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Showing posts from September, 2020

पाप का इनकार

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  पाप का इनकार  यद्यपि अनेक धर्मग्रन्थों में पाप की उपस्थिति की बुलाहट स्वीकार की गई है, तथपि यह अचम्भे की बात है कि हिन्दु तथा ख्रीष्ट दोनों सम्प्रदायों में कुछ ऐसे व्यक्ति भी उपस्थित है, जो पाप की वास्तविकता को गले नहीं उतारते।  पश्चिमी देशो में कतिपय ऐसे प्राध्यापक है जो ख्रीष्ट कलीसियाओं से वेतन एंव जीविका पाते हुए भी यह पढ़ाते है कि दुराचारिता या पाप - स्वभाव का सर्वव्यापी अस्तित्व है ही नहीं। पाप उनके विचार में मात्र घटनात्मक या परिस्थितिजन्य परिणाम है। हिन्दुमत में भी एक ऐसा बुद्धिवादी दल है जो छोटा लेकिन प्रभावशाली है और वह बहुत दृढ़ता से मनुष्य स्वभाव में विद्यमान पापों के इदुष्टाचरण की वास्तविकता को इनकार करता है तथा उसे कई शोभाजनक सम्बोधन देकर, जैसेः असत्, अविद्या, माया अथवा मिथ्या आदि नामों से पुकारता है।  इस प्रकार के आधुनिक धर्मशास्त्री एंव तत्वज्ञाता चाहे कितनी ही सहजता से पाप शब्द को अपनी स्मृति में से भुलाने का यत्न करें लेकिन पाप की वास्तविकता को हटाया नहीं जा सकता। चाहे इसका नाम न लिया जाए फिर भी यह वर्तमान जगत एक गुलाम व्याधि से ग्रस्त रहेगा। यदि को...

पाप का दासत्व

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पाप का दासत्व  सर्व व्यापक - स्वभाव मानव की सबसे भंयकर समस्या उसका पाप बन्धन है। मनुष्य देह में जन्में किसी भी प्राणी को इस दुष्ट पातक स्वभाव ने डंसने से नही छोड़ा। सन्त, साधु, सन्यासी, पंडित, नबी, पादरी या मौलवी, रहस्यवादी या फकीर! महाराजा या दास; धनपति या कंग्प्रल - सबके सब पापी की आक्रामक शक्ति के शिकार हुये है। प्रभु यीशु के शिष्य अपनी दैनिक प्रार्थना में परमपिता से यह विनय किया करते है, जैसे हमने अपने अपराधियों को क्षमा किया है, वैसे ही आप भी हमारे अपराधों को क्षमा कीजिए। इसी प्रकार वैष्णव ब्राम्हमण अपने गायत्री मन्त्रोच्चार के बाद प्रायः यह निम्न प्रार्थना अर्पित करते हैः  पापोहं पापकर्माहें पापात्मा पापसंभवः। त्राहिमाम् पुण्डरिकाक्षम् सर्व पाप हर हरे।। मैं तो एक पापी, पापकर्मी, परिपिष्ट तथा पाप में उत्पन्न हूँ। हे कमलनयन परमेश्वर, मुझे बचालो और सारे पापों से दूर करो।  पवित्र ग्रन्थ बाइबल ने कभी भी अथवा कहीं भी किसी कुलपति का चाहे वह आदम, इब्राहिम, मूसा, दाऊद, सुलेमान या प्रेरित पतरस व पौलुस हो पाप नहीं छिपाया है। हिन्दू धर्मग्रन्थों ने भी अपने देवताओं, ऋषियों अथवा म...

अंजीर के वृक्ष का दृष्टान्त

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अंजीर के वृक्ष का दृष्टान्त मन्दर्भ: मत्ती 24ः32-35 - ‘‘अंजीर के पेड़ से यह दृष्टान्त सीखोः जब उस की डाली कोमल हो जाती और पत्ते निकलने लगते हैं, तो तुम जान लेते हो, कि गीष्म काल निकट है। इसी रीति से जब तुम इन सब बातों को दखो, तो जान लो, कि वह निकट है, वरण द्वार ही पर हैं। मैं तुम से सच कहता हूं, कि जब तक ये बातें पूरी न हो लें, तब तक यह पीढ़ी जाती न रहेगी। आकाश और पृथ्वी टल जाएंगे, परन्तु मेरी बातें कभी नही टलेंगी।’’ मरकुस 13ः28-31 - ‘‘अंजीर के पेड़ से यह दृष्टान्त सीखो: जब उस की डाली कोमल हो जाती; और पत्ते निकलने लगते हैं; तो तुम जान लेते हो, कि ग्रीष्मकाल निकट है, बरन द्वार ही पर है। मैं तुम से सच कहत हूं, कि जब तक ये सब बातें न हो लेंगी, तब तक यह लोग जाते न रहेंगे। आकाश और पृथ्वी टल जाएंगे, परन्तु मेरी बातें कभी न टलेंगी।’’ लूका 21ः29-33 - ‘‘उस ने उन से एक दृष्टान्त भी कहा, कि अंजीर के पेड़ और सब पेड़ों को देखो। ज्योंही उन की कोंपलें निकलती हैं, तो तुम देखकर आप ही जान लेते हो, कि ग्रीष्मकाल निकट है। इसी रीति से जब तुम ये बातें होते देखो, तब जान लो कि परमेश्वर का राज्य निकट है। मैं तुम स...

विवाह के भोज का दृष्टान्त

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विवाह के भोज का दृष्टान्त  सन्दर्भ: मत्ती 22ः1-14 - ‘‘इस पर यीशु फिर उन से दृष्टान्तों में कहने लगा। स्वर्ग का राज्य राजा के समान है, जिस ने अपने पुत्र का ब्याह किया। और उसने अपने दासों को भेजा, कि नेवताहारियों को ब्याह के भोज में बुालएं; परन्तु उन्हों ने आना न चाहा। फिर उस ने अपने और दासों को यह कहकर भेजा, कि नेवताहारियों से कहो, देखो; मैं भोज तैयार कर चुका हूँ, और मेरे बैल और पाले हुए पशु मारे गये हैं: और सब कुछ तैयार है; ब्याह के भोज में आओं। परन्तु वे बेपरवाई कर के चल दिएः कोई अपने खेत को, कोई अपने व्यापार को। औरों ने जो बच रहे थे उसके दासों को पकड़कर उन का अनादर किया और मार डाला। राजा ने क्रोध किया, और अपनी सेना भेजकर उन हत्यारों को नाश किया, और उनके नगर को फूंक दिया। तब उस ने अपने दासों से कहा, ब्याह का भोज तो तैयार है, परन्तु नेवताहारी योग्य नहीं ठहरे। इसलिये चैराहों में जाओ, और जितने लोग तुम्हें मिलें, सब को ब्याह के भोज में बुला लाओ। से उन दासों ने सड़कों पर जाकर क्या बुरे, क्या भले, जितने मिले, सब को इकट्ठे किया; और ब्याह का घर जेवनहारों से भर गया। जब राजा जेवनहारों को देख...

जाल का दृष्टान्त

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जाल का दृष्टान्त सन्दर्भ: मत्ती 13ः47-50 - ‘‘फिर स्वर्ग का राज्य उस बड़े जाल के समान है, जो समुद्र में डाला गया, और हर प्रकार की मछलियो को समेट लाया। और जब भर गया, तो उस को किनारे पर खींच लाए, और बैठकर अच्छी अच्छी तो बरतनों में इकट्ठा किया और निकम्मीं निकम्मी फेंक दीं। जगत के अन्त में ऐसा ही होगा: स्वर्गदूत आकर दुष्टों को धर्मियों से अलग करेंगे, और उन्हें आग के कुंड में डालेंगे। वहां रोना और दांत पीसना होगा।’’ प्रस्तावना एंव पृष्ठभूमि:- प्रभु यीशु मसीह ने इस दृष्टान्त के द्वारा पुनः परमेश्वर के अन्तिम न्याय को प्रगट किया। वह गलील की झील के किनारे बैठा था। उसके चारों ओर विशाल जन समूह था जिसमें अधिकांश सामान्य और साधारण लोग थे। स्वंय प्रभु यीशु मसीह के शिष्य भी साधारण मछुवारे थे। गलील की झील में भी मछलियां पकड़ने का काम लोकप्रिय था। वहां उपस्थित लगभग सभी लोग संभवतः इस बात से वाकिफ थे कि किस प्रकार जाल में बड़ी, छोटी, उपयोगी, अनुपयोगी सभी प्रकार की मछलिया फंस जाती है और किसा प्रकार मछुवारों को उपयोगी मछलियों का चुनाव करना पड़ता है। पुराने समय में भी मूसा की व्यवस्था के अनुसार बहुत सी मछलियां...

दुष्ट किसानों का दृष्टान्त

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दुष्ट किसानों का दृष्टान्त सन्दर्भ: मत्ती 21ः33-46 - ‘‘एक और दृष्टान्त सुनो: एक गृहस्थ था, जिस ने दाख की बारी लगाई; और उस के चारों और बाड़ा बान्धा; और उस में रस का कुण्ड खोदा; और गुम्मट बनाया; और किसानों को उसका ठेका देकर परदेश चला गया। जब फल का समय निकट आया, तो उस ने अपने दासों को उसका फल लेने के लिए किसानों के पास भेजा। पर किसानों ने उसके दासों को पकड़ के किसी को पीटा, और किसी को मार डाला; और किसी को पत्थरवाह किया। फिर उस ने और दासों को भेजा, जो पहिलों से अधिक थे; और उन्होंने उन से भी वैसा ही किया। अन्त में उस ने अपने पुत्र को उन के पास यह कहकर भेजा, कि वे मेरे पुत्र का आदर करेंगे। परन्तु किसानों ने पुत्र को देखकर आपस में कहा, यह तो वारिस है, आओ, उसे मार डालें: और उसकी मीरास ले लें। और उन्होंने उसे पकड़ा औद दाख की बारी से बाहर निकालकर माल डाला। इसलिए जब दाख की बारी का स्वामी आयेगा, तो उन किसानों के साथ क्या करेगा? उन्होंने उस से कहा, वह उन बुरे लोगों को बुरी रीति से नाश करेगा; और दाख की बारी का ठेका और किसानों को देगा, जो समय पर उसे फल दिया करेंगे।  यीशु ने उन से कहा, क्या तुम ने क...

जगत की ज्योति का दृष्टान्त

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जगत की ज्योति का दृष्टान्त सन्दर्भ: मत्ती 5ः14-16 - ‘‘तुम जगत की ज्योति हो; जो नगर पहाड़ पर बसा हुआ है वह छिप नहीं सकता। और लोग दिया जलाकर पैमाने के नीचे नहीं परन्तु दीवट पर रखते हैं, तब उस से घर के सब लोगों को प्रकाश पहुंचता है। उसी प्रकार तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के साम्हने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में है, बड़ाई करें।’’ पृष्ठभूमि एंव प्रस्तावना: अपने जीवनकाल का प्रथम उपदेश देते समय मनुष्यों से ‘‘तुम पृथ्वी के नमक हो’’ कहने के पश्चात ही प्रभु यीशु मसीह ने यह भी कहा कि, ‘‘तुम जगत की ज्योति हो।’’ प्रभु यीशु मसीह यह प्रगट करना चाहता था कि इस संसार में असत्य का एंव अज्ञानता का आत्मिक अंधकार है, वह इस अंधकार को दूर करने के लिए ज्योति बनकर आया और वह सभी विश्वासियों से भी यही अपेक्षा करता है कि हम ज्योति बनकर संसार में व्याप्त आत्मिक अंधकार को दूर करें।  व्यख्या: प्रभु यीशु मसीह के मुख से निकले एक-एक शब्द बहुत ही अर्थपूर्ण होते थे। तुम पृथ्वी के नमक हो, के पूरक के रूप में उसने कहा ‘‘तुम जगत की ज्योति हो।’’ इसका अर्थ है कि हमें नमक बनकर न सिर्फ़ प्...

दो पुत्रों का दृष्टान्त

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दो पुत्रों का दृष्टान्त सन्दर्भ: मत्ती 21ः28-32 - ‘‘तुम क्या समझते हो? किसी मनुष्य के दो पुत्र थे; उस ने पहिले के पास जाकर कहा; हे पुत्र, आज दाख की बारी में काम कर। उसने उत्तर दिया, मैं नहीं जाऊंग, परन्तु पीछे पछता कर गया। फिर दूसरे के पास जाकर ऐसा ही कहा, उस ने उत्तर दिया, जी हां जाता हूँ, परन्तु नहीं गया। इन दोनों में से किस ने पिता की इच्छा पूरी की? उन्होंने कहा, पहिले नेः यीशु ने उन से कहा, मैं तुम से सच कहता हूँ, कि महसूल लेने वाले और वेश्या तुम से पहिले परमश्ेवर के राज्य में प्रवेश करते हैं। क्योंकि यूहन्ना धर्म के मार्ग से तुम्हारे पास आया, और तुम ने उस की प्रतीति न कीः पर महसूल लेने वालों और वेश्याओं ने उसकी प्रतीति कीः और तुम यह देखकर पीछो भी न पछताए कि उस की प्रतीति कर लेते है।’’ प्रस्तावना एवं पृष्ठभूमि: इस दृष्टान्त का उल्लेख केवल मत्ती ने किया है। मरकुस, लूका एंव यूहन्ना में यह दृष्टान्त नहीं मिलता है। यह दृष्टान्त प्रभु यीशु मसीह ने खजूर के रविवार के बाद बैतनियाह से लौटकर दूसरे दिन यरूशलेम के मन्दिर में उपस्थित शास्त्रियों एंव पुरनियों के एक कपटपूर्ण प्रश्न के उत्तर में स...

दाख की बारी के मज़दूरों का दृष्टान्त

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दाख की बारी के मज़दूरों का दृष्टान्त सन्दर्भ: मत्ती 20ः1-6 - ‘ ‘स्वर्ग का राज्य किसी गुहस्थ के समान है, जो सवेरे निकला कि अपने दाख की बारी में मज़दूरों को लगाए। और उसने मज़दूरों से एक दीनार रोज़ पर ठहराकर, उन्हें अपने दाख की बारी में भेजा। फिर पहर एक दिन चढ़े, निकलकर और औरों को बाज़ार में बेकार खड़े देखकर, उन से कहा, तुम भी दाख की बारी में जाओ, और जो कुछ ठीक है, तुम्हें दूंगा, सो वे भी गए। फिर उस ने दूसरे और तीसरे पहर के निकट निकलकर वैसा ही पाया, और उन से कहा; तुम क्यों यहां दिर भर बेकार खड़े़ रहे? उन्होंने उस से कहा, इसलिये कि किसी ने हमें मज़दूरी पर नहीं लगाया। उस ने उन से कहा, तुम भी दाख की बारी में जाओ। सांझ को दाख की बारी के स्वामी ने अपनी भण्डारी से कहा, मज़दूरों को बुलाकर पिछलें से लेकर पहिलों तक उन्हें मज़दूरी दे दे। सो जब वे आए, जो घंटा भर दिन रहे लगाए गए थे, तो उन्हें एक एक दीनार मिला। जो पहिले आए, उन्होंने यह समझा कि हमें अधिक मिलेगा; परन्तु उन्हें भी एक ही एक दीनार मिला। जब मिला, तो वे गृहस्थ पर कुड़कुड़ा के कहले लगे। कि इन पिछलों ने एक ही घंटा काम किया, और तू ने उन्हें हमारे बराबर कर द...

निर्दयी सेवक का दृष्टान्त

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निर्दयी सेवक का दृष्टान्त सन्दर्भ: मत्ती 18ः21-35 - ‘‘तब पतरस ने पास आकर उस से कहा, हे प्रभु यदि मेरा भाई अपराध करता रहे, तो मैं कितनी बार उसे क्षमा कंरू, क्या सात बार तक? यीशु ने उस से कहा, मैं तुझसे यह नहीं कहता, कि सात बार बरन सात के सत्तर गुने तक"।  इसलिए स्वर्ग का राज्य उस राजा के समान है, जिस ने अपने दासों से लेखा लेना चाहा। जब वह लेखा लेने लगा, तो एक जन उस के साम्हने लाया गया जो दस हजार तोड़े धरता था। जब कि चुकाने को उसके पास कुछ न था, तो उसके स्वामी ने कहा, कि यह और उसकी पत्नि और लड़के वाले और जो कुछ इसका है सब बेचा जाए, और वह कर्ज़ चुका दिया जाए। इस पर उस दास ने गिर कर उसे प्रणाम किया, और कहा; हे स्वामी, धीरज धर, मैं सब कुछ भर दूंगा। तब उस दास के स्वामी ने तरस खाकर उसे छोड़ दिया, और उसका उधार क्षमा किया। परन्तु जब वह दास बाहर निकला, तो उसके संगी दासों में से एक उस को मिला, जो उसके सौ दीनार उधारी लिया था।  उस ने उसे पकड़कर उसका गला घोंटा, और कहा; जो कुछ तूने उधार लिया है उसे भर दे। इस पर उसका संगी दास गिर कर, उससे बिनती करने लगा, कि धीरज रख, मैं सब भर दूंगा। उस ने न माना, ...