बीज बोने वाले का दृष्टान्त
बीज बोने वाले का दृष्टान्त
सन्दर्भ: मत्ती 13ः3-9, मरकुस 4ः3-8, लूका 8ः5-8,
अनुवाद सन्दर्भ: मत्ती 13ः18-28, मरकुस 4ः13-20, लूका 8ः11-15,
मत्ती 13ः3-9 - ‘‘और उस ने उन से दृष्टान्तों में बहुत सी बातें कहीं, कि देखो, एक बोनेवाला बीज बोने निकला। बाते समय कुछ बीज मार्ग के किनारे गीरे और पिक्षियों ने आकर उन्हें चुग लिया। कुछ पथरीली भूमि पर गिरे, जहां बहुत मिट्टी न मिली और गहरी मिट्टी न मिलने के कारण वे जल्द उग आए। पर सूरज निकलने पर वे जल गए, और जड़ न पकड़ने से सूख गए। कुछ झाड़ियों में गिरे, और झाड़ियों ने बढ़कर उन्हें दबा डाला। पर कुछ झाड़ियों में गिरे और झाड़ियों ने बढ़कर उन्हें दबा डाला, पर कुछ अच्छी भूमि पर गिरे, और फल लाएं, कोई सौ गुना, कोई साठ गुना, कोई तीस गुना। जिस के कान हों वह सुन लें।’’
मरकुस 4ः3-8 - ‘‘सुनोः देखो, एक बोने वाला, बीज बोने के लिये निकला! और बोते समय कुछ तो मार्ग के किनारे गिरा और पक्षियों ने आकर उसे चुग लिया। और कुछ पत्थरीली भूमि पर गिरा जहां उस को बहुत मिट्टी न मिली, और गहरी मिट्टी न मिलने के कारण जल्द उग आया। और जब सूरज निकला, तो जल गया, और जड़ न पकड़ने के कारण सूख गया। और कुछ तो झाड़ियों में गिरा, और झाड़ियों ने बढ़कर उसे दबा लिया, और वह फल न लाया। परन्तु कुछ अच्छी भूमि पर गिरा, और वह उगा, और बढ़कर फलवन्त हुआ; और कोई तीस गुणा, कोई साठ गुणा और कोई सौ गुणा फल लाया।’’
लूका 8ः5-8 - ‘‘एक बोने वाला बीज बोने निकला: बोते हुए कुछ मार्ग के किनारे गिरा, और रौंदा गया, और आकाश के पक्षियों ने उसे चुग लिया। और कुछ चट्टान पर गिरा, और उपजा, परन्तु तरी न मिलने से सूख गया। कुछ झाड़ियों के बीच में गिरा, और झाड़ियों ने साथ-साथ बढ़कर उसे दबा लिया। और कुछ अच्छी भूमि पर गिरा, और उगकर सौ गुणा फल लाया: यह कहकर उस ने ऊंचे शब्द से कहा; जिस के सुनने के कान हों वह सुन लें।’’
प्रस्तावना: भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां बाइबल लिखे जाने के काल में जिन पुरातन कालीन अविकसित () कृषि साधनो का उपयोग होता था, उन्हीं का उपयोग आज भी बहुतेरे कृषक करते हैं। प्रायः कृषक उपज के लिए उपजाऊ भूमि, अच्छे बीज और वर्षा आदि प्राकृतिक कारणों पर ही निर्भर होते हैं क्योंकि अक्सर खेत में खाद पानी की व्यवस्था जुटा पाना भी उनके लिए संभव नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति से हम सभी वाकिफ हैं। इन स्थितियों को ध्यान में रखकर हम इस दृष्टान्त को और भी आसानी से अपने विचारों में चित्रित कर सकते हैं।
पृष्ठभूमि: मत्ती और मरकुस में प्रभु यीशु मसीह ने लोगों को यह दृष्टान्त गलील की झील में एक नाव पर चढ़कर सुनाया और लूका में उसने यही दृष्टान्त उस समय सुनाया जब वह गांवों में प्रचार करने को निकला था और लोगों की एक बड़ी भीड़ उसके पास एकत्रित हो गई थी। वह चाता था कि लोग उसके उपदेशों को गंभीरता पूर्वक सुनें, समझें और उसके अनुसार चलें।
प्रभु यीशु मसीह जानता था कि उसके पूर्व अन्य भविष्यवक्ताओं को भी लोगों ने सुना था। यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले को भी बहुत लोगों ने सुना था और लोग उसके उपदेश भी मंत्रमुग्ध होकर सुनते थे। किन्तु, वचन द्वारा वास्तविक रूप से परिवर्तित होने वाले लोग थोड़े ही होते थे। प्रभु यीशु मसीह यह भी जानता था कि लोगों ने अपने हृदय की कठोरता के कारण पश्चाताप करने के बदले सभी भविष्यवक्ताओं की हत्यांए करायी थीं। भविष्यवक्ताओं लोगों की पापमय दशा को उजागर करते थे, जो प्रायः लोगों को कतई पसन्द नहीं था क्योंकि उन्हें अपनी पापमय दशा के बदले ऐसे कारणों को ही मिटा डालते थे ताकि उनमें अपराध बोध ही न हो और वे अपनी मर्ज़ी के अनुसार जी सकें।
प्रभु यीशु मसीह के समीप बड़ी संख्या में लोग उसके प्रवचन सुनने के लिए एकत्रित थे। इस दृष्टान्त के द्वारा प्रभु यीशु मसीह ने सभी उपस्थित श्रोताओं को अगाह किया कि वचन सुन लेना या सुनकर कुछ समय के लिए भावुक हो जाना मात्र ही पर्याप्त नहीं है। परन्तु, वचन को सुनना है, उसे समझना है एंव उसमें निरन्तर बने रहना और आगे बढ़ते जाना है। तभी हमारे जीवन परमेश्वर के राज्य के विस्तार का कारण बन सकेंगे।
विषय वस्तु: इस दृष्टान्त के बताने के बाद प्रभु यीशु मसीह ने इसका अर्थ भी शिष्यों को समझाया। इसके अनुसार एक बीज बोले वाला खेत में बीज बोने को निकला बोते समय :-
1. कुछ बीज मार्ग के किनारे गिरे और पक्षियों ने आकर उन्हें चुग लिया।
2. कुछ बीज पथरीली भूमि पर गिरे और शीघ्र ही उग आये किन्तु सूर्य की गर्मी से वे झुलस गये। उनकी जड़े भी गहरी नहीं थी अतः वे जलकर ख़त्म हो गये।
3. कुछ बीज कंटीली झाड़ियों में गिरे और ऐसे पौधों को झाड़ियों ने बढ़ने नहीं दिया।
4. किन्तु, कुछ बीज अच्छी भूमि पर गिरे और साठ सत्तर और सौ गना फल लाए।
अर्थ: इस दृष्टान्त में बीज, परमेश्वर का वचन है और बीज बोने वाला वचन का प्रचार करने वाला है। इस दृष्टान्त के अनुसार प्रभु यीशु मसीह ने लोगों को प्रमुख 4 श्रेणियों में बांटा:-
अ. प्रथम श्रेणी में ऐसे लोग सम्मिलित हैं जो वचन को न तो ध्यान से सुनते हैं और न ही उसे समझने का प्रयास करते हैं। ऐसे लोग उन चिकने घड़ों के समान होते हैं जिन पर पानी डालने से पानी ठहरता नहीं। वे वचन को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देते हैं। ऐसे लोगों के जीवन में वचन का कोई प्रभाव नहीं होता। ऐसे लोग परमेश्वर के राज्य के योग्य नहीं है।
ब. दूसरी श्रेणी में ऐसे लोग होते हैं जो वचन को सुनकर तुरन्त आनन्द के साथ उसे मान लेते हैं, क्षणिक भावावेश में आकर बहुत से प्रण कर लेते हैं। किन्तु ज़रा से क्लेश, थोड़े से त्याग, परेशानी, प्रलोभन एंव अहित आदि से तुरन्त ठोकर खाते हैं और विश्वास में कमज़ोर होने के कारण ये वापस अपनी पुरानी दशा में लौट जाते है। ऐसे लोग भी परमेश्वर के राज्य के योग्य नहीं हैं।
स. तीसरी श्रेणी में वे लोग होते हैं जिनका विश्वास बड़ा अधूरा होता है। ऐसे लोग दोहरा जीवन जीना चाहते हैं। वे रविवार, क्रिसमस, गुडफ्राईडे, या ईस्टर के दिन आराधनाआंे में उपस्थित हो जाना या विशेष गीत प्रस्तुत कर देना ही पर्याप्त समझते हैं। बाकी समय में ये वचन को ताक में रखकर अपनी मर्ज़ी के अनुसार अपनी ग़लत आदतों एंव ख़राब संगति में, संलग्न रहना चाहते हैं। ऐसे लोग वचन तो सुनते है। वे संसार की चिन्ता, पद, प्रतिष्ठा, अहं, धन के धोके आदि में ही उलझे रहते हैं और उनका विश्वास भी इन्हीं सब बातों के बीच दबकर नष्ट हो जाता है। ऐसे अधूरे रूप से समर्पित लोग भी परमेश्वर के राज्य के योग्य नहीं समण्े जाते है।
द. चैथी श्रेणी में वे लोग शामिल हैं जो वचन को सुनते हैं, समझते हैं, निरन्तर उसमें परिपक्व होते जाते हैं तथा उसे अपने जीवन में हर पल लोगों के जीवन से आत्मा का फल (गलतियों 5ः22 के अनुसार) प्रकट होता है, उसकी गवाही प्रगट होती है। ऐसे लोग जीवन में कठिन और विषम परिस्थितियों में भी विश्वास में दृढ़ और मज़बूत और गहरी होती है। ऐसे लोग बहुतेरों के लिए आशीष का कारण होते हैं।
व्यवहारिक पक्ष एंव आत्मिक शिक्षाः
1. हमें पूरी विश्वास योग्यता से प्रचार करना है। यह सोचकर कि हमारे प्रचार से लोगों में कोई परिवर्तन नहीं होगा, निराश होकर चुप नहीं बैठना है। प्रचार करना प्रत्येक मसीही का कर्तव्य हे। स्मरण रखिये कि प्रभु यीशु मसीह के सशक्त एंव अधिकारपूर्ण प्रचार से भी चंद लोग ही परिवर्तित हुए किन्तु इन थोड़े से ऐसे परिवर्तित लोगों ने सम्पूर्ण दुनिया में मसीहियत का प्रचार किया।
प्रभु यीशु मसीह द्वारा अच्छी भूमि में बोए गये ये थोड़े से बीज 60, 70 और 100 गुना फल लाए। प्रभु में हमारा परिश्रम कभी व्यर्थ नहीं होता। एक ही परिवर्तन परमेश्वर की सामर्थ से आशा से परे आत्मिक क्रान्ति लाने में समर्थ हो सकता है। भले ही 90 प्रतिशत के बीच यह प्रचार करना व्यर्थ समझा जाए परन्तु 10 प्रतिशत प्रचार भी यदि प्रभावशाली हो तो परमेश्वर इसे 60, 70 और 100 गुना फलवन्त कर सकता है।
2. जो लोग अपने जीवन में वचन की, परमेश्वर के प्रेम, दया, अनुग्रह एंव बलिदान की उपेक्षा करते हैं, वे चाहे सांसारिक रूप से कितने ही समृद्ध और प्रतिष्ठित हों परन्तु जिस प्रकार जड़ न होने पर पौधा नष्ट हो जाता है, उसी तरह उनका जीवन भी एक दिन समाप्त हो जाएगा। वे सांसारिक बातों को हमेशा अपने जीवन में अहमियत देते रहे वे सब इस जीवन के साथ ही समाप्त हो जाएंगी।
प्रमुख बात यह ही है कि हमारा विश्वास कितना दृढ़ और मज़बूत रहा है? हमने वचन की शिक्षाओं के अनुसार जीवन जिया है या नहीं? हमारा परमेश्वर से कैसा सम्बन्ध रहा है? इन्हीं बातों का प्रभाव अनन्त तक होता है और जीवन की शान्ति, अनंत जीवन की रिश्चितता, आशा और विजय इन्हीं बातों पर निर्भर होती है।
हम अपने आपको किस श्रेणी में पाते है? अपना आत्मावलोकन कर वचन के प्रकाश में आगे बढ़े, जिसमें हम भी परमेश्वर के राज्य के योग्य ठहर सकें और कई गुना फल ला सकें।
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