राई के बीज का दृष्टान्त
राई के बीज का दृष्टान्त
सन्दर्भ: मत्ती 13ः31, 32 - ‘‘उस ने उन्हें एक और दृष्टान्त दिया; कि स्वर्ग का राज्य राई के दाने के समान है, जिसे किसी मनुष्य ने लेकर अपने खेत में बो दिया। वह सब बीजों से छोटा तो है पर जब बढ़ जाता है तब सब साग पात से बड़ा होता है; और ऐसा पेड़ हो जाता है, कि आकाश के पक्षी आकर उस की डालियों पर बसेरा करते हैं।’’
मरकुस 4ः30-32 ‘‘फिर उस ने कहा, हम परमेश्वर का राज्य की उपमा किस से दें, और किस दृष्टान्त से उसका वर्णन करें? वह राई के दाने के समान है; कि जब भूमि में बोया जाता है तो भूमि के सब बीजों से छोटा होता है। परन्तु जब बोया गया, तो उगकर सब साग पात से बड़ा हो जाता है, और उसकी ऐसी बड़ी डालियां निकलती हैं, कि आकाश के पक्षी उसकी छाया में बसेरा कर सकते हैं।’’
लूका 13ः18-19 - ‘‘फिर उस ने कहा, परमेश्वर का राज्य किस के समान है? और मैं उस की उपमा किस से दूं? वह राई के दाने के समान है, जिसे किसी मनुष्य ने लेकर अपनी बारी में बोयाः और वह बढ़कर पेड़ हो गया; और आकाश के पक्षियों ने उस की डालियों पर बसेरा किया।’’
प्रस्तावना एंव पृष्ठभूमि:- प्रभु यीशु मसीह बहुत ही सरल, दृश्य एंव व्यवहारिक उदाहरणों से राज्य की गंभीर बातें लोगों को बताया करते थे। स्वर्ग के राज्य के वृहद विस्तार को एंव कलीसिया द्वारा प्रचार के कार्य की प्रमुखता को प्रगट करने के लिए प्रभु यीशु मसीह ने राई के बीज और खमीर के दृष्टान्त बताए, ये दृष्टान्त उसने विशाल जन समूह को गलील की झील के किनारे सुनाए। (मत्ती 13ः1, मरकुस 4ः1)
व्याख्या: प्रभु यीशु मसीह के समय में राई की खेती बड़ी आम बात थी। प्रायः लोग बगीचें में भी राई लगाते थे। लोगों को यह बात मालूम थी। कि राई के दाने कितने सूक्ष्म होते हैं उनके तुलना में उनके पौधे बहुत विशाल होते है। इन्हें फैलने के लिए अन्य पौधों की अपेक्षा अधिक स्थान की आवश्यक्ता होती है क्योंकि इनमें बहुत डालियां लिकलती हैं। इसमें एक बीज से सैकड़ों बीज उत्पन्न होते हैं तथा इन पौधों की डालियों में आकाश के पक्षी बसेरा करते हैं।
प्रभु यीशु मसीह ने मत्ती 17ः20 में भी राई के दाने का विश्वास के सन्दर्भ में उपयोग किया। उसने कहा कि, ‘‘यदि तुम्हारा विश्वास राई के दाने के बराबर भी हो तो इस पहाड़ से कह सकोगें कि यहां से सरक कर वहां चला जा, तो वह हट जाएगा, और कोई बात तुम्हारे लिए अन्होंनी न होगी।‘‘
इन दोनों ही उदाहरणों में प्रभु यीशु मसीह ने राई के दाने की सूक्ष्मता और नगण्यता प्रकट की। प्रभु यीशु मसीह ने राई के दाने की शास्त्री और फरीसी उसे एक ग़रीब परिवार का एंव साधारण बढ़ाई का बेटा जानकर तुच्छ और महत्वहीन समझते हैं। प्रभु यीशु ने पृथ्वी पर स्वर्ग के राज्य की शुरूआत बहुत ही साधारण ढंग से की। गौशाले की चरनी में जन्म, गरीब परिवार, दास का सा स्वरूप और बहुत ही सामान्य से अशिक्षित मुट्ठी भर शिष्य। उस समय लोगों को इस बात का कतई अहसास नहीं रहा होगा। कि प्रभु यीशु मसीह की ऐसी साधारण शुरूआत सम्पूर्ण संसार को उलट-पुलट करके रख देगी। प्रभु यीशु मसीह जो भविष्य का भी स्वामी है उसे मालूम था उसका इस दुनिया में आना, मनुष्यों पर अपने ईश्वरीय सामर्थ के काम प्रकट करना, उन्हें जीवन जीने की आदर्श शैली स्वंय जीकर दिखाना, बारह शिष्यों को प्रशिक्षित करना। इसके साथ ही सम्पूर्ण मानव जाति को पापों के दण्ड और मृत्यु के भय से मुक्त करने के लिए स्वंय पापों का दण्ड भोगना और फिर क्रूस की मृत्यु सहना, यह सब कुछ पृथ्वी पर स्वर्ग के राज्य की शुरूआत के लिए आवश्यक था।
प्रभु यीशु मसीह की मृत्यु, पुनरूत्थान और स्वर्गारोहण के पश्चात शिष्यों ने पापों की क्षमा और उद्धार का सन्देश फैलाना प्रारंभ किया। आज उसका वही सन्देश मसीही लोग दुनिया के कोने-कोने में फैलाने के प्रयास में लगे हुए हैं। दुनिया की प्रायः सभी प्रमुख भाषाओं में उद्धार का सन्देश लोगों तब पहुंचाया जा रहा है। गलील के नासरत नगर में जो राई के दाने के बराबर तुच्छ और नगण्य समझा जाने वाला बीज बोया गया था, वह आज विराट वृक्ष बन गया है। लगातार यह वृक्ष बढ़ ही रहा है और यह तब तक बढ़ेगा जब तक स्वर्ग का राज्य का सुसमाचार सारे जगत में प्रचार नहीं किया जाएगा। और फिर तब अन्त आ जाएगा। (मत्ती 24ः14 के अनुसार) जिस प्रकार बसेरे में पक्षी विश्राम, सुरक्षा और शांति पाते हैं उसी प्रकार जो कोई पश्चाताप करता है, प्रभु यीशु मसीह को अपना व्यक्तिगत मुक्तिदाता करके ग्रहण करता है; और उसकी शिक्षाओं के अनुसार जीवन जीने की निश्चय उसे मिलती है। प्रभु यीशु मसीह की शिक्षांए इस अन्धकारपूर्ण संसार में प्रकाश बनकर उसके जीवन का पथ प्रदर्शक होती हैं, जिससे वह विभिन्न बुराईयों में पड़ने से बचता है और सच्ची शांति और खुशी उसे मिलती है।
व्यवहारिक पक्ष एंव आत्मिक शिक्षा: पृथ्वी पर स्वर्ग के राज्य की स्थापना हो गयी है। उसके राज्य में बसेरा करने से ही सुरक्षा, शांति, संतुष्टि, आनन्द और विजय की निश्चयता प्राप्त होती है। निर्णय स्वंय हम पर निर्भर है।
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