पहले मनुष्य को बनाने में परमेश्वर की इच्छा क्या थी?

परमेश्वर ने जब मनुष्य की रचना की, तब उसकी मूल इच्छा प्रेम, संगति और प्रभुत्व का जीवन था । मनुष्य को परमेश्वर के स्वरूप और सदृश्य में बनाया गया ताकि वह परमेश्वर के साथ संगति में रहे और उसकी इच्छा को पृथ्वी पर पूरा करे ।

बाइबल कहती है: उत्पत्ति 1:26–27 “तब परमेश्वर ने कहा, हम मनुष्य को अपनी छवि पर, अपनी समानता में बनाएं, और वे समुद्र की मछलियों, आकाश के पक्षियों, पशुओं, सारी पृथ्वी, और हर रेंगनेवाली वस्तु पर अधिकार रखें और परमेश्वर ने मनुष्य को अपनी ही छवि पर उत्पन्न किया ।”

यहाँ दो मुख्य सत्य दिखाई देते हैं:

✓ 1. परमेश्वर संगति चाहता था: मनुष्य को परमेश्वर के साथ चलने-फिरने, बोलने, सुनने और उसके प्रेम में सहभागी होने के लिए बनाया गया था । मनुष्य का उद्देश्य उपासना और आज्ञाकारिता था ।

✓ 2. परमेश्वर ने मनुष्य को अधिकार दिया: पृथ्वी पर काम करने, बढ़ने, फलने-फूलने, शासन करने और परमेश्वर की महिमा प्रकट करने के लिए ।

✦ उस मनुष्य का क्या हुआ ?: परमेश्वर की आज्ञा न मानने और पाप में गिरने के कारण मनुष्य का हृदय भ्रष्ट हो गया । पाप धीरे-धीरे इतना बढ़ गया कि पूरी पृथ्वी हिंसा और दुष्टता से भर गई ।

बाइबल कहती है: उत्पत्ति 6:5  “और यहोवा ने देखा कि मनुष्यों की बुराई पृथ्वी पर बढ़ गई है, और उनके मन के विचारों में जो कुछ भी उत्पन्न होता है वह निरन्तर बुरा ही होता है ।”

इस पद से पता चलता है कि:

  • मनुष्य का हृदय पाप के कारण दूषित हो गया,
  • विचारों में निरंतर बुराई, स्वार्थ, हिंसा और दुष्ट योजनाएँ उठने लगीं,
  • परमेश्वर दुखी हुआ कि मनुष्य अपनी सृष्टि के उद्देश्य से दूर हो गया ।

✦ आज का मनुष्य कैसा है?

क्या आज भी वही स्थिति दिखाई देती है — भ्रष्टता, युद्ध, झूठ, धोखा, व्यभिचार, घृणा, ईर्ष्या और स्वार्थ से भरा संसार । मनुष्य बाहर से धार्मिक दिख सकता है, परंतु हृदय गलत इच्छाओं से भरा है ।

  • यिर्मयाह 17:9 “मनुष्य का हृदय सब वस्तुओं से अधिक कपटी और अत्यन्त दुष्ट है; उसे कौन जान सकता है ?”
  • मरकुस 7:21–23 “क्योंकि मनुष्य के हृदय से बुरे विचार, व्यभिचार, हत्या, चोरी, लालच, दुष्टता, छल निकलते हैं और मनुष्य को मलिन करते हैं ।”

✦ उसे क्या करने की आवश्यकता है?

मनुष्य को अपने हृदय की बुराई को खुद नहीं बदल सकता - उसे नए जन्म और यीशु मसीह की आवश्यकता है । केवल वही हृदय को नया बनाता है, पाप क्षमा करता है, और मनुष्य को परमेश्वर की मूल इच्छा में स्थापित करता है ।

यहेजकेल 36:26  “मैं तुम्हें नया मन दूँगा, और नया आत्मा तुम्हारे भीतर डालूँगा ।”

मनुष्य के लिए आज का संदेश:

आवश्यक कदम उद्देश्य

  • पश्चाताप पाप स्वीकार कर परमेश्वर की ओर लौटना
  • यीशु पर विश्वास - उद्धार और नया हृदय प्राप्त करना
  • पवित्र आत्मा का मार्गदर्शन पुराने जीवन से मुक्त होकर पवित्रता में बढ़ना
  • परमेश्वर के वचन का पालन उद्देश्यपूर्ण जीवन जीना

✦ निष्कर्ष

  • परमेश्वर ने मनुष्य को अपनी महिमा, प्रेम और संगति के लिए बनाया ।
  • लेकिन पाप के कारण मनुष्य गिर गया और उसका हृदय भ्रष्ट हो गया ।
  • आज भी मनुष्य पाप की कैद में है, परंतु यीशु मसीह में नया जीवन और नया हृदय उपलब्ध है ।

मुख्य वचन

  • उत्पत्ति 6:5 — मनुष्य का हृदय बुराई से भरा हुआ होने का प्रमाण
  • यहेजकेल 36:26 — नया हृदय पाने का समाधान

अगली पीढ़ी को कैसे तैयार करें ?

  • व्यवस्थाविवरण 6:7 में भी निर्देश है कि "तू इन्हें अपने बाल-बच्चों को समझाकर सिखाया करना, और जब तू घर में बैठे, जब तू मार्ग में चले, जब तू लेटे और जब तू उठे, तब इनकी चर्चा किया करना ।" इसका अर्थ है कि बच्चों को यहोवा की व्यवस्था की शिक्षा जीवन के हर क्षण में देना चाहिए, चाहे वे कहीं भी हों ।
  • न्यायियों 2:10 और उस पीढ़ी के सब लोग भी अपने अपने पितरों में मिल गए; तब उसके बाद जो दूसरी पीढ़ी हुई उसके लोग न तो यहोवा को जानते थे और न उस काम को जो उसने इस्राएल के लिये किया था ॥
  • भजन संहिता 78:4: उन्हे हम उनकी सन्तान से गुप्त न रखेंगें, परन्तु होनहार पीढ़ी के लोगों से, यहोवा का गुणानुवाद और उसकी सामर्थ और आश्चर्यकर्मों का वर्णन करेंगें ॥
  • भजन संहिता 78:5: उसने तो याकूब में एक चितौनी ठहराई, और इस्त्राएल में एक व्यवस्था चलाई, जिसके विषय उसने हमारे पितरों को आज्ञा दी, कि तुम इन्हे अपने अपने लड़के बालों को बताना;
  • भजन संहिता 78:6: कि आने वाली पीढ़ी के लोग, अर्थात जो लड़के बाले उत्पन्न होने वाले हैं, वे इन्हे जानें; और अपने अपने लड़के बालों से इनका बखान करने में उद्यत हों, जिस से वे परमेश्वर का आसरा रखें,
  • भजन संहिता 78:7: और ईश्वर के बड़े कामों को भूल न जाएं, परन्तु उसकी आज्ञाओं का पालन करते रहें;
  • 1 कुरिन्थियों 11:1: तुम मेरी सी चाल चलो जैसा मैं मसीह की सी चाल चलता हूं ॥

इस विषय पर कुछ प्रमुख बाइबल पद इस प्रकार हैं:

  • नीतिवचन 6:20-22: पिता-माता की शिक्षा का पालन करना ।
  • मत्ती 19:14: बच्चों को यीशु के पास आने देना ।
  • प्रेरितों के काम 2:39: बच्चों के लिए परमेश्वर का वादा ।

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