एक आदर्श कलीसिया काम में जुटी हुई है!

हम लोग लगभग पंद्ररह विश्वासी और दूसरे विश्वास वाले खोजी जन थे जो वहां बड़े आराम से चटाईयों पर पास्टर के बैठक के कमरे में, बैठे हुए थे। पास्टर चाहते थे कि हम सभा का आरम्भ स्तूति के गीत गाकर करें। परन्तु उन्हें नम्रता पूर्वक बताया गया कि नये नियम की इक्लीसिया में वहां खुली आराधना हुआ करती थी अर्थात वहां सभा की पहिले से बनी हुई कोई योजना नही होती थी। हमने निर्णय किया कि हम 1कुरिन्थियों 14ः26-31 के अनुसार कार्य करेंगे, जो कहता है कि प्रत्येक जन उसमें भागी हो सकता है। इसलिये स्तूति के गीत गाने के बदले धर्मशास्त्र के भागों को पढ़ना आरम्भ कर दिये। 

तब हमने पूछा, क्या यहां हमारे झुण्ड में कोई भविष्यद्वक्ता है, क्योंकि वे भविष्यद्वक्ता ही होते हैं जो ज्यादातर वचन कहा करते हैं, पास्टर नहीं। प्रारम्भ में वहां शर्मिन्दगी वाली खामोशी छाई रही। तब हमने यह अनुभव किया कि घरेलू इक्लीसिया में प्रत्येक विश्वासी स्वतंत्रता पूर्वक भविष्यद्वाणी कर सकता है (पद 3)। हमने यह भी जाना कि भविष्यद्वाणी करने के मुख्य तीन भाग हैं। प्रथम वह उन्नति जो इक्लीसिया की वृद्धि के विषय में है, दूसरा कि हम एक दूसरे को समझा सकते और चुनौती दे सकते हैं, और तीसरी बात है कि हम एक दूसरे को शान्त्वना दे सकते है। यदि हम इन सबों को करते हैं तब हम वास्तव में भविष्यद्वाणी कर रहे होते हैं (पद 3)। अब तक हम यह सोच रहे थे कि हम सामान्य जन हैं और हमें केवल चुपचाप बैठे बैठे सुनाना चाहिये कि पास्टर क्या कह रहा है, परन्तु आज अनायास ही हमने अपने आपको प्रोत्साहित और भविष्यद्वक्ता महसूस किया। हमने आगे जाना कि आत्मिक वरदान नया जन्म पाने के पहले ही दिन से काम करना आरम्भ कर देते है और उनका उपयोग प्रतिदिन के अधार पर किया जाना चाहिये (1कुरिन्थियों 12ः6-7)। 

हमने यह भी जान लिया कि परमेश्वर उस समय तक कुछ भी नहीं करते जब तक वे उसे अपने भविष्यद्वक्ताओं पर प्रगट नहीं कर देते (आमोस 3ः7)। उस समय वहां बड़ा सन्नाटा छा गया जब यह भेद हम पर प्रगट हुआ। हमने जान लिया कि परमेश्वर हमसे व्यक्तिगत रीति से और सामुहिक रीति से बातें कर रहे थे, कि हमारे शहरों में क्या क्या करना चाह रहे हैं, परन्तु हम अब तक बहिरे बने हुए थे। 

परमेश्वर ने आरम्भ से ही अपने भविष्यद्वक्ताओं से सीधे या स्वप्नों और दर्शनों के द्वारा बातें की। उन्होंने आदम, नूह, इब्राहीम, याकूब, मूसा, और यहोशू से बातें की और बहुत से बड़े और छोटे भविष्यद्वक्ताओं से भी बातें की, और उन्होंने बताए कि वे क्या करना चाहते हैं। नये नियम के समयों में भी प्रभु अपने सन्तों से और कुरनेलियुस की तरह अन्य जातियों से भी स्वप्नों और दर्शनों के द्वारा और पवित्र आत्मा के द्वारा बातें करते आए हैं। परमेश्वर ने अविश्वासियों से जैसे फिरौन नबूकदनेस्सर और बहुत से दूसरों से भी बतें कीं।

आपसी बातचीत के द्वारा हमने जान लिया कि परमेश्वर अपने लोगों पर अपनी इच्छा स्वप्नों, दर्शनों, प्रगटीकरणों, और भविष्यद्वक्ताओं इत्यादि, के द्वारा प्रगट करते हैं। यह उनकी प्रतिज्ञा के अनुसार है जो उन्होंने किये थे कि, ‘‘उन बातों के बाद मैं सब प्रणियों पर अपना आत्मा उण्डेलूंगा, तुम्हारे बेटे बेटियां भविष्यद्वाणी करेंगी, और तुम्हारे पुरनियो स्वप्न देखेंगे, और तुम्हारे जवान दर्शन देखेंगे। तुम्हारे दास और दासियों पर भी मैं उन दिनों में अपना आत्मा उण्डेलूंगा’’। (योएल 2ः28-29; प्रेरितों के काम 2ः17)

इसलिये हमने लोगों से कहा कि वे अपने स्वप्नों और दर्शनों को सबों को बताएं जिन्हें परमेश्वर ने निकट भविष्य में उनपर प्रगट किये है। प्रारम्भ में वहां थोड़ी हिचकिचाहट थी। तब पास्टर ने एक भजन पढ़ा जिसपर वे पिछले दिन मनन कर रहे थे जिसका विषय था, ‘‘सब जातियों वे देशों के लिये परमेश्वर का प्रेम‘‘ (भजन संहिता 2ः8)। तब एक भाई ने कहा कि उसने स्वप्न में बहुत बड़े सांप को देखा जिसने अपने फन से पूरे शहर को घेर रखा था। दूसरे व्यक्ति ने कहा उसने स्वप्न में बहुत चमकदार प्रकाश देखा और उसके चारों ओर छोटी छोटी बहुत सी ज्योतियां तारों की तरह चमक रही थीं। एक बहिन ने कहा कि उसने बहुत से खाली बर्तनों को देखी जो भरे जाने की बाट जोह रहे थे। 

हम सब ने मिलकर इन सारे प्रगटीकरणों के अर्थ खोजने की कोशिश की और समझ गए कि परमेश्वर उद्धार रहित अन्यजातियों के लिये चिन्तित हैं। शैतान ने अभी उन पर अन्धकार भरा कब्जा कर रखा है परन्तु परमेश्वर का प्रकाश उस अन्धकार पर विजय प्राप्त करने की सामर्थ रखता है। जो खाली बर्तन हैं वे अन्यजातीय लोग हैं जिन्हें पवित्र आत्मा से भरा जाना है और जो कोई उन्हें प्रभु के पास लाएगा, वे तारों की तरह चमकेंगे। (दानियेल 12ः3)

पास्टर उठ खड़े हुए कि अपना उपदेश दें, परन्तु इसके पहिले कि वे उपदेश दें, उनकी छोटी बेटी घुटने घुटने चलकर उनके पास पहुंचाई और वहां पहुंचकर अन्य अन्य भाषाओं में बोलने लगी। हमने पास्टर से कहा कि परमेश्वर उनकी बेटी के द्वारा कह रहे हैं। (भजन संहिता 8ः2) कि आज कोई उपदेश नहीं होगा (1कुरिन्थियों 14ः30)। सभी जन हंस दिये और उपदेश प्रारम्भ होने से पहिले ही समाप्त हो गया। दूसरे विश्वास के एक भाई ने कहा कि उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि परमेश्वर हमसे बातें करते हैं, वह इस परमेश्वर के विषय में और जानना चाहता था। हमने सर्वोच्च परमेश्वर को धन्यवाद दिया (1कुरिन्थियों 14ः24,25)। तब हमने स्तूति के गीत गाए और  एक दूसरे के लिये प्रार्थनाएं की (इफिसियों 5ः19-21)। इसके बाद हमनें एक विघवा बहिन के बच्चों की स्कूल फीस में मदद करने के लिये पैसे जमा किये।

तब हमने परमेश्वर को धन्यवाद देते हुए रोटी तोड़ी जो प्रभु की देह है, हम भी छोटे छोटे झुण्डों में टूट सकते हैं ताकि जाकर खोए हुए लोगों को बीच में गवाही दें। तब एक प्राचीन ने अंगूर के रस को एक कप में लेकर सभों तक पहुंचाया और बताया कि प्रभु यीशु का लोहू हर एक जाति के लोगों के लिये बहाया गया, उनके लिये भी जो अभी झुण्ड में नहीं हैं। तब सब लोगों ने अपने अपने भोजन के डिब्बे खोले और एक दूसरे के साथ बांट लिया और एक साधारण सहभागिता - भोजन किया। इसके बाद वे पवित्र चुम्बन के साथ एक दूसरे से मिले। 

लोगों को आश्चर्य हुआ कि कितनी जाल्दी इतना समय बीत गया। हमें भी यह जानकर अश्चर्य हुआ कि हमारे मध्य में इतने अधिक भविष्यद्वक्ता हैं। 

इस छोटी घरेलू इक्लीसिया में बहुत सी इठिनाईयां और समस्याएं आई। अगले दिन घर मालिक ने उन्हें घर खाली करने लिये कह दिया, क्योंकि वह अपने घर में इक्लीसिया नहीं चाहता था। इसलिये उन सबों ने एक मन एक चित्त होकर प्रार्थना किये और दूसरे ही दिन उन्हें उससे भी अच्छा घर मिल गया। कुछ सदस्यगण दूसरे चर्च में जाने लगे क्योंकि उन्हें परम्परिक तरीका अच्छा लगता था। परन्तु महीने भर में बहुत से और सदस्य इक्लीसिया में मिल गए और जो पहिले चले गए थे वे भी धीरे धरी फिर से इक्लीसिया में वापस आ गए। (1थिस्सलुकियों 1ः5-8)

घरेलू इक्लीसिया का कोई मान्य नमूना नहीं हैंः यहोशू ने दो युद्धों को एक ही रणनीति से नहीं लड़ा। यीशु ने एक ही आश्चर्यकर्म को हर बार अलग अगल तरीके से किये। ऐसा ही इक्लीसिया के साथ भी है। यरूशलेम नमूने की अगुवाई प्रेरित करते थे, यह यहूदी नमूने से भिन्नता था, जिसकी अगुवाई सताव सहे हुए शरणर्थी करते थे सामरी नमूने आरम्भ फिलिप्पुस के अुसमाचार प्रचार के तूफानी हमले के बाद हुआ था, वह खाने की मेज पर सेवा करने वाला साधारण व्यक्ति था। अन्ताकिया के नमूने वाली इक्लीसिया की अगुवाई अन्यजाति लोग करते थे जो यहूदी विधि विधानों से अलग थी। यूरोप की इक्लीसिया की अगुवाई एक महिला द्वारा की गई। ये सभी अलग अलग नमूने वाली इक्लीसियाएं एक ही उभयनिष्ठ धागे से जुड़ी हुई थी अर्थात यीशु जो सबके केन्द्रों में एक व्यक्त्तित्व थे। ‘‘हवा जिधर चाहती है उधर चलती है और तू उसका शब्द सुनता है, परन्तु नहीं जानता कि वह कहां से आती और किधर को जाती है? (यूहन्ना 3ः8)

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