खमीर का दृष्टान्त

खमीर का दृष्टान्त


सन्दर्भ:- मत्ती 13ः33 - ‘‘उस ने एक और दृष्टान्त उन्हें सुनया; कि स्वर्ग का राज्य खमीर के समान है जिस को किसी स्त्री ने लेकर तीन पसेरी आटे में मिला दिया और होते होते वह सब खमीर हो गया।’’ 

लूका 13ः20-21 - ‘‘उस ने फिर कहा; मैं परमेश्वर के राज्य की उपमा किस से दूं? वह खमीर के समान है, जिस को किसी स्त्री ने लेकर तीन पसेरी आटे में मिलाया, और होते होते सब आटा खमीर हो गया।’’

प्रस्तावना एंव पृष्ठभूमि:- प्रतिदिन की सरल व्यवहारिक घटनाओं द्वारा लोगों पर स्वर्ग के राज्य के गूढ़ रहस्यों का खुलासा करना प्रभु यीशु मसीह के उपदेशों की विशेषता थी। गलील की झील के किनारे विशाल जन समूल को सम्बोधित करते हुए प्रभु यीशु मसीह ने यह दृष्टान्त सुनाया।

जिस प्रकार राई के दाने के दृष्टान्त का उद्देश्य कलीसिया के द्वारा विश्व में सुसमाचार प्रचार को प्रगट करना है, प्रभु यीशु मसीह की अन्तिम महानतम आज्ञा को पूरा करना है ‘‘कि, जाओ जाकर सभी देशों के लोगों को चेला बनाओं।‘‘ (मत्ती 28ः18-20 के अनुसार) उसके ठीक विपरीत खमीर के दृष्टान्त का उद्देश्य कलीसिया में प्रत्येक सदस्य के व्यक्तिगत जीवन के विभिन्न आयामें में सम्पूर्ण परिर्वतन को प्रगट करना है।

अनुवाद: खमीर की यह विशेषता होती है कि इसकी थोड़ी सी मात्रा बहुत से आटे को खमीर कर प्रभावित करती है और इसमें सम्पूर्ण आटा फूल जाता है। डबल रोटी आदि बनाने में इसका उपयोग होता है। यहां 3 पसेरी आटे का उदाहरण बताया है। एक पसेरी आटा अर्थात 13.13 कि.ग्राम के बराबर। अतः कुल आटा क़रीब 40 कि.ग्राम।

यहां प्रभु यीशु मसीह ने स्वर्ग राज्य की तुलना के लिए खमीर का उदाहरण इसलिए दिया क्योंकि बहुत ही नगण्य और महत्वहीन दिखने वाले खमीर में असीम शक्ति छुपी होती है। यह आटे में जब मिल जाता है तो इसे अलग से पहचाना नहीं जा सकता परन्तु सम्पूर्ण आटे में इसका प्रभाव देखा जा सकता है और इसकी एक अलग खुशबू पहचानी जा सकती है। यह आटे के एक-एक कण में समा जाता है। ठीक इसी प्रकार परमेश्वर के राज्य का प्रभाव कलीसिया के अन्दर होता है।

परमेश्वर का राज्य कलीसिया है। कलीसिया विश्वासियों का एक समूह है। कलीसिया में प्रत्येक विश्वासी के जीवन के सभी आयामों में प्रभु यीशु मसीह की शिक्षाओं के द्वारा परिर्वतन आवश्यक है। प्रत्येक विश्वासी से यह अपेक्षा है कि उसकी भाषा, व्यवहार, कार्यशैली एंव चरित्र प्रभु यीशु मसीह को जानने की जिज्ञासा बढ़े। विश्वासियों के भले काम परमेश्वर पिता की महिमा के लिए होने चाहिए। (मत्ती 5ः16) उनकी खुशबू से सम्पर्क में आने वाले सभी लोग प्रभावित हो सकें।

व्यवहारिक पक्ष एंव आत्मिक शिक्षाः खमीर अर्थात् वचन की शिक्षा द्वारा हमें अपने जीवनों को इस प्रकार से आगे बढ़ाना है, कि हमारे जीवनों के द्वारा उस अद्वैत परमेश्वर की महिमा, स्तुति और गवाही हो। उसकी शिक्षा का प्रभाव हमारे जीवन के सभी पहलुओं में दिखाई दे सके।

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