जगत की ज्योति का दृष्टान्त

जगत की ज्योति का दृष्टान्त


सन्दर्भ: मत्ती 5ः14-16 - ‘‘तुम जगत की ज्योति हो; जो नगर पहाड़ पर बसा हुआ है वह छिप नहीं सकता। और लोग दिया जलाकर पैमाने के नीचे नहीं परन्तु दीवट पर रखते हैं, तब उस से घर के सब लोगों को प्रकाश पहुंचता है। उसी प्रकार तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के साम्हने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में है, बड़ाई करें।’’

पृष्ठभूमि एंव प्रस्तावना: अपने जीवनकाल का प्रथम उपदेश देते समय मनुष्यों से ‘‘तुम पृथ्वी के नमक हो’’ कहने के पश्चात ही प्रभु यीशु मसीह ने यह भी कहा कि, ‘‘तुम जगत की ज्योति हो।’’

प्रभु यीशु मसीह यह प्रगट करना चाहता था कि इस संसार में असत्य का एंव अज्ञानता का आत्मिक अंधकार है, वह इस अंधकार को दूर करने के लिए ज्योति बनकर आया और वह सभी विश्वासियों से भी यही अपेक्षा करता है कि हम ज्योति बनकर संसार में व्याप्त आत्मिक अंधकार को दूर करें। 

व्यख्या: प्रभु यीशु मसीह के मुख से निकले एक-एक शब्द बहुत ही अर्थपूर्ण होते थे। तुम पृथ्वी के नमक हो, के पूरक के रूप में उसने कहा ‘‘तुम जगत की ज्योति हो।’’ इसका अर्थ है कि हमें नमक बनकर न सिर्फ़ प्रभु यीशु मसीह के लिए लोगों में प्यास जागृत करता है किन्तु साथ ही ज्योति बनकर प्यासों को जीवन के जल के पास भी लाना है। 
‘‘तुम जगत की ज्योति हो।’’ टिप्पणी की व्याख्या ‘ज्योति’ के गुणों के साथ ही करना उपयुक्त होगा। इन गुणों के साथ ही साथ हम उसके व्यवहारिक पक्ष एंव आत्मिक शिक्षा पर भी चिन्तन करेंगे। 

व्यवहारिक पक्ष एंव आत्मिक शिक्षा
1. कितने भी घोर अंधकार में दीपक या मोमबत्ती जैसी छोटी ज्योति भी स्पष्ट दिखाई देती है। इसे दूर से देखा जा सकता है। अंधकार को ज्योति प्रभावित करती है, ज्योति स्वंय अंधकार से अप्रभावित रहती है। 

इस संसार में अनेक बुराइयां, भ्रष्टाचार और धोखे हैं। चारों ओर अनैतिकता का अंधकार है। ऐसे में प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने वालों को विभिन्न बुराईयों से अप्रभावित रहते हुए प्रभु यीशु मसीह के गुण ज्योति के रूप में प्रगट करना है।

2. अंधकार में जैसे ही ज्योति प्रज्वलित होती है, वैसे ही वह तुरन्त प्रकाश देने लगती है। यदि प्रभु यीशु मसीह को ग्रहण किया है तो हम ‘नयी सृष्टि’ हैं अतः हमें समय गंवाने की आवश्यक्ता नहीं। हमें स्वयं में आमूल परिवर्तन लाना है। साथ ही परिर्तन लोगों में अपनी भाषा, कार्य एंव व्यवहार तथा सम्पूर्ण जीवन के द्वारा प्रगट करना है, जिससे हमारे कार्य विश्वास की गवाही बन जाएं। ‘‘कर्म बिना विश्वास व्यर्थ है।’’ (याकूब 2ः26) अक्सर विश्वासियों से सुनने में आता है, कि हम में यह आदत ख़राब है, हमें इसका दुःख है, और हम ‘‘धीरे-धीरे’’ उसे छोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। किन्तु व्यवहारिकता में ऐसा होता नहीं। ऐसे में प्रायः जीवन पर्यन्त वे उस आदत के गुलाम ही बने रह जाते हैं। परन्तु यदि वे परमेश्वर पर विश्वास रखते हैं, तो परमेश्वर की सामर्थ, स्वंय के दृढ़ निश्चय एंव आत्म अनुशासन से वे उस आदत पर विजय प्राप्त करने में निश्चित रूप से सफल हो सकते हैं।

3. ज्योति में मार्ग स्पष्ट देख सकते हैं, और इससे भटकने से एंव ठोकर खाने से बचते हैं।
प्रभु यीशु मसीह ही अनन्त जीवन का एक मात्र रास्ता है। वो ही मार्ग, सत्य और जीवन है। सिर्फ़ उसके द्वारा ही क्षमा संभव है। किसी और के द्वारा उद्धार नहीं क्योंकि ‘‘स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया जिसके द्वारा हम उद्धार पा सकें।’’ (प्रेरितों के काम 4ः12) प्रभु यीशु मसीह को जानने के बाद तथा उसके वचनों का अध्ययन करने के बाद इस बात का और भी गहराई से अनुभव होता है कि इस संसार में वही एक मात्र सच्चा और जीवित परमेश्वर है। बहुतेरे लोग सत्य की खोज के प्रयास में भटकते हैं तथा शरीर को कष्ट देते हैं। इन सबको ज्योति बनकर हमें प्रभु यीशु मसीह के पास लाना है। 

वचन के प्रकाश में जलकर इस संसार की विभिन्न बुराइयों से भी ठीक उसी प्रकार बचा जा सकता है जैसे ज्योति में चलकर ठोकरों से।

4. ज्योति स्वंय जलकर दूसरों को प्रकाश देती है। परमेश्वर ने अपने इकलौते बेटे को पापियों के उद्धार के लिए बलिदान कर दिया। प्रभु यीशु मसीह ने स्वंय क्रूस की मृत्यु सहकर हमें उद्धार और अनन्त जीवन दिया। परमेश्वर ने हमें सम्पूर्ण सृष्टि को भी देने का गुण दिया। जल, गर्मी, प्राणदायक वायु, भोजन, खनिज, बहुमूल्य पत्थर सभी कुछ हम सृष्टि से प्राप्त करते है। हमें भी देना सिखना है। हमसे त्याग सहित सेवा की अपेक्षा में से किसी एक के साथ किया - वह मेरे साथ किया।’’ (मत्ती 25ः40)

5. ज्योति को छिपाया नहीं जाता परन्तु प्रकाश के लिए इसका उपयोग किया जाता है। 
यदि हमने ज्योति को अर्थात प्रभु यीशु मसीह को ग्रहण किया है तो इस ज्योति को हमें स्वंय तक ही सीमित नहीं रखना है, बल्कि प्रभु यीशु मसीह के गवाह बनकर दूसरों तक पहुंचना है और प्रभु यीशु मसीह का प्रकाश दुनिया में फैलाना है। गवाही के बिना हमारा समर्पण अधूरा है। 

6. ज्योति और अंधकार का मेल असंभव है। यदि हम कहें कि हमने मसीह को ग्रहण किया है और अपने जीवन के द्वारा अंधकार के हाकिम शैतान के कार्य प्रकट करें तो हम झूठे हैं। मसीहियों की गवाही ग़ैर मसीहियों के लिए उपहास का कारण तब बनती है जब वे अपनी बुराइयों, पापों, ग़लत संगति, ख़राब अदतों, अनैतिक संबंधों के साथ ही थोड़ी बहुत धार्मिकता पूरी करने में सन्तुष्ट रहते हैं। स्वंय अपरिवर्तित रहकर दूसरों को परिवर्तित करने का प्रयास करना व्यर्थ है। दोहरा जीवन गवाही का नहीं ठोकर का ही कारण बनता है। (2कुरिन्थियों 6ः14-18)

इस प्रकार हमें ज्योति बनकर संसार में फैले आत्मिक एवं नैतिक अंधकार को दूर करना है और बहुतेरो को अनन्त जीवन का मार्ग दिखाना है।

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