्तिदाता स्वीकार कर उसके नाम का बपतिस्मा लेना है और विश्वासयोग्यता से जीवन जीना है। 

3. एक दिन परमेश्वर का न्याय निश्चित है और उसे एक भी व्यक्ति नहीं बच सकता। अतः हम सभों को इस जीवन में वचन के अनुसार इस प्रकार तैयार रहना है कि न्याय के दिन हम उसके दण्ड के नहीं परन्तु पुरस्कार के योग्य ठहर सकें।


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