गुप्त धन और बहुमूल्य मोती का दृष्टान्त
गुप्त धन और बहुमूल्य मोती का दृष्टान्त
सन्दर्भ: मत्ती 13ः44 - ‘‘स्वर्ग का राज्य खेत में छिपे हुए धन के समान है, जिसे किसी मनुष्य ने पाकर छिपा दिया, और मारे आनन्द के जाकर और अपना सब कुछ बेचकर उस खेत को मोल लिया।’’
मत्ती 13ः45-46 - ‘‘फिर स्वर्ग का राज्य एक व्यापारी के समान है जो अच्छे मोतियों की खोज में था। जब उसे एक बहुमूल्य मोती मिला तो उस ने जाकर अपना सब कुछ बेच डाला और उसे मोल ले लिया।’’
प्रस्तावना: प्रभु यीशु मसीह ने गलील की झील के किनारे विशाल जन जमूह को सम्बोधित करते समय कई दृष्टान्त बताए। इसी समय स्वर्ग के राज्य की तुलना करते हुए प्रभु यीशु ने ये दो दृष्टान्त भी बताए। इन दोनों ही दृष्टान्तों के आधारभूत निष्कर्ष एक ही हैं, अतः मत्ती ने इन्हें साथ-सथ ही प्रस्तुत किया है।
प्रष्ठभूमि: आधुनिक सुविधाओं के कारण खेत में छिपे खजाने की बात अब मात्र कहानियों में ही पढ़ने को मिलती हैं। किन्तु पुराने समय में बहुतेरे धनवान लोग चोरों से धन की सुरक्षा के लिए अपने धन और बहुमूल्य रत्नों को घड़े में रखकर ज़मीन में गाड़ देते थे। बहुत बार वे इस बात को इतना गुप्त रखते थे कि यदि अचानक दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो जाती थी तो पूरा का पूरा धन ज़मीन में ही गड़ा रह जाता था।
आज इस दृष्टान्त का अध्ययन करते समय हम कल्पना कर सकते हैं एक ऐसा ही गड़े धन की। ग़रीब किसान धूप में मेहनत से पसीना बहाकर खेत को हल से जोत रहा है। जोतते-जोतते अचानक किसान का हल ऐसे ही किसी गुप्त खजाने से भरे पात्र से टकराता है। बहुत ही जिज्ञासा से, उत्साह पूर्वक किसान फावड़ा चला-चला कर गढ़ाह खोदता है। उसकी दृष्टि पीतल के एक घड़े पर पड़ती है। वह उसका ढक्कन खोलता है, बहुमूल्य उत्नों की जगमगाहट से उसकी आंखे चैंधिया जाती हैं। तुरन्त वह आगे की योजना तय करता है और ढक्कन बन्द करके घड़े को वापस पहले की तरह गाड़ देता है। वह सोचता है कि अब तक वह बड़ा परिश्रम करके अपने बच्चों के लिए दो वक्त का भोजन मुश्किल से जुटा पाता था। अब वह मालिक के पास जाएगा, उससे वह खेत मोल ले लेगा जिससे वह उस खेत का और उसमें गड़े धन का वैध अधिकारी हो जाएगा। इतने धन से वह अपनी सभी आवश्यक्ताओं की पूर्ति कर सकेगा और भरपूर ज़िन्दगी जी सकेगा। वह घर जाता है और उस एक छोटे से खेत को खरीदने के लिए अपना सब कुछ बेच देता है। उसे मालूम है कि यह हानि का नहीं किन्तु लाभ का सौदा है, चाहे उसे अपना सब कुछ ही क्यों न बेचना पड़े। ठीक उसी तरह बहुमूल्य मोती की बात है। मोतियों के व्यापार के सिलसिले में वह व्यापारी का पता न जाने कहां कहां की, कितनी यात्रांए कर चुका होगा। जब उसे एक बहुमूल्य मोती मिला तो उसने अपना सब कुछ बेचकर उस मोती को खरीद लिया। वह मोतियों का भी पारखी था और व्यापारी भी। घाटा तो वो सहता नहीं, उसे इस बात का पूर्ण अहसास था कि सब कुछ बेचकर भी उस बहुमूल्य मोती को पाना लाभ ही लाभ का सौदा है।
इन दोनों ही दृष्टान्तों में आधारभूत तथ्य यह है कि किसान और व्यापारी दोनों ने ही एक चीज़ को पाने के लिए, जो कुछ उनके पास था सब सेचकर उसे मोल ले लिया।
व्याख्याः जैसा वचन में लिखा है कि, ‘‘यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे और अपना प्राण खो दे, या उसकी हानि उठाए तो उसे क्या लाभ?’’ (लूका 9ः25) यदि कोई मनुष्य प्रभु यीशु मसीह को ग्रहण करता है तो फिर चाहे उसे अपना सब कुछ छोड़ना पड़े, परन्तु फिर भी यह उस मनुष्य के लिए हानि का नहीं किन्तु लाभ का ही कारण ठहरता है।
प्रभु यीशु मसीह ने हमारे पापों की क़ीमत स्वंय अदा की है। हमें उद्धार को न ही ख़रीदने की आवश्यक्ता है न ही उसे प्राप्त करने के लिए अपना सब कुछ बेचने की ज़रूरत है। प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने के द्वारा यह हमें निशुल्क में उपलब्ध है। यह उसका अनुग्रह है। आवश्यक्ता है कि हम इस उद्धार को प्राप्त करने के लिए तैयार हों। ये रूकावटें हमारी स्वंय की ख़राब आदतें, अहं अथवा बुरी संगती हो सकती हैं। किसी ग़ैर श्विासी के लिए ये रूकावटें प्रभु यीशु मसीह को अपना उद्धारकर्ता स्वीकार करने पर उसके परिवार के लोग, समाज, पद, प्रतिष्ठा आदि के रूप में हो सकती हैं। जो मनुष्य इन सब सांसारिक कारणों से ऊपर उठकर प्रभु यीशु मसीह को प्राप्त कर लेता है, वह जानता है कि चाहे उसे इस निर्णय के लिए कितनी ही यातनांए सहनी पड़े। चाहे अपनों द्वारा तिरस्कार और मज़ाक का पात्र बनना पड़े किन्तु ये सब बातें महत्वहीन हैं। यह निर्णय उसके सम्पूर्ण लाभ का है।
प्रभु यीशु मसीह के निकट आने से, उसे पहिचानने से; संसार की बहुत सी प्रिय लगने वाली वस्तुएं जैसे बुरी संगति, ख़राब आदतें आदि स्वंय को अप्रिय और घिनौनी प्रतीत होने लगती हैं। जब मनुष्य को अपनी आत्मा की क़ीमत का अंदाज़ा होता है तो बाकि संासारिक वस्तुएं उसे स्पष्ट रूप से सस्ती और उथली दृष्टिगोचर होती हैं। प्रभु यीशु मसीह के द्वारा प्रस्तुत की गई आदर्श जीवनशैली की जानकारी होने के बाद जीवन के सही मूल्यों के मापदण्ड की समझ मिल जाती है। बदलते मूल्यों की अंधी दौड़ में शामिल होकर विचलित होने से मनुष्य बच जाते हैं।
उसकी आज्ञाओं के दायरे में रहकर मनुष्य विभिन्न बराईयों से बचकर सच्चे आनन्द और सच्ची संतुष्टि भरा जीवन जी सकते हैं। प्रभु यीशु मसीह को ग्रहण करने के द्वारा मनुष्य को पापों की क्षमा के साथ ही इस बात की निश्चयता भी हो जाती है कि चाहे उसके इस निर्णय के कारण कोई उसकी हत्या भी कर दे तो भी उसकी आत्मा प्रभु यीशु मसीह में अनन्त के लिए सुरक्षित रहेगी। इस अन्तिम विजय की निश्चयता से उसे निर्भयता और शांति प्राप्त होती है जो इस संसार में रहते हुए पाना दर्लभ है।
इतिहास इस बात का गवाह है कि न जाने कितनों ने पैसों से सच्ची खुशी, शान्ति, सुरक्षा और सन्तुष्टि अर्जित करना चाही परन्तु वे असफल रहे क्योंकि ये सब बातें केवल प्रभु यीशु मसीह में ही संभव हैं, और ये आत्मिक बातें संसार के किसी भी खज़ाने और बहुमूल्य रत्नों से बढ़कर हैं।
व्यवहारिक पक्ष एंव आत्मिक शिक्षा: प्रभु यीशु मसीह आ आव्हान है कि हम उसे अपने जीवन में सर्वप्रथम स्थान देवें। ऐसा इरने से न केवल वह हमें इस जीवन में अपनी प्रतिज्ञाओं को पूरी करने के द्वारा आशीषित करेगा बल्कि इस जीवन के पार हमारी मृत्यु भी अनन्त जीवन में प्रवेश करने का और अनन्त लाभ का कारण ठहरेगी।
इस सन्दर्भ में ईश्वर का तात्पर्य संसार में छिपे हुए धर्मी लोगों के समान हैं, और उन धर्मी लोगों का ईश्वर ने विश्वास पाया और उन्हें संभाल के रखा, और उन धर्मी लोगों के लिए आनंदित होकर ईश्वर ने अपना जीवन देकर इस संसार को अपने ऊपर उठा लिया, फिर अपने राज्य के कार्य लिए उन लोगों को चुना और उसे अपना दास बनाकर उस पर अपना अनुग्रह लाया और उस को अपने राज्य का अधिकार दिया, आमीन
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