सताव (उत्पीड़न)

 केवल सताए गए (उत्पीड़ित) विश्वासी ही स्वर्ग पहुंचेंगेः यूहन्ना ने स्वर्ग में, हर एक देश हर एक कुल और भाषा के लोगों की एक बहुत बड़ी भीड़ को दखा जो श्वेत वस्त्र पहिने हुए थी और परमेश्वर की महिमा कर रही थी। एक प्राचीन ने उससे कहा कि वे लोग महाक्लेश में से निकलकर आए हैं और इसी कारण वे परमेश्वर के सिंहासन के साम्हने हैं और दिन और रात उसकी सेवा करते हैं (प्रकाशित वाक्य 7ः9,10)। 

सताव की गारन्टी दी गई हैः यदि आपका सताव नहीं हो रहा है तो आपको चिन्ता करने की जरूरत है क्योंकि आप शैतान के राज्य को पर्याप्त हानि नहीं पहुंचा रहे हैं जिससे वह आपकी ओर ध्यान दे। इसका यह अर्थ नहीं है कि आप मुसीबत मोल लें, परन्तु धर्मशास्त्र बड़ी स्पष्टता के साथ कहती है कि, ‘‘जितने मसीह यीशु में भक्ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं, से सब सताए जाएंगे (2तीमुथियुस 3ः12)। प्रभु हमें आश्वासित करते है कि, ‘‘यदि उन्होंने मुझे सताया तो तुम्हें भी सताएंगे’’ (यूहन्ना 15ः18-20) जब पौलूस इक्लीसिया को सता रहा था, प्रभु ने उससे कहे थे, ‘‘शाऊल तू मुझे क्यों सताता है? ‘‘जब आप सताए जाते तो हमेशा याद रखिये कि वह आप नहीं हैं परन्तु प्रभु यीशु स्वंय हैं जिन्हें सताया जा रहा है। हमें अपने सताने वालों के लिये प्रार्थना करना चाहिये क्योंकि, ‘‘जीवते परमेश्वर के हाथों में पड़ना भयानक बात है’’ (इब्रानियों 10ः31; लूका 10ः16; प्रेरितों के काम 9ः4)। 

यीशु सबसे अधिक सताए गएः यीशु के जन्म से सात सौ वर्ष पूर्व यशायाह भविष्यद्वक्ता ने यीशु के क्लेशों का वर्णन किया जिन्हें उन्हें सहना था (यशायाह 53 अध्याय)। ‘‘वह दुखी पुरूष था रोग से उसकी जान पहिचान थी (उसे इतना अधिक मारा और कुचला गया था कि उसे देखना असत्य था) और लोग उससे मुंह फेर लेते थे, परन्तु वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के हेतु कुचला गया। इसलिये परमेश्वर ने उसको अतिमाहन भी किया क्योंकि उसने हमारे लिये सारे दुःख सह लिये (यशायाह 53ः2-5)। उसी के कोड़े खाने से हम लोग चंगे हो गए और उसी के पवित्र रक्त के बहाए जाने के कारण परमेश्वर सारे पापी जगत का अपने साथ मेल मिलाप करा पाते हैं। उसी प्रभु के दुख उठाने के कारण हम मसीह के राजदूत नियुक्त किये गए हैं (2कुरिन्थियों 5ः17-20) कि हम पूरी सृष्टि का परमेश्वर से मेल मिलाप करा दें इससे बढ़कर धोका और क्या हो सकता है। कि हम जो दुख उठाने वाले प्रभु के शिष्य हैं, यह सोचें कि हम बिना दुख उठाए ही स्वर्ग पहुंच जाएंगे। 

सभी प्रेरित मरते दम तक सताए गएः सताव का सिलसिला कई युगों से जारी है। यीशु ने यरूशलेम को डांटा कि उसने सारे भविष्यद्वक्ताओं को घात किया। इतिहास बताता है कि स्तिफनुस के साथ 2000 विश्वासियों को मार डाला गया था। फिलिप्पुस को फ्रूगिया में फांसी पर लटकाया गया था, मत्ती को कूश देश में मार डाला गया था, याकूब को मंदिर के कंगूरे पर से फेंक दिया गया था, मथियास का सिर काट दिया गया था। अन्द्रियास को एशिया में क्रूस पर चढ़ाया गया था, पौलूस को रोम में मार डाला गया और पतरस को क्रूस पर उलटा लटकाया गया, यहून्ना पतमुस के टापू में जब वह नब्बे वर्ष से ऊपर था जेल में पड़ा हुआ मरा। लाखों धर्मशहीद उनके लीछे हो लिये और आज भी हजारों मर रहे है। 

रक्षक ही भक्षक (लूटने और मारने वाला) बन गयाः ऐसा कहा जाता है कि पिछले 2000 वर्षों में लगभग 4 करोड़ विश्वासी धर्म शहिद हुए हैं, इनमें से लगभग 2.5 (ढाई) करोड़ विश्वासी चर्च के द्वारा मारे गए और बाकी हिंसक सरकारों और अन्यों के द्वारा मारे गए। आज भी लगभग 1,60,000 लोग प्रति वर्ष धर्म शहिद कर दिये जाते हैं और ऐेसे आसार है कि यह संख्या बहुत जल्दी दुगुनी हो जावेगी इन आंकड़ों में वे लोग शामिल नहीं है जिन्हें पीटा, कुचला गया, लंगड़ा लूला बना दिया गया, अपंग कर दिये गए, जिनके साथ बलात्कार किया गया और जिनकी धन संपत्ति और मानव अधिकार छीन लिये गए। ओमर अल बशीर जो सूडान का तानाशाह था, अकेला ही ऐसा व्यक्ति था, जिसने बीस लाख लोगों को मार डाला और 40 लाख लोगों को बेघर बना दिया। वह अपनी दैनिक दिन चर्या में ही साधारण नागरिकों पर बम बरसाता, गैर मुस्लिम लोगों को पीड़ाएं देता और बिशपों को मार डाला और उनका प्रातः कालीन भोजन (ब्रेक फॉस्ट) बनाकर खाया। उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग द्वतिय 150,000 लोगों को बंधुआ मजदूर बनाकर इनमें अधिकांश मसीही हैं, उनसे बलात् काम ले रहा है। 

साऊदी अरब के शाहजोद (प्रिंस) अब्दुल्ला मसीहियों से दोयम दर्जे के नागरिक ही तरह व्यवहार करते है। चीन के राष्ट्रपति माओ ने 60 लाख से ऊपर लोगों को मरवा डाले जिनमें 10 लाख मसीही थे, जब वहां 1966 से 1976 तक सांस्कृतिक क्रान्ति हुई थी। बहुत और भी दूसरे तरीकों से मसीहियों को उनके ही कुटूम्ब के द्वारा, मित्रों, जातियों और समुदायों द्वारा सताया गया है। जो अपने ही  देश में बेघरबार शरणार्थी बना दिये गए। सताव के लिये परमेश्वर की स्तूति हो, क्योंकि वह इक्लीसिया को पवित्र करता है। नाम के मसीही समझौता कर लेते है, जबकि सच्चे विश्वासी मुकाबला करते है, चाहे कैसी भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े। हम आनन्द मनाते हैं क्योंकि सभी धर्म शहीद स्वर्ग में आनन्द कर रहे हैं जबकि उन्हें सताने वाले नरक कुण्ड की भयानक आग में जल रहे हैं (2कुरिन्थियों 6ः3-10)
कम से कम चार प्रकार के सताव हैः 
प्रथमः  प्रथम सताव वह है जिसका बहुत प्रचार किया जाता है और यह विरोधी सरकारों और दूसरे विश्वासियों के कट्टर पंथियों द्वारा किया जाता है (मत्ती 5ः10-12)।

दूसराः दूसरा सताव जो बहुत व्यापक रीति से प्रचालित है जिसमें अलग अलग डिनॉमिनेशन (मिशनों कलीसियाओं) के मसीही लोग एक दूसरे को सताते हैं। विश्व ऐसे भाईयों और बहिनों से भरा हुआ है (मत्ती 5ः22)। यद्यपि रोमी सरकार ने अन्त में यीशु को क्रूस पर चढ़ा दिया परन्तु यह पूरा कार्यक्रम उन्हीं के अपने यहूदी लोगों द्वरा पूरा किया गया। और यह होना ही था क्योंकि प्रभु ने आकर उनके रीति रिवाजों और परम्पराओं से भरी मन्दिर की कपटी धार्मिकता को चुनौती दे दिये थे। यीशु परमेश्वर के साथ अच्छे सम्बन्ध पर जोर देते थे और धार्मिक अगुवों के कपटीपन को दोषी ठहराते थे। दुःख की बात है कि आज भी हम मनुष्यों के बनाए हुए रीति रिवाजों को पूरा करने और ‘‘परमेश्वर की आज्ञाओं को टालने’’ (मत्ती 15ः2-9) में लगे हुए है। स्तिफनुस ने बड़ा लम्बा उपदेश दिया था जिसका कोई असर नहीं हुआ जब तक उसने यह हनीं कहा कि, ‘‘परमेश्वर हाथ के बनाए हुए घरों में नही रहता’’ (प्रेरितों के काम 7ः48, 49)। धार्मिक अगुवे बहुत क्रोधित हो गए और उन्होंने उसका पत्थरवाह करके मार डाला। आज भी धर्म सेवकों व मिशनरियों का उन चर्चो द्वारा सताव होता है जो स्वंय खोए हुओ तक पहुंचने के लिये कोई कोशिश नहीं करते हैं और दूसरों को भी ऐसा नहीं करने देते हैं। धर्म प्रचारक/सेवक भेड़ों को चुराने वाले नहीं हैं। सभी भेड़े प्रभु यीशु की हैं, जिसने उनके लिये अपने प्राण दिये थे (प्रेरितों के काम 20ः28)

तीसराः और सबसे भयंकर वह है जब कोई सताव नहीं होता क्योंकि कलीसिया ने संसार के साथ समझौता कर लिया है। वे अब पृथ्वी के नमक नहीं हैं क्योंकि उन्होंने अपनी नमकीनी खो दी है इसलिये संसार उन्हें आनन्द के साथ रौंद रहा है। वे अब जगत की ज्योति भी नहीं रहे, क्योंकि अब उनके अच्छे कामों की ज्योति जिनसे परमेश्वर की महिमा होती है, मनुष्यों पर नहीं चमकती (मत्ती 5ः13,14)। एक मसीही के पास यह विकल्प होता है कि वह शैतान के सिर को रौंदे, कुचले या उसके द्वारा खुद रौंदा जाए। और कोई दूसरा रास्तता नहीं है। यदि आप सताए नहीं जा रहे है तो आप पहिले ही उसके जाल में फंसे हुए हैं और शैतान के पास कोई कारण नहीं है कि वह आपको सताए। 

चौथाः और जो बहुत तेजी से फैलने वाला सताव है, वह ‘‘आमंत्रित’’ सताव है। अपनी सेवकाई के लिये धन एकत्रित करने के लिये बहुत से मिशन इन्टरनेट पर अपनी ख्याति का प्रचार करते हैं और बहुत तड़क भड़क के दिखावटी विवरणों के साथ, और अकसर वे अपनी सूचनाओं को बहुत बढ़ा चढ़ाकर बताते है। और जब इस तरह की सूचनाएं गलत हाथों में पड़ जाती हैं तो उसके कारण क्षेत्र के सभी सम्बद्ध लोगों पर भारी सताव आ पड़ता है। 

सड़को पर खुला प्रचार और नुक्कड़ प्रचार सभाएं, परचे बांटना और यहां तक कि धार्मिक फिल्मों का प्रदर्शन अब भारत में सुरक्षित नहीं है, विशेष कर उत्तरी भारत में, वे मसीही विश्वास के विरोधियों को क्रोधित कर देते हैं और उससे हिंसा होती है। प्रारभिंक इक्लीसिया गुप्त इक्लीसिया थी, परन्तु तौभी वह बहुत तेजी से बढ़ी थी। पौलूस और पतरस ने बिरले अपवादों को छोड़ कभी भी खुला प्रचार नहीं किये परन्तु अपनी सभाओं को लोगों के घरों में ही सीमित रखा। खुले में बड़ी सभाओं में प्रचार के प्रभावी होने के यद्यपि बड़े बड़े दावे किये जाते हैं, परन्तु जब उन फलों की बात आती है जो लम्बे समय तक बने रहें (यूहन्ना 15ः16) तो वे निष्फल साबित होते हैं।

भारत में असली सताव का आना अभी बाकी हैः मसीहियों के विरूद्ध हिंसा की छुटपुट घटनांए धीरे धीरे बढ़ रही हैं, और यह स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है कि गम्भीर सताव का समय अब दूर नहीं है। कट्टर पंथियों द्वारा बनाई गई रणनीति योजनाओं के तहत गिरजाघरों को जलाया जा रहा है, धर्म प्रचारकों को पीटा, धमकाया और जेल खानो में डाला जा रहा है समय समय पर उनकी हत्यांए भी की जा रही हैं। ननों (मसीही मठवासिनियों) के साथ बलात्कार किया जा रहे हैं, धार्मिक अभियानों में गड़बड़िया पैदा की जाती हैं गिरजाघरों में मूर्तिया स्थापित की जा रही हैं और बाइबिलों को फाड़ा और जलाया जा रहा है। उनकी इन्टरनेटों की वेबसाईटों पर मसीही अगुवों के नाम खुले आम छापे जा रहे हैं जो उनकी मारने की सूची (Hit list) में है। ’’घर वापसी’’ अर्थात परिवर्तित मसीहियों को फिरसे उनके मूल विश्वास में पुनः परिवर्तित किया जाता है जिसमें उनकी शुद्धि करण क्रिया भी होती है जैसे गोमूत्र पिलाना इत्यादि। इस कार्य के लिये वे हजारों कार्यकर्त्ताओं को तैयार कर रहे हैं।

उन लोगों के लिये परमेश्वर को धन्यवाद दीजिये जो सुसमाचार का विरोध करते हैः विश्व इतिहास के पूरे समयों में सभी मुख्य धार्मिक समुदायों का प्रमुख कार्यक्रम यही हुआ है कि वे धार्मिक परिवर्तनों को निषिद्ध करें। भारत इसका अपवाद नहीं है। तथापि परमेश्वर यहोवा ने फिरौन से जो परमेश्वर का बड़ा विरोधी था कहा, ‘‘मैंने इसी कारण तुझे बचाए रखा है कि तुझे अपनी सामर्थ दिखांऊ और अपना नाम सारी पृथ्वी पर प्रसिद्ध करूं (निर्गमन 9ः16)। सन 2000 की बड़े दिन (क्रिसमस) संध्या पर कुछ मसीही विरोधी लोगों ने गुजरात के डांग जिले में, बांससे बने 67 गिरजाघरों को जला दिये। उस समय के बाद से वहां के स्थानीय जनजातीय लोग अपने ही संसाधनों से सैकड़ों गिरजाघर बना चुके हैं। पिछले राष्ट्रीय चुनाव में मसीही विरोधी दल को हराने से यह देखा गया है कि मध्यस्थता की प्रार्थना करने वाली सेना का कोई जवाब या मुकाबला नहीं है (रोमियो 9ः17)।

सताव में शुद्धिकरण का प्रभाव हैः सताव श्राप नहीं परन्तु आशीष है। प्रभु ने कहा है, ‘‘धन्य है वे जो धर्म के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है, धन्य हो तुम जब मनुष्य मेरे कारण तुम्हारी निन्दा करें और सताएं और झूठ बोल बोलकर तुम्हारे विरोध में सब प्रकार की बुरी बाते कहें। आनन्दित और मगन होना क्योंकि तुम्हारे लिये स्वर्ग में बड़ा फल है, इसलिये कि उन्होंने उन भविष्यद्वक्ताओं को भी जो तुमसे पहिले थे इसी रीति से सताया था (मत्ती 5ः10-12)। इक्लीसिया जितना अधिक क्रियाशील होगी उतना अधिक सताव होगा। अधिक क्रियाशील होने का मतलब अधिक कार्यक्रम नहीं है, परन्तु बड़ी लगन के साथ जगत के खोए हुओं को ढूढ़ना है। प्रारंभिक इक्लीसिया ने जब उसे बहुत सताया गया था, यह प्रार्थना की थी कि, ‘‘तेरा वचन बड़े हियाव से सुनाएं.. और चिन्ह और अद्भूत काम यीशु के नाम से किये जाएं’’ (प्रेरितों के काम 4ः29-31)। पौलूस और सीलास जिन्हें पीटा और कुचला गया था, बन्दीग्रह में पड़े हुए बड़े जोर से भजन गा रहे थे जिसके परिणाम स्वरूप वहां भूकम्प आया और लोगों का परिवर्तन हुआ (प्रेरितों के काम 16ः25-34)। पतरस कहते हैं कि एक मसीही द्वारा पुनर्विचार हेतु की गई प्रार्थना, सताव को ला सकती है। ‘‘हे प्रियों, जो दुःख रूपी अग्नि तुम्हारे परखने के लिये तुममें भड़की है इससे यह समझकर अचम्भा न करो कि कोई अनोखी बात तुम पर बीत रही है’’ हमें जीवित बचे रहने के लिये न केवल सभी संसाधनों से सुसज्जित रहना चाहिये वरन इस कार्य में बढ़ते जाने के लिये भी प्रयत्नशील रहना चाहिये, क्योंकि, ‘‘जिसने शरीर में दुख दठाया (सताव सहा) वह पाप से छूट गया और परमेश्वर का आत्मा उस पर साया करता है (1 पतरस 4ः1,2, 12-19)।

इक्लीसिया का संकल्प, विश्व विजय होना चाहिएः आजकल की, धावा नहीं करने वाली कलीसिया के एक दम विपरित, यीशु लगातार गतिशील थे और अधोलोग के फाटकों को ध्वस्त करते जाते थे। प्रकाशित वाक्य की पुस्तक में प्रभु लोहू से छिड़के हुए वस्त्र को पहिने हुए हैं और श्वेत घोड़ो पर सवार है, और वह जय करता हुआ निकला कि और जय प्राप्त करे’’ (प्रकाशित वाक्य 6ः2; 19ः11-16)। प्रभु ने कहे है, ‘‘मैं अपनी इक्लीसिया बनाऊंगा, और अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे,’’ प्रभु ने मेरे प्रभु से यह भी कहा, ‘‘मेरे दाहिने बैठ, जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पावों तली की चौकी न करदूं’’ (प्रेरितों के काम 2ः34-35)। हमारे लिये कुछ भविष्यद्वाणी के वचन भी है, ‘‘शान्ति का परमेश्वर शैतान को तुम्हारे पावों से शीघ्र कुचलवा देगा (रोमियों 16ः20; लूका 10ः17-19)। यीशु ने अपने सभी चेलों को जयवंत से भी बढ़कर बनने का प्रशिक्षण दिये (रोमियों 8ः37)। उनके चेले होने के कारण, हमारे पास पूरी तरह से सुसज्जित योद्धा बनकर शैतान को अपने पैरों तले रौंद डालना चाहिये। 

साहसी और युद्ध चाहने वाले मसीही हमेशा अल्प संख्यक होते हैः मूसा ने बारह भेदियों को कनान देश का भेद लेने के लिये भेजा। केवल केलब और यहोशू ने ही सही सलाह दिये कि हम तुरन्त जाकर धावा करें और उस देश को अपने वश में करलें। और बचे दस जन, यद्यपि उन्होंने भी परमेश्वर की सामर्थ को देखा था, डरपोंक साबित हुए जिसके कारण वे मरूभूमि के जंगल में ही अपने घराने समेत नाश हो गए। हमें ध्यानपूर्वक केलब और यहोशू के उदाहरण का अनुकरण करना चाहिये, और गंभीर धमकियों व भय के सामने होते हुए भी परमेश्वर पर पूरा विश्वास रखना चाहिये कि वे हमें विजय दिलाएंगे (गिनती 13ः17; 14ः6-9)

खन्दक व गड़हे खोदो, भूमिगत हो जाओ और बढ़ते जाओः हिंसक स्थितियों में सताव से बचने के लिये गुप्त सभांए करना रक्षा का सबसे उत्तम उपाय है। 1982 में इथ्योपिया के साम्यवादियों (कम्यूनिस्टों) ने सभी पास्टरों को बन्दीग्रह में डाल दिया, सारे विदेशी धर्म प्रचारकों को वापस उनके देश भेज दिया और मसीहियों के रोडियो प्रसारण केन्द्रों पर नियंत्रण करके उनसे कम्यूनिस्ट विचार धारा का प्रसारण आरम्भ कर दिया। उन्होंने इस धर्म को अपराध घोषित कर दिया और मसीहियों को बहुत क्लेश दिया और सताया। उस समय वहां मेनोनाईट चर्च के केवल 5000 सदस्य थे। बहुत से लोग सोचने लगे कि अब वहां कलीसिया पूरी तरह समाप्त हो जाएगी। तथापि वहां की कलीसिया भूमिगत हो गई और प्रार्थना में लग गई। दस वर्ष बाद वहां कम्यूनिस्ट शासन समाप्त हो गया और कलीसिया 5000 से बलढ़कर 50000 हो गई। इस समय के अंतराल में बेन्च पर खामोश बैठने वाले मसीहियों ने बाइबिल को अपनी ही भाषा में अनुवादित कर लिया और बीहड़ जंगल में रहने वाले शीको कबीले तक वचन के साथ पहुंच गए। इथ्योपिया में सुसमाचार, अनियंत्रित वृद्धि का अनुभव कर रहा है। पिछले पचास वर्षों में मेकेने यूसुस (यीशु का घर) बढ़कर 40 लाख हो गए है। 

अपना प्राण बचाने के लिये भागोः प्रभु ने उन्हें सलाह दिये थे कि जब तुम सताए जाओ तो एक नगर से दूसरे नगर भाग जाना (मत्ती 24ः15-20)। एक घर जो घांस फूस या लकड़ी का बना है, जल सकता है, परन्तु यीशु की जीवित इक्लीसिया सताव की आग में (भट्ठी में) चांदी और सोने की तरह शुद्ध हो जएगी (1कुरिन्थियों 3ः11-’17; रोमियों 5ः3,4; जकर्याह 13ः8,9)। घर बनाना ऐसा होता है जैसे किसी जहाज को लंगर डालकर स्थाई रूप से खड़ा कर दिया गया हो, और जो जहाज चल नहीं सकता, वह मछली भी नहीं पकड़ सकता। इसीलिये हमें इस पृथ्वी पर परदेशी और मुसाफिर कहा गया है जो निरन्तर उस नए नगर की खोज में बढ़ रहे हैं (1पतरस 2ः11)।

सांपों की तरह चालाक बनों परन्तु डसो (काटो) नहींः प्रभु ने हमें अपने सताने वालों को श्राप देने की इजाजत नहीं दिये हैं परन्तु उन्होेंने हमें आज्ञा दिये हैं कि अपने शत्रुओं से प्रेम करो और अपने सताने वालों के लिये प्रार्थना करो (मत्ती 5ः39-44)। यीशु ने क्रूस पर से सभी समयों की सबसे महान प्रार्थना किये थे, ‘‘हे पिता इन्हें क्षमा कर क्योंकि ये जानते नहीं कि क्या करते हैं’’ (लूका 23ः34)। प्रभु ने हमें भेड़ों की नाई भेड़ियों के बीच में भेजा है परन्तु हमें मुसीबत को निमंत्रण नहीं देना है आश्चर्य जनक रीति से प्रभु ने भी यही सलाह दिये हैं कि हमें सापों की तरह चालाक बनना है। उन्होंने हमें काटने या डसने के निर्देश नहीं दिये हैं, परन्तु कबूतरों व पिण्डुकियों की तरह हानि रहित रहने के लिये कहे हैं (मत्ती 10ः16)। ये निर्देश हमारे लिये हैं कि हम बदला लेने वाले नहीं बनें बरन उनके लिये आशीष बन जाएं, यहां तक कि क्लेश देने वालों के लिये भी (रोमियों 12ः14)।

स्मरण पत्र या ज्ञापन, शैतान को देंः  इन दिनों में जब सताव आता है, हम विरोध प्रगट करने के लिये एक बड़ा जुलूस निकालते हैं और अपना ज्ञापन राजनीतिक नेताओं को देते हैं, और कभी कभी तो सीधे देश के राष्ट्रपति को ही देते हैं। यह ऐसा होगा मानो प्रभु यीशु मसीह के चेले कैसर के पास जाकर मसीह को क्रूस पर चढ़ाए जाने से बचाने के लिये, ज्ञापन दें। इक्लीसिया यहां पर शैतान का ज्ञापन देने के लिये है, उसे यह सूचना देने के लिये कि उसका सिर विश्वासियों के पैरों तले रौंदा जाने वाला है (मत्ती 16ः21-26; रोमियों 16ः20)

उन्हें प्रभु के हवाले करो, पुलिस के नहीः उन्हें प्रभु के हवाले करो, पुलिस के नहीः प्रभु ने बड़ी स्पष्टता के साथ कहे हैं, ‘‘जो तुम्हारी सुनता है, वह मेरी सुनता है और जो तुम्हें तुच्छ जानता है वह मुझे तुच्छ जानता है‘‘ (लूका 10ः16)। परमेश्वर ने कहे हैं, ‘‘पलटा लेना मेरा काम है’’ और इसलिये ‘‘जिवते परमेश्वर के हाथ में पड़ना भयानक बात है’’ (इब्रानियो 10ः30,31)। यदि हम अपने विरोधियों को पुलिस के हवाले कर दें, तब वे उनसे अपने तरीके से व्यवहार करेंगे, परन्तु यदि हम उन्हें जीवते परमेश्वर के हाथ में छोड़ दें तब वे उनसे अपने तरीके से व्यवहार करेंगे, हो सकता है वह बहुत भयानक हो या वह तरीका फलवंत भी हो सकता है। 

सताने वालों को प्रार्थनाओं के द्वारा सताओंः प्रभु ने हमें बहुत स्पष्ट विकल्प दिये हैं कि यदि हम अपने आपको दीन करें और प्रार्थना करें और उनके दर्शन के खोजी हों तो वे हमारे देश को चंगा कर देंगे (2इतिहास 7ः14)। परमेश्वर ने उन इस्राएलियों की कराहने और रोने की आवाज को सुने थे जो दासत्व से पीड़ित थे और उन्होंने उस प्रतापी राजा फिरौन को नाश कर दिया, और उस समृद्धशाली और सामर्थी देश मिस्र को पूरी तरह उजाड़ दिया (निर्गमन 2ः23-25)। पूर्वी यूरोपीय देश के एक कम्यूनिस्ट तानाशाह ने बड़े धमण्ड के साथ घोषणा किया था कि तानाशाही हजार वर्षो तक चलती रहेगी और यह कि परमेश्वर मर चुका है। एक दिन भोर को सबेरे ही सभी मसीही विश्वासियों ने उसके महल के चारों तरफ मानव श्रखंला बनाकर परमेश्वर से प्रार्थना किये कि वे उन्हें परिवर्तित कर दें। कुछ ही महीनों में वह तानाशाह प्राणघातक बीमारी से मर गया और अब उस देश में प्रभु का कार्य बहुत तेजी से बढ़ रहा है (1यूहन्ना 3ः8)। 

अन्त दृष्टि के साथ मैदान में आएः परमेश्वर ने प्रतिज्ञा किये है कि अन्तिम दिनों में, वे एक राज्य स्थापित करेंगे, जो दूसरे सारे राज्यों को टुकड़े टुकडे़ करके उनका सफाया कर देगा, और केवल प्रभु के लोग ही उस समय पृथ्वी पर राज्य करेंगे (दानियेएल 2ः44;7ः18,27; प्रकाशित वाक्य 5ः10)। यह राज्य उनके द्वारा शासित होगा जो दुश्मन शैतान तक युद्ध करते हुए पहुंचते हैं और उसे युद्ध के मैदान में ही नाश करते है। मूसा ने संग्राम के मैदान में फिरौन का सामना किया और उसे नाश कर दिया। दाऊद ने युद्ध के मैदान में गोलियत का सामना किया और उसे घात किया। यीशु ने क्रूस पर शैतान का सामना किया और उसे हमेशा के लिये निष्क्रिय बना दिया। सामरी स्त्री को जान पड़ा और उसे गांव के उन लोगों का सामना करना पड़ा जो उसे तुच्छ जानते थे और उसने उन्हें यीशु के चरणों में ले आई। विद्वान लोग मनुष्यों के दिमागों पर वार करते हैं परन्तु धर्मी जन उनके हृदयों पर निशाना साधता है और उसे परमेश्वर के प्रेम से भर देता है। हमें भी ऐसा ही करना चाहिये।    

सत्य मेव जयते  केवल सत्य की ही विजय होती हैः भारत का संविधान उपरोक्त, भविष्यद्वाणी के वचनों को लिये हुए है। इस समय तक हमारे वेश को जान लेना था कि यीशु ही सत्य हैं। अब भारत में मसीहियत के आने के लगभग दो हजार वर्ष बीत चुके हैं। अभग्यवश दूसरों को बदलने के बदले, मसीहियत ही एक जाति के रूप में बदल गई है। यदि हमने मसीह के आज्ञाकारी होने को चुना होता और उसकी कीमत चुकाने को तैयार रहते, तो आज इतिहास बिलकुल भिन्न होता। आईये हम मिलकर प्रार्थना करें कि प्रभु परमेश्वर हमारे चर्चो की सूखी हड्डियों पर अपनी मांस फूंके, ताकि वह बड़े हियाव के साथ यह भविष्यद्वाणी कर सके, कि, ‘‘सत्य (यीशु) की ही विजय होगी। हमें नाजरीन घोषणा पत्र को कार्यान्वित करना होगा (यहेजकेल 37ः1-14; लूका 4ः18-19)। प्रभु आज पूरे देश में घरेलू इक्लीसियाई अभियान द्वारा नई फौज तैयार कर रहे हैं, और वे इसे पूरे विश्व में भी कर रहे हैं। वे नये दाखरस को नई मशकों में जमा कर रहे हैं। आशा की जाती है कि बाकी भारत भी और उत्तर पूर्वीय क्षेत्र भी इसमें सम्भागी हो जाएंगे और घोषणा करेंगे कि, ‘‘क्या ही धन्य है वह जाति और देश जिसका परमेश्वर यहोवा है’’। इस कार्य को करने के लिये, प्रभु के लोगों को घुटनों पर रहकर धावा करते हुए आगे बढ़ना चाहिये तभी हम शैतान और उसकी सेना हो हरा सकते हैं और जयवंत से भी बढ़कर बन सकते हैं (भजन 33ः12, रोमियों 8ः37) 

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