योम किप्पुर है याने प्रायश्चित का दिन

आज योम किप्पुर है याने प्रायश्चित का दिन - इसे यहूदी धर्म में सबसे पवित्र दिन माना जाता है। पूरे वर्ष में यह एकमात्र दिन है जब महायाजक मंदिर के अति पवित्र स्थान में प्रवेश करता था। वे एक बकरे का खून अपने और दूसरों के पापों को ढापने के लिए वाचा के सन्दूक पर छिड़कता था जिसमे व्यवस्था की दस आज्ञाएँ रखी थीं। दूसरा बकरे पर सारे इस्राएल के पापों को डालकर जंगल में भेज दिया जाता था जहाँ वह नाश हो जाता था । रोश हशनाह या तुरही के पर्व के बाद दस दिनों तक योम किप्पुर यानि प्रायश्चित्त, आत्मनिरीक्षण और पश्चाताप करने का समय होता था। यहूदी परंपरा के अनुसार, इस दौरान पमेश्वर अपने जीवन की पुस्तक में अपने लोगों के नाम लिखता हैं। इसलिए यहूदी सभी सांसारिक कार्यों से हटकर 25 घंटे का उपवास करते और पिछले वर्ष के दौरान किए गए पापों के लिए क्षमा मांगते हैं ।

मसीही परंपरा के अनुसार, बलि के बकरे की तरह, वे प्रभु यीशु को क्रूस पर चढ़ाने के लिए यरूशलेम के बाहर ले गए, "उदयाचल से अस्ताचल जितनी दूर है, उसने हमारे अपराधों को हम से उतनी ही दूर कर दिया“ (भजन 103:12)। प्रभुजी के अपने लहू से व्यवस्था को ढांप दिया और अब हम व्यवस्था से नहीं लेकिन अनुग्रह से उद्धार पाते हैं (इफिसियों 2:8)। प्रभु यीशु रोश हशाना पर तुरही की ध्वनि के साथ हवा में लौटेंगे और मृत और जीवित दोनों विश्वासियों को अपने साथ उठा ले जायेंगे जिसे रेप्चर कहतें हैं । इसके बाद प्रायश्चित के दस दिन होंगे जब शायद 144,000 यहूदी पश्चाताप करेंगे, यीशु को अपने मसीहा के रूप में स्वीकार करेंगे, और राज्य में शामिल होंगे। इसके बाद, जो पीछे रह जायेंगे हैं उनके लिए क्लेश की सात साल की अवधि शुरू हो जाएगी।

योम किप्पुर और उससे पहले के दस दिन प्रार्थना, अच्छे कार्यों, पिछली गलतियों पर विचार करने और दूसरों के साथ सुधार करने का समय है। यदि आप परमेश्वर का राज्य प्राप्त करना चाहते हैं तो अपना नाम मेम्ने की पुस्तक में लिखा जाना आपके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य रहना चाहिए, “और यदि किसी का नाम जीवन की पुस्तक में लिखा हुआ न पाया गया, तो उसे आग की झील में डाल दिया गया” (प्रकाशितवाक्य 20:12,15)। जीवन की पुस्तक में अपना नाम लिखवाने का सबसे पक्का तरीका प्रभु यीशु का अनुकरण करना है, “वह खोए हुओं को ढूँढने और और उनका उद्धार कराने आया था” (लूका 19:10)। आप भी ऐसा करिए और राज्य के उत्तराधिकारी बनिए। दुःख की बात है कि अधिकांश ईसाई अपने पूरे जीवन में एक भी आत्मा को नहीं बचा पाते । इसलिए ये पर्ब हमारे लिए आत्मनिरिक्षण करने सबसे अच्छा मौका है।  

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