अंजीर के वृक्ष का दृष्टान्त

अंजीर के वृक्ष का दृष्टान्त
मन्दर्भ: मत्ती 24ः32-35 - ‘‘अंजीर के पेड़ से यह दृष्टान्त सीखोः जब उस की डाली कोमल हो जाती और पत्ते निकलने लगते हैं, तो तुम जान लेते हो, कि गीष्म काल निकट है। इसी रीति से जब तुम इन सब बातों को दखो, तो जान लो, कि वह निकट है, वरण द्वार ही पर हैं। मैं तुम से सच कहता हूं, कि जब तक ये बातें पूरी न हो लें, तब तक यह पीढ़ी जाती न रहेगी। आकाश और पृथ्वी टल जाएंगे, परन्तु मेरी बातें कभी नही टलेंगी।’’

मरकुस 13ः28-31 - ‘‘अंजीर के पेड़ से यह दृष्टान्त सीखो: जब उस की डाली कोमल हो जाती; और पत्ते निकलने लगते हैं; तो तुम जान लेते हो, कि ग्रीष्मकाल निकट है, बरन द्वार ही पर है। मैं तुम से सच कहत हूं, कि जब तक ये सब बातें न हो लेंगी, तब तक यह लोग जाते न रहेंगे। आकाश और पृथ्वी टल जाएंगे, परन्तु मेरी बातें कभी न टलेंगी।’’

लूका 21ः29-33 - ‘‘उस ने उन से एक दृष्टान्त भी कहा, कि अंजीर के पेड़ और सब पेड़ों को देखो। ज्योंही उन की कोंपलें निकलती हैं, तो तुम देखकर आप ही जान लेते हो, कि ग्रीष्मकाल निकट है। इसी रीति से जब तुम ये बातें होते देखो, तब जान लो कि परमेश्वर का राज्य निकट है। मैं तुम से सच कहता हूं, कि जब तक ये सब बातें न हो ले, तब तक किसी पीढ़ी का कदापि अन्त न होगा। आकाश और पृथ्वी टल जाएंगे, परन्तु मेरी बातें कभी न टलेंगी।’’

प्रस्तावना एंव पृष्ठभूमि 
एक दिन प्रभु यीशु मसीह जैतून के पहाड़ पर अपने चेलों के साथ बैठा था और चेलों ने उससे प्रश्न किया कि तेरे दूसरे आगमन और जगत के अन्त के क्या चिन्ह होंगे? (मत्ती 24ः3) उनके इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु यीशु मसीह ने उन्हें उस सयम के बहुत से चिन्ह दिये जैसे झूठे मसीह आएंगे, लड़ाईयां होंगी, अकाल पड़ेंगे, भूईडोल होंगे, सब जातियों के लोग तुमसे मेरे नाम के कारण बैर रखेंगे, झूठे भविष्यवक्ता उठ खडे़े होंगे जो बड़े चिन्ह और अदृभुत काम दिखाएंगे आदि। (मत्ती 24ः5-24) परन्तु प्रभु यीशु मसीह ने प्रमुख रूप से उन्हें यह चेतावनी दी कि वे इसी पशोपेश में न रहें कि उसका दूसरा आगमन ‘कब’ होगा? क्योंकि वह समय अचानक कभी भी आ सकता है। उसके विषय में कोई भी नही जानता। (पद 36 से 39) बात प्रमुख यह है कि हमें सावधानीपूर्वक उसके पुनरागमन के चिन्हों का अवलोकन करना है और विश्वास में स्थिर रहना है। 

विषय वस्तु: इस्राएल में अंजीर के पेड़ बहुतायत से हर कहीं पाये जाते है। अतः प्रभु यीशु मसीह ने इसी वृक्ष का उदाहरण देना उचित समझा। कड़ी ठण्ड में सभी पेड़ों के (लूका के अनुसार) पत्ते गिर जाते थे और पेड़ों में जीवन है और अब ग्रीष्म ऋतु निकट है। वैसे ही प्रभु यीशु मसीह चेलों से कहते हैं कि जिन बातों एंव चिन्हों की जानकारी मैंने तुम्हें दी, है वे सब दृढ़ और अटल हैं। वे अवश्य ही पूरी होंगी चाहे आकाश और पृथ्वी टल जांए। जब तक ये सब बातें पूरी न होंगी तब तक यह पीढ़ी जाती न रहेगी। 

व्याख्या :
प्रभु यीशु मसीह ने इस दृष्टान्त के द्वारा अपने शिष्यों को और साथ ही सभी विश्वासियों को आगाह किया कि उन्हें उसके पुनरागमन तब विश्वास में स्थिर रहना है। जिस प्रकार कड़ी ठण्ड में वृक्ष सूख जाते हैं और मृतप्रायः पतीत होते हैं, किन्तु ग्रीष्म ऋतु प्रांरभ होते ही उसमें जीवन के चिन्ह दिखाई देने लगते है,। उसी प्रकार विश्वासियों के जीवन में भी सताव आएंगे। शैतान विश्वासियों को भरमाने का हर संभव प्रयास करेगा और जो जो चिन्ह प्रभु यीशु मसीह ने बताए सभी चिन्ह प्रगट होंगे जिनका ज़िक्र प्रस्तावना में किया गया है। (मत्ती 24ः5-24) उस समय प्रत्येक विश्वासी समझ ले कि उसका आना निकट है वरन् वह द्वार पर ही है। 

मैं तुमसे सच कहता हूँ‘‘ वाक्य का प्रयोग प्रभु यीशु मसीह ने प्रायः अपने कथन की प्रामाणिकता, हमत्ता एंव सत्यता की पुष्टि करने के लिए उपयोग किया। अपनी बात को गंभीरता प्रदान करने के लिए भी उसने इस वाक्यांश का इस्तेमाल किया। इस पीढ़ी शब्द का प्रयोग विशिष्ट व्यक्तियों के समूह के लिए किया जाता था। कभी इसे विश्वासियों के समूह के संदर्भ में उपयोग किया गया है और कहीं मसीह के विरोधियों के संदर्भ में। 

‘‘पीढ़ी का अन्त न होगा’’ का तात्पर्य है कि विश्वासियों का एंव कलीसिया का अन्त नहीं होगा। यातनाओं एवं पीड़ा का एक दिन अन्त होगा, जब परमेश्वर का राज्य इस संसार में स्थापित होगा और प्रभु यीशु मसीह अपनी संपूर्ण महिमा के साथ चुने हुओं को अपने साथ लेने आएगा। पौलुस बड़े विश्वास के साथ रोमियों 8ः18-21 में लिखता है कि वर्तमान समय के दुःख और क्लेश उस महिमा के सामने जो हम पर प्रगट होने वाली है कुछ भी नहीं।‘‘ सृष्टि स्वंय भी विनाश के दासत्व के मुक्त होकर परमेश्वर की सन्तानों की महिमा की स्वतन्त्रता प्राप्त करेगी। क्योंकि हम जानते हैं कि सारी सृष्टि अब तक मिलकर कहराती और पीड़ओं में पड़ी तड़पती है।’’ (रोमियों 8ः21-22 के अनुसार)

इस दुनिया में हमारे संबंध एंव परिस्थितियां आदि सब कुछ बहुत ही अस्थायी एंव परिवर्तनशील हैं। किन्तु हमारा परमेश्वर कभी न बदलने वाला परमेश्वर है, वो आदि है और वही अनन्त है। उसके वचन सत्य अटल एंव पूरी रीति से मानने योग्य हैं। (लूका 16ः17, यूहन्ना 10ः35, भजन संहिता 19ः9, 12ः6) जिनका पूरा होना निश्चित है। पुराने एंव नये नियम में यह भी भविष्यवाणी की गई है कि न्याय के दिन आकाश और पृथ्वी टल जाएंगे ‘‘आकाश बड़ी गर्जन के साथ लुप्त हो जावेगा और प्रचण्ड ताप से नष्ट हो जाएंगे और पृथ्वी तथा उस पर किये गये कार्य भस्म हो जाएंगे।’’ (2पतरस 3ः10 के अनुसार)

व्यवहारिक पक्ष एंव आत्मिक शिक्षा: 
1. प्रभु यीशु मसीह के जन्म, सेवकाई, मृत्यु एंव पुनरूत्थान की भविष्यवाणियां जिस प्रकार अक्षरशः पूरी हुई उसी प्रकार उसके पुनरागमन की भविष्यवाणी भी पूरी होना निश्चित है। क्या हम उसके लिए तैयार है?

2. हमारी जीवन के छोटे बडे़ निर्णयों के साथ जीवन की दिशा, मंजिल एंव सफलतांए असफलतांए जुड़ी होती है। क्या हमने प्रभु यीशु मसीह को स्वीकार करने का एंव उसकी शिक्षाओं पर चलने का निर्णय किया है? इस निर्णय पर ही हमारे जीवन में स्वर्ग एंव नरक की दिशा निर्धारित होती है जिसकी मंजिल अनन्त जीवन या अनन्त विनाश है। इतने बड़े निर्णय को तुच्छ समझना या टालना मूर्खतापूर्ण है। प्रत्येक को व्यक्तिगत रूप से स्वंय निर्णय करना है। 

3. पीढ़ियों से विश्वास की गवाही के लिए विश्वासियों पर यातनांए आती रहती हैं और प्रभु यीशु मसीह के पुनरागमन तक आती रहेंगी। हमें विश्वासियों के लिए प्रार्थना करना है कि हम शैतान के सभी प्रलोभनों एवं परीक्षाओं पर विजय प्राप्त कर प्राण देने तक विश्वासी रह सकें। जिसके जीवन का मुकुट हमें प्राप्त हो। (प्रकाशित वाक्य 2ः10 ब के अनुसार)

4. पौलुस के ये वचन इस दृष्टान्त से हमारी शिक्षा के लिए सर्वथा उपयुक्त हैं कि ‘‘तुम्हारे लिए नींद से जाग उठने की घड़ी आ पहुंची है क्योंकि जिस समय हमने विश्वास किया था उसकी अपेक्षा अब हमारा उद्धार अधिक समीप है। रात्रि प्रायः बीत चुकी है दिन निकलने पर है अतः हम अन्धकार के कामों को त्यागकर ज्योति के हथियार बान्ध ले। (रोमियों 13ः11-12)

5. उसके पुनरागमन के समय पर अटकलों, चर्चा या वाद-विवाद में समय गंवाना व्यर्थ है। आवश्यक्ता इस बात की है कि हम सदैव तैयार रहें एवं सचेत रहकर उसके आने की सावधानी पूर्वक प्रतीक्षा करें।

Comments

Popular posts from this blog

पाप का दासत्व

श्राप को तोड़ना / Breaking Curses

भाग 6 सुसमाचार प्रचार कैसे करें?