दो पुत्रों का दृष्टान्त

दो पुत्रों का दृष्टान्त

सन्दर्भ: मत्ती 21ः28-32 - ‘‘तुम क्या समझते हो? किसी मनुष्य के दो पुत्र थे; उस ने पहिले के पास जाकर कहा; हे पुत्र, आज दाख की बारी में काम कर। उसने उत्तर दिया, मैं नहीं जाऊंग, परन्तु पीछे पछता कर गया। फिर दूसरे के पास जाकर ऐसा ही कहा, उस ने उत्तर दिया, जी हां जाता हूँ, परन्तु नहीं गया। इन दोनों में से किस ने पिता की इच्छा पूरी की? उन्होंने कहा, पहिले नेः यीशु ने उन से कहा, मैं तुम से सच कहता हूँ, कि महसूल लेने वाले और वेश्या तुम से पहिले परमश्ेवर के राज्य में प्रवेश करते हैं। क्योंकि यूहन्ना धर्म के मार्ग से तुम्हारे पास आया, और तुम ने उस की प्रतीति न कीः पर महसूल लेने वालों और वेश्याओं ने उसकी प्रतीति कीः और तुम यह देखकर पीछो भी न पछताए कि उस की प्रतीति कर लेते है।’’

प्रस्तावना एवं पृष्ठभूमि: इस दृष्टान्त का उल्लेख केवल मत्ती ने किया है। मरकुस, लूका एंव यूहन्ना में यह दृष्टान्त नहीं मिलता है। यह दृष्टान्त प्रभु यीशु मसीह ने खजूर के रविवार के बाद बैतनियाह से लौटकर दूसरे दिन यरूशलेम के मन्दिर में उपस्थित शास्त्रियों एंव पुरनियों के एक कपटपूर्ण प्रश्न के उत्तर में सुनाया। 

प्रभु यीशु मसीह में दिव्य शक्ति थी। जिसके द्वारा वह बीमारों को चंगाई, अंधों को आंखें, बहरों को कान, भूखों को रोटी ओर कोढ़ियों को शुद्धता का दान देता था। यहां तक कि मरे हुओं को भी वह जिला उठाता था। वह बहुतेरे पापियों को पापों से क्षमादान बड़े ही अधिकारपूर्ण ढंग से दिया करता था। (मत्ती 9ः2-6 के अनुसार) उसकी शिक्षा शास्त्रियों एंव फरीसियों के स्वार्थपूर्ण एंव आडम्बरयुक्त शिक्षाओं से मेल नहीं खाते थे। उसका अन्य धार्मिक अगुवों की भांति विधिवत अभिषेक नहीं हुआ था। वह उनकी महासभा से किसी प्रकार की सलाह या अनुमति भी नहीं लिया करता था, क्योंकि उसे स्वंय सर्वोच्च अधिकारी परमेश्वर पिता के द्वारा अधिकार प्राप्त हुए थे जिसने उसे इस जगत में भेजा था। (यूहन्ना 1ः12; 5ः21;26-27; 6ः38; 7ः16; 8ः18,54 के अनुसार) न केवल उसकी शिक्षा, धार्मिक अगुवों की शिक्षा से भिन्न थी, परन्तु उसकी जीवन शैली, कार्य व्यवहार भी उनकी तथकथित धार्मिक परम्पराओं एंव दिखावटी रीतिरिवाजों से पूर्णतः भिन्न थे। (मत्ती 15ः8-20; 23ः27-28; मरकुस 12ः38-40, यशायाह 1ः12-17 के अनुसार) प्रभु यीशु मसीह हृदय की भक्ति को अधिक हमत्व देता था, मात्र दिखावटी भक्ति की वह भर्त्सना किया करता था। इन सब बातों से और लोगों में उसकी लोकप्रियता देखकर धार्मिक अगुवों को अपनी कुर्सी छिनने का भय था। जिसके कारण वे उस पर दुष्टात्माग्रसित होने का (मत्ती 12ः34 के अनुसार), पागलपन का (यूहन्ना 10ः20 के अनुसार) तथा महसूल लेने वाले एंव पापियों के मित्र होने का (मरकुस 2ः16 के अनुसार) दोष लगाते थे और लोगों को उसके विरूद्ध भड़काने का प्रयास करते थे। वे चाहते थे कि किसी प्रकार उस पर दोष लगाकर वे उसकी हत्या करवा देंजिससे उनके पद एंव प्रतिष्ठा बरकरार रहें। (यूहन्ना 5ः18, 10ः31; 7ः25,30 मरकुस 11ः18; लूका 19ः45-48)

इतना ही नहीं प्रभु यीशु मसीह ने खजूर के रविवार के दिन मन्दिर में जाकर लेन देन करने वालों को मन्दिर के बाहर निकाला, सर्राफों के पीढ़े और कबूतरों के बेचने वालों की चैकियां उलट दीं और उसने कहा लिखा है कि मेरा घर प्रार्थना का घर कहलाएगा, परन्तु तुम उसे डाकुओं की खोह बनाते हो और सब्त के दिन उसने मन्दिर में ही बहुतेरों को चंगाई दी।

इसके पहले भी उसने एक बार और इसी प्रकार मन्दिर की सफाई की थी, जब फसह का पर्व निकट था और यीशु यरूशलेम गया और मन्दिर में उसने बैल, भेड़ और कबूतर बेचने वालों और सर्राफों को बैठे हुए पासा तब उसने रस्सियों का कोड़ा बनाया और उन सबको भेड़ों और बैलों के साथ मन्दिर से बाहर निकाल दिया। सर्राफों के सिक्के बिखेर दिये और उनकी मेज़ों को उलट दिया और बकूतर बेचने वालों से कहा इन्हें यहां से ले जाओ मेरे पिता के घर को व्यापार का घर मत बनाओ। (यूहन्ना 2ः13-16 के अनुसार) व्यापारियों की धार्मिक अगुवों से साठ-गांठ होती थी। वे दूर-दूर से आए लोगों को बलिदान के पशु मनमानी क़ीमत पर बेचते थे। वे विदेशियों को मुद्राओं के बदले मन्दिर की बराबर मुद्राएं देने के बजाय कम मुद्राएं देते थे। इस प्रकार के धोखे के व्यापार की धार्मिक अगुवों को पूर्ण जानकारी थी फिर भी वे अपने स्वार्थ के कारण उन पर कोई रोक नहीं लगाते थे, जिससे मन्दिर की पवित्रता एंव गरिमा कलुषित होती थी और आराधना में व्यवधान होता था। 

जब प्रभु यीशु मसीह ने इस प्रकार मन्दिर की सफाई की तो धार्मिक अगुवों ने उससे कटाक्ष भरे स्वर में पूछा कि ‘‘तू किस अधिकार से यह कार्य कर रहा है और किसने तुझे यह अधिकार दिया है? उन्होंने सोचा होगा कि हर बार की तरह आज भी प्रभु यीशु मसीह कहेगा कि ये अधिकार उसे पिता परमेश्वर की ओर से मिला है। (यूहन्ना 5ः19-27 के अनुसार) किन्तु आज उसने अगुवों से उल्टा प्रश्न किया कि यदि तुम मुझे बताओगे कि यूहन्ना का बपतिस्मा किसकी ओर से था, स्वर्ग की ओर से या मनुष्यों की ओर से? तौ मैं भी तुम्हें बताऊंगा कि मैं किस अधिकार से ये काम करता हूँ। उसके इस प्रश्न से धार्मिक अगुवे बड़ी दुविधा में पड़ गये कि यदि वे कहेंगे कि ‘‘स्वर्ग की ओर से’’ तो वह कहेगा कि तुमने उसका विश्वास क्यों नहीं किया और यदि वे कहेंगे कि ‘‘मनुष्यों की ओर से’’ तो भीड़ में बलवा हो जाएगा क्योंकि लोग यूहन्ना को नबी मानते थे। तब उन्होंने यीशु के प्रश्न का उत्तर टालने की मनसा से चालाकी से कहा ‘‘हम नहीं जानते।’’ तब यीशु ने भी उनसे कहा कि मैं भी तुम्हें यह नहीं बताऊंगा कि किस अधिकार से मैं यह कार्य करता हूँ। 

इस घटना के बाद ही धार्मिक अगुवों की सतही एंव दिखावटी धार्मिकता का खुलासा करने के लिए प्रभु यीशु मसीह ने दो पुत्रों का दृष्टान्त सुनाया।

विषय वस्तुः किसी मनुष्य के दो पुत्र थे। उसने पहले के पास जाकर कहा; हे पुत्र, आज दाख की बारी में काम कर, इस पुत्र ने लापरवाही से पिता की आज्ञा को अनादर पूर्वक स्पष्ट शब्दों में कहकर टाल दिया कि मैं नहीं जाऊंगा किन्तु बाद में उसे अपनी ग़लती का अहसास हुआ। उसे लगा कि उसने पिता की आज्ञा का उलंघन कर उसका दिल दुःखाया है और जो ज़िम्मेदारी पिता ने उसे सौंपी थी, उसे पूरा नहीं किया है। ये सोचकर उसे पश्चाताप हुआ और पिता की आज्ञानुसार वह दाख की बारी में काम करने के लिए गया।

पिता ने ऐसे ही दूसरे पुत्र के पास जाकर कहा। इस दूसरे पुत्र ने ध्यान से पिता की आज्ञा सुनी। बड़े आदरपूर्वक उसे आज्ञापालन का वचन दिया किन्तु फिर उसने पिता की भावनाओं की कोई कद्र नहीं की। उसने पिता को दिया हुआ वचन भी पूरा नही किया और दाख की बारी में काम करने नहीं गया।

प्रभु यीशु मसीह ने यह दृष्टान्त सुनाकर धार्मिक अगुवों से ही यह प्रश्न किया कि इन दोनों में से किस बेटे ने पिता की इच्छा पूरी की? धार्मिक अगुवों ने उत्तर दिया कि पहले ने। 

व्याख्या: इस दृष्टान्त में दूसरे पुत्र ने ऐसा प्रगट किया मानो वह पिता की आज्ञा बड़े ही ध्यान से सुन रहा है, उसने पिता को आज्ञा पालन का वचन भी दिया और फिर उसने पिता की आज्ञा की स्पष्ट अवहेलना की।

इस्राएली जाति परमेश्वर की चुनी हुई प्रजा थी। उन्होंने परमेश्वर के पीछे चलने का प्रण तो किया था किन्तु वे बार-बार परमेश्वर से दूर हो जाते थे। वे परमेश्वर की आज्ञाओं को तोड़कर मनुष्यों द्वारा ठहराई हुई विधियों एंव रीति रिवाजों को ही पूरा करने में लगे रहते थे। वे प्रगट रूप से ऐसा करते थे मानो वे वास्तव में मसीह की बाट जोह रहे हों किन्तु अनेकों ठोस तथ्यों एंव प्रमाणों के बावजूद वे मसीह को सामने देखकर भी उसको सम्मान पूर्वक ग्रहण करने के बदले उसका इन्कार करते थे। वे बाहरी रूप से तो स्वंय को बहुत धर्मी दिखाते थे, परन्तु उन्होंने हृदय से पश्चाताप किया ही नही था और न ही अपने हृदय में परमेश्वर को स्थान दिया था। उनके लिए प्रभु यीशु मसीह ने मत्ती 23ः27-28 में कहा कि ‘‘तुम चूना फिरी हुई क़ब्रों के समान हो जो ऊपर से तो सुन्दर दिखाई देती हैं परन्तु भीतर मुर्दों की हड्डियों और सब प्रकार की मलिनता से भरी हैं। इसी रीति से तुम भी ऊपर से मनुष्यों को धर्मी दिखाई देते हो परन्तु भीतर कपट और अधर्म से भरे हुए हो।’’

यह दृष्टांत सुनाकर प्रभु यीशु मसीह ने धार्मिक अगुवों से प्रश्न किया कि इन दोनों पुत्रों में से किसने पिता की इच्छा पूरी की? वे अच्छी तरह समझ गये थे कि प्रभु यीशु मसीह ने उनकी ही ओर इशारा किया है, अतः वे उसके प्रश्न का उत्तर नहीं देना चाहते थे। परन्तु अतंतः उन्हें प्रश्न का उत्तर देना ही पड़ा, स्वंय अपने ही होठों से अपनी आलोचना करनी पड़ी और उन्हें अपनी वास्तविक स्थिति स्वीकार करनी पड़ी।

तब प्रभु यीशु मसीह ने आगे और भी स्पष्ट शब्दों में उनसे कहा कि तुमने उसकी प्रतीति नहीं की और न ही अपना आत्मावलोकन किया। तुमने पश्चाताप भी नहीं किया। परन्तु, महसूल लेनेवालों और पापियों ने यूहन्ना पर और मुझ पर विश्वास किया, अपने किये पर पश्चाताप किया और स्वर्ग राज्य के वारिस ठहरे।

व्यवहारिक पक्ष एंव आत्मिक शिक्षाः 
(1) परमेश्वर के पीछे चलने का निर्णय कर लेना ही पर्याप्त नहीं बल्कि उसे व्यवहारिक रूप में अपने जीवन के हर पहलू एंव हर आयाम में जीना है और प्रकट करना है। 

(2) हमें वचन को मात्र सुनना नहीं है बल्कि उस पर चलना भी है क्योंकि मात्र सुनने वाले अपने आप को धोखा देते हैं। (याकूब 1ः22 के अनुसार)

(3) दिखावटी धार्मिक कर्म-काण्डों से, रीति-रिवाजों को पूरा कर लेने से स्वंय को धर्मी समझने की ग़लतफहमी में नहीं पड़ना है, क्योंकि परमेश्वर हृदय को जांचता है। (भजन संहिता 7ः9) सच्चे पश्चाताप और विश्वास के द्वारा ही हम परमेश्वर को अपने हृदय में स्थान दे सकते हैं। स्वंय के लेखे में धर्मियों का परमेश्वर के राज्य में कोई स्थान नहीं।

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