राजपदधारी याजक
प्रभुजी ने अपना बहुमूल्य रक्त बहाकर आपको याजक और राजा बनाया है। (प्रकाशित वाक्य 5ः 10)
अपने आप को मात्र लेमेन या साधारण सदस्य कहकर-याजकीय एवं शासकीय कार्यो को न करना-उसके खून का अपमान करना है।
इसलिए आप शिष्य बनाइये, बपतिस्मा दीजिये, रोटी तोड़िये तथा झुंड बनाकर प्रार्थना यात्रा, मध्यस्थता एवं परोपकारी सेवकाई से अपने क्षेत्र का शासन कीजिये। (रोमियों 5ः 17)
विरोधियों तथा भेड़ों का शोषण करने वाले भेड़ियों को वचन से मुँहतोड़ जवाब दीजिए। किसी से डरिये मत क्योंकि डरपोंक राजपदधारी याजक नहीं हो सकते और न स्वर्ग जा सकते हैं। (तीतुस 1ः 9; 1पतरस 2ः 9; प्रकाशित वाक्य 21ः 8)
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