बच्चों के खेल का दृष्टान्त
बच्चों के खेल का दृष्टान्त
सन्दर्भ: मत्ती 11ः16 से 19 ‘‘मैं इस समय के लोगों की उपमा किससे दूं? वे उन बालकों के समान हैं, जो बाज़ारों में बैठे हुए एक-दूसरे से पुकार कर कहते हैं। कि हम ने तुम्हारे लिये बांसली बजाई, और तुम न नाचे; हम ने विलाप किया, और तुमने छाती नहीं पीटी। क्योंकि यूहन्ना ना खाता आया और न पीता आया, और वे कहते हैं कि उसमें दुष्टात्मा हैं। मनुष्य का पुत्र खाता-पिता आया, और वे कहते हैं कि देखो, पेटू और पियक्कड़ मनुष्य, महसूल लेने वालों और पापियों का मित्र; पर ज्ञान आपने कामों से सच्चा ठहराया गया है।’’
लूका 7ः31 से 35 ‘‘सो मैं इस युग के लोगों की उपमा किस से दूं कि वे किसके समान हैं? वे उन बालकों के समान हैं जो बाज़ार में बैठे हुए एक दूसरे से पुकार कर कहते हैं, हम ने तुम्हारे लिये बांसली बजाई और तुम न नाचे। हम ने विलाप किया, और तुम न रोए क्योंकि यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला न दोटी खाता आया, न दाखरस पीता आया, और तुम कहते हो, देखो, पेटू और पियक्कड़ मनुष्य, चुंगी लेने वालों का और पापियों का मित्र। पर ज्ञान अपनी सब सन्तानों से सच्चा ठहराया गया है।’’
प्रस्तावना एंव पृष्ठभूमि: अधिकांश यहूदी लोग यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले एंव प्रभु यीशु मसीह दोनों से ही नाखुश रहते थे। वे दोनों की आलोचना करते थे। इस दृष्टांत को बताने से ठीक पहले यूहन्ना के शिष्यों ने प्रभु मसीह से आकर पूछा था कि ‘‘क्या आने वाले वाला मसीह तू ही है या हम दूसरे की बाट जोहें? ‘‘इस प्रश्न के उत्तर में यीशु ने देखते-देखते ही बहुतेरे को बीमारियों से चंगाई दी, लोगों की दुष्टात्माओं से छुड़ाया, अन्धों को आंखे दीं। ये सब करने के बाद उनसे कहा कि जो कुछ तुमने देखा और सुना है जाकर यूहन्ना को बताओ कि अन्धे देखते हैं, लंगड़े चलते-फिरते हैं, कोढ़ी शुद्ध किये जाते हैं, बहरे सुनते हैं, मुरदे जिलाए जाते हैं और ग़रीबों को सुसमाचार सुनाया जाता है।
इस दृष्टांत के अन्त में भी प्रभु यीशु मसीह ने कहा ‘‘ज्ञान अपने कार्यो से सच्चा ठहराया गया है। ‘‘हमें लोगों की व्यर्थ आलोचनाओं में नहीं उलझना परन्तु परमेश्वर द्वारा दी गई ज़िम्मेदारियों को संपूर्ण लगन एंव परिश्रम से पूरा करना है। तभी कार्य विश्वास की गवाही बन जाएंगे और लोगों की आलोचनाओं का कोई महत्व नहीं रह जाएगा।
विषय वस्तु सारांश: प्रभु यीशु मसीह ने लोगों से कहा ‘‘मैं इस युग के लोगों की उपमा किस से दूं,? वे उन बालकों के समान हैं जो बाज़ारों में बैठे हुए एक-दूसरे से पुकारकर कहते हैं हमने तुम्हारे लिए बांसली बजाई और तुम न नाचे, हमने शोक गीत गाया और तुम ना रोए। यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला न रोटी खाता आया, ना दाखरस पीता आया और तुम कहते हो उसमें दुष्टात्मा है। मनुष्य का पुत्र खाता-पिता आया है और तुम कहते हो देखो, पेटू और पियक्कड़ मनुष्य, चुंगी लेनेवालों का और पापियों का मित्र; पर ज्ञान अपने कामों से सच्चा ठहराया गया है।
व्याख्या: प्रभु यीशु ने इस दृष्टान्त में यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले की तुलना बच्चों के ऐसे समूह से की जो अन्तिम क्रिया से संस्कार का खेल खेलना चाह रहे थे और दूसरे बच्चों ने उस खेल में दुःखी होकर रोने का अभिनय करने से इन्कार कर दिया। फिर कुछ बच्चों ने आनन्द और खुशी का खेल खेलना चाहा। उन्होंने शादी के खेल की सलाह दी। इस खेल में भी जिन को नाचना था, वे नहीं नाचे और खेल में कोई भाग नहीं लिया।
इस दृष्टान्त के प्रमुख दो प्रकार के अनुवाद मिलते हैं।
पहले अनुवाद के अनुसार - शादी और अन्तिम क्रिया के खेल की सलाह देने वाले क्रमशः प्रभु यीशु मसीह और यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले को प्रगट करते हैं। इसमें इन खेलों से इन्कार करने वाले यहूदी हैं; जिन्होंने यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले को प्रगट करते हैं। इसमें इन खेलों से इन्कार करने वाले यहूदी हैं, जिन्होंने यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले और प्रभु यीशु मसीह दोनों का ही इन्कार किया।
दूसरे अनुवाद के अनुसार - शादी और अन्तिम क्रिया के खेल की सलाह देने वाले यहूदी हैं जो यह चाहते थे प्रभु यीशु मसीह गंभीर रहें और त्याग से रहें। यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले को ये यहूदी चाहते थे कि वे सामान्य मनुष्यों की तरह आनन्दपूर्वक रहे। परन्तु ये दोनों ही यहूदियों की अपेक्षाओं के विपरीत थे।
प्रमुख बात यह थी कि यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला सामान्य जीवन व्यतीत करने वाला था। वह जंगलों में रहता था, टिड्डियां और वनमधु खाता था। वह यहूदियों को ‘‘सांप के बच्चों’’ (मत्ती 3ः7 के अनुसार) कहकर पुकारता और उन्हें मनफिराव के योग्य ‘फल’ लाने को कहता था। उसकी इस भत्र्सना का प्रभाव कम करने और लोगों पर अपनी झूठी धार्मिकता का रोब बरकरार रखने के लिए इन यहूदियों ने उसे दुष्टात्मा से ग्रसित मनुष्य करार दिया था।
प्रभु यीशु मसीह सामान्य मनुष्यों की तरह रहता था, पापियों के संहार करने की नहीं वरन उन्हें बचाने की धुन में रहता था, उनके साथ भी वह प्रेमपूर्ण व्यवहार करता था। वह यहूदियों की तथाकथित और सतही धार्मिकता का पर्दाफ़ाश करता था। वह धर्म को मात्र आडम्बर युक्त रीतिरिवाजों में सीमित करने के ख़िलाफ था। वो चाहता था कि लोग परमेश्वर को अपने हृदयों में स्थान दें। आपस में प्रेम और एकता से रहें। एक दूसरे की आवश्यक्ताओं के प्रति संवेदनशील रहें। लोग उसके पापरहित जीवन आश्चर्यकर्मों और अधिकारपूर्ण उपदेशों से बेहद प्रभावित थे और अन्य यहूदियों को नागवार थी। अतः उन्होंने प्रभु यीशु मसीह को पेटू, पियक्कड़, महसूल लेने व देने वालें और पापियों का मित्र जैसी संज्ञाएं देकर उसका प्रभाव कम करने का प्रयास करना प्रारंभ किया। यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला और प्रभु यीशु समीह दोनों ही परमेश्वर के संदेशवाहक थे। परन्तु, दोनों की जीवनशैली एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न थी लेकिन दोनों ही परिस्थितियों में लोगों ने आलोचना मे मुद्दे ढूंढ लिये थे और उसी में इतना उलझ गये थे कि उनके ख़ास संदेश को वे पूर्ण रूप से अनसुना कर रहे थे।
व्यवहारिक पक्ष एंव आत्मिक शिक्षा:
1. लोगों की अपेक्षाओं को हम कभी पूरा नहीं कर सकते। उनके अनुसार हम नहीं जी सकते। हम सभी को प्रसन्न नहीं कर सकते। परमेश्वर की आज्ञाओं के दायरे में रहकर, उसके वचन के प्रकाश में जीवन जीना ही सर्वोत्तम है। कभी कुछ आलोचनाएं व्यर्थ होती हैं अतः उन पर ध्यान केन्द्रित करना तथा उनसे अलझना केवल समय की बर्बादी है।
2. रचनात्मक कार्य ही ऐसे व्यर्थ आलोचनाओं का सबसे अच्छा उत्तर हैं। प्रभु यीशु मसीह ने अपने ईश्वरत्व को अद्भूत कार्यो के द्वारा प्रगट कर स्वयं का आने वाले ‘मसीहा’ के रूप में परिचय दिया। उसके कार्य उसके मसीहा होने की गवाही बन गये। प्रभु यीशु मसीह ने आलोचनाओं की ओर कभी ध्यान नहीं दिया तभी वह अपने जीवन में परमेश्वर की इच्छा और योजना को पूर्ण करने में सफल हो सका।
हमें भी अपना पूरा ध्यान परमेश्वर द्वारा ठहराए गये रचनात्मक कार्यो में लगाना है। पूरी लगन से अपने कार्यो को और ज़िम्मेदारियों को पूर्ण करना है।
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