जाल का दृष्टान्त
जाल का दृष्टान्त
सन्दर्भ: मत्ती 13ः47-50 - ‘‘फिर स्वर्ग का राज्य उस बड़े जाल के समान है, जो समुद्र में डाला गया, और हर प्रकार की मछलियो को समेट लाया। और जब भर गया, तो उस को किनारे पर खींच लाए, और बैठकर अच्छी अच्छी तो बरतनों में इकट्ठा किया और निकम्मीं निकम्मी फेंक दीं। जगत के अन्त में ऐसा ही होगा: स्वर्गदूत आकर दुष्टों को धर्मियों से अलग करेंगे, और उन्हें आग के कुंड में डालेंगे। वहां रोना और दांत पीसना होगा।’’
प्रस्तावना एंव पृष्ठभूमि:- प्रभु यीशु मसीह ने इस दृष्टान्त के द्वारा पुनः परमेश्वर के अन्तिम न्याय को प्रगट किया। वह गलील की झील के किनारे बैठा था। उसके चारों ओर विशाल जन समूह था जिसमें अधिकांश सामान्य और साधारण लोग थे। स्वंय प्रभु यीशु मसीह के शिष्य भी साधारण मछुवारे थे। गलील की झील में भी मछलियां पकड़ने का काम लोकप्रिय था। वहां उपस्थित लगभग सभी लोग संभवतः इस बात से वाकिफ थे कि किस प्रकार जाल में बड़ी, छोटी, उपयोगी, अनुपयोगी सभी प्रकार की मछलिया फंस जाती है और किसा प्रकार मछुवारों को उपयोगी मछलियों का चुनाव करना पड़ता है। पुराने समय में भी मूसा की व्यवस्था के अनुसार बहुत सी मछलियां खाना वर्जित था। ‘‘और जलचरी प्राणियों में से जितने जीवधारी बिना पंख और चोंयेटे के समुद्र व नदियों में रहते है वे सब तुम्हारे लिए घृणित हैं।‘‘ (लैव्यव्यवस्था 11ः10,12 के अनुसार)
प्रभु यीशु मसीह के उपदेशों को सुनने आये हुए लोग उपरोक्त घटना को आसानी से अपने मानसपटल पर चित्रित कर सकते थे। इसी सामान्य घटना का उपयोग प्रभु यीशु मसीह ने लोगों पर परमेश्वर के न्याय को प्रगट करने के लिए किया।
व्याख्या: प्रभु यीशु मसीह लोगों को यह बात बताना चाहते थे कि सुसमाचार सभी लोगों के लिए है। उसमें किसी प्रकार के ऊंच, नीच, जाति या वर्ग आदि के आधार पर भेदभाव नहीं। जो कोई इस सुसमाचार को सुनता है; उसके लिए उसका आमंत्रण है। बहुतेरे लोग उसके आमंवत्रण को अस्वीकार करते हैं, ठुकराते हैं। बहुतेरे उसके आंमत्रण को स्वीकार करते हैं।
जो लोग प्रभु यीशु मसीह के आमंत्रण को सुनते हैं, उसकी कलीसिया में शामिल होते हैं उनके लिए इस दृष्टान्त में प्रभु यीशु मसीह का विशेष इशारा है। बहुत से लोग इस भ्रांति में रहते हैं कि मसीह परिवार में जन्म लेने से उद्धार उनका जन्मसिद्ध अधिकार बन गया। कुछ सोचते हैं कि धार्मिक रीति रिवाज औपचारिक रूप से पूरे कर लेने से उन्होंने परमेश्वर के प्रति अपना कर्तव्य पूरा कर लिया। ऐसे अधूरे समर्पण और सतही धार्मिकता से परमेश्वर प्रसन्न नहीं होता। ऐसे लोगों को इस दृष्टान्त में दुष्ट कहा गया है। हमें प्रभु यीशु मसीह को अपने हृदय में स्थान देना है तथा उसकी शिक्षाओं के अनुसार जीवन में आगे बढ़ना है।
कलीसिया में अच्छे बुरे सभी प्रकार के लोग रहते हैं। सबको अपने जीवन में निरन्तर स्मरण रखना है कि एक दिन प्रत्येक को परमेश्वर के न्याय का सामना करना है। वह दिन कभी भी आ सकता है। उस दिन परमेश्वर के दूत धर्मियों को दुष्टों से अलग करेंगे। धर्मी स्वर्ग में सूर्य की नाई चमकेंगे और दुष्ट जिन्होंने उसके वचन की अवहेलना की, बलिदान की उपेक्षा की, अनुग्रह को तुच्छ जाना, अपने कार्य, व्यवहार, चरित्र आदि के द्वारा मसीह को अपमानित किया; उन्हें दण्ड मिलेगा। वे नरक की अग्नि में डाले जाएंगे, जहां रोना और दांत पीसना होगा। वहां उन्हें मिलेगी असहनीय पीड़ा, तपन, प्यास और तड़पन। परन्तु तब मछताने से कोई अन्तर नहीं होगा। इस प्रकार मनुष्य की अनन्त नियति स्वंय मनुष्य के निर्णय पर ही निर्भर है।
व्यवहारिक पक्ष एंव आत्मिक शिक्षा: परमेश्वर प्रेमी होने के साथ-साथ न्यायी भी है। एक दिन वह धर्मियों और दुष्टों का न्याय करेगा। अभी जब समय है हमें जाकर प्रचार करना है, सुसमाचार सुनाना है, गवाही देना है। लोगों को कलीसिया में शामिल करना है। उसके वचन की शिक्षा के अनुसार आगे बढ़ना है, जिससे न्याय के दिन वो हमसे कह सके कि ‘‘हे अच्छे और विश्वास योग्य दास तू थोड़े में विश्वास योग्य रहा मैं तुझे बहुत सी वस्तुओं का अधिकारी बनाऊंगा। अपने स्वामी के आनन्द में सहभागी हो।’’ नरक की अनन्त अग्नि से बचना है तो आज ही निर्णय करना है और ऐसे पर आगे बढ़ना है, जो स्वर्ग की ओर जाता है।
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