दुष्ट किसानों का दृष्टान्त

दुष्ट किसानों का दृष्टान्त

सन्दर्भ: मत्ती 21ः33-46 - ‘‘एक और दृष्टान्त सुनो: एक गृहस्थ था, जिस ने दाख की बारी लगाई; और उस के चारों और बाड़ा बान्धा; और उस में रस का कुण्ड खोदा; और गुम्मट बनाया; और किसानों को उसका ठेका देकर परदेश चला गया। जब फल का समय निकट आया, तो उस ने अपने दासों को उसका फल लेने के लिए किसानों के पास भेजा। पर किसानों ने उसके दासों को पकड़ के किसी को पीटा, और किसी को मार डाला; और किसी को पत्थरवाह किया। फिर उस ने और दासों को भेजा, जो पहिलों से अधिक थे; और उन्होंने उन से भी वैसा ही किया। अन्त में उस ने अपने पुत्र को उन के पास यह कहकर भेजा, कि वे मेरे पुत्र का आदर करेंगे। परन्तु किसानों ने पुत्र को देखकर आपस में कहा, यह तो वारिस है, आओ, उसे मार डालें: और उसकी मीरास ले लें। और उन्होंने उसे पकड़ा औद दाख की बारी से बाहर निकालकर माल डाला। इसलिए जब दाख की बारी का स्वामी आयेगा, तो उन किसानों के साथ क्या करेगा? उन्होंने उस से कहा, वह उन बुरे लोगों को बुरी रीति से नाश करेगा; और दाख की बारी का ठेका और किसानों को देगा, जो समय पर उसे फल दिया करेंगे। 

यीशु ने उन से कहा, क्या तुम ने कभी पवित्र शास्त्र में यह नहीं पढ़ा, कि जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने निकम्मा ठहराया था, वही कोने के सिरे का पत्थर हो गया? यह प्रभु की ओर से हुआ, और हमारे देखने में अदृभूत है, इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, कि परमेश्वर का राज्य तुम से ले लिया जाएगा, और ऐसी जाति को जो उसका फल लाए, दिया जाएगा। जो इस पत्थर पर गिरेगा, वह चकनाचूर हो जाएगाः और जिस पर वह गिरेगा, उस को पीस डालेगा। महायाजक और फरीसी उसके दृष्टान्तों को सुनकर समझ गए, कि वह हमारे विषय में कहता है। और उन्हों ने उसे पकड़ना चाहा, परन्तु लोगों से डर गए क्योंकि वे उसे भविष्यद्वक्ता जानते थे।’’

मरकुस 12ः1-12 के अनुसार -‘फिर वह दृष्टान्त में उन से बातें करने लगा: कि किसी मनुष्य ने दाख की बारी लगाई, और उसके चारों ओर बाड़ा बान्धा; और रस का कुंड खोदा, और गुम्मट बनाया; और किसानों को उसका ठेका देकर परदेश चला गया। फिर फल के मौसम में उस ने किसानों के पास एक दास को भेजा कि किसानो से दाख की बारी के फलों का भाग ले। पर उन्होंने उसे पकड़कर पीटा और छूछे हाथ लौटा दिया। फिर उस ने एक और दास को उन के पास भेजा और उन्होंने उसका सिर फोड़ डाला और अपमान किया। फिर उस ने एक और को भेजा, और उन्होंने उसे मार डालाः तब उस ने और बहुतों को भेजाः उन में से उन्होंने कितनो को पीटा, और कितनों को मार डाला। अब एक ही रह गया था जो उसका प्रिय पुत्र था; अन्त में उस ने उसे भी उन के पास यह सोचकर भेजा की कि वे मेरे पुत्र का आदर करेंगे। पर उन किसानों ने आपस में कहा; यही तो वारिस है; आओ, हम उसे मार डांले, तब मीरास हमारी हो जाएगी। और उन्होंने उसे पकड़कर मार डाला, और दाख की बारी के बाहर फेंक दिया। इसलिये दाख की बारी का स्वामी क्या करेगा? वह आकर उन किसानों को नाश करेगा, और दाख की बारी औरों को दे देगा। क्या तुम ने पवित्र शास्त्र में यह वचन नही पढ़ा, कि जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने निकम्मा ठहराया था, वही कोने का सिरा हो गया? वह प्रभु की ओर से हुआ, और हमारी दृष्टि में अद्भूत है। तब उन्होंने उसे पकड़ना चाहा; क्योंकि समझ गए थे, कि उस ने हमारे विरोध में यह दृष्टान्त कहा हैः पर वे लोगों से डरे; और उसे छोड़कर चले गए।’’

लूका: 20ः9-19 के अनुसार - ‘‘तब वह लोगों से यह दृष्टान्त कहने लगा, कि किसी मनुष्य ने दाख की बारी लगाई, और किसानों को उसका ठेका दे दिया और बहुत दिनों के लिये परदेश चला गया। समय पर उस ने किसानों के पास एक दास को भेजा, कि वे दाख की बारी के कुछ फलों का भाग उसे दें, पर किसानों ने उसे पीटकर और उसका अपमान करके छूछे हाथ लौटा दिया। फिर उस ने तीसरा भेजा, और उन्होंने उसे भी घायल करके लिकाल दिया। तब दाख की बारी के स्वामी ने कहा, मैं क्या करूं? मैं अपने प्रिय पुत्र को भेजूंगा क्या वे उसका आदर करें। जब किसानों ने उसे देखा तो आपस में विचार करने लगे, कि यह तो वारिस है; आओ, हम उसे मार डालें, कि मीरास हमारी हो जाए। और उन्होंने उसे दाख की बारी से बाहर निकालकर मार डालाः इसलिये दाख की बारी का स्वामी उन के साथ क्या करेगा? वह आकर उन किसानों को नाश करेगा, और दाख की बारी औरों को सौंपेगाः यह सुनकर उन्होंने कहा, परमेश्वर ऐसा न करे। उस ने उन की ओर देखकर कहाः फिर यह क्या, लिखा है, कि जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने निकम्मा ठहराया था, वही कोने का सिरा हो गया। जो कोई उस पत्थर पर गिरेगा वह चकनाचूर हो जाएगा, और जिस पर वह गिरेगा, उस को पीस डालेगा। उसी घड़ी शास्त्रियों और महायाजकों ने उसे पकड़ना चाहा, क्योंकि समझ गए, कि उस ने हम पर यह दृष्टान्त कहा, परन्तु वे लोगों से डरे।’’

प्रस्तावना एंव पृष्ठभूमि: प्रभु यीशु मसीह ने यह दृष्टान्त अपने इस संसार में जीवन के अन्तिम समय में यरूशलेम के मन्दिर में बताया। इस दृष्टान्त का उल्लेख मत्ती, मरकुस और लूका तीनों सुसमाचारों में मिलता है। 

प्रभु यीशु मसीह के आश्चर्यकर्मों एंव अधिकार पूर्ण उपदेशों से लोग स्तब्ध थे। धार्मिक अगुवे बहुधा उनके कारण, उसके अधिकार पर प्रश्न किया करते थे कि आख़िर उसे ये अधिकार कहां से प्राप्त हुए? जब प्रभु यीशु मसीह ने मन्दिर की सफाई की और व्यापारियों एंव सर्राफों को मन्दिर के बाहर निकाला, तब उन्हें लगा कि वह उनके अधिकार का अतिक्रमण कर रहा है और उन्होंने यूहन्ना के बपतिस्मा के संबंध में कोई भी टिप्पणी करने से इन्कार किया तब प्रभु यीशु मसीह ने उनकी दिखावटी धार्मिकता का खुलासा करने के लिए दो बेटों का दृष्टान्त सुनाया।

इसके बाद ही प्रभु यीशु मसीह ने परमेश्वर की दया, धीरज एंव न्याय को तथा धार्मिक अगुवों के हृदय की कठोरता एंव उनके द्वारा स्वंय के तिरस्कार और फिर अपनी भावी हत्या को प्रगट करते हुए यह दृष्टान्त सुनाया। उसने यह भी प्रगट किया कि उसे विद्रोहियों का भयानक अन्त निश्चित है। 

विषय वस्तु: इस दृष्टान्त में किसी मनुष्य ने एक दाख की बारी लगाई। उसने उस बारी की सुरक्षा का सम्पूर्ण प्रबन्ध किया। तब कुछ किसानों को अपने बगीचे की ज़िम्मेदारी सौंपकर वह विदेश चला गया। जब फल का समय आया तो पूर्व निर्धारित अनुबन्ध के अनुसार उसने अपने दासों को किसानों के पास फल लेने को भेजा परन्तु किसानों ने इन दासों को मारा पीटा, पत्थरवाह किया और बहुतों की हत्या कर दी।

स्वामी इस हादसे से किसानों के हृदय की कुटिलता भांप गया परन्तु फिर भी उन पर दया करके धीरज से उन्हें अपनी ग़लती सुधारने का एक और मौक़ा दिया। इस बार उसने अपने कुछ और दासों को किसानों ने स्वामी के दासों के साथ पहले जैसा ही क्रूर बर्ताव किया। स्वामी ने अब भी धीरज रखा और अपने पुत्र को ही उन किसानों के पास भेज दिया। उसने सोचा था कि किसान उसके पुत्र का आदर करेंगे परन्तु इस बार किसानों ने आपस में सलाह-मशवरा कर यह निर्णय किया कि वे पुत्र को मारकर दाख की बारी पर कब्जा कर लें और उन्होंने वारिस को ख़त्म कर उसकी मीरास हथिया ली। 

यह दृष्टान्त सुनकर प्रभु यीशु मसीह ने धार्मिक स्वामी के धीरज, सहनशीलता एंव दया की चरम सीमा का वर्णन किया और दूसरी तरफ दुष्ट किसानों की धूर्तता एंव ज़्यादती का, जिससे धार्मिक अगुवों को उत्तर देने में कोई शंका न रह जाये। उन्होंने प्रभु यीशु मसीह को उत्तर दिया कि स्वामी उन दुष्ट किसानों को बुरी रीति से नाश करेगा और दाख की बारी की जिम्मेदारी उन किसानो को देगा, जो विश्वासयोग्य एंव जिम्मेदार हों और जो समय पर उसे फल दिया करें।

उनके इस उत्तर के बाद प्रभु यीशु मसीह ने उनसे कहा कि क्या तुमने पवित्र शास्त्र में यह नही पढ़ा कि, ‘‘जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने निकम्मा ठहराया था, वही कोने के सिरे का, पत्थर हो गया।’’ (भजन संहिता 118ः22) जो इस पत्थर पर गिरेगा वह चकनाचूर हो जाएगा और जिस पर वह गिरेगा, उसको पीस डालेगा। यह प्रभु की ओर से हुआ और हमारे देखने में अद्भूत है। फिर प्रभु यीशु मसीह ने धार्मिक अगुवों से स्पष्ट कह दिया कि परमेश्वर का राज्य तुमसे ले लिया जाएगा और ऐसी जाति को जो उसका फल लाए, दिया जाएगा। 

महायाजक और शास्त्री स्पष्ट रीति से समझ गये कि प्रभु यीशु मसीह दृष्टान्त के माध्यम से उनकी ओर इशारा कर रहा है, फिर भी पश्चात्ताप करने के बदले वे उसे पकड़ने और मार डालने की कोशिश करने लगे। 

व्याख्या: इस दृष्टान्त में -
दाख की बारी - परमेश्वर का राज्य इस्त्राएल। 
दाख की बारी का स्वामी - परमेश्वर। 
उसका पुत्र - प्रभु यीशु मसीह। 
दास - नबी, भविष्यद्वक्ता। 
दुष्ट क़िसान - प्रमुख रूप से धार्मिक अगुवे एंव वे सभी जिन्होंने प्रभु यीशु मसीह का इन्कार किया। 
अन्य किसान - ग़ैर यहूदी विश्वासी। 

प्रभु यीशु मसीह ने इस दृष्टान्त में यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक के पांचवे अध्याय के एक से सात पद दोहराए। उसने इस दृष्टान्त द्वारा प्रगट किसा कि किसा प्रकार परमेश्वर ने इस्त्राएलियों को अपनी निज प्रजा होने के लिए चुना। जिस प्रकार दाख की बारी की सुरक्षा का पूरा इन्तज़ाम किया, उसी प्रकार से परमेश्वर ने इस्त्रायलियों की सुरक्षा, सुखसुविधा एंव शांति का पूरा प्रबन्ध किया। 

उनके छुटकारे एंव उद्धार की व्यवस्था की, और प्रतिज्ञा किये हुए देश का भण्डारीपन वाचा बांधकर इस्त्रालियों को सौंप दिया। परमेश्वर की वाचा यह भी कि वह इस्त्रायलियों का परमेश्वर होगा और इस्त्रायली उसकी निज प्रजा होगी। (उत्पत्ति 17ः1-14, निर्गमन 19ः4-6, 24ः7) इस्त्रायलियों ने यह वाचा बार-बार तोड़ी। वे बार-बार दूसरे देवी-देवताओं की ओर फिरे। उन्होंने बार-बार अपने नाम के अर्थ के अनुसार परमेश्वर से युद्ध किया। (निर्गमन 32ः28) इस प्रकार उन्होंने भण्डारीपन की विश्वासयोग्यता खो दी।

इस दृष्टान्त के अनुसार स्वामी ने अपने दासों को केवल दो बार दुष्ट किसानों के पास लेखा-जोखा लेने के लिए, अनुबन्ध के अनुसार फल लाने के लिए भेजा। दोनों की बार किसानों ने स्वामी के दासों के साथ दुव्र्यवहार किया, उन्हें मारा-पीटा और बहुतों की हत्यांए कर दीं। वे चाहते थे कि बगीचे का सम्पूर्ण लाभ वे स्वंय तक ही सीमित रखें। लालच और स्वार्थ में फंसकर अनुबन्ध की वे अवहेलना कर रहे थे।

इस्त्रायली भी ठीक इसी प्रकार थे। उन्होंने अपनी स्वार्थो की पूर्ति के कारण परमेश्वर के साथ बांधे गये अनुबन्ध (वाचा) को तोड़ दिया था। परमेश्वर के अधिकार की जगह वे स्वंय लोगों पर अधिकारी बन बैठे थे। परमेश्वर ने फिर भी धीरज के साथ उन पर दया की। बहुत बार उन्हें पश्चाताप करने के अवसर दिये, एक - दो बार नहीं किन्तु बार-बार उन्हें अपने दासों, नबियों एंव भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा चिताने का प्रयास किया। परन्तु इन इस्त्रायली धार्मिक अगुवों ने परमेश्वर के भविष्यद्वक्ताओं का अपमान किया। यहूदियों की कहावत के अनुसार यशायाह भविष्यद्वक्ता को लकड़ी की आरी से चीरा गया (इब्रानियों 11ः37), कितनों को एक नगर से दूसरे नगर खदेड़ा गया। धर्मी हाबिल से लेकर जर्कयाह तक सभी को जिन्होंने परमेश्वर के निमित्त आवाज़ उठाई इन धर्म के ठेकेदारों ने ख़मोश कर दिया। जर्कयाह की मन्दिर के अन्दर वेदी के सामने ही हत्या कर दी गई। (2इतिहास 20ः22, मत्ती 23ः29-37) कितनों को इन्होंने पत्थरवाह कर दिया। यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले की भी हत्या की गई। (मत्ती 14ः1-11)

परमेश्वर इतना सब होने के बावजूद भी अपनी सर्वोत्कृष्ट रचना, मनुष्य को नाश करना नहीं चाहता था और विशेष रूप से अपनी चुनी हुई प्रजा इस्त्रायल को। कितनी ही बार उसने चाहा कि जैसे मुर्गी अपने बच्चों को अपने पंखों के नीचे इकट्ठे करती है वैसे ही वह भी अस्त्रायलियों को अपने पैरों के नीचे इकट्ठे कर ले, परन्तु इस्त्रायली निरन्तर अपनी स्वार्थपरता के कारण परमेश्वर से दूर होते गये। (मत्ती 23ः37 के अनुसार) परमेश्वर ने इस्त्रायलियों को विभिन्न सम्पन्नता का भंडारी ठहराया था। उसे बदले में प्रेम, आदर, स्तुति एंव महिमा की अपेक्षा थी। जिस प्रकार इस्त्रायलियों से परमेश्वर को आत्मिक फलों (गलतियों 5ः22, मत्ती 3ः8) की अपेक्षा थी। उसने इस्त्रायलियों से उत्तम आत्मिक फल पाने के लिए अपनी ओर से पूरा-पूरा प्रबंध किया था परन्तु उन से फल न पाया।

इसमें प्रभु यीशु मसीह ने परमेश्वर का न्याय एंव दण्ड प्रगट किया कि उसका इन्कार कर कोई भी परमेश्वर के न्याय और दण्ड से नहीं बच सकता क्योंकि और किसी के द्वारा उद्धार नहीं। ‘‘स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया जिसके द्वारा हम उद्धार पा सकें।’’ (प्रेरितों के काम 4ः12)

धार्मिक अगुवों के उत्तर के पश्चात प्रभु यीशु मसीह ने उनके सामने यशायाह 8ः13-15, 28ः16, दानियेल 2ः34, 44,45 के अनुसार आदि पुराने नियम के अन्दर्भो का उदाहरण उन्हें सुनाया और प्रगट किया कि धार्मिक अगुवों ने जिस पत्थर (प्रभु यीशु मसीह) को निकम्मा और तुच्छ जाना उसे ही परमेश्वर ने कोने के सिरे का पत्थर ठहराया अर्थात् उसे ही स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार सौंपा। (मत्ती 28ः18) उसे ही न्याय करने का सब काम सौंपा। (यूहन्ना 5ः22) इस पत्थर पर यदि कोई गिरेगा वह चकनाचूर होगा। अर्थात यदि कोई जान बूझकर प्रभु यीशु मसीह के नाम से ठोकर खाएगा या उसके विनाश की ठानेगा या उसका इन्कार करेगा, वह परमेश्वर द्वारा अनन्त विनाश का भागीदार होगा (यूहन्ना 3ः36) और जिस पर यह पत्थर गिरेगा, उसको पीस डालेगा अर्थात मसीह के विरोधियों की त्रासदीपूर्ण हार निश्चित है। (दानियेल 2ः31-35)

व्यवहारिक पक्ष एंव आत्मिक शिक्षा: 
1. कलीसिया परमेश्वर की बारी है। उसकी आज्ञा एंव वचन की शिक्षाओं द्वारा कलीसिया की सुरक्षा का पूरा-पूरा प्रबन्ध किया गया है। यह प्रबन्ध हमारी ही भलाई, सुख-सुविधा एंव शांति के लिए है। इससे बाहर असुरक्षा है, शैतान के प्रलोभन एंव विभिन्न बुराईयां है। हमको परमेश्वर की इस सुन्दर व्यवस्था में ही सन्तुष्ट रहना चाहिए। विभिन्न बुराईयों में फंसकर परमेश्वर से अलग होकर हमारी ही हानि होगी।

2. हमें विश्वासयोग्य भण्डारी के रूप में अपना जीवन इस प्रकार से जीना है कि जब परमेश्वर हमसे लेखा ले तो हम फलविहीन न पाये जाएं।

3. प्रभु यीशु मसीह द्वारा ही उद्धार संभव है। (प्रेरितों के काम 4ः12) उसे अपना उद्धारकर्ता स्वीकार कर उसकी शिक्षाओं में आगे बढ़ना, स्वर्ग की ओर क़दम बढ़ाना है। उसका इन्कार करना, उसे ग्रहण करने में टाल-मटोल करना या उसका जान-बुझकर तिरस्कार या अवहेलना करने का अर्थ परमेश्वर के न्याय एंव दण्ड को आमंत्रण देना है। जो हमारी अनन्त त्रासदी का कारण ठहर सकता है। 

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

पाप का दासत्व

श्राप को तोड़ना / Breaking Curses

भाग 6 सुसमाचार प्रचार कैसे करें?