कलीसिया रोपक आन्दोलन में गर्तिवर्धक एवं अवरोधक तत्व
1.भवनः नया नियम कहता है कि परम पिता मनुष्यों के बनाये भवन में नहीं रहता. वो उनके हृदय में रहता है| । भवन कलीसिया को एक स्थान पर स्थिर कर देता है और सुसमाचार को विश्वासियों और अविश्वासियों के घर घर तक पहुचने से रोकता है। प्रभुजी ने येरुसह्लेम के भव्य मंदिर को तुड़वा दिया और वहाँ पत्थर पर पत्थर नहीं है । नए नियम में आराधनालय बनाने का कोई प्रावधान नहीं है । (प्रे. के का. 7:48, 49; १कुरुन्थियोन 3:16)
2.पेशेवर पुरोहितः आपके बपतिस्मा देने, रोटी तोड़ने के अधिकार का हनन करके आपको एक मूक दर्शक बना देता है। स्थानीय नेता पीढ़ी दर पीढ़ी के नेतृत्व को सहजता से विकसित करता है ताकि कलीसिया निरंतर आगे बढते जाये और पृथ्वी की छोर तक पहुँच जाये । नए नियम में पेशेवर पुरोहित का कोई प्रावधान नहीं है क्योंकि सब विश्वासी राजवंशी पुरोहित हैं और वे बिना वेतन के कलीसिया के उन्नति के लिए योगदान देते हैं । (2तीमुथियुस 2:2; 1 पतरस 2:9)
3. रवीवार की आराधना: मनुष्यों द्वारा स्थापित धार्मिक विधि विधान है जिसका धर्मशास्त्र में लोई प्रावधान नहीं है । नये नियम की कलीसिया प्रतिदिन घरों में या कार्यशाला में मिलती थी इसलिए उसमे प्रतिदिन नए नए विश्वासियों के जुड़ने से उन्नति होती थी । (प्रेरितों के काम 2:47,6:1,7; 16:5; इब्रानियों 3:13)
4.बाहरी नेतृत्व: नए नियम में स्थानीय प्राचीन ही नेत्रत्व करते थे बाहर के लोग केवल शिक्षा देकर चले जाते थे । स्थानीय अगुवे अपने जाती, धर्म , भाषा और संस्कृति की पहचान रखते हैं और उनके सन्दर्भ में काम करतें है इसलिए कलिस्या तेज गति से उन्नति होती है । बाहरी अगुवे स्थनीय नेत्रित्व को विकसित होने में अवरोधक बन जाते हैं | (प्रेरितों के काम 15:20;17:23,26-28)
5. घर घर रोटी तोड़ना: साथ में मिलकर भोजन करने से जात पात, उच्च नीच की भावना समाप्त होती है और साधकों में बराबरी का आपसी संबंध मजबूत हो जाता है । ये गरीब, भूखे , विधवा, अनाथ लोगों की जरूरतों को पूरा करता है । स्वस्थ और समग्र कलीसिया में परमेश्वर की आराधना और जरुरतमंदों की सेवा, दोनों साथ साथ होती है । (लूका 10:5-8; प्रेरितों के काम 2:4-,47, मत्ती 25:31-46)
6. सामर्थ के काम : नए नियम की कलिसिया केवल वचन से प्रचार नहीं किया जाता था परन्तु बीमारों को चंगाइ, दुष्टात्माओं को छुटकारा मिलता था । वे दिलेरी से प्रचार करने के लिए साहस करने की प्रार्थना करते थे । वे अन्य जातियों के बीच प्रचार करते थे जहाँ मसीह का नाम नहीं लिया गया है । (प्रेरितों के काम 2: 43; 4:29,30; रोमियों 15:19,20; 1 कुरु 2:4; 4:20)
7. महान आज्ञाः प्रभुजी की अंतिम और अहम आज्ञा “जाओ और सब जाती के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें जलदीक्षा दो और उन्हें आज्ञाकारी बनाकर शिष्य बनाने के लिए अपने लोगों के पास भेज दो” । जो कलीसिया इस आज्ञा का पालन करती है वह कलीसिया प्रभूजी के सच्ची कलीसिया है बाकी सब धन कमाने की व्यवसायिक केंद्र हैं । (मत्ती 28:18-20; प्रे. के का. 1:8)
आप अपने कलीसिया का स्वयम अवलोकन कर सकते हैं की क्या वह प्रभु येशु की सच्ची कलीसिया है या एक व्यवसायिक केंद्र है ।
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