जंगली बीज का दृष्टान्त
जंगली बीज का दृष्टान्त
सन्दर्भ:- मत्ती 13524-30 - ‘‘उस ने उन्हें एक और दृष्टान्त दिया कि स्वर्ग का राज्य उस मनुष्य के समान है जिस ने अपने खेत में अच्छा बीज बोया। पर जब लोग सो रहे थे तो उसका बैरी आकर गेहूं के बीच जंगली बीज बोकर चला गयां अब अंकुर निकले और बालें लगी, तो जंगली दाने भी दिखाई दिए। इस पर गृहस्थ के दासों ने आकर उस से कहा, हे स्वामी, क्या तू ने अपने खेत में अच्छा बीज न बोया था? फिर जंगली दाने के पौधे उस में कहां से आए? उस ने उन से कहा, यह किसी बैरी का काम है। दासों ने उस से कहा, क्या तेरी इच्छा है, कि हम जाकर उन को बटोर लें? उस ने कहा, ऐसा नहीं, न हो कि जंगली दाने के पौधे बटोरते हुए उन के साथ गेंहू भी उखाड़ लो। कटनी तब दोनों को एक साथ बढ़ने दो, और कटनी के समय मैं काटनेवालों से कहूंगा; पहिले जंगली दाने के पौधे बटोरकर जलाने के लिए उन के गट्ठे बान्ध लो, और गेंहू को मेरे खत्ते में इकट्ठा करो।’’
अनुवाद सन्दर्भ: मत्ती 13ः36-43 ‘‘तब वह भीड़ को छोड़कर घर में आया, और उसके चेलों ने उस के पास आकर कहा, खेत के जंगली दाने का दृष्टान्त हमें समझा दे। उस ने उन को उत्तर दिया, कि अच्छे बीज का बोने वाला मनुष्य का पुत्र हैं। खेत संसार है, अच्छा बीज राज्य के सन्तान, और जंगली बीज दुष्ट की के सन्तान हैं। जिस बैरी ने उनको बोया वह शैतान है; कटनी जगत का अन्त है, और काटने वाले स्वर्गदूत हैं। सो जैसे जंगल दाने बटोरे जाते और जलाये जाते हैं वैसा ही जगत के अन्त में होगा। मनुष्य का पुत्र अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा, और वे उस के राज्य में से सब कठोर के कारणों को और कुकर्म करने वालों को इकट्ठा करेंगे। और उन्हें आग के कुंड में डालेंगे, वहां रोना और दांत पीसना होगा। उस समय धर्मी अपने पिता के राज्य में सूर्य के नाई चमकेंगे; जिसके कान हों वह सुन ले।’’
प्रस्तावना एंव पृष्ठभूमि: यह दृष्ठान्त परमेश्वर के अनुग्रह के काल एंव आने वाले न्याय को प्रगट करता है। इसमें प्रभु यीशु मसीह ने एक बार पुनः यह बात स्पष्ट की कि परमेश्वर न्यायी है। उसका न्याय निश्चित है उसके न्याय में कुछ विलम्ब भी वो करता है ताकि लोगों को मन-फिराव का मौक़ा मिले, क्योंकि वह नहीं चाहता कि एक भी मनुष्य नाश हो। परन्तु, एक दिन निश्चित है, कि धर्मी पिता के राज्य में सूर्य की नाई चमकेंगे और पापी धर्मियों से अलग किए जाकर नरक के कुण्ड में डाले लाएंगे, जहां रोना और दांत पीसना होगा। (मत्ती 13ः42-43 के अनुसार)
यह दृष्टान्त प्रभु यीशु मसीह ने लोगों को गलील की झील में नाव पर सवार होकर बताया। जब वह भीड़ को छोड़कर घर आया तब चेलों ने उससे इस दृष्टान्त का अर्थ पूछा और उसने उन्हें इस दृष्टान्त का अर्थ भी बताया।
विषय वस्तु:- स्वर्ग का राज्य उस मनुष्य के समान है जिसने अपने खेत मेें गेंहू के अच्छे बीज बोए। जब सब सो रहे थे तो उसका शत्रु आया और गेंहू के बीज जंगली बीज बोकर चला गया। जब जंगली दाने भी प्रगट हुए तो सेवकों ने स्वामी से पूछा कि क्या वे जंगली दाने के पौधे उखाड़ लें? स्वामी ने उनसे कहा यदि जंगली पौधे उखाड़ेंगे तो गेंहू के पौधे भी नष्ट होंगे। अतः कटनी तक दोनों को एक साथ बढ़ने दो और कटनी के समय जंगली पौधों को गेंहू से अलग कर लेना, जिससे गेंहू को तो खत्तों में एकत्रित किया जा सके और जंगली पौधे जलाए जाएं।
व्यख्या: इस दृष्टान्त के अनुसार दृष्टान्त के पात्र निम्न का प्रतिनिधित्व करते हैं:-
अच्छे बीज बोने वाला - मनुष्य का पुत्र
खेत - संसार
अच्छे बीज - स्वर्ग राज्य की संतान
जंगली बीज - दुष्ट की संतान
शत्रु - शैतान
फसल कटाई - जगत का अन्त
काटने वाले - स्वर्गदूत
जैसे जंगली दाने के पौधे एकत्रित करके जलाए जाते है, वैसे ही जगत के अन्त में होगा। मनुष्य का पुत्र अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा और वे उसके राज्य में से सब ठोकर के कारणों को और कुकर्म करने वालों को इकट्ठा करेंगे और उन्हें आग के कुण्ड में डालेंगे, जहां रोना और दांत पीसना होगा। उस समय धर्मी अपने पिता के राज्य में सूर्य की नाई चमकेंगे, जिसके कान हों वह सुन ले।
इस दृष्टान्त में जंगली बीज का ज़िक्र किया गया है, वह मूलतः ग्रीक (यूनानी) भाषा के ‘जिजानिया’ शब्द का अनुवाद है। जिजानिया बिल्कुल गेंहू के ही समान दिखने वाला पौधा होता था जिसे गेंहू से अलग पहचानना कठिन होता था। इसकी जड़े गेंहू के पौधो से अधिक फैली हुई और मजबूत होती थीं।
इन पौधों को उखाड़ने के प्रयास में गेहूं के पौधों के भी उखड़ने और फसल नष्ट होने की संभावना रहती थी। यह कृषक यह जानकर भी कि ये जंगली पौधे भूमि से खाद, पानी अधिक मात्रा में लेकर गेंहू के पौधों को हानि पहुंचा रहे हैं; कटनी तक उन्हें बढ़ने देते थे। इन जंगली पौधों को उनके फलों से या बालियों से ही पहचाना जाता था। मत्ती 7ः16 में भी प्रभु यीशु मसीह ने यह बात कही कि, ‘‘उनके फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे, क्या झाड़ियों से अंगूर वा ऊंट कंटारों से अंजीर तोड़ते हैं? इसी प्रकार कर एक अच्छा पेड़ बुरा फल नहीं ला सकता और न निकम्मा पेड़ अच्छा फल ला सकता है। जो जो पेड़ अच्छा फल नही लाता, वह काटा और आग में डाला जाता है। से उनके फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे।’’
इस दृष्टान्त के अनुवाद में प्रभु यीशु मसीह ने उन सेवकों का जिक्र नहीें किया जिन्होंने आकर स्वामी से जंगली पौधों को उखाड़ने की अनुमति मांगी। यहां लोगों की नींद की स्थिति का एंव गेंहू और जंगली पौधों के साथ - साथ बढ़ने का भी उल्लेख नहीं है। शायद ये बातें इस दृष्टान्त में उतनी महत्वपूर्ण नहीं। ध्यान देने योग्य प्रमुख बात यह है कि इस सम्पूर्ण संसार का मालिक या स्वामी परमेश्वर है। सब कुछ उसके नियंत्रण में है। मनुष्च इस संसार में चाहे किसी भी देश, शहर, गांव, कस्बे, जंगल, नदी, पहाड़ या गुफा आदि में रहता हो, वह परमेश्वर की ही भूमि में रहता है। वह या तो परमेश्वर की संतान है या दुष्ट की सन्तान - अर्थात गेंहू या फिल जंगली बीज। यह बात बहुत स्पष्ट है कि मनुष्य इन दोनों में से एक है। दोनों इस संसार में साथ-साथ बढ़ते हैं। दोनो पर परमेश्वर मेंह बरसाता हे, दोनों के लिये सूर्य उदय करता है। इस संसार में जंगली पौधों की ही भांति बहुधा दुष्ट अधिक पराक्रमी होते हैं, बुराई की ही अच्छाई पर जीत होती दिखाई देती है। न्याय का ख़ून होता है। दुष्ट निर्दोष को निगल जाते है।
वह ऐसा परमेश्वर है जो आग और गंधक बरसाकर अथवा महा जल प्रलय के द्वारा या अन्य महामारियों से दुष्टों का सर्वनाश कर सकता है, परन्तु वह नहीं चाहता कि विनाश में धर्मी जनों की भी हानि हो। प्रभु यीशु मसीह पापियों का संहार करने इस दुनिया में नहीं आया किन्तु उन्हें बचाने आया। बहुतेरे विश्वासी उन सेवकों की भांति अविश्वासियों के साथ जल्दबाज़ी करने की कोशिश करते हैं, जिन्होंने जंगली पौधों को उखाड़ने की अनुमति मांगी। ऐसे विश्वासियों का कलीसिया में पे्रमपूर्ण स्वागत करने के बजाय अपनी कठोरता एंव कटु व्यवहार से उन्हें कलीसिया से दूर करने का प्रयास करते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि न्याय करना परमेश्वर का काम है और वह सबके साथ धीरज रखता है। इस संसार में भले ही दुष्ट कितने ही सामर्थी क्यों न प्रतीत होते हों किन्तु अन्तिम विजय परमेश्वर की ही है। अन्त में परमेश्वर अपने स्वर्गदूतों को आज्ञा देगा कि वे सब ठोकर के कारणों को तथा कुकर्मियों को एकत्रित करें और तब उन्हें नरक की अनन्त अग्नि में दण्ड भोगना पड़ेगा। वहां तपन होगी और दांत पीसना होगा। परन्तु, धर्मी अपने पिता परमेश्वर के राज्य में अनन्त के लिये सूर्य की भांति चमकेंगे। वे उस अनन्त मीरास में; अनन्त सुख और परम आनन्द की स्थिति में रहेंगे।
यहां पर उल्लेखनीय है कि प्रभु यीशु मसीह ने पुराने नियम से विभिन्न भविष्य वक्ताओं की भविष्यवाणियों को वैसा ही दोहराया है।
उदाहरणार्थ:
‘‘मैं धरती के ऊपरसे सब का अन्त कर दूंगा, यहोवा की यही वाणी है। मैं मनुष्य और पशु दोनों का अन्त कर दूंगा; मैं आकाश के पक्षियों और समुद्र की मछलियों का, और दुष्टों समेत उनकी रखी हुई ठोकरों के कारण का भी अन्त कर दूंगा; मैं मनुष्य जाति को भी धरती पर से नाश कर डालंूगा, यहोवा की यही वाणी है।’’ (सपन्याह 1ः2,3)
‘‘और जो कोई गिरकर दण्डवत न करेगा वह उसी घड़ी धधकते हुए भट्ठे के बीच में डाल दिया जाएगा।... तब सिखाने वालों की चमक आकाश मण्डल की सी होगी, और जो बहुतों को धर्मी बनाते हैं, वे सर्वदा तारों की नाई प्रकाशमान रहेंगे।’’ (दानियेल 3ः6; 12ः3)
‘‘क्योंकि देखो, वह धधकते भट्ठे का सा दिन आता है, जब सब अभिमानी और सब दुराचारी लोग अनाज की खंूटी बन जांएगे; और उस आने वाले दिन में वे ऐसे भस्म हो जायेंगे कि उनका पता तक न रहेगा, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है। परन्तु तुम्हारे लिए जो मेरे नाम का भय मानते हो, धर्म का सूर्य उदय होगा, और उसकी किरणों के द्वारा तुम चंगे हो जाओंगे; और तूम निकलकर पले हुए बछड़े की नाई कूदोंगे और फांदोगे।’’ (मलाकी 4ः1,2 के अनुसार)
एक बात और भी स्पष्ट करना आवश्यक है कि बहुधा इस दृष्टान्त को पढ़ने से यह भं्रान्ति उत्पन्न होती है कि अच्छे अनुष्यों को परमेश्वर ने और बुरे मनुष्यों को शैतान ने बनाया है। अच्छे मनुष्य हमेशा अच्छे रहते हैं और बुरे मनुष्य जन्म से मृत्यु तब बुरे ही रहते हैं। परन्तु ये दोनों ही विचार ग़लत हैं। सभी मनुष्यों को परमेश्वर ने अपने स्वरूप में सृजा है, साथ ही सबको स्वतन्त्र इच्छा भी दी है। परमेश्वर का विरोधी शैतान बहुतेरे मनुष्यों को उसके वचन, शिक्षा, अनुग्रह और उद्धार से वंचित कर विभिन्न बुराईयों और गंदी आदतों में फंसा लेता है। ये मनुष्य शैतान के आकर्षक प्रलोभनों के कारण उसके ही मार्गो में आगे बढ़ते जाते हैं और परमेश्वर से दूर होते जाते हैं। ऐसे मनुष्य अपने स्वरूप को विभिन्न प्रकार के पापों के द्वारा ऐसा विकृत कर लेते हैं कि परमेश्वर की सन्तान कहलाने के योग्य नहीं रह जाते। ऐसे मनुष्यों को इस दृष्टान्त में दुष्ट की सन्तान या जंगली दाने कहा गया है। इनके फलों के द्वारा उन्हें पहचाना जा सकता है। ये परमेश्वर के प्रेम एंव महानतम बलिदान की अपने जीवन में पूर्ण रूप से उपेक्षा करते हंै। इनके हृदय मंे परमेश्वर का भय नहीं होता और ये बड़ी निर्भयता पूर्वक इस संसार में बढ़ते और बहुत सामर्थी प्रतीत होते हैं। परन्तु इनका अन्त निश्चित है। इनकी उन्नति से धर्मियों को विचलित नहीं होना चाहिए।
व्यवहारिक पक्ष एंव आत्मिक शिक्षा:
1. इस संसार का स्वामी परमेश्वर है। उसका इस पर पूर्ण नियंत्रण है। चूंकि परमेश्वर के विरोधी शैतान ने इस संसार में विभिन्न बुराईयां उत्पन्न की हैं और हम इस पापमय संसार में रहते है तो बहुत बार निर्दोष होते हुए भी हमें विभिन्न कष्टों का सामना करना पड़ता है। ये कष्ट, हमारे जीवन में किसी भंयकर बीमारी, दुर्घटना, चोरी, डकैती आदि के रूप में आते हैं, जिनसे हमें दुःख होता है। परन्तु, हमें अपना सम्पूर्ण ध्यान मृत्यु के पार अनन्त जीवन की ओर लगाना है क्योंकि वही विश्वासियों का प्रतिफल है। हमारा ये जीवन उस अनन्त जीवन की तुलना में भाप के समान (याकूब 4ः14 के अनुसार) पनी के समान, मैदान की घास और फूल के समान (1पतरस 1ः24 के अनुसार) श्वास और ढलती हुई छाया के समान (भजन संहिता 144ः4 के अनुसार) क्षणिक है। यहां कष्ट सहकर एंव हानि उठाकर भी विश्वास योग्यता से जीवन जीना अनन्त के लिए नरक की आग में जलने से कहीं बेहतर है।
2. बहुत सी गंदी आदतें चोर की भांति उस समय हमारे जीवन में प्रवेश करती हैं, जब आत्मिकता से बेख़बर होकर हम सांसारिकता में खोए रहते हैं। हमें इसका अहसास ही नहीं होता। धीरे-धीरे ये आदतें हमोर जीवन का ऐसा अंग बन जाती है, जिनसे छुटकारा पाना हमारे कार्यो, व्यवहार, चरित्र एंव बातचीत में प्रगट होने लगता है। इन खराब आदतों से सम्पूर्ण परिवार की हानि ही होती है। इनके परिणाम न केवल हम जीवन में दुःखदायी होते हैं। परन्तु मृत्यु के पश्चात ये अनन्त त्रासदी के कारण भी ठहरते हैं।
3. हमको हमेशा परमेश्वर के भय के लिए अपने विवेक को जागृत रखना है। जिनका विवेक मर जाता है (इफिसियों 4ः17-19 के अनुसार) या जो आत्मिक रूप से सो जाते हैं उनके बीच शैतान बड़ी आसानी से दुष्टता के जंगली बीज बो देता है। विशेष रूप से आज वर्तमान संसार के विभिन्न प्रलोभनों से एंव बुराईयों से बचने का एक मात्र उपाय यही है कि हम उसके वचन की शिक्षाओं के प्रकाश में आगे बढ़ें।
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