शिष्यों का नया जन्म
शिष्यों का नया जन्म
यूहन्ना 20ः22 ‘‘यह कह कर उसने उन पर फूँका और उसने कहा, ‘‘पवित्र आत्मा लो।’’
यीशु के द्वारा अपने शिष्यों को पुनरूत्थान के दिन पवित्र आत्मा दिया जाना आत्मा का बपतिस्मा नहीं था जो पिन्तेकुस्त पर अनुभव किया गया (1ः5; 2ः4)। इसकी बजाए यह प्रथम अवसर था कि शिष्य पवित्र आत्मा की नवींकरण करने वाली उपस्थिति से और जी उठे यीशु से नये जीवन से पहली बार भरे गए।
(1) यीशु ने अपने मुकद्दमें और क्रूस पर चढ़ाये जाने से पहले अपने शिष्यों से अंतिम वार्तालाप में, उसने उन्हें प्रतिज्ञा दी कि वे पवित्र आत्मा पायेंगे जो उनका नवीकरण करेगा ‘‘वह तुम्हारे साथ रहेगा और तुम में होगा’’ यूहन्ना 14ः17) यीशु अब उस प्रतिज्ञा को पूरा करता है।
(2) यूहन्ना 20ः20 पुनरूज्जीविन से संबंधित है जिसका संकेत हमें ‘‘उसने उन पर फूँका’’ वाक्य से लग सकता है। ‘‘फूँका’’ के लिये यूनानी शब्द (एमफूसो) के लिये वही क्रिया का प्रयोग हुआ है जो सप्तवागिन्त (पुराने नियम का यूनानी अनुवाद) में उत्पत्ति 2ः7 में हुआ, यहाँ परमेश्वर ने ‘‘उसके (आदम) के नथनों में जीवन का श्वास ‘‘फूँका’’ और मनुष्य जीवता प्राणी बना’’। ये वही क्रिया है जो यहेजकेल 37ः9 में पाई जाती है, ‘‘साँस उनमें समा जा कि वे जी उठे’’। यूहन्ना का इस क्रिया का प्रयोग करना यह दर्शाता है कि यीशु आत्मा दे रहा था ताकि जीवन और नई सृष्टि की उत्पत्ति हो (उत्पत्ति 2ः7), अतः यीशु ने अब आत्मिक रूप से शिष्यों पर श्वास ‘‘फूँका’’ और वे नई सृष्टि बन गये। अपने पुनरूत्थान के द्वारा, यीशु एक ‘‘जीवन दायक आत्मा बना’’ (1कुरिन्थियों 15ः45)।
(3) यह वाक्य ‘‘पवित्र आत्मा लो’’ स्थापित करता है कि आत्मा, उस ऐतिहासिक क्षण पर शिष्यों में आया और रहने लगा। यह शब्द ‘‘लो’’ क्रिया का सामान्य भूत प्रकार है (यूनानी में लबेटो, जो लम्बेनो शब्द से है), जो एक बार का ग्रहण करना दर्शाता है। पवित्र आत्मा इन्हें नवीकरण के लिये दिया गया, उन्हें यीशु में नई सृष्टि बनाने के लिये (2कुरिन्थियों 5ः17)। आत्मा के द्वारा यह जीवन को पाना यीशु से अधिकार ‘‘पाना’’ (यूहन्ना 20ः23) और पिन्तेकुस्त के दिन आत्मा से उनका बपतिस्मा (प्रेरितों के काम 2ः4) दोनों से पहले हुआ।
(4) इस समय से पहले शिष्य तकनीकी रूप से, सच्चे विश्वासी थे और यीशु के अनुयायी थे और पुरानी वाचा के प्रावधान के अनुसार बचाये गये थे। तब भी वे नए नियम के अनुसार पूर्ण रूप से नवीकृत नहीं हुए थे। इस बिन्दु से पहले शिष्य यीशु की मृत्यु और पुनरूत्थान पर आधारित नय नियम के प्रावधानों में प्रवेश नहीं पये थे (मत्ती 26ः28; लूक 22ः20; 1कुरिन्थियों 11ः25; इफिसियों 2ः15-16; इब्रानियों 9ः15-17) और तकनीकी रूप से भी इस समय कलीसिया का जन्म हुआ और पिन्तेकुस्त पर नहीं। प्रथम शिष्यों का आत्मिक जन्म और कलीसिया की उत्पत्ति दोनों एक ही हैं।
(5) परमेश्वर के लोगों के लिये पवित्र आत्मा की सेवकाई को समझने के लिये यह महत्वपूर्ण अनुच्छेद है। यह दो वक्तव्य सत्य है: (अ) शिष्यों ने पवित्र आत्मा पाया (अर्थात् पवित्र आत्मा द्वारा नवीकृत हुए और पवित्र आत्मा का निवास स्थान बनें)। पिन्तेकुस्त के दिन के पहिले, और (ब) पवित्र आत्मा की वर्षा प्रेरितों के काम 2ः4 में एक अनुभव था जो उनके आत्मा के नवीकरण के बाद हुआ। इसलिये पिन्तेकुस्त पर उनका आत्मा से बपतिस्मा, एक भिन्न और दूसरा कार्य था जो आत्मा ने उनमें किया।
(6) ये दो अलग और भिन्न पवित्र आत्मा के कार्य यीशु के शिष्यों के जीवन और सभी मसीहों के लिये सिद्धान्त स्वरूप हैं। अर्थात सभी विश्वासी अपने नवीकरण के समय पर पवित्र आत्मा पाते हैं, और बाद में सामर्थ से अपनी साक्षी देने के लिये उन्हें पवित्र आत्मा से बपतिस्में का अनुभव आवश्य पाना चाहिए (प्रेरितों के काम 1ः5,8; 2ः4; 2ः39)
(7) पवित्रशास्त्र पर आधारित ऐसा कोई सुझाव नहीं है कि यीशु द्वारा पवित्र आत्मा का दिया जाना जो यूहन्ना 20ः22 में है, पिन्तेकुस्त पर पवित्र आत्मा का आना एक सांकेतिक भविष्यवाणी थी। ‘‘पाओ’’ के लिये सामान्य भूत का प्रयोगउस क्षण और उस स्थान पर ग्रहण करने को दर्शाता है। जो घटित हुआ वह स्थान और समय में ऐतिहासिक वास्तविकता थी, और यूहन्ना उसका ऐसे ही लेख प्रस्तुत करता है।
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