पाप का इनकार

पाप का इनकार यद्यपि अनेक धर्मग्रन्थों में पाप की उपस्थिति की बुलाहट स्वीकार की गई है, तथपि यह अचम्भे की बात है कि हिन्दु तथा ख्रीष्ट दोनों सम्प्रदायों में कुछ ऐसे व्यक्ति भी उपस्थित है, जो पाप की वास्तविकता को गले नहीं उतारते। पश्चिमी देशो में कतिपय ऐसे प्राध्यापक है जो ख्रीष्ट कलीसियाओं से वेतन एंव जीविका पाते हुए भी यह पढ़ाते है कि दुराचारिता या पाप - स्वभाव का सर्वव्यापी अस्तित्व है ही नहीं। पाप उनके विचार में मात्र घटनात्मक या परिस्थितिजन्य परिणाम है। हिन्दुमत में भी एक ऐसा बुद्धिवादी दल है जो छोटा लेकिन प्रभावशाली है और वह बहुत दृढ़ता से मनुष्य स्वभाव में विद्यमान पापों के इदुष्टाचरण की वास्तविकता को इनकार करता है तथा उसे कई शोभाजनक सम्बोधन देकर, जैसेः असत्, अविद्या, माया अथवा मिथ्या आदि नामों से पुकारता है। इस प्रकार के आधुनिक धर्मशास्त्री एंव तत्वज्ञाता चाहे कितनी ही सहजता से पाप शब्द को अपनी स्मृति में से भुलाने का यत्न करें लेकिन पाप की वास्तविकता को हटाया नहीं जा सकता। चाहे इसका नाम न लिया जाए फिर भी यह वर्तमान जगत एक गुलाम व्याधि से ग्रस्त रहेगा। यदि को...