खोई हुई भेड़ का दृष्टान्त

खोई हुई भेड़ का दृष्टान्त


सन्दर्भ: मत्ती 18ः12-14 - ‘‘तुम क्यों समझते हो? यदि किसी मनुष्य की सौ भेड़ें हो, और उन में से एक भटक जाए, तो क्या निन्नानवे को छोड़ कर, और पहाड़ों पर जाकर, उस भटकी हुई को न ढूंढेगा? और यदि ऐसा हो कि उसे पाए, तो मैं तुम से सच कहता हूं कि वह उन निन्नानवे भेड़ों के लिये जो भटकी नहीं थी इतना आनन्द नहीं करेगा जितना कि इस भेड़ के लिये करेगा। ऐसा ही तुम्हारे पिता की जो स्वर्ग में है यह इच्छा नहीं, कि इन छोटों में से एक भी नाश हो।’’

लूका 15ः4-7 ‘‘तुम में से कौन है जिस की सौ भेड़ें हों, और उनमें से एक खो जाए; तो निन्नानवे को जंगल में छोड़कर उस खोई हुई को जब तब मिल न जाए खोजता न रहे? और जब मिल जाती है, तब वह बड़े आनन्द से उसके काँधे पर उठा लेता है। और घर में आकर मित्रों और पड़ोसियों को इकट्ठे करके कहता है, मेरे साथ आनन्द करो, क्योंकि मेेरी खोई भेड़ मिल गई है। मैं तुमसे कहता हूं; कि इसी रीति से एक मन फिराने वाले पापी के विषय में भी स्वर्ग में इतना आनन्द होगा, जितना कि निन्नानवे ऐसे धर्मियों के विषय नही होता, जिन्हें मन फिराने की आवश्यक्ता नहीं।

प्रस्तावना एंव पृष्ठभूमि: प्रभु यीशु मसीह ने मत्ती रचित सुसमाचार में यह दृष्टान्त उस समय कहा जब वह लोगों को बच्चों का उदाहरण दे रहा था। लूका रचित सुसमाचार में इस दृष्टान्त का वर्णन उस समय है जबकि सब चुंगी लेने वाले और पापी यीशु मसीह के निकट उसकी बातें सुनने के लिए आए थे। उस समय शास्त्री और फरीसी प्रभु यीशु मसीह पर पापियों के साथ संगति का दोषारोपण कर रहे थे। तब प्रभु यीशु मसीह ने यह प्रगट करने के लिए कि परमेश्वर पापियों को ढूंढने और उन्हें बचाने के लिए सभी प्रयास करता है और यदि एक भी पापी बचाया जाता है तो स्वर्ग में बड़ा आनन्द मनाया जाता है; यह दृष्टान्त बताया। 
अन्य धर्मो में मनुष्य ईश्वर की खोज में दर-दर भटकता है किन्तु मसीही धर्म में परमेश्वर मनुष्य को ढंूढता और बचाता है। साथ ही प्रभु यीशु मसीह अन्य अवतारों के समान पापियों का संहारक बनकर इस दुनिया में नहीं आया किन्तु वह उन्हें बचाने के लिए इस दुनिया में आया। 

विषय वस्तु सारांश : एक मनुष्य की सौ भेडें़ थीं। एक दिन उनमें से एक खो गई। उसने अपनी निन्नानवे भेडें छोड़ी और यत्न से उस खोई हुई भेड़ को ढूंढा। जब वह भेड़ को ढूंढा। जब वह भेड़ मिल गई तो उसे प्रेम से कंधे पर उठाकर घर लाया, और मित्रों के साथ खोई हुई भेड़ मिलने की खुशी मनायी। इसी प्रकार एक मन फिराने वाले पापी के लिए भी परमेश्वर के स्वर्गदूतों की उपस्थिति मंे आनन्द मनाया जाता है। 

व्याख्या: इस दृष्टान्त में खोई हुई भेड़ उन्हें प्रगट करती है जो आत्मिक एंव नैतिक रूप से पतित मनुष्य हैं। जो परमेश्वर से दूर हैं। बाकि की निन्नानवे भेड़े प्रगट करती हैं। जिन्होंने परमेश्वर के प्रेम को पहचाना है। जिन्होने प्रभु यीशु मसीह को अपना एक मात्र उद्धारकर्ता करके स्वीकार किया है और उसकी उद्धार की योजना में शामिल हो चुके हैं। चरवाहा स्वंय परमेश्वर है जो पापियों को ढूंढने और बचाने इस दुनिया में आ गया।

इस दृष्टान्त में और अन्य सभी जगहों पर जहां कहीं प्रभु यीशु मसीह ने चरवाहे की बात कही, वहां अन्य किसी दूसरे जानवर का नहीं बल्कि हमेशा भेड़ों का ही ज़िक्र किया है। इसकी प्रमुख वजह जानने के लिए भेड़ों के विषय में थोड़ी जानकारी होना आवश्यक है।

भेड़ें सबसे सीधे और सरल स्वभाव की होती हैं। ये झुण्ड में ही रखती हैं। चारे, पानी एंव दिशा का इन्हें कतई ज्ञान नहीं होता। इन सभी आवश्यक्ताओं की पूर्ती के लिए भेड़ें पूर्ण रूप से चरवाहे पर निर्भर होती हैं। चरवाहे और झुण्ड से दूर होने पर ये बहुत ही आसानी से भटक जाती हैं और फिस स्वंय की सहायता करने में पूर्ण रूप से असमर्थ होती हैं, जब तक चरवाहा पुनः उन्हें ढूंढ न निकाले। 

शास्त्री और फरीसी धार्मिक रीति-रिवाजों एंव परम्पराओं में इतना उलझ गये थे कि उन्होंने परमेश्वर के प्रेम को पूर्ण रूप से भुला दिया था। उन्होंने परमेश्वर और मनुष्यों के बीच एक खाई बना रखी थी। वे लागों को परमेश्वर के क़रीब लाने के बज़ाय उससे और दूर करने का प्रयास करते थे। प्रभु यीशु मसीह ने इस दृष्टान्त में प्रगट किया कि परमेश्वर चाहता है कि सभी मनुष्य बचाए जाएं, कोई भी मनुष्य नाश न हो। उसने उन पर इस दृष्टान्त के द्वारा यह प्रगट किया कि एक पापी के बचाए जाने पर भी स्वर्ग में कैसा बड़ा आनन्द मनाया जाता है। 

व्यवहारिक पक्ष एंव आत्मिक शिक्षा 
1. प्रभु यीशु मसीह पापियों का संहारक बनकर नहीं परन्तु उनको बचाने वाला बनकर इस दुनिया में आया। पापियों के लिए उद्धार की आशा बनकर वो इस दुनिया में आया। उसने उद्धार का सन्देश गरीब, धनवानों, पापियों आदि सभी वर्गो के मनुष्यों को दिया। उसने इस त्रासदीपूर्ण भ्रांति का अन्त किया कि पापियों के बचने की, उनके उद्धार की कोई आशा नहीं है। उसके द्वारा सबको पापों की क्षमा मिल सकती है और सबका उद्धार संभव है। हम सब मसीहियों का यह कर्तव्य है तथा प्रमुख ज़िम्मेदारी है कि हम उसके उद्धार के विषय में सबको बतांए। किसी को उसके महान प्रेम से अन्जान न रखें। परमेश्वर उनसे तो प्रसन्न रहता ही है जो उसकी आज्ञाओं पर चलते हैं परन्तु, एक भटकी हुई आत्मा के मिलने पर, उसके स्वंय के पापों पर पश्चाताप करने से स्वर्ग में आनन्द मनाया जाता है। 

2. हर कठिन से कठिन परिस्थिति में जब हम स्वंय अपनी मदद करने में असमर्थ होते है। एक पग उठाने में अक्षम होते हैं। स्वंय को निर्बल एंव असहाय महसूस करते हैं तब हमें परमेश्वर की सामर्थ, दया और उसके प्रेम पर सम्पूर्ण भरोसा रखना है क्योंकि, परमेश्वर स्वंय प्रेम से अपने कंाधों पर उठाकर हमें ऐसी परिस्थितियों से उबारकर जीवन के मार्ग पर आगे बढ़ाता है। 

3. यदि मसीही अपना ध्यान चरवाहे अर्थात प्रभु यीशु मसीह और झुण्ड अर्थात विश्वासियों की संगति से हटाकर संसार की बातों में लगाते हैं तो थोड़ी सी सावधानी और लापरवाही से भी वे अनन्त जीवन के मार्ग से भटक सकते हैं। अतः हमें निरन्तर विश्वासियों की संगती में रहना है और सांसारिकता की उथली बातों से ऊपर उठकर अनन्त जीवन की ओर अपना ध्यान केन्द्रित कर सजगता से आगे बढ़ना है।

‘‘छोटे से छोटे में’’ से प्रभु यीशु मसीह का तात्पर्य नये विश्वासियों से था। सम्पूर्ण कलीसिया की ज़िम्मेदारी है कि ऐसे नये विश्वासियों को प्रार्थना, शिक्षा एंव संगति से विश्वास में दृढ़ और मज़बूत करें। उनके लिए किसी भी प्रकार से ठोकर का कारण न बनें, न ही उन्हें किसी भी प्रकार से अपने अधिक ज्ञान और धार्मिकता के कारण तुच्छ समझें।

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