प्रश्न जो उत्तरों की मांग करते हैं!

1. ‘‘तब प्रभु ने अपने चेलों से कहा, पके खेत जो बहुत हैं पर मजदूर थोड़े हैं, इसलिये खेत के स्वामि से बिनती करो कि वह अपने खेत काटने के लिये मजदूर भेज दे’’ (मत्ती 9ः37,38)। तब प्रभु ने सत्तर और चेलों को दो दो करके भेजा कि वे ‘‘शान्ति/मेल के पुत्रों’’ को खोजें ‘‘और उन्हें आज्ञा दी कि उन्हें बपतिस्मा दें और चेले बनांए (लूका 10ः1-9; मत्ती 28ः19)। उसने उन्हें पवित्र आत्मा की सामर्थ दिया और उन्हें जगत के अन्त तक भेजा कि वे जाकर परमेश्वर के राज्य को स्थापित करें। (प्रेरितों के काम 1ः8)। 

प्रश्न: क्या आपका चर्च/मण्डली यह सब कुछ कर रही है? यदि नहीं तो क्यों नही?

2. एक इक्लीसिया का मुख्य कार्य यह है कि वह चेलों को सुसज्जित करे ताकि उससे मसीह की देह उन्नति पाए (इफिसियों 4ः12)। एक इक्लीसिया सुसज्जित करने का स्थान है जहां नये विश्वासी लगातार पोषित और तैयार किये जाते हैं और कटनी काटने के लिये बाहर भेजे जाते हैं। आज भारत को 10 लाख ‘‘शान्ति के पुत्रों की आवश्यक्ता है ताकि उस क्षेत्र के हर एक गांव, मोहल्ले और कॉलोनी में उनकी अपनी घरेलू इक्लीसियाएं हो जाएं। यदि आज की प्रत्येक घरेलू इक्लीसिया चेला बनाने के कार्य को गम्भीरता से ले तो यीशु उनकी इक्लीसिया को बहुत जल्दी विश्व व्यापक बना सकेंगे (यशायाह 60ः21,22; मत्ती 16ः18)। 

प्रश्नः क्या आपकी इक्लीसिया चेलों को सुसज्जित करने का केन्द्र है, या मात्र एक आराधना स्थल है?

3. ‘‘तुम सारे जगत में जाकर सारी सृष्टि के लोगों को सुसमाचार प्रचार करो (मरकुस 16ः15)। 

प्रश्नः क्या आपकी इक्लीसिया के द्वारा आपके पड़ौस में सुसमाचार प्रचार किया जाता है? यदि नहीं तो क्या आप इसमें बदलाव लाने का विचार नहीं करेंगे?

4. ‘‘जाकर सारी जातियों के लोगों को चेला बनाओं, उन्हें बपतिस्मा दो और मेरी सारी शिक्षाओं का उन्हें आज्ञाकारी बनाओ’’ (मत्ती 28ः18-20)

प्रश्नः क्या आपकी मण्डली प्रभु के महान आदेश को पूरा करने के लिये प्रशिक्षित की जा रही है? या वह एक महान भूल कर रही है?

5. ‘‘और राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।’’ (मत्ती 24ः14)

प्रश्नः क्या राज्य का सुसमाचार आपके शहर की भिन्न भिन्न जातीय समुदायों में पहुंच पाएगा? यदि इसे आप नही करेंगे तो कौन करेगा?

6. सब जातियों में मन फिराव (पश्चाताप) का और पापों की क्षमा का प्रचार उसी (यीशु) के नाम से किया जाएगा (लूका 24ः47)। 

प्रश्नः शिष्य बनाने की प्रक्रिया में सबसे पहिला कार्य है कि लोगों को पापों से पश्चाताप या मन फिराने पर लाया जाए। 

आपकी सेवकाई के परिणाम स्वरूप क्या लोग पश्चाताप हेतु टाट ढूढने दौड़ते हैं या व्याकुल और कायल होते हैं, और क्यों वे अपने घुटनों पर गिरकर अपने पापों से पश्चाताप करते है? यदि वे नहीं करते हैं तो क्या आपको पश्चाताप नहीं करना चाहिये। 

7. ‘‘जैसे पिता ने मुझे भेजा है, वैसे ही मैं भी तुम्हें भेजता हूं (यूहन्ना 20ः21)। 

प्रश्नः क्या आपकी इक्लीसिया चेलों को भेज रही है जैसा यीशु ने भेजे थे? यदि नहीं, तो क्या यह समय नहीं है कि आप अपने प्रभु और मालिक की तरह कार्य करें?

8. ‘‘तब तुम यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया और पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होगे’’ (प्रेरितों के काम 1ः8)। 

प्रश्नः पवित्र आत्मा को पा लेने का एक निश्चित चिन्ह अन्य अन्य भाषाओं में बात करना नहीं है परन्तु साहस पूर्वक यीशु की गवाही देना है (प्रेरितो के काम 4ः31)। यीशु ने पवित्र आत्मा प्राप्त करने के तुरन्त बाद अपनी सेवकाई आरम्भ कर दिये थे। यदि आपने सच में पवित्र आत्मा पा लिया हैं तो क्या आपको दूसरों को यीशु की गवाही नहीं देना चहिये?

9. ‘‘ये लोग जिन्होंने जगत को उलटा पुलटा कर दिया है, यहां भी आए हैं’’। (प्रेरितों के काम 17ः6)

प्रश्न: क्या आप पर भी यह दोष लगया जा रहा है कि आप जगत को उलटा पुलटा कर रहे हैं?

10. ‘‘प्रभु ने मेरे प्रभु से कहा, ‘‘मेरे दाहिने बैठ जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पांवो तले की चौकी न कर दूं’’ (प्रेरितों के काम 2ः34,35)। 

प्रश्नः यीशु बड़े धैर्य के साथ हमारी बाट जोह रहे हैं कि हम उनके शत्रुओं को उनके पांवों की चौकी बनादें। क्या प्रति रविवार हमारा चर्च जाना उनके बैरियों को उनकी पावों की चौकी बना देगा? यदि नहीं तो क्या यह बेहतर नहीं होगा कि आप अब तक जो कुछ कर रहे थे उसे त्याग दें और शैतान के गढ़ों को अपने पैरों से रौंदने में लग जाएं?

11. ‘‘पर मेरे मन की उमंग यह है कि जहां मसीह का नाम नहीं लिया गया वहीं सुसमाचार सुनाऊं, ऐसा न हो कि दूसरे की नेव पर घर बनाऊं परन्तु अब मुझे इन देशों में और जगह नहीं रही’’ (रोमियों 15ः20-23)

प्रश्न: क्या आप पौलूस की तरह घमण्ड कर सकते हैं कि आपके क्षेत्र में अब कोई ऐसी जगह बाकी नहीं रह गई है जहां सुसमाचार प्रचार नहीं किया गया हो? यदि नहीं तो क्या आप स्वंय सब कुछ जो आवश्यक हो नहीं करेंगे कि आप गर्व के साथ घोषणा कर सकें, ‘‘लक्ष्य पूरा हो गया’’?

12. प्रभु तुम्हारे विषय में धीरज धरता है औश्र नहीं चाहता कि कोई नाश हो बरन यह कि सबको मन फिराव का अवसर मिले (2पतरस 3ः9)। 

प्रश्नः परमेश्वर नही चाहते कि कोई नाश हो परन्तु जिस तरह से मिशनों के चर्च कार्य कर रहे हैं, यह बहुत सम्भव है कि सब जिनमें चर्च के सदस्य शामिल है, नाश हो जायेंगे। क्या इक्लीसिया को अपने शहर के सभी लोगों के लिये चिन्ता नहीं करना चाहिये जो सीधे नरक कुण्ड के द्वार की ओर चले जा रहे हैं? (योना 4ः11)

13. ‘‘वह यह चाहता हैं कि सब मनुष्यों का उद्धार हो, और से सत्य को भली भांति पहिचान लें‘‘। (1तीमुथियुस 2ः4)

प्रश्नः ‘‘क्या आपके चर्च के व्यस्त कार्यक्रमों के होते हुए भी लोग सत्य (यीशु) को जान पाएंगे और उद्धार पा लेंगे? यदि नही तो क्या आप पूरे कार्यक्रमों को नहीं बदल देंगे और उन्हें पूरी तरह ठीक करके सही काम करने योग्य नहीं बनाएंगे?

14. ‘‘और किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं, क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई नाम नहीं दिया गया जिसके द्वारा हम उद्धार पा सकें’’। (प्रेरितों के काम 4ः12)

प्रश्नः क्या लोग आपकी धार्मिकता के द्वारा यह जान पाएंगे कि केवल यीशु उद्धार देते और बचाते है? यदि हां तो परमेश्वर की स्तूति कीजिये। वरना नरक कुण्ड हमेशा अपने मुंह को बे परिमाण पसार कर तैयार रहता है कि भीड़ की भीड़ उसमें समा जाए। क्या आप जानते हैं कि आप उनके लिये जिम्मेवार होंगे? (यशायाह 5ः14; यहेजकेल 33ः8)

Comments

Popular posts from this blog

पाप का दासत्व

श्राप को तोड़ना / Breaking Curses

भाग 6 सुसमाचार प्रचार कैसे करें?