हर घर में एक कलीसिया
“एशिया की कलीसिया अक्विला और प्रिस्किल्ला के घर की कलीसिया का स्वागत करती हैं और बहुत-बहुत नमस्कार कहती हैं ।” (1 कुरिन्थियों 16:19)
परिचय
यह पुस्तिका आपको सरल, स्पष्ट और व्यवहारिक सिद्धांतों का उपयोग करके गृह कलीसिया को स्थापित करने में मदद करेगी । जब आप इस पुस्तिका को पढ़ते हैं तो परमेश्वर आपके सामने जो सत्य प्रकट करता है उसे लागू करने में देरी ना करें । कलीसिया का रोपण, निर्माण और विस्तार तभी संभव है जब हम आत्मा की सामर्थ में परमेश्वर की आज्ञा का पालन करते हैं । वह स्वयं ही अपने कलीसिया का स्रोत और सामर्थ है । कलीसिया ही के माध्यम से, परमेश्वर की महिमा संभव है ।
इस पुस्तिका को पढ़ते समय आपको जो अनेक प्रकाशन और दर्शन प्राप्त होते हैं, उन्हें अपने संगी साथी विश्वासियों के साथ तुरंत बाँटें । जो कुछ वह आपके सामने प्रकट करता है उसे स्वीकार करने के लिए और उस पर परिवर्तन करने और कार्य को करने के साहस के लिए पवित्र आत्मा पर भरोसा रखें । परमेश्वर से प्रार्थना करें कि वह आपको उसकी महिमा के लिए गृह कलिसिया को स्थापित करने में आपकी आज्ञाकारिता के लिए अपनी और योजनाएं दिखाए । जब शिष्यों पर मंदिर की तरफ से धमकियाँ और सताव आया तो पतरस प्रेरित ने प्रार्थना किया कि, “हे प्रभु, उनकी धमकियों को देख; और अपने दासों को यह वरदान दे, कि तेरा वचन बड़े हियाव से सुनाएं ।और चंगा करने के लिये तू अपना हाथ बढ़ा; कि चिन्ह और अद्भुत काम तेरे पवित्र सेवक यीशु के नाम से किए जाएं । जब वे प्रार्थना कर चुके, तो वह स्थान जहां वे इकट्ठे थे हिल गया, और वे सब पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गए, और परमेश्वर का वचन हियाव से सुनाते रहे”। (प्रेरितों के काम 4:29-31)
गृह कलीसिया क्या है?
“इसलिये तुम अब विदेशी और मुसाफिर नहीं रहे, परन्तु पवित्र लोगों के संगी स्वदेशी और परमेश्वर के घराने के हो गए । प्रेरितों और पैगम्बरों की नींव पर निर्मित, यीशु मसीह स्वयं आधारशिला हैं, जिसमें पूरी संरचना एक साथ जुड़कर प्रभु में एक पवित्र मंदिर के रूप में विकसित होती जाती है । उसी में तुम भी आत्मा के द्वारा परमेश्वर के लिये एक निवास स्थान बनने के लिये एक साथ बनाए जाते हो” । (इफिसियों 2: 19-22)
बाइबल कभी भी किसी भवन के लिए "चर्च" शब्द का उपयोग नहीं करती है; इसके बजाय, यह हमें कलीसिया एक परिवार की तस्वीर देती है । एक परिवार की तरह, मसीह में आध्यात्मिक माताएँ, पिता, बहनें और भाई होते हैं । कलीसिया को "परमेश्वर का घराना" कहा जाता है, “कि यदि मेरे आने में देर हो तो तू जान ले, कि परमेश्वर का परिवार, जो जीवते परमेश्वर की कलीसिया है, और जो सत्य का खंभा, और नेव है; उस में कैसा बर्ताव करना चाहिए (1 तीमुथियुस 3:15)। नया नियम कलीसिया के बारे में लोगों के रूप में सिखाता है, स्थानों के रूप में नहीं । “मसीहत में कोई पवित्र स्थान नहीं ह्लोता बल्कि ये वो स्थान है जहाँ पवित्र परमेश्वर अपने पवित्र लोगों के बीच निवास करता है । "क्योंकि जहां दो या तीन मेरे नाम पर इकट्ठे होते हैं वहां मैं उन के बीच में होता हूं” (मत्ती 18:20 )। यह परमेश्वर का परिवार है, जो उसके चुने हुए लोगों से बनता है । उसके चुने हुए वे लोग हैं जो ऐसे आत्मिक बीज वाले फल लाते हैं जो और फल लाने के योग्य होते हैं, “ तुम ने मुझे नहीं चुना परन्तु मैं ने तुम्हें चुना है और तुम्हें ठहराया ताकि तुम जाकर फल लाओ; और तुम्हारा फल बना रहे, कि तुम मेरे नाम से जो कुछ पिता से मांगो, वह तुम्हें दे” (युहन्ना 15:16)
हालाँकि प्रभुजी अरमेइक भाषा का उपयोग करते थे लेकिन उन्होंने सभा के लिए यूंनानी शब्द कलीसिया का उपयोग किया क्योंकि रोमन सरकार से पहिले यूनानी लोगों ने राज्य किया था और हर जगह न्यायालय स्थापित किया था जिसे वे कलीसिया कहते थे जहाँ फरियादी को न्याय मिलता था, “यदि देमेत्रियुस और उसके साथी कारीगरों को किसी से विवाद हो तो कचहरी खुली है, और हाकिम भी हैं; वे एक दूसरे पर नालिश करें । परन्तु यदि तुम किसी और बात के विषय में कुछ पूछना चाहते हो, तो नियत सभा (कलीसिया) में फैसला किया जाएगा और यह कह के उस ने सभा (कलीसिया) को विदा किया”(प्रेरित 19: 36-41) ।
कलीसिया वो स्थान नहीं है जहाँ सिर्फ गीत संगीत, भाषण, चंदा और छै दिन की छुट्टी होती है लेकिन कलीसिया वो स्थान है जहाँ पापियों को उद्धार मिलता है और उन्हें शिष्य बनाने का प्रशिक्षण मिलने के बाद आगे भेज दिया जाता है जहां अभी सुसमाचार नहीं पंहुचा है ।
परमेश्वर के वचन से यह समझना अति महत्वपूर्ण है कि चर्च एक भवन नही बल्कि बिश्वासी लोग हैं और यह किसी भी स्थान पर शुरू हो सकती है और अस्तित्व में रह सकती है जहां परमेश्वर के लोग एकत्रित होते हैं । "क्योंकि जहां दो या तीन मेरे नाम पर इकट्ठे होते हैं, वहां मैं उनके बीच में उपस्थित होता हूं ।" (मत्ती 18:20)
गृह कलीसिया मसीहियों का एक समूह है जो निजी घरों या अन्य गैर-पारंपरिक स्थानों में, जैसे, स्कूल. अस्पताल, चाय की दूकान, बाज़ार, पेड़ की छाय में, दफ्तर या जहाँ भी आप काम करते हैं वहां एकत्रित होकर दुआ, प्रार्थना, बाइबिल शिक्षा, शिष्य बनाना इत्यादि बिना गीत संगीत और शोरगुल किये आसानी से कर सकते हैं । नए नियम के युग में सभी कलीसिया छोटी सभाएँ होती थीं जो घरों में या गैर पारंपरिक स्थानों में मिलती थीं और फैलती थी । यहूँदियों के आराधनालय में तीन महीनो तक वाद विवाद से कोई फल नहीं मिला तो पौलुस मछली बाज़ार में स्थित “तुरन्नुस की पाठशाला में तम्बू बनाकर रोजी रोटी भी कमाता था और यहूदी,और अन्य जातियों के लोगों से विवाद और सामर्थ के काम किया करता था । दो वर्ष तक यही होता रहा, नतीजन आसिया (वर्तमान में तुर्की जहां प्रकाशित वाक्य की सातों कलिसियाँए थीं) के रहनेवाले सब ने प्रभु का वचन सुन लिया”। (प्रेरित 19:8-12)
पारिवारिक वेदी क्या है?
“तुम भी आप जीवते पत्थरों की नाई आत्मिक घर बनते जाते हो, जिस से याजकों का पवित्र समाज बनकर, ऐसे आत्मिक बलिदान चढ़ाओ, जो यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर को ग्राह्य हो”। (1 पतरस 2:5)
“तुम एक चुना हुआ वंश, राज-पदधारी, याजकों का समाज, और पवित्र लोग, और (परमेश्वर की) निज प्रजा हो, इसलिये कि जिसने तुम्हें अन्धकार में से अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया है, उसके गुण प्रगट करो”(1 पतरस 2:9)
जब कोई बिश्वासी अपने परिवार और दोस्तों को परमेश्वर की उपस्थिति में इकट्ठा करता है, तो वह एक पारिवारिक वेदी स्थापित करता है जहाँ वो खोए हुए लोगों को जीवित बलिदान के रूप में चढ़ाता है । यहाँ प्रार्थना, आराधना, बाइबल अध्ययन, शिष्य बनाना, बपतिस्मा देना और अन्य आध्यात्मिक अभ्यास शामिल हैं - इसका उद्देश्य पृथ्वी पर परमेश्वर के राज्य को लाना है । यह वह स्थान है जो स्वर्ग पृथ्वी को जोड़ता है । प्रत्येक मसीही परिवार को नियमित रूप से और योजनाबद्ध तरीके से परमेश्वर के उद्देश्य को पूरा कंरने की भरसक कोशिश करना चाहिए ।
महान आदेश: प्रभु यीशु मसीह का अंतिम और सबसे महान आदेश सभी जाती के लोगों को शिष्य बनाना, उन्हें बपतिस्मा देना और उन्हें आज्ञापालन करना सिखाना है (मत्ती 28:19) । शिष्य बनाना, बपतिस्मा देना और उन्हें यीशु की आज्ञाओं का पालन करना सिखाना प्रत्येक राजपदधारी याजक का उत्तरदायित्व है । प्रभु यीशु ने प्रत्येक विश्वासी को ऐसा करने के लिए नियुक्त (Ordain) किया है, "तुमने मुझे नहीं चुना है बल्कि मैंने तुम्हें चुना है और तुम्हें फल लाने के लिए नियुक्त (Ordain) किया है, वह फल जो बना रहता है ( यानि वो फल जो और फल पैदा करते है)”। (यूहन्ना 15:16)
पुराने नियम में, वेदी वह स्थान था जहाँ याजक पशु बलि अपने पापों पर पर्दा डालने के लिए चढ़ाते थे। नए नियम में, पहिले हम अपने देह को जीवित बलिदान के रूप में पेश करके आत्मा और सच्चाई से आराधना करते हैं । (रोमियों 12:1,2)
मसीह के याजक के रूप में पौलुस अन्यजातियों का पवित्रीकरण करके उनको जीवित बलिदान के रूप में पेश करता था, “मैं अन्याजातियों के लिये मसीह यीशु का सेवक होकर परमेश्वर के सुसमाचार की सेवा याजक की नाई करूं; जिससे अन्यजातियों का मानों चढ़ाया जाना, पवित्र आत्मा से पवित्र बनकर ग्रहण किया जाए”। (रोमियों 15:16) । "यह जान लो कि जो कोई भटके हुए पापी को लौटा लाता है, वह एक प्राणी को मृत्यु से बचाएगा, और अनेक पापों पर परदा डालेगा"। (याकूब 5:20)
क्या गृह कलीसिया एकमात्र वैध तरीका है?
गृह कलीसिया बाइबिल पर आधारित एक नमूना है जबकि पारम्परिक चर्च मनुष्यों द्वारा निर्मित है। प्रभूजी ने हिदायत दी कि, “और ये व्यर्थ मेरी उपासना करते हैं, क्योंकि मनुष्य की विधियों को धर्मोपदेश करके सिखाते हैं” (मत्ती 15:9)। पारंपरिक चर्च का लक्य सदस्यता बढ़ाना होता है ताकि अधिक से अधिक धन अर्जित हो जबकि गृह कलीसिया का लक्ष्य अधिक से अधिक शिष्य बनाना है ताकि परमेश्वर का राज्य अधिक से अधिक जगह में फ़ैल जाये । कुछ लोगों का विचार है कि कलीसिया जैसे जैसे बढ़ती जाती है तो घरों में कैसे आराधना कर पायेगी । तो बुनियादी कलीसिया का लक्ष्य सदाकाल के लिए किसी के बैठाने का नहीं होता था बल्कि बिश्वसियों को परिपक्व करके दूसरी जगह जाकर शिष्य बनाकर नयी नयी कलिस्सियाए स्थापित करने का होता था जिससे सारा क्षेत्र छोटी छोटी कलिसियाओं से संतृप्त हो जाये, “जिस से पवित्र लोग सिद्ध हों जाएं, और सेवा का काम किया जाए, और मसीह की देह उन्नति पाए । जब तक कि हम सब के सब विश्वास, और परमेश्वर के पुत्र की पहिचान में एक न हो जाएं, और सिद्ध मनुष्य न बन जाएं और मसीह के पूरे डील डौल तक न बढ़ जाएं” (इफिसियों 4:12,13)।
परमेश्वर की कलीसिया को किसी भवन में सीमित नहीं किया जा सकता क्योंकि उसका लक्ष्य निरंतर फैलने का होता है । सत्ताव के समय पारम्परिक भवन वाली कलिसियाओं में तोड़ फोड़ होता है और उसमे ताला लग जाता है लेकिन गृह कलीसिया गुप्तवास में मिलने लगती है । कई देशों में भवन बनाना और इकट्टा होकर इबादत करना तो दूर, बाइबिल भी रखना एक जुर्म है । ऐसी स्तिथि में गुप्त कलीसिया ही एकमात्र विकल्प है । सताव का माहौल अब सारे देशों में बड़ी तेजी से फ़ैल रहा है और जल्द गुप्त कलिसियाएं एकमात्र विकल्प रह जाएँगी । क्योंकि सच्चाई ये है कि कितना भी सताव क्यों ना हो परमेश्वर के राज्य की बढोत्तरी को कोई ताकत नहीं रोक सकती । (मत्ती 24:14)
प्रारंभिक गृह कलीसिया
“तब जितनों ने आनन्द से उसका वचन ग्रहण किया, उन्होंने बपतिस्मा लिया; और उस दिन उनमें लगभग तीन हजार आत्माएं मिल गईं” (प्रेरितों 2:41)
1. मसीही संगती - उन दिनों में, वे पूरी तरह से पवित्र आत्मा पर निर्भर थे, न कि मनुष्यो द्वारा निर्मित ढांचे और तकनीक पर । इस कारण वे आत्मा और सच्चाई से आराधना करते थे और पारिवारिक संगति के अन्दर उनका रिश्ता मजबूत होता था ।
"परन्तु पवित्र आत्मा तुम पर आयेगा और तुम सामर्थ पाओगे; यरूशलेम में, और सारे यहूदिया में, और सामरिया में, और पृय्वी की छोर तक तुम मेरे गवाह होगे ।" (प्रेरितों 1:8)
आराधना विधि - गीत संगीत आराधना (Worship) नहीं है; यह केवल प्रशंसा (Praise) है.
स्तुति और प्रशंसा: आप अपने होठों से परमेश्वर की स्तुति और प्रशंसा करते हैं । (भजन 51:15; इब्रानी 13:15)
महिमा (Glorify) अत्याधिक फल लाकर आप परमेश्वर की महिमा (Glorify) करते हैं । (यूहन्ना 15:8)
आराधना (Worship): आप टूटे हुए और पिसे हुए हृदयों को जीवित बलिदान के रूप में चढ़ाकर परमेश्वर की आराधना करते हैं । (भजन 51:17; रोमियों 12:1,2, 15:16; याकूब 5:20)
बाइबिल में पहली बार "आराधना" (Worship) का उल्लेख तब मिलता है जब इब्राहीम अपने बेटे इसहाक को बलि चढ़ाने के लिए ले गया था । इब्राहीम ने नौकरों से कहा कि वे आराधना (दंडवत) करने के लिए पहाड़ पर जा रहे है । जब इसहाक ने आराधना (worship) के बारे में सुना, तब उस ने अपने पिता से पूछा, तलवार और आग तो हमारे पास है, परन्तु बलिदान के लिथे पशु कहां है (उत्पत्ति 22:5-7)? एक बालक के रूप में भी, वह जानता था कि आराधना के लिए तलवार, आग और एक जानवर की बलि की आवश्यकता होती है । मूसा के तम्बू में, याजकों को आराधना के लिए एक तलवार, आग की वेदी और बलि देने के लिए एक निर्दोष जानवर की आवश्यकता होती थी ।
पेन्तेकुस्त के दिन पुराने नियम से नए नियम में भारी बदलाव:
खतना, सब्त, पशुबलि, पर्बों में मंदिर जाना, दसवांश, धार्मिक और नैतिक गुनाहों के लिए पथर्वाह करना, लेवी याजकों द्वारा वर्चस्व समाप्त हो गया और मूसा की सारी व्यवस्था भी प्रेम में बदल गयी, “क्योंकि जो दूसरे से प्रेम रखता है, उसने व्यवस्था पूरी कर दी” (रोमियो 13:8) साथ में मंदिर में आराधना की विधि भी पूरी तरह से बदल गयी:
- लोहे की तलवार, परमेश्वर के वचन में बदल गई; “तब (वचन के) सुननेवालों के हृदय छिद गए, और वे पतरस और शेष प्रेरितों से पूछने लगे, कि हे भाइयो, हम क्या करें”? (प्रेरितों 2:37; इफिसियों 6:17; इब्रानियों 4:12)
- लकड़ी की आग, पवित्र आत्मा की आग आत्मा में बदल गई; “और उन्हें आग की सी जीभें फटती हुई दिखाई दीं; और उन में से हर एक पर आ ठहरीं और वे सब पवित्र आत्मा से भर गए (प्रेरितों 2:1-3);
- और पशु बलि अब जीवित बलि के रूप में 3000 बपतिस्मा में बदल गई (प्रेरितों 2:41)। अब हम पशु बलि चढ़ाकर नहीं बल्कि गैर बिश्वासी को अर्पित करके परमेश्वर की आराधना करते हैं । (भजन संहिता 51:17)
दाऊद ने नाचकर और भजन गाकर परमेश्वर की स्तुति की और प्रचुर बलिदान चढ़ाकर परमेश्वर की आराधना की। (2शमूएल 6:12-14). सुलैमान ने 22,000 बैल और 120,000 भेड़ें भेंट करके परमेश्वर की आराधना की (2 इतिहास 7:5) । किसी को भी छूछे हाँथ पर्व मनाने के लिए मन्दिर आने की अनुमति नहीं थी । (व्यवस्थाविवरण 16:16)
गृह कलीसिया में भाषण नहीं लेकिन वार्तालाप होता हैं: पारंपरिक चर्चों में मात्र एक व्यक्ति द्वारा भाषण दिया जाता है जिसे सब लोग चुपचाप सुनते हैं जबकि गृह कलीसिया परमेश्वर का घराना है इसलिए सब लोग, क्या स्त्री, क्या पुरुष, क्या जवान, सब लोग अपनी अपनी राय प्रगट कर सकते हैं । गृह कलीसिया में मात्र पैसा पटाने से सदस्यता प्राप्त नहीं होती लेकिन आपसी रिश्ता गहरा होता है जिससे प्रोत्साहित होकर परिपक्वता जल्दी आती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अविश्वासी और खोजी भी आकर भाग ले सकते हैं । गैर बिश्वसियों से वार्तालाप करके उनसे सम्बन्ध बनाकर प्रभु में लाने की क्षमता भी बढ़ती है जिससे परमेश्वर के राज्य में आत्याधिक उन्नति होती है ।
बहुत से विश्वासी अपने चर्चों पर हमले के बाद भयभीत होकर सभाओं में जाना बंद कर देते हैं । जबकि गृह कलीसिया में यदि कोई ऐसी घटना होती है तो वे चुपचाप कहीं और मिलने लगते हैं ।
2. गृह कलीसिया एक व्यवहारिक नमूना है - पौलुस ने विश्वासियों को स्पष्ट रूप से निर्देश दिया कि कैसे ठीक से जीना है ।
“सो, अब तुम परदेशी और मुसाफिर नहीं रहे, परन्तु पवित्र लोगों के संगी स्वदेशी हो, और परमेश्वर के घराने के हो, जो प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं की नींव पर बना है, जिस की आधारशिला (नीवं) स्वयं मसीह यीशु है”। (इफिसियों 2:19-21)
“मैं इसी कारण उस पिता के साम्हने घुटने टेकता हूं, जिसने स्वर्ग और पृथ्वी पर, हर एक घराने का नाम रखा जाता है” (इफिसियों 3:14-15) । “इसलिए, प्यारे बच्चों की तरह परमेश्वर का अनुकरण करने वाले बनो” (इफिसियों 5:1)
“सबको शांति मिले और पिता और प्रभु यीशु की ओर से विश्वास सहित प्रेम हो” । (इफिसियों 6:23)
3. गृह कलीसिया में कोई बड़ा या छोटा नहीं होता है – बड़े चुर्चों में बड़े छोटे का भेदभाव होता है। बड़े लोगों को ज्यादा आदर और इज्जत मिलती है क्योनी वे ज्यादा पैसा देते हैं और छोटे लोग उपेक्षित महसूस करते हैं । उनकी संस्थाओं और कमेटी में भी प्रभावशाली लोगों का वर्चस्व होता है। इसके विपरीत घनिष्ठ पारिवारिक संगति के कारण गृह कलीसिया में वे प्रेम के बंधन में बंधे रहते हैं । यह परिवार जैसा रिश्ता सताव के दौरान मूल्यवान साबित होता है क्योंकि वे एक-दूसरे के साथ संकट के समय बिना संकोच के खड़े होते हैं। आज, बड़ी कलीसिया सभाएं ज्यादातर भीड़ के रूप में इकट्ठा होती हैं जिनके सदस्य एक-दूसरे को जानते तक नहीं हैं इसलिए उनमे बीच कोई पारस्परिक संबंध नहीं होता इसलिए दुःख और संकट के समय कोई साथ नहीं देता। ऐसे चुर्चों में गुटबाजी भी होती है जो एक दूसरे के विरुद्ध काम करते हैं जबकि कलिसिया का काम है कि, “लोगों को सिद्ध करे जो सेवा का काम करें जिस्स्से मसीह की देह उन्नति पाए” (इफिसियों 4:12,13)
4. गृह कलीसिया की संरचना ने कलीसिया में नए नए अगुवों के विकास को प्रोत्साहित करती है - यरूशलेम की कलीसिया के अगुए पतरस, जिसे प्रभू यीशु ने स्वयं प्रशिक्षित किया गया था उसने बरनबास को प्रशिक्षित करके अन्ताकिया की कलीसिया की स्थापना करने के लिए भेज दिया जहाँ उसने पौलुस को प्रशिक्षण और मार्गदर्शन दिया। फिर पौलुस ने तिमोथी, तीतुस, अक्विला, प्रिसिल्ला, लुदिया इत्यादि अनेक अगुवों तैयार किया जिन्होंने औरों को तैयार किया । इस प्रकार की प्रक्रिया से निरंतर योग्य अगुवे तैयार होते जाते हैं और कलीसिया निरंतर उन्नति करती जाती है और फैलती जाती है । इस तरह के नेतृत्व के सिद्धांत की बुनियाद प्रभु यीशु ने खुद डाली कि “जो मुझ पर विश्वास रखता है, ये काम जो मैं करता हूं वो भी करेगा, बरन इन से भी बड़े काम करेगा ।” और यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने कहा "वो बढ़े और मै घटू " (यूहन्ना 14:12; 3:30)।
इस तरह के प्रशीक्ष्ण के लिए बाइबिल कॉलेज जाने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि वहां केवल बाइबिल के ज्ञान पर प्राथमिकता दी जाती है लेकिन प्रभु के खेत से फसल काटने और खलियान में इकठ्ठा करने की कोई व्यवहारिक प्रशिक्षण नहीं मिलता ।
जो भी अपने घर को कलीसिया स्थापित कंरने के लिए खोलते हैं, स्वाभविक है कि वे उस गृह कलीसिया के अगुवे बन जाते हैं, “अक्विला और प्रिसका और उन के घर की कलीसिया को प्रभु में बहुत बहुत नमस्कार” (1 कुरिन्थियों 16:19) । “और जब लुदिया ने अपने घराने समेत बपतिस्मा लिया, तो उसने बिनती की, कि यदि तुम मुझे प्रभु की विश्वासिनी समझते हो, तो चलकर मेरे घर में रहो (प्रेरित 16:15)। गृह कलीसिया विश्वासियों को उनके वरदानो के मुताबिक कार्य करने के लिए प्रेरित करता है और सबको नेतृत्व कौशल विकसित करने का मौका देता है ।
प्रेरितिय शिक्षा: "जाओ और दूसरों के लिए आशीष का कारण बनो", जबकि पासबानी शिक्षा "आओ और आशीष पाओ" । प्रेरिताई शिक्षा इब्राहिम की आशीष पर आधारित है, “और जो तुझे आशीर्वाद दें, उन्हें मैं आशीष दूंगा; और जो तुझे कोसे, उसे मैं श्राप दूंगा; और भूमण्डल के सारे कुल तेरे द्वारा आशीष पाएंगे” (उत्पत्ति 12:3)। यानि कलिसिओं में जो शिक्षा दी जाती है उससे लोग उत्साहित होकर दूसरों के लिए आशीष का कारण बन सकें । यदि ऐसा नहीं हो रहा है तो, वह कलीसिया अपने प्रमुख कार्य से भटक गयी है ।
आज के परिदृश्य में, एक सामान्य पासबान के पास लगभग 100 विश्वासी होते हैं । वे सप्ताह में एक या दो बार संगती करते हैं । रविवार की बैठकों में गाना बजाना, वचन बाटना और और चंदा जमा करना होता है । इस तरह के औपचारिक आराधना के दौरान प्रेरिताई शिक्षा नहीं दी जाती है इसलिए एक औसत ईसाई आमतौर पर नामधारी बनकर रह जाता है जिसे प्रभुजी न्याय के दिन, “इसलिए कि तू गुनगुना है, और न ठंडा है और न गर्म, मैं तुझे अपने मुंह से उगलने पर हूं” । (प्रकाशित 3:16)
दुख की बात है कि कुछ लोग वचन में गहराई में बढ़ने की बजाय गीत संगीत का मनोरंजन लेना ज़्यादा पसंद करते हैं । अधिकांश चर्चों में, परमेश्वर के वचन का केवल लोगों को खुश करने के लिए प्रचार किया जाता है, गहराइ से शिक्षा नहीं दी जाती । ऐसे में वे शैतान की रणनीति को पहचानने में असमर्थ होते हैं जो पहिले चरवाहे को निशाना बनाता है फिर भेड़ों को तितर-बितर कर देता है । प्रभुजी की कलीसिया बर्बाद करने के लिए वो पूरी तरह से समर्पित है । यही कारण है कि उथली कलीसियायें आगे बढ़ने के बदले पतन के रास्ते पर हैं । प्रभुजी ने हिदायत दी कि, “उन को जाने दो; वे अन्धे मार्ग दिखानेवाले हैं: और अन्धा यदि अन्धे को मार्ग दिखाए, तो दोनों गड़हे में गिर पड़ेंगे (मत्ती 15:14)। गृह कलीसिया में वचन वार्तालाप से अध्ययन करने के कारण, सताव के समय भी दृढ़ता से खड़े रहते हैं ।
5. प्रारंभिक कलीसिया मसीह का अनुसरण करने का निर्णय पूरा परिवार मिलकर लेता है जैसे:
कुरनेलियुस का घराना - प्रेरितों के काम 10:1-2; लुदिया का घराना - प्रेरितों के काम 16:13-15; क्रिस्पस का घराना - प्रेरितों के काम 18:8; जेलर का घराना – (प्रेरितों के काम 16:31-34)
आज, कलीसिया मुख्य रूप से पूरे परिवार के बजाय व्यक्ति पर ध्यान केंद्रित करते हैं । जबकि पूरे परिवार यीशु को स्वीकार करते हैं, तो वे ऐसे परिवार को पूरे समाज को बदलने की क्षमता होती है ।
6. गृह कलीसिया मसीहत को फ़ैलाने का मूल मन्त्र:
गृह कलीसिया कहीं भी, कभी भी और कोई भी शुरू कर सकता है और किसी की आर्थिक या राजनीतिक स्थिति पर निर्भर नहीं होती । वे हर स्तिथि, संस्कृति और समाज में स्थापित किये जा सकते हैं । गृह कलीसिया के सदस्यों को शिष्य बनाने के लिए किसी भवन या प्रशीक्षित धर्मगुरु या संस्था की जरूरत नहीं होती है । जब भी पौलुस किसी शहर में सेवकाई का कार्य शुरू करता था तो उसकी प्राथमिकता परमेश्वर के राज्य के लिए एक घराना जीतना था कि वो उस नगर में सुसमाचार के प्रचार का केंद्र बन जाए जिससे उस स्थान में एक सच्ची स्थानीय और स्वदेशी कलीसिया का निर्माण हो जाये ।
7. गृह कलीसिया में पहुनाई और भलाई करने की प्रत्मिकता: प्रारंभिक कलीसिया के फूलने फलने और बढ़ने का एक प्रमुख कारण अबिश्वासी और नए विश्वासी दोनों का आदर सत्कार करना था । वे अपना घर, भोजन और संपत्ति सबके साथ साझा करते थे । प्रभु यीशु भी अतिथि सत्कार ग्रहण करते थे और उसका उपयोग शिक्षा देने के लिए किया करते थे (लूका 14:1-6)
- पौलुस ने यूरोप में गृह कलीसिया रोपण का आन्दोलन का आरम्भ लुदिया नाम की एक उदार और मेहमान नवाज़ी महिला की सहायता से किया । (प्रेरितों के काम 16:14-15)
- फिलेमोन को एक अतिथि कक्ष तैयार करने के लिए कहा गया । (फिलेमोन 1:22)
- कलीसिया में अतिथि आदर सत्कार एक प्राचीन नियुक्त होने के लिए एक आवश्यक गुण है । (तीतुस 1:8, 1 तीमुथियुस 5:10)
- यहाँ तक कि विधवाओं से भी आदर सत्कार का भाव रखने को कहा गया । (1 तीमुथियुस 5:10)
- पौलुस आदर सत्कार को एक आध्यात्मिक वरदान कहते हैं । (रोमियों 12:13)
- पतरस ने विश्वासियों को बिना कुड़कुड़ाए आदर सत्कार करने का निर्देश दिया । (1पतरस 4:9)
- अजनबि का आदर सत्कार करना न भूलना, क्योंकि इससे कितनों ने अनजाने में स्वर्गदूतों का सत्कार किया है।' (इब्रानियों 13:2)
आज हमारे अंदर आदर सत्कार की भावना का अभाव है । भारत में नए बिश्वसियों को बहुत गंभीर रूप से सताया जा रहा है, जिन्होंने अपने बिश्वास के लिए अपना जान और माल सब कुछ खो दिया है और अत्यंत कष्ट सहने के बाद भी उन्होंने यीशु मसीह को त्यागने से इनकार कर दिया । उनकी औरते विधवा हो गयी और उनके बच्चे अनाथ हो गए । आप और आपकी कलीसिया ऐसे प्रताड़ित लोगों के लिए प्रत्यक्ष रूप में क्या कर रही है या आप ने उनके लिए सिर्फ प्रार्थना कर रहे हैं । धर्म शास्त्र कहती है कि, “हमारे परमेश्वर और पिता के निकट शुद्ध और निर्मल भक्ति यह है, कि अनाथों ओर विधवाओं के क्लेश में उन की सुधि लें, और अपने आप को संसार से निष्कलंक रखें” (याकूब 1:27)। न्याय के दिन परमेश्वर को आप क्या जवाब देंगे? हो सकता है कि यह स्थिति एक दिन आपके ऊपर भी आ सकती है । यदि आप उनको मसीही परिवार के सदस्य मानते है तो उनकी दुर्दशा आपको जरूर कायल करेगी ।
प्रभु का महान आदेश - कलीसिया का कर्त्तव्य
महान आदेश का एकमात्र उद्देश्य शिष्य तैयार करना: - "इसलिए जाओ और सब जाती के लोगों को शिष्य बनाओ, उन्हें पित, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो और जो आज्ञा मैंने तुम्हें दी है उन्हें भी मानना सिखाओ और देखो मै जगत अंत तक तुम्हारे साथ हूँ" (मत्ती 28:19)
भौगोलिक महान आदेश - "जब पवित्र आत्मा तुम पर आएगा तब तुम सामर्थ प्राप्त करोगे और तुम यरूशलेम और यहूदिया, सामरिया और पृथ्वी के छोर तक मेरे गवाह होंगे ।" (प्रेरितों के काम 1:8)
प्रभु के महान आदेश के कार्य को पूरा करना कलीसिया अटल जनादेश है । केवल महान आदेश को पूरा करके ही हम प्रभुजी द्वारा की गई भविष्यवाणी को पूरा कर सकते हैं: “और राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में सब जातियों पर गवाही के रूप में प्रचारा जाएगा, और तब अन्त आ जाएगा। (मत्ती 24:14)
घर-घर में कलीसिया!
ताज्जुब की बात है कि मुट्ठी भर प्रेरितों और शिष्यों ने सारे दुनिया में बिना साधन और उच्च तकनीक के सुसमाचार को कैसे फैला दिया ? उनके पास कुछ ऐसा क्या था जो हमारे पास नहीं है? वे कौन सी रणनीतियाँ थीं जिनका उन्होंने उपयोग किया?
गृह कलीसिया का मुख्य रणनीति ये थी कि वे घर-घर जाकर सुसमाचार पर वार्तालाप करते और घर घर रोटी तोड़ते थे जिसमें वे अविश्वासी मित्रों को भी आमंत्रित किया करते थे । (प्रेरितों के काम 20:20)
“सप्ताह के पहले दिन (शनिवार शाम सब्त के दिन सूर्यास्त के बाद) हम एक साथ रोटी तोड़ने के लिए इकट्टे हुए तब पौलुस ने आधी रात तक लोगों से बात की” (प्रेरितों के काम 20:7)
“एक शांति के संतान को खोजो और जो कुछ तुम्हारे सामने रखा जाए उसे खाओ” (लूका 10:5-8)
"यदि सब भविष्यवाणी कर रहे हों और कोई अविश्वासी आ जाएँ तो उन्हें एहसास होगा कि वो पापी हैं, और आपके बातों वार्तालाप को सुनकर वे मान लेंगे कि परमेश्वर आपके मध्य है" (1 कुरिन्थियों 14:24)
प्रभु यीशु ने कहा, "मेरा घर 'सब जातियों के लिए प्रार्थना का घर होगा" (मरकुस 11:17) । आमंत्रित किया तो आपके विजाती मित्र चर्च में नहीं जाएंगे, लेकिन आपके घर आने की अधिक संभावना है ।
प्रभु भोज
फसह का पर्व जब इस्राएलियों ने मिस्र छोड़ दिया था तब आखिरी रात को अपने घरों के परिसर में पहली बार मनाया गया था । जब परिवार के मुखिया ने मेमने की बलि दी, तो वह परिवार का याजक बन गया; जब उसने मृत्यु की आत्मा को अपने घर में प्रवेश करने से रोकने के लिए मेमने के खून को चौखट पर छिड़क दिया, तो वह अपने परिवार का रक्षक बन गया, और जब उसने खाने के लिए मेमने के भुने हुए गोश्त की व्यवस्था किया, तो वह अपने परिवार का प्रबंधक बन गया ।
अपने अंतिम भोज के दौरान, एक ऊपरी कमरे में, प्रभू यीशु ने अपने शिष्यों को फसह का भोजन प्रदान किया जिसमें भुना हुआ मेमना, अखमीरी रोटी, कड़वा साग और दाखरस शामिल था । भोज खाने के बाद, वह उठे और अपने शिष्यों के पैर धोए और फिर रोटी ली और उसे अपने देह के प्रतीक के रूप में तोडा और प्याला को अपने खून के प्रतीक के रूप में बाटा । फसह का पर्ब कभी भी मंदिर या आराधनालय में नहीं मनाया जाता था बल्कि हमेशा घर पर मनाया जाता था । प्रभु भोज एक सम्पूर्ण भोजन था, न कि केवल एक पपड़ी और अंगूर के रस का एक घूंट ।
नए नियम में, घर-घर जाकर रोटी तोड़ना प्रभु भोज था जिसको सभी उपस्थित लोगों को परोसा जाता था, चाहे उन्होंने बपतिस्मा लिया हो या नहीं । संपन्न लोग अतिरिक्त भोजन लाते थे जिसे गरीबों के साथ खाते थे । प्रभुभोज के दौरान अपने शिष्यों के पैर धोकर प्रभुजी ने नम्रता का प्रत्यक्ष उदहारण दिया और अपने शिष्यों को एक-दूसरे के पैर धोने की आज्ञा दी थी । भोजन के बाद खोए हुए लोगों को प्रभु यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान की खुशखबरी का प्रचार प्रसार न करना अयोग्य रूप से प्रभु भोज लेना था ।
"उनके पैर कितने सुहावने हैं जो शांति का सुसमाचार प्रचार करते और अच्छी बातों का शुभ समाचार सुनाते हैं!" (1 कुरिन्थियों 11:20-34; यूहन्ना 13:3-17; निर्गमन 12:3,7,8, रोमियों 10:15)
प्रारंभिक कलीसिया का तेजी से विकास और गुणन
यथार्थ में पेंतिकोस्त के दिन आकाश के नीचे की हर एक जाति के लोगों ने यरूशलेम में अपनी अपनी मात्र भाषा में सुना । प्रारंभिक कलीसिया के विकास के आधार पर नए नियम की पुस्तकों को छह खंडों में विभाजित किया जा सकता है । प्रेरितों के काम की पुस्तक में प्रारंभिक कलीसिया की स्थापना और विकास को बेहतर ढंग से समझने में हमारी मदद करने के लिए नीचे संक्षिप्त सारांश दिए गए हैं । पवित्र आत्मा के इस शक्तिशाली आंदोलन की दिलचस्प बात यह है कि प्रायः ये सभी गृह कलिसियाएँ थीं ।
यरूशलेम की कलीसिया: (प्रेरितों 1:1-6:7)
इस खंड में, हम सीखते हैं कि पेंतीकोस्ट के दिन पवित्र आत्मा मुख्य रूप से यहूदी लोगों पर उतरा, और कलीसिया युग आरम्भ हुआ । यह प्रारंभिक चिंगारी थी जहां से यहूदिया, सामरिया और पृथ्वी के छोर तक आग फैल गई । 3000 लोगों का बपतिस्मा (प्रेरितों के काम 2:41) फिर और 5000 जुड़ गए (प्रेरित 4:4) फिर शिष्यों की संख्या में बेशुमार उन्नति (प्रेरित 6:1,7) हमें दर्शाते हैं कि कलीसिया का विकास कितनी तेजी से हुआ ।
नीचे उल्लेखित दो घराने सभी विश्वासियों के एकत्र होने के लिए पर्याप्त नहीं थे । इसलिए, यरूशलेम में निश्चित रूप से अनेक गृह कलिसियाएँ थीं ।
- प्रभु यीशु को स्वर्ग में चढ़ने के बाद 120 लोग जिसमे औरतें भी शामिल थीं, प्रार्थना और संगति करने के लिए एकत्र हुए थे । यह ऊपरी कमरा कलीसिया के रूप में कार्य करता था । (प्रेरित 1:12-15)
- कई विश्वासी एक साथ प्रार्थना करने के लिए मरकुस की माता मरियम के घर पर एकत्र हुए थे । यह वही घर है जहां पतरस जेल से छूटने के बाद लौटा था । (प्रेरितों के काम 12:10-17)
यहूदिया और सामरिया की कलीसिया: (प्रेरितों 6:8-9:31)
यह दूसरा खंड है जिसमें पवित्र आत्मा के शक्तिशाली कार्य के कारण येरूशलेम के नवजात कलीसिया के खिलाफ सताव शुरू हो जाता है । सताव ने कलीसिया को तितर-बितर कर दिया, जिससे बिश्वसियों को सामरिया और अन्य स्थानों पर भागना पड़ा । इस दौरान अन्यजातियों का भी यहूदी कलीसिया के साथ मिलना जुलना शुरू हो गया ।
- पतरस की मुलाकात कुर्नेलिउस नाम के एक रोमन सूबेदार से होती है, जो सैनिकों का कप्तान था । एक दर्शन प्राप्त करने के बाद, पतरस ने समझा कि सुसमाचार अन्य जातियों के लिए भी है । पतरस के भाषण ख़तम होने के पहिले ही कुर्नेलिउस के घराने और सैनिकों के ऊपर पवित्र आत्मा उतर जाती है । पतरस कुछ दिनों के लिए कुरनेलियुस के परिवार के साथ रहकर संगती करता है जिसका येरूशलेम वापस आने के बाद यहूदियों ने कड़ा विरोध जताया क्योंकि वे सोचते थे कि मसीहत सिर्फ यहूदियों के लिए है और अन्य जाती के लोग बिना यहूदी बने और खतना करवाए बगैर, मसीही नहीं हो सकते इसलिए उनके साथ संगती और भोजन करने से वे प्रदूषित हो जाते हैं । (प्रेरित 10; 11:1-3)
- फिलिप, टेबल साफ करने वाला, सामरिया जाकर सुसमाचार का प्रचार किया जिसके परिणाम स्वरूप बीमार ठीक हुए, दुष्ट आत्माएं चिल्लाते हुए निकल भागी और सैकड़ों लोगों ने बपतिस्मा लिया । फिलिप मात्र एक प्रचारक था जो सिर्फ नवधर्मी बनाता था, शिष्य नहीं बनाता था और न कलीसिया स्थापित करता था इसलिए बाद में पतरस और यूहन्ना प्रेरित गए और शिक्षा और सामर्थिकरण के बाद सामरिया की कलीसिया की स्थापना की । (प्रेरितों 8:4-17)
अफ़्रीका की कलीसिया: (प्रेरितों 8:26-40; 18:24-28)
फिलिप ने इथियोपिया के वित्त मंत्री को भी शिक्षा दिया और बपतिस्मा दिया । हम नहीं जानते कि उसने क्या किया, लेकिन इथियोपिया मसीहत को ग्रहण करने वाला सबसे पहिला देश बना । जल्द ही अफ्रीका के मिस्र के सिकन्दरिया का एक प्रतिभाशाली बाइबिल विद्वान अपुल्लोस एक लोकप्रिय बाइबिल शिक्षक बन गया, जहां पौलुस और अन्य लोग कलीसिया स्थापित कर रहे थे ।
अन्ताकिया की कलीसिया: (प्रेरितों 9:32-12:24)
इस अवधि में, यहूदिया के कलीसिया के खिलाफ अधिक सताव शुरू हो गया जिसके परिणामस्वरूप अन्ताकिया अन्य जातियों में मसीहत के विस्तार का केंद्र बन गया । अब तक, पतरस ने एक प्रमुख नेतृत्वकारी भूमिका निभाई थी, लेकिन पवित्र आत्मा के माध्यम से, पौलुस अन्य जातियों के मध्य सुसमाचार फैलाने का नेत्रित्व करने लगा ।
- अन्ताकिया की कलीसिया में शिक्षक और भविष्यवक्ता थे । इसमें मनाहेम जैसे समृद्ध सदस्य भी थे जिनका पालन-पोषण हेरोदेस राजा के साथ हुआ था । (प्रेरितों के काम 13:1)
- बरनबास और शाऊल एक साल तक अन्ताकिया में कलीसिया को गहराइ से शिक्षा दी । नतीजन अन्ताकिया में सबसे पहले अन्य जातियों के शिष्यों को मसीही कहा गया था । (प्रेरितों के काम 11:26)
एशिया माइनर (तुर्की) की कलीसिया: (प्रेरितों के काम 12:25-16:5)
यहां हम अन्ताकिया की कलीसिया से पौलुस, बनबास, मरकुस और सिलास इत्यादि जैसे दिग्गज अगुवों को एशिया माइनर (तुर्की) में कलीसिया रोपण का आन्दोलन शुरू करने के लिए भेज दिए जाते हैं । उन्होंने तर्सुस. पिसिदिया, त्रोआस, एफेसुस, लुस्त्रा, मिलेतुस, दरबे और इकोनियम जैसे नगरों में शिष्य बनाये और कलिसियाएँ स्थपित की ।
- पौलुस एशिया की कलिस्याओं की तरफ में कुरुन्थ की घरेलू कलीसिया को शुभकामनाएँ भेजा था जिसका नेतृत्व एक्विला और प्रिस्का कर रहे थे । (1 कुरुन्थी 16:19)
- निम्फा द्वारा संचालित कुलुस्सियों और लाओदिसिया के गृह कलिस्याओं का भी उल्लेख है । (कुलुस्सियों 4:15)
एजियन क्षेत्र (यूरोप) में कलीसिया: (प्रेरितों के काम 16:6-19:20)
यह प्रेरितों के काम की पुस्तक का पाँचवाँ खंड है, जहाँ हम सुसमाचार को एजियन तटों, यानि यूनान और इटली तक पहुँचते हुए देखते हैं । हम देखते हैं कि परमेश्वर का वचन लगातार प्रबल होता जा रहा है और पवित्र आत्मा प्रेरितों को सुसमाचार का प्रचार करने और प्रत्येक कलीसिया में प्राचीनों को नियुक्त करने का निर्देश दे रहा है । (तीतुस 1:5)
- पौलुस को सुसमाचार का प्रचार करते हुए सुनने के बाद लुदिया ने अपना जीवन प्रभु यीशु को समर्पित कर दिया, जिससे वह यूरोप में मसीही धर्म स्वीकार करने वाली पहली महिला बन गयी, फिर उसने विश्वासियों के लिए अपना घर खोल दिया, जिससे यह यूरोप में स्थापित होने वाला पहला गृह कलीसिया बन गया । (प्रेरितों 16:14,15)
- संभवतः जेसन के घर पर एक गृह कलीसिया आयोजित किया गया था । (प्रेरितों 17:7)
रोमन साम्राज्य की कलीसिया: (प्रेरितों 19:21-28:31)
इस अंतिम भाग में हम पौलुस को इफिसुस में प्राचीन से बिदाई लेकर वापस यरूशलेम जाता हैं, जहां वह गिरफ्तार हो गया और कैसर से न्याय करवाने उसे रोम भेजा गया, जहां पवित्र आत्मा उसकी क़ुरबानी तक परमेश्वर के राज्य का विस्तार करने के लिए शक्तिशाली रूप से उसका उपयोग करता है । दो साल तक, पौलुस अपने किराए के परिसर में एक गृह कलीसिया चलाया, और जो भी उससे मिलने आता था, उसका स्वागत करता था, शिक्षा देता था और सुसमाचार का प्रचार करता था (प्रेरितों 28:30,31) । रोमन सरकार द्वारा 300 साल तक के कड़े से कड़े विरोध के बावजूद रोम का महाराजा कोंन्सटेनटाईन ने स्वयं मसीही धर्म को ग्रहण कर लिया और रोम पूरे दुनिया का मसीही केंद्र बन गया ।
बाइबिल पर आधारित प्रार्थनाएँ
“इसलिये मैं शिक्षा देता हूं, कि सब से पहिले बिनती, प्रार्थना, मध्यस्तथा, और धन्यवाद सब मनुष्यों के लिये किया जाए; राजाओं के लिये, और उन सब के लिये जो अधिकारी हैं; कि हम पूरी भक्ति और ईमानदारी से एक शांत और शांतिपूर्ण जीवन जी सकें । क्योंकि यह हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर की दृष्टि में अच्छा और ग्रहण करने योग्य है; जिसके द्वारा सभी मनुष्यों का उद्धार होगा, और वे सत्य का ज्ञान प्राप्त करेंगे” (1 तीमुथियुस 2:1-4)
जब यहूदी मंदिर में प्रार्थना करते थे, तो वहाँ कम से कम पाँच कदम थे:
1. टेकिंन्नाह (बिनती) – याजक बलि के पशु के सिर पर हाथ रखकर पापों को स्वीकार करता था और परमेश्वर से उसके बलिदान को स्वीकार करने और उसके पापों को क्षमा करने की बिनती करता था ।
2. टेफिलाह (प्रार्थना = आत्म-परिक्षण) – वेदी पर बलिदान चढ़ाने के बाद, याजक हौज के पानी से अपने हाथ, पैर और अपना चेहरा धोता था और खुद का मूल्यांकन करता था कि कुछ गलत काम तो नहीं कर रहा है क्योंकि वह वेदी की आग के साथ पवित्र स्थान में प्रवेश करने वाला होता था । यदि वो कोई गलती करता है तो हारून के बेटे नदाब और अबिहू, जिन्होंने बिना बलिदान चढ़ाए आग के साथ पवित्र स्थान में प्रवेश किया था और वे तुरंत भस्म हो गए थे । (लैव्यावास्था 10:1-3)
3. बक्कादोश (मध्यस्थता) - याजक पवित्र स्थान के अंदर स्वर्ण वेदी पर आग के अंगार पर बहुत सा धूप डालता था । धूप कई देशों के मसालों से बनाई जाती थी । जैसे ही धुआं परदे के माध्यम से अति पवित्र स्थान में प्रवेश करता था जहां परमेश्वर की आत्मा वाचा के सन्दूक पर वास करती थी, याजक अपने हांथों को उठाकर सब देशों के लिए मध्यस्थता की प्रार्थना करता था ।
4. होदयाह (धन्यवाद) - जब बाहरी आंगन में खड़े श्रद्धालू तम्बू की छत से धुआं निकलता देखते थे तो वे अपने हांथों को ऊपर उठा कर उनकी भेंट स्वीकार करने के लिए परमेश्वर को धन्यवाद देते थे ।
5. परमेश्वर की प्रतिक्रिया - जब सुलैमान ने हजारों पशुओं की बलि चढ़ाकर परमेश्वर से प्रार्थना किया तो परमेश्वर ने कहा, “यदि मेरी प्रजा के लोग, जो मेरे कहलाते हैं, दीन होकर प्रार्थना करें, और मेरे दर्शन के खोजी होकर अपने बुरे चाल से फिरें, तब मैं स्वर्ग से उनकी प्रार्थना को सुनूंगा, और उनका पाप क्षमा करूंगा, और उनके देश को ज्यों का त्यों कर दूंगा (अदन की बारी में बदल दूंगा) । (2 इतिहास 7:5,14)
यदि हम ऊपर बताए अनुसार प्रार्थना करें, स्वयं को और फिर खोए हुएं को जीवित बलिदान के रूप में अर्पित करें, तो परमेश्वर हमारे देश को भी अदन की बारी में बदल देगा । (रोमियों 12:1,2; याकूब 5:20)
तो, जब प्रभु यीशु प्रार्थना करते थे तो क्या वे परमेश्वर से कुछ मांगते थे ? जी नहीं! त्रिएकता का हिस्सा होने के नाते, वे अपने पिता से "डेवेन" (वार्तालाप) करते थे ।
यदि आपकी प्रार्थना किसी खोई हुई आत्मा को जीवित बलिदान के रूप में अर्पित करके पूरी की जाती है तो आपकी प्रार्थना सुने जाने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है ।
“और एक स्वर्गदूत सोने का धूपदान लिये हुए आकर वेदी पर खड़ा हुआ और उसे बहुत सी धूप दी गई, कि वह उसे सब पवित्र लोगों की प्रार्थनाओं के साथ सिंहासन के साम्हने सोने की वेदी पर चढ़ाए । धूप का धुआं, जो पवित्र लोगों की प्रार्थनाओं के साथ परमेश्वर के साम्हने चढ़ गया”(प्रकाशितवाक्य 8:3,4)
इससे पहले कि शांति के संतान को पाया जा सके और उसको शिष्य बनाया जा सके और उसके घर में एक कलीसिया स्थापित की जा सके, बलवंत (दुष्ट आत्माओं) को बांधने और नर्क के द्वारों को ध्वस्त करने के लिए प्रार्थना भ्रमण एक महत्वपूर्ण रणनीति है । (मत्ती 12:28-30; लूका 10:2,5)
वर्तमान में गृह कलीसिया की भूमिका
"परन्तु जहाँ तक मेरी और मेरे घराने की बात है, हम यहोवा की सेवा करेंगे" (यहोशू 24:15)
हमें बैपटिस्ट, लूथरन, प्रेस्बिटेरियन, मेथोडिस्ट, अंग्लिकन, रूढ़िवादी या पेंटेकोस्टल बनने के लिए नहीं बुलाया गया है, बल्कि परमेश्वर के पुत्र, राजदूत, शिष्य-निर्माता, शाही याजक, प्रेरित, पैगंबर, मनुष्यों के मछुआरे, बीज बोने वाले, फसल काटने वाले, फल लाने वाले इत्यादि ।
यहाँ पर विचार करने योग्य बात है । आरंभिक कलीसिया का कोई नाम नहीं था, कोई संप्रदाय नहीं था, कोई निश्चित पता नहीं था, कोई भवन या भक्ति करने का नमूना नहीं था, कोई संडे स्कूल नहीं था, कोई माइक और लाउडस्पीकर नहीं था, कोई उच्च तकनीक वाले संगीत वाद्ययंत्र नहीं थे, परिवहन नहीं था, कोई चोगाधारी नहीं था । कोई भी बपतिस्मा, और प्रभुभोज दे सकता था ।
लेकिन उनके पास पुराना नियम, यीशु मसीह की अमूल्य और अनमोल शिक्षाएँ और सबसे महत्वपूर्ण, पवित्र आत्मा की सामर्थ थी!
वे बिश्वसियों का एक साधारण समूह थे जो आस्था और सादगी से असाधारण जीवन जीते थे । वे एक मिशन पर थे । उनका केवल एक ही सामान्य दृष्टिकोण और लक्ष्य था – प्रभु यीशु मसीह एक मात्र उद्धारकर्ता के बारे में लोगों को बताना और को उसको ग्रहण करते थे उन्हें परिपक्व करके भेजना ।
प्रारंभिक कलीसिया लगभग विशेष रूप से घरों में मिलते थी और अब तक की सबसे बड़ी गुणात्मक वृद्धि उसी समय के दौरान हुई थी । भले ही उनके पास वह सुविधाएँ नहीं थे जो आज अधिकांश चर्चों के पास है, लेकिन फिर भी उनके पास पवित्र आत्मा की सामर्थ थी जिससे आध्यात्मिक और संख्यात्मक विकास होता था - ठीक वही जो आज हमारे परंपरागत चर्चों के पास नहीं है ।
प्रारंभिक कलीसिया संप्रदायों, संरचनाओं, जमीन, संपत्तियों, बैंक खातों आदि के बंधन में नहीं थीं । वे पवित्र आत्मा के उपयोग के लिए निःशुल्क उपलब्ध थे ।
परमेश्वर का वचन कलीसिया को परमेश्वर का घर या परमेश्वर का परिवार बताता है । परमेश्वर संबंधपरक है और यह चाहता है कि हमारे पास ऐसे समृद्ध रिश्ते हों जो उसके राज्य के विस्तार में सहायता करें । घर से शुरुआत करने के लिए इससे बेहतर जगह क्या हो सकती है? वास्तव में, एक परिवार जो यीशु मसीह के प्रति निष्ठा रखता है, वह कलीसिया उसकी दुल्हन है ।
एक दुल्हन का प्रमुख काम बच्चे पैदा करना है जिससे परिवार में निरंतर वृद्धि होती रहे । इसी तरह, कलीसिया, मसीह की दुल्हन, को बंजर नहीं रहना चाहिए बल्कि पृथ्वी के छोर तक पहुंचने के लिए बहुतायत से आत्मिक बच्चे पैदा करना चाहिए ।
“इस प्रकार कलीसियाएँ विश्वास में दृढ़ होती गईं, और उनकी संख्या प्रतिदिन बढ़ती गई” (प्रेरितों 16:5) इस कलीसिया में क्वालिटी और क्वांटिटी दोनों थी ।
अपने परिवार और दोस्तों को नियमित रूप से आराधना, प्रार्थना और परमेश्वर के वचन पर ध्यान करने के लिए इकट्ठा करना कोई आसान काम नहीं है क्योंकि ये आप के जोश और जुनून पर निर्भर करता है ।
पवित्र आत्मा हमें परमेश्वर के दिल की धड़कन को सुनने में मदद करता है । आरंभिक कलीसिया की तरह, हमारी निर्भरता केवल पवित्र आत्मा और परमेश्वर के वचन पर होनी चाहिए । अनौपचारिक व्यवस्था, घनिष्ठ संगति, और दिल से दिल मिलाकर वार्तालाप और सबको नतृत्व करने का मौका जो एक घरेलू कलीसिया प्रदान करता है वो परंपरागत कलीसिया में संभव नहीं है । यहाँ पर सभी सदस्यों को अपने अपने वरदानों के मुताबिक भाग लेने का मौका मिलता है जिससे नए बिश्वासी बहुत जल्दी बिश्वास में मज़बूत तो हो ही जाते हैं लेकिन उन्हें विजातियों को भी प्रभु में लाने की लालसा और क्षमता बढ़ जाती है । वे दिलेरी से विरोधियों को मुंहतोड़ जवाब दे सकतें हैं जो परिपक्व मसीहत की असली पहचान है । (तीतुस 1:9)
गृह कलीसिया, बाइबिल पर आधारित होने के कारण, हमें पड़ोसियों और अन्य समुदायों के मित्रों का आसानी से स्वागत करने में मदद करता है । यह दृष्टिकोण हमें बेहतर तरीके से पहुंचने, उनसे प्यार करने, उन्हें शामिल करने और उनके साथ प्रभु यीशु मसीह के प्यार को समझाने में करने में मदद करता है।
हम प्रभु यीशु की कलीसिया हैं! और कलीसिया यीशु मसीह की देह है । जब सबसे कमजोर वर्ग के, असहायों और जवानों को सम्मान और प्यार मिलता है तो वे बहुत प्रभावित हो जाते हैं । हम जहां भी जाएं, जो कुछ भी करें, हम अपने रोजमर्रा के जीवन में मसीह का अनुकरण कर सकते हैं । यह भी ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है कि प्रारंभिक कलीसिया को भी उसी अवधि के दौरान जबरदस्त सताव का सामना करना पड़ा था । हालाँकि, इससे उन स्थानों पर बड़े पैमाने पर विकास हुआ, जहां पहले कभी परमेश्वर के प्रेम की खुशखबरी का प्रचार नहीं किया गया था । सताव से बिश्वासी, भवन से निकल कर रिश्तेदारों के बीच चले जाते है जहाँ वे अपनी गवाही से नए शिष्य और कलीसिया निर्मित करतें हैं ।
विभिन्न प्रकार की कलिसियाएँ
1. पुरानी परंपराओं पर आधारित: वे अपने अतीत के गौरव पर जीते हैं । अक्सर इनका नाम उनके संस्थापक या किसी उदार दान दाता के नाम पर रखा जाता है । परमेश्वर के राज्य को आगे बढ़ाने में उनका कोई योगदान नहीं होता । अगर कोई वृद्धि होती है तो वो बच्चों की पैदाईश से होती है । उन्हें कोई भी बदलाव पसंद नहीं है । ये पतन के रास्ते हैं और बड़े बड़े भवन खाली पड़े हैं जहाँ थोड़े बहुत बूढ़े लोग संगती के लिए इकठ्ठा होते हैं ।
2. रख-रखाव कलीसिया - वे ऐसे लोगों का एक समूह हैं जो अपनी संगति का आनंद लेते हैं और खुद पर ध्यान केंद्रित करते हैं और परवाह नहीं करते हैं कि बाकी दुनिया के खोए हुए लोगों के साथ क्या होगा । कोई भी वृद्धि जैविक या स्थानांतरण या भेड़ चोरी द्वारा होती है । चर्च की जमीन बेचना, कोर्ट कचहरी और रजनीति में और चर्च समितियों में पदाधिकारी बनने पर ज्यादा ध्यान रहता है । परमेश्वर के राज्य को आगे बढ़ाने और फ़ैलाने में उनका कोई ख़ास योगदान नहीं होता ।
3. आंदोलन कलीसिया - उनमें पृथ्वी पर परमेश्वर के राज्य को आगे बढ़ाने का जोश और जुनून होता है । वे हमेशा उन अवसरों की तलाश में रहते हैं जहां प्रभु का नाम नहीं है वहां पहुंचकर शिष्य-निर्माण और कलीसिया रोपण आंदोलन को प्रज्वलित करने के लिए हमेशा तैयार रहतें है । इसके लिए उन्हें अक्सर प्रताड़ित किया जाता है, लेकिन वे कीमत सहर्ष स्वीकार करते हैं । सारा विकास खोए हुए लोगों के परिवर्तन से होता है। इस कलीसिया में प्रायः सभी बिश्वासी नए होतें हैं जो विभिन्न जातियों से आतें हैं और अपनी गवाही, अपने परिवार और मित्रों को बाट्तें रहतें हैं ।
मसीही समुदाय में वर्गीकरण
सी 1. एक विदेशी भाषा और एक बाहरी नेता के साथ पूरी तरह से पश्चिमी नमूने का चर्च होता है जिसमे परमेश्वर के राज्य में कोई उन्नति नहीं होती ।
सी 2. उपरोक्त के समान लेकिन स्थानीय भाषा का उपयोग करते हैं । भेड़ चोरी से विकास होता हैं ताकि धार्मिक दूकान चलते रहे।
सी 3. आराधना और संगीत में स्वदेशी होता है। यहाँ भी चंदा और दसवांश पर जोर दिया जाता है ताकि रोजी रोटी पकती रहे ।
सी 4. एक अनौपचारिक कलीसिया है जो घरों और अन्य स्थानों पर मिलती है । यह सांस्कृतिक रूप से उचित है । स्थानीय नेतृत्व. और विजातियों के रूपांतरण के द्वारा विकसित होती है और तेजी से फैलती है ।
सी 5. इनसाइडर कलीसिया - इसमें गुप्त विश्वासी होते हैं, जो अक्सर गैर-बपतिस्मा वाले होते हैं, जो परिवार या समुदाय से सताव के डर के कारण खुलकर नहीं आते। इनके अस्तित्व के बारे में कोई ज्यादा जानकारी नहीं है लेकिन मुसलमानों और अन्य कट्टर समुदायों के बीच यह तेजी से बढ़ रही है । आशा है कि एक दिन ये विस्फोटक से खुलकर अपनी गवाही देंगे।
“मेरे लोग ज्ञान के अभाव में नष्ट हो गए हैं। क्योंकि तुमने ज्ञान को अस्वीकार कर दिया है, इसलिए मैं भी तुम्हें अपना याजक बनने से अस्वीकार कर दूंगा । चूँकि तू अपने परमेश्वर की व्यवस्था को भूल गया है, मैं तेरे पुत्रों को भी भूल जाऊँगा” (होशे 4:6) परिवार और कलीसिया में बाइबल की सच्ची शिक्षा की उपेक्षा के कारण, अगली पीढ़ी नष्ट हो रही है ।
“क्या तुम्हें पता नहीं कि तुम परमेश्वर का मन्दिर हो, और पवित्र आत्मा तुम में वास करता है? (1 कुरिन्थियों 3:16)
धरती पर स्वर्ग लाना
गृह कलीसिया का नेतृत्व कौन कर सकता है?
एक घरेलू कलीसिया को नेतृत्व करने के लिए किसी प्रशिक्षित धर्मशास्त्री की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि "बुद्धिमानों को शर्मिंदा करने के लिए परमेश्वर ने दुनिया में मूर्खों को चुन लिया है; परमेश्वर ने बुद्धिमानों और बलवानों को लज्जित करने के लिये संसार में जो कमज़ोर है उसे चुन लिया है” (1 कुरिन्थियों 1:26,27)
बाइबिल में विभिन्न स्तर के मसीही होते हैं जो वरदानों के मुताबिक काम करते हैं । (रोमियों 12:3)
1. जिन्होंने ने अभी-अभी उद्धार पाया हैं: चरित्रहीन सामरी महिला, महसूल लेने वाला जक्कई, गदारा का दुष्ट आत्माओं से ग्रसित आदमी की तरह । वे कलीसिया में चुपचाप नहीं बैठते हैं बल्कि तुरंत गवाही देकर आत्माओं को जीतना शुरू कर देते हैं जैसे सामरी स्त्री ने तुरंत अपना पूरा गाँव प्रभुजी के चरणों पर लाकर खड़ा कर दिया था । (प्रेरितों 2:47)
2. विश्वासी: वे पवित्र आत्मा द्वारा सशक्त किये लोग हैं जो दुष्ट आत्माओं को निकालते, बीमारों की चंगाई के लिए दुआ करते और बपतिस्मा देते हैं, लेकिन प्रचारक फिलिप की तरह, शिष्य नहीं बनाते । (मरकुस 16:17-18)
3. शिष्य: वे प्रचुर मात्रा में फल लाकर परमेश्वर की महिमा करते हैं । वे प्रभु यीशु की आज्ञा मानकर शिष्य बनाना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है, यहां तक कि अपने परिवारों और समुदाय द्वारा सताव के बावजूद भी । (यूहन्ना 15:8; 8:31; मत्ती 10:38)
4. वरदानी सेवक: प्रभु यीशु ने अपने कलीसिया को प्रेरितों, भविष्यवक्ताओं, प्रचारकों, चरवाहों और शिक्षकों जैसे पांच प्रकार के वरदानी सेवकों को नियुक्त किया है:
- प्रेरित शिष्य बनाते और कलीसिया स्थापित करते हैं जहाँ प्रभुजी का कोई अस्तित्व नहीं है ।
- भविष्यवक्ता मसीहा के आने के बारे में भविष्यवाणी करते थे, लेकिन नए नियम के भविष्यवक्ता कलीसिया की उन्नति, शिक्षा और सांत्वना की भविष्यवाणी करते हैं (1 कुरिन्थियों 14:3)।
- प्रचारक अविश्वासियों को खोए हुए लोगों को सुसमाचार का प्रचार करते हैं ।
- चरवाहे प्रतिदिन भेड़ों को मन्ना खिलाते हैं ।
- शिक्षक धर्मग्रंथ को गहराई से सिखाते हैं, जो उपदेश, फटकार, सुधार, धार्मिकता की शिक्षा के लिए लाभदायक है ताकि परमेश्वर का आदमी सिद्ध हो जाएँ, और सभी अच्छे कार्यों के लिए पूरी तरह तैयार हो सके (2 तीमुथियुस 3:16,17) । साथ में वे संतों को सेवकाई के काम के लिए तैयार करते हैं ताकि कलीसिया की उन्नति हो सके । (इफिसियों 4:11,12)
5. आध्यात्मिक माता पिता - पौलुस कहते हैं कि, “आपके पास हजारों प्रशिक्षक हो सकते हैं, लेकिन मैं आपका आध्यात्मिक पिता हूं क्योंकि एक पिता की तरह, मैंने आपको जन्म दिया और आपका पालन-पोषण किया” (1 कुरिन्थियों 4:15)
धर्मशास्त्री केवल धर्मशास्त्र पढ़ा सकते हैं, अन्यजातियों में से शिष्य बनाने का कौशल नहीं सिखा सकते जो केवल वही सिखा सकतें है जो प्रभु के खेत खलियान में फसल काटने और इकठ्ठा करने का तजुर्बा रखतें हैं । प्रत्येक कलीसिया का नेतृत्व एक आध्यात्मिक पिता या माँता द्वारा किया जाता है । ये कोई मिनी-चर्च नहीं है जहां रीति रिवाजी तरह से चलाया जाता है याने यहाँ गीत संगीत, भाषण, चंदा और 6 दिन की छुट्टी को महत्वता नहीं दी जाती लेकिन इसका लक्ष्य नए बिश्वसियों को शिष्य बनाने और कलिस्सिया रोपण का प्रशिक्षण केंद्र होता है । विनम्र आध्यात्मिक माताओं और पिताओं के नेतृत्व में घरों में कलीसिया न केवल वर्तमान में लेकिन भविष्य की भी जरूरत है!
गृह कलीसिया कैसे संचालित होती है
प्रचार और शिक्षा में अंतर है । प्रचार मंच से नहीं दिया जाता क्योंकि प्रचार का अर्थ पापियों को उद्धार के लिए प्रभु यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान की खुशखबरी सुनाना है जो सभा के सभी सदस्यों को मालूम है, जबकि शिक्षण का अर्थ सिर्फ धर्मशास्त्र का ज्ञान देना नहीं, बल्कि उन्हें प्रशिक्षण देकर मनुष्यों का मछुआरा बनाने के लिए कौशल प्रदान करना है । प्रचार एक व्यक्ति को परिवर्तित करता है लेकिन शिक्षण एक परिवर्तित व्यक्ति को शिष्य बनाने की क्षमता प्रदान करता है ।
घरेलू कलीसिया शुरू करना सरल है । उनके पास सेवकाई के लिए सारे साधन उपलब्ध हैं जैसे मकान, बैठने के लिए दरी या कुर्सियां, खाना पकाने के लिए रसोई इत्यादि । घरेलू कलीसिया में परिवार जैसा माहौल होता है । गृह कलीसिया में लोग परिवार के सामान रिश्ते कायम करते हैं जहाँ उडाऊ पुत्र के सामान भटके हुए लोगों को घर वापसी करने का मौका मिलता है और एक आध्यात्मिक परिवार स्थापित हो जाता है जहाँ नए विश्वासियों का पालन-पोषण आध्यात्मिक रिश्तेदार करते हैं । एक परिवार वो है जहां बच्चे पैदा होते हैं, पाले जाते हैं, शिक्षित और प्रशीक्षित होते हैं और अपना परिवार शुरू करने के लिए बाहर भेजे जाते हैं, ठीक उसी तरह, गृह कलीसिया एक ऐसा केंद्र है जहां शिष्य बनाए जाते हैं, प्रशीक्षित किए जाते हैं और अपना अध्यात्मिक परिवार स्थापन के लिए भेज दिये जाते हैं ।
डिस्कवरी बाइबल अध्ययन (डीबीएस) में आप वचन का हिस्सा का चयन करते हैं और उस पर एक साथ मिलकर चर्चा करते हैं, फिर तीन निष्कर्ष निकालते हैं:
1. आपने क्या शिक्षा प्राप्त किया?
2. आप इस शिक्षा को अपने दैनिक जीवन में कैसे लागू करेंगे और
3. आपने जो शिक्षा प्राप्त की है उसे किसको प्रदान करेंगे ताकि वो शिक्षा आप तक सीमित न रहे बल्कि फैले । (प्रेरितों 17:11)
जो भी नवागंतुक कलिस्सिया में आता है तो आपका लक्ष्य उसको सुसमाचार के द्वारा अंततः जीवित बलिदान के रूप में अर्पित करने का होता है ।
एक-दूसरे के साथ रहकर संगति का आनंद लेंना और प्रोत्साहित करना । (प्रेरितों 2:44-46)
एक साथ मिलकर प्रभु भोज की सहभागिता में भाग लेंना । (प्रेरितों 2:46; 1 कुरिन्थियों 11:20-21)
एक-दूसरे की ज़रूरतों और परमेश्वर के राज्य की उन्नति के लिए प्रार्थना करना । (1 पतरस 1:22).
एक-दूसरे की ज़रूरतों और अन्य जातियों के बीच प्रचार करने के लिए उदारतापूर्वक दान देना ।
दशमांश और स्वेच्छा दान
पुराने नियम में दान देने के तीन तरीके थे:
1. मंदिर का कर: मंदिर के रखरखाव के लिए आधा शेकेल टैक्स दिया जाता था (निर्गमन 30:13)। प्रभुजी ने पतरस को मछली पकड़ने के लिए भेजा, जिसके गले में एक शेकेल फंसा हुआ था, जिसे मंदिर टैक्स के रूप में पेश किया गया । मंदिर के सदस्य होने के लिए आवश्यक होता था ।
2. दशमांश - भोजन था, "अपना दशमांश लाओ कि मेरे घर में भोजन रहे" (मलाकी 3:10)। दसवांश वेदी पर अर्पण करने वाली भोजन वस्तुएं हीं चढ़ाई जाती थीं। केवल ज़मींदार ही अपनी फसल की वृद्धि का दशमांश देते थे, जैसे पशु, अनाज, तेल, दाखरस, फल इत्यादि। हर तीसरे साल वे लेवियों, विधवाओं, अनाथों और परदेशियों के साथ मिलकर खाते थे (व्यवस्थाविवरण 14:22-29)। प्रभु यीशु, पतरस और पौलुस जैसे लोग कोई दशमांश नहीं देते थे क्योंकि उनके पास कोई ज़मीन नहीं थी।
3. स्वेच्छा भेंट - एक विधवा ने मंदिर के बाहर रखे बक्सों में अपनी दो सिक्के डाल दिया था, जहाँ लोग स्वेच्छा से सोना, चाँदी या पैसे की भेंट दे सकते थे। प्रभु ने उसे सबसे बड़ा दानी बताया क्योकी उसने सौ प्रतिशत दान दिया था (मरकुस 12:42)
आप कलीसिया को दशमांश का भुगतान करते हैं वह आपके बच्चे को बपतिस्मा देने, आपकी बेटी से शादी करने और आपके मरने पर आपको दफनाने के लिए एक सेवा प्रदाता के रूप में मंदिर कर है ।
पिन्तेकुस्त के बाद, दशमांश घर-घर तोड़े जाने वाले भोजन (रोटी तोड़ना) में बदल गया । (प्रेरितों 2:46)
स्वेच्छा भेंट पूरी तरह से फसल काटने के लिए है, “जो थोड़ा बोएगा वह थोड़ा काटेगा भी; और जो ज्यादा बोएगा, वह ज्यादा काटेगा । हर एक को वैसा ही देना चाहिए जैसा उसने अपने मन में ठान लिया है, न कि अनिच्छा या दबाव में, क्योंकि परमेश्वर प्रसन्नतापूर्वक देनेवाले से प्रेम करता है ” (2 कुरिन्थियों 9:6,7)
वर्तमान में, कलीसिया परमेश्वर का अधिकांश पैसा भवन निर्माण, कर्मचारियों के वेतन, वाद्य यंत्र और रखरखाव पर खर्च करते हैं । समय और धन दोनों को बर्बाद करने के बजाय, प्रारंभिक कलीसिया इब्राहिम और अन्य पुराने नियम के संतों के नक्शेकदम पर चलता था, जो "और जो तुझे आशीर्वाद दें, उन्हें मैं आशीष दूंगा; और जो तुझे कोसे, उसे मैं श्राप दूंगा; और भूमण्डल के सारे कुल तेरे द्वारा आशीष पाएंगे (उत्पत्ति 12:3)। क्या हम प्रभु यीशु की वापसी की प्रतीक्षा कर रहे हैं? दशमांश और भेंट चर्च चलाने के लिए नहीं लेकिन पूरी पृथ्वी पर परमेश्वर के राज्य के विस्तार और उन्नति के लिए हैं ।
इमारतों, बुनियादी ढाँचे, उच्च-स्तरीय उपकरणों आदि जैसी नाशवान चीज़ों पर परमेश्वर के पैसे की बड़ी रकम खर्च करना एक अफसोसजनक कहानी है । गृह कलीसिया को स्थापित करना और बनाए रखना बहुत कम खर्चीला है क्योंकि इसमें इमारतों, कार्यक्रमों या बड़े बजट की आवश्यकता नहीं होती । घरेलू कलीसिया के अगुवे अधिकतर स्वयंसेवक होते हैं जिन्हें वेतन की आवश्यकता नहीं होती । आज इस रकम की सबसे ज्यादा जरूरत उन हजारों सताए हुए बिश्वासियों के लिए उपयोग होना चाहिए जिन्होंने अपने बिश्वास के लिए अपना सब कुछ खो बैठा है । उन्हें मदद की सख्त जरूरत है । ऐसा करने से उनका बिश्वास और मनोबल और बढेगा जिससे वे और बुलंदी से अपनी गवाही दे सकेंगे जिससे इंजीलवाद और सुसमाचार के प्रसार के काम को बढ़ावा मिलेगा ।
पारिवारिक कलीसिया का भविष्य
“इस भवन की पिछली महिमा इसकी पहिली महिमा से ज्यादा होगी, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है, और इस स्थान में मैं शान्ति दूंगा, सेनाओं के यहोवा की यही वाणी है । (हाग्गै 2:9)
परमेश्वर का वचन बेबदल है इसलिए भविष्य में बाइबिल के सिद्धांतों में कोई परिवर्तन संभव नहीं है लेकिन मनुष्यों द्वारा निर्मित असफल परंपरागत कलिसिया का पतन और बाइबिल पर आधारित गृह कलीसिया की उन्नति निश्चित है जिससे मसीहियों के जीवन शैली में अभूतपूर्ण परिवर्तन होगा । कलीसिया के भावी अगुवों को नए नियम के मसीही सिद्धांतों की मौलिक और बुनियादी ढांचों के पटरी पर लाना आवश्यक होगा ताकि प्रचार, प्रसार, शिष्य बनाना, कलीसिया रोपण इत्यादी विस्फोटक रूप से गतिशील हो जाये और पृथ्वी के छोर तक हर जाती, कुल और गोत्र तक प्रभुजी के वापस आने से पहिले पहुँच जाये । सही मसीहत को पृथ्वी पर बहाल करने के लिए एक बिलकुल नया दृष्टिकोण अपनाना होगा । ये तभी संभव है जब हरएक बिश्वासी को ये समझ आ जायेगा की पारिवारिक कलीसिया स्थापना कितना सरल और आसान है जहाँ भव्य भवन या महंगे वाद्य यन्त्र या बड़ी सभाओं की कोई आवश्यकता नहीं है ।
मूसा ने जब परमेश्वर को अपनी अयोग्यता बताई कि उसके पास इस्रैलियों को मिस्र से गुलामी से छुटकारा दिलाने के लिए कोई साधन नहीं है तो परमेश्वर ने पूछा की तेरे हाँथ में क्या है? मूसा के पास सिर्फ एक डंडा था । परमेश्वर ने कहा की तेरे पास पर्याप्त साधन है और मूसा ने उसी डंडे से बड़े बड़े सामर्थ के काम किये और इस्रैलियों को गुलामी से छुड़ा ले आया । इसी तरह, “हालाँकि दाऊद के पास तलवार न थी फिर भी दाऊद ने पलिश्ती गोलिअथ को गोफन और एक पत्थर से ख़त्म कर दिया” (1समुएल 17:50)। यहूशु ने प्रार्थना भ्रमण करके येरिहो शहर पनाह को ध्वस्त कर दिया । परमेश्वर चाहता हैं कि हमारे पास जो भी साधन उसने दिया है उसी से अपने लोगों को शैतान की गुलामी से आज़ाद कर दें ।
आने वाले दिनों में परमेश्वर के संतानों के दिलों में अपने घरों को परमेश्वर की महिमा के सेवा करने के लिए अर्पित करना और अपने समुदायों में परमेश्वर के प्रेम का प्रवाह करने की तमन्ना होगी । आने वाले वर्षों में भारत के कोने-कोने में अनगिनत गृह कलीसिया हर गली कूचे में दिखेंगे ।
गृह कलीसिया मसीहियों के लिए संगति और सुसमाचार फैलाने के लिए एकमात्र विकल्प रहेगा और वह हर संस्कृति, भाषा, जाती या नस्ल आदि के लिए उपायुक्त होगा । सताव के माध्यम से, परमेश्वर विभिन्न पृष्ठभूमियों, संप्रदायों और संबद्धताओं के मसीहियों को एकता में ला रहा है । भविष्य में हम परमेश्वर को मसीही परिवारों को अपने घरों में अपने उद्देश्यों को पूरा करते हुए देख सकेंगे । मसीह के प्रत्येक अनुयायी को जातियों, और कुलों और भाषाओँ और संस्कृति में व्यवस्था करने में अपनी भूमिका समझनी चाहिए । जैसे ही ये परिवर्तन आयेगा परिणामस्वरूप, अगले चंद वर्षों में प्रत्येक समुदाय में गृह कलीसिया एक वास्तविकता हो जाएगी और प्रभुजी शीघ्र राजाओं के राजा और प्रभुओं के प्रभु होकर मनुष्यों के बीच डेरा करेंगे ।
गृह कलीसिया : भारत और विश्व
“क्योंकि जो नींव डाली गई है, वह यीशु मसीह है, उसके अलावा कोई और नींव नहीं डाल सकता” (1 कुरिन्थियों 3:11)
चीन को पीछे छोड़ते हुए, भारत 1.408 अरब (2023) के साथ अब दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है । दुनिया की आबादी का पांचवां हिस्सा भारत में रहता है । सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत की केवल 2.3% जनसंख्या मसीही है । लेकिन 25 वर्षों में गृह कलीसिया की विस्फोटक बढोत्तरी के कारण कम से कम 7,5% आज की वास्तविकता है फिर भी भारत में करोड़ो लोगों ने मसीह के बारे में सुना ही नहीं है और जिन्होंने सुना है उन्हें ये पता नहीं कि वह “मार्ग, सच्चाई और जीवन है और बगैर उसके कोई स्वर्ग हासिल नहीं कर सकता” (युहन्ना 14:6) ।
तो, कलीसिया भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश तक कैसे पहुंच सकता है? पहाड़ों, गहरी घाटियों, विस्तृत मैदानों, पठारों, तटीय घाटों, रेगिस्तान और कई द्वीपों जैसी महान भौगोलिक विविधता के साथ, देश के सुदूर हिस्सों में रहने वाले लोग कैसे सुसमाचार को सुन सकते हैं? मिशन क्षेत्र में काम करने वालों के लिए ठंड, गर्मी, बरसात का मौसम भी बहुत चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है । लेकिन गृह कलीसिया इन सारी परिस्थितियों में उपयुक्त उपाय हैं । परमेश्वर की योजना के अनुसार, भारत भी असंख्य जातियों और उपजातियों में विभाजित है और इसलिए छोटे-छोटे टुकड़ों को गोद में लेकर उन तक आसानी से पहुंचा जा सकता है । गृह कलीसिया को किसी भी भौगोलिक क्षेत्र, मौसम या संस्कृति के अनुकूल बनाया जा सकता है।
भारत में मसीहियों को पहिले कोविद जैसे वैश्विक महामारी ने और अब बढ़ते सताव ने विश्वासियों को कलीसिया की इमारतों को छोड़ने और घरों में मिलने के लिए मजबूर किया है । इस दौरान गृह कलिसियाओं में विस्फोटक उन्नति हुई क्योंकि दुखी परवारों को चाहे वे किसी भी समुदाय के क्यों ना हों उन्हें प्रार्थना, सहायता और सहानुभूति की अत्यंत आवश्यकता थी जो सिर्फ गृह कलीसिया में उपलब्ध थी । आरंभिक कलीसिया को भी सताव का सामना करना पड़ा और उनकी संगति, घनिष्ठ मेलजोल ने ही उन्हें मजबूत और परमेश्वर के करीब लाया था । छोटी छोटी गुप्त गृह कलीसिया हमारे सताव के वक्त के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो रहीं हैं । गृह कलीसिया गुप्त और शांत तरीके से छोटे छोटे झुण्ड में मिलते हैं इसलिए सताव और सताव का सामना करने में बेहतर सक्षम होते हैं ।
अच्छी खबर यह है कि अधिकांश लोगों का अनुमान है कि ईसाई जनसंख्या कम से कम 7.5% है । इसका मतलब यह है कि आज भारत में कम से कम 7.5 करोड़ मसीही हैं । भले ही आप परंपरागत कलीसिया के 2.5 करोड़ ठन्डे ईसाइयों को हटा दें, फिर भी पिछले 20 वर्षों में हमारे पास कम से कम पांच करोड़ नए बिश्वासी जुड़ चुके हैं । उनमें से लगभग सभी पहली पीढ़ी के बिश्वासी है जो विजातियों से आये हुए हैं और गृह कलीसाओं में आराधना करतें हैं । वे ही परमेश्वर के राज्य को आगे बढ़ा रहे हैं और प्रताड़ित होकर भी अपने बिश्वास के लिए कीमत चुका रहे हैं । ये ही लोग परमेश्वर के राज्य को भारत की छोर तक ले जाने की क्षमता रखतें हैं ।
भारत के अलावा, दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ते कलीसियायें: हिंदू - नेपाल, मुस्लिम - ईरान, कम्युनिस्ट - चीन, बौधिस्ट - दक्षिण कोरिया, बुतपरस्त - मंगोलिया, तंत्र मन्त्र वाले अफ्रीका निवासी, कैथोलिक - क्यूबा और म्यांमार के रोहिंग्या और बौद्धों के बीच विस्फोटक रूप से फ़ैल रहा है । लगभग सारा विकास लघु घरेलू कलिस्याओं की संख्या में वृद्धि के माध्यम से हो रहा है ।
गृह-कलीसिया - भारत और विश्व के लिए एक मात्र समाधान?
“यदि किसी राज्य में फूट पड़ जाए तो वह राज्य टिक नहीं सकता । और यदि किसी घर में फूट पड़ जाए, तो वह घर खड़ा न रह सकेगा”। (मरकुस 3:24-25)
"और जो कुछ तू ने मुझ से सुना है, उसे विश्वासयोग्य पुरूषों को सौंप दे जो औरों को भी सिखा सकें" (2 तीमुथियुस 2:2)
यहां पौलुस ने युवा तीमुथियुस से कहा कि जो कुछ तुमने मुझसे सीखा है उसे उन वफादार लोगों को सिखा दे जो दूसरों को सिखाने कें योग्य हैं । 'पुरुषों' के लिए यूनानी शब्द 'एंथ्रोपोस' है, जिससे एंथ्रोपोलॉजी याने मानवविज्ञान शब्द आया है, जो पुरुष और स्त्री दोनों के बारे में है जिसका अर्थ है यह निकलता है कि पुरुष और महिला दोनों दूसरों को सिखा सकते हैं । इस परिच्छेद में शिष्य बनानेवालों की चार पीढ़ियाँ हैं - पहले पौलुस, फिर तीमुथियुस और फिर वफादार पुरुष और महिलाएँ और अंत में 'अन्य' लोग । इसका मतलब यह है कि हमें कलीसिया में बैठने वाले नहीं बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी शिष्य बनानेवाले शिष्य बनाना है ।
परमेश्वर युवाओं और बुजुर्गों, दोनों पीढ़ियों को काम में लाना चाहता हैं । घरेलू कलीसिया पीढ़ी दर पीढ़ी तक पहुंचने और शिष्य बनाने का एक अद्भुत विकल्प है । संस्थागत और रीती रिवाजी पारंपरिक कलीसिया इस रणनीति से अपरिचित हैं वे उसमे असहज महसूस करतें हैं । युवाओं को आध्यात्मिक माता पिता की जरूरत है जो उनको प्रोत्साहित करें और उनके सवालों का जवाब सच्चाई से दें और परिवार और समाज से सताव के समय उनके साथ खड़े हों । इससे युवाओं और बूढ़ों का हौसला अफज़ाई होता है और वे परमेश्वर के राज्य को आगे बढ़ाने में सक्षम हो जाते हैं ।
स्वदेशी कलीसिया
पौलुस का जोश और जुनून था कि जहां मसीह का नाम नहीं था वहां सामर्थ के चमत्कारों के साथ सुसमाचार का प्रचार करना (रोमियों 15:19,20)। इसे पूरा करने के लिए, उन्होंने अत्यधिक चुनौतियों का सामना करने के बावजूद दस वर्षों में तीन मिशनरी यात्राएँ कीं । उन्होंने चार प्रांतों में अनेक घरेलू कलीसियांओं की स्थापना की: गलातिया, मैसेडोनिया, अकिया और एशिया ।
47 ई. से पहले, इन प्रांतों में कोई कलीसिया नहीं थी, लेकिन ई. 57 तक, मसीह के प्रेरित पौलुस ने इन प्रांतों में पूरी तरह से सुसमाचार से भर दिया । (रोमियों 15:23,24)
आइए पौलुस से मिलें: प्रारंभिक कलीसिया का एक कट्टर यहूदी जो मसीहियों के घर जा जाकर उन्हें प्रताड़ित करता और जेल में डलवा देता था लेकिन जब प्रभु यीशु से मुलाक़ात हुई तो कलीसिया रोपण का सबसे सफल संस्थापक बन गया । हम सब लोगों के लिए उसका जीवन एक अद्भुत मार्गदर्शक साबित हुआ है । उसने हमें चुनौती दिया है कि, “तुम लोग वैसे ही मेरा अनुसरण करो जैसे मैं मसीह का अनुसरण करता हूँ । मैं तुम्हारी प्रशंसा करता हूँ क्योंकि तुम मुझे हर समय याद करते रहते हो; और जो शिक्षाएँ मैंने तुम्हें दी हैं, उनका सावधानी से पालन कर रहे हो”। (१कुरुन्थ 11:1,2)
पौलुस ने केवल जोरदार सुसमाचार का प्रचार नहीं किया और गायब हो गया, बल्कि जिन लोगों ने प्रभु को स्वीकार किया उन्हें प्रशिक्षण देकर उनकी संस्कृति और संदर्भ में शिष्य बनाने और कलीसिया रोपण के योग्य करने के बाद ही दूसरी जगह जाकर इसी रणनीति से कलीसिया स्थापित करता गया । उन्होंने एक समग्र कलीसिया का नमूना तैयार किया जो स्वदेशी और आत्मनिर्भर था और अपने दम पर खड़ा हो सकता था । बाद में वह समय-समय पर उनसे मिलने जाता था या तीमुथियुस या तीतुस जैसे अपने किसी शिष्य को प्राचीनो को नियुक्त करने और यदि वे रास्ते से भटक रहे हों तो उन चीजों को ठीक करने के लिए भेजता था । (प्रेरितों 15:36; तीतुस 1:5)
इन कलिसियाओं का ना केवल स्थानीय समुदाय पर लेकिन दूर दराज के स्थानों पर भी आत्य्धिक प्रभाव पड़ता था । ये कलिसियाएँ तेजी से बढ़ती और फैलती थीं जिसके परिणामस्वरूप परमेश्वर का वचन तेजी से उस वक्त के दुनिया के कोने कोने तक फैलने की क्षमता रखता था । ध्यान रखें – ये सब घरेलू कलिसियाओं के द्वारा किया जा रहा था!
यह कैसे हो गया: क्योंकि कट्टर यहूदियों के दबाव के बावजूद, पौलुस ने अन्यजातियों को खतना करके यहूदी बन कर राज्य में प्रवेश करने का कड़ा विरोध किया । हमें पौलुस से सीखना चाहिए कि हमें उनकी संस्कृति, खान-पान, पहनावे या नाम को बदलने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, बल्कि उन्हें केवल हृदय परिवर्तन की आवश्यकता है, “कि यदि तू अपने मुंह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे और अपने मन से विश्वास करे, कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पाएगा । क्योंकि धार्मिकता के लिये मन से विश्वास किया जाता है, और उद्धार के लिये मुंह से अंगीकार किया जाता है” (गलातियों 2:11-14; रोमियों 10:9-10)। अनुग्रह के सुसमाचार का प्रचार करते हुए, पौलुस ने सिखाया कि, “क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, बरन परमेश्वर का दान है । और न व्यवस्था के कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे । क्योंकि हम उसके बनाए हुए हैं; और मसीह यीशु में उन भले कामों के लिये सृजे गए जिन्हें परमेश्वर ने पहिले से हमारे करने के लिये तैयार किया”। (इफिसियों 2:8-10)
भारत में चर्च और मिशन इसलिए असफल रहे क्योंकि वे स्वदेशी कलीसिया के बदले विदेशी नमूने के चर्च स्थापित करने में व्यस्त हो गए । इसी लिए सदियों पहले इस देश में आने के बाद भी ईसाई धर्म को अभी भी एक विदेशी धर्म माना जाता है ।
यहीं पर 'गृह कलीसिया ' ईसाई धर्म की सभी गलत और प्रचलित धारणाओं को खारिज करने में एक बड़ी भूमिका निभा सकती है । एक परिवार मौजूदा संस्कृति के भीतर रहकर मसीह के प्रति निष्ठा का उदाहरण दे सकता है । जिस परिवार को प्रभु पकड़ लेता है तो वो परिवार मसीह के लिए पवित्र आत्मा की अगुवाई से अनेक खोए हुए को गले लगाने के लिए एक गहरा जोश और जुनून पैदा कर देता है ।
अब कल्पना करें कि कितने ईसाई घर मौजूद हैं, इस तथ्य को देखते हुए कि भारत में मसीह के 2.5 करोड़ पारंपरिक अनुयायी रहते हैं । एक परिवार में औसतन पाँच सदस्यों को देखते हुए, भारत में कम से कम पचास लाख ईसाई परिवार हैं । यदि प्रत्येक परिवार अपने जीवनकाल में केवल एक गृह कलीसिया स्थापित करे तो 50 लाख कलीसिया स्थापित हो जाएँगी, जो इस देश को एक ही पीड़ी में सुसमाचार से संतृप्त करने के लिए पर्याप्त होंगे, “ क्योंकि (भारत) यहोवा की महिमा के ज्ञान से ऐसा भर जाएगा जैसे समुद्र जल से भर जाता है (हबकुक 2:14 )। हर एक परिवार, चाहे वह शहरों में हो या दूरदराज के गांवों में, ये यदि वे सच्चे मसीही हैं तो ये अभिलाषा होंना चाहिए की वे अपने समुदायों को कैसे परमेश्वर के राज्य के भागिदार बनाये अन्यथा वे सब के सब नरक की आग में चले जायेंगे । यदि ये भावना आप में नहीं है तो आप किस आधार पर न्याय के दिन परमेश्वर के सिंहासन के सामने खड़े हो पायेगे ।
परमेश्वर कहता है कि, “जब मैं दुष्ट से कहूं कि तू निश्चय मरेगा, और यदि तू उसको न चिताए, और न दुष्ट से ऐसी बात कहे जिस से कि वह सचेत हो और अपना दुष्ट मार्ग छोड़कर जीवित रहे, तो वह दुष्ट अपने अधर्म में फंसा हुआ मरेगा, परन्तु उसके खून का लेखा मैं तुझी से लूंगा । पर यदि तू दुष्ट को चिताए, और वह अपनी दुष्टता ओर दुष्ट माँर्ग से न फिरे, तो वह तो अपने अधर्म में फंसा हुआ मर जाएगा; परन्तु तू अपने प्राणों को बचाएगा“। (यह्ज्केल 3:18,19)
"मेरा घर सब जातियों के लिये प्रार्थना का घर होगा परन्तु तुम ने उसे चोरों का अड्डा बना दिया है" (मरकुस 11:17)
"बुद्धि से घर का निर्माण होता है, और समझ-बूझ से ही वह स्थिर रहता है । ज्ञान के द्वारा उसके कक्ष अद्भुत और सुन्दर खजानों से भर जाते हैं``" (नीतिवचन 24:3-4)
क्या भारत में गृह कलीसिया वैध है?
जी हाँ ! भारत का संविधान मसीहियों को व्यवस्थित और शांतिपूर्ण तरीके से स्वतंत्र रूप से अपने बिश्वास का अभ्यास करने, प्रचार और प्रसार करने का पूरा अधिकार देता है । लेकिन आज के माहौल में व्यावहारिक रूप से प्रत्यक्ष में ये संभव नहीं है इसलिए बुद्धिमानी से काम करना और सताव के लिए तैयार रहना आज की वास्तविकता है ।
सताव अक्सर शोर-शराबे वाली आराधना के कारण होता है । प्रारंभिक कलीसिया में उन्होंने भजन गाए और अपने दिलों में संगीत गाया लेकिन नए नियम में संगीत वाद्ययंत्रों का कोई उल्लेख नहीं है (1 कुरिन्थियों 14:26; इफिसियों 5:19; कुलुस्सियों 3:16) । प्रभुजी ने सर्फ एक बार अपने अंतिम भोज के बाद जब वह क्रूस पर चढ़ने से पहले गैतसेमनी के बगीचे की ओर प्रस्थान कर रहे थे तब एक भजन (भजन सहिता 116-118) गाया था, और पौलुस और सिलास ने जब वे जेल में थे (मत्ती 26:30)
गृह कलीसिया में सताव
“जो लोग तितर-बितर हो गये थे, वे जहाँ कहीं गये, उन्होंने वचन का प्रचार किया” । (प्रेरितों 8:4)
भारत में उत्पीड़ित कलीसिया हिंसा के तूफानी दौरान के समय में भी ग्रह कलीसिया के बिश्वासी अपनी गवाही पर स्थिर रहे । पिछले कुछ वर्षों में भारत में चर्चों पर लगातार हमले बढ़ रहे हैं । 2016 से 31 मार्च 2020 तक, पर्सिक्यूशन रिलीफ ने मसीहियों के खिलाफ 1,961 अपराध रिकॉर्ड किए । परेशान करने वाली बात यह है कि लगभग 70% मामले प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कलीसिया पर हमलों से संबंधित हैं । पर्सिक्यूशन रिलीफ ने अकेले 2020 की पहली तिमाही में भारत में कलीसिया हमलों के कम से कम 50 मामले रिकॉर्ड किए हैं । धर्मग्रंथ के अनुसार, महादूत लूसिफ़ेर सबसे पहले संगीतकार थे और अभी भी संगीत पर नियंत्रण रखते हैं और आराधना को मनोरंजन में बदल देने में माहिर हैं । (यहेजकेल 28:13)
भारत ईसाई सताव का केंद्र
पिछले कुछ वर्षों से, उत्तर प्रदेश भारत में ईसाई सताव का केंद्र बन गया है जहाँ धर्म परिवर्तन करनेवालों को दस साल तक की जेल जाने की सजा निर्धारित की गयी है । पिछले तीन महीनों में, अकेले उत्तर प्रदेश में ईसाइयों के खिलाफ 47 अपराध दर्ज किए गए, जिससे इस प्रदेश को भारत में ईसाइयों के प्रति 'सबसे ख्रीष्ट विरोधी राज्य' का खिताब मिला है । उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक भी मसीहियों के लिए खतरनाक प्रदेश हैं ।
इन प्रदेशों में ईसाइयों के खिलाफ अधिकांश घृणा अपराध, प्रशासन और धार्मिक चरमपंथी समूहों द्वारा संयुक्त हमले किये जाते हैं । प्रार्थना सभाओं में धावा बोलना, निजी आवासों पर छापा मारना, अनुचित रूप से ईसाई सामग्रियों को जब्त करना, आईपीसी की धारा 144 लगाना जिसमें कहा गया है कि पांच से अधिक लोग एक साथ इकट्ठा नहीं हो सकते, पास्बानों को सेवा बंद करने की धमकी देना और उन्हें जबरदस्ती पुलिस स्टेशन ले जाना, झूठी शिकायतें दर्ज करना जबरन धर्म परिवर्तन का इल्जाम लगाकर, ईसाइयों को कई दिनों तक पुलिस स्टेशन में रखना, महिलाओं और बच्चों को बख्शे बिना ईसाइयों के साथ दुर्व्यवहार करना आदि ऐसे कुछ सामान्य तरीके हैं जिनसे ईसाई अल्पसंख्यक धार्मिक चरमपंथियों के हाथों पीड़ित होते हैं ।
प्रभुजी कहतें हैं, “धन्य हैं वे, जो धर्म के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है । धन्य हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण झूठ बोल बोलकर तुम्हरो विरोध में सब प्रकार की बुरी बात कहें । आनन्दित और मगन होना क्योंकि तुम्हारे लिये स्वर्ग में बड़ा फल है इसलिये कि उन्हों ने उन भविष्यद्वक्ताओं को जो तुम से पहिले थे इसी रीति से सताया था” । (मत्ती 5:9-11)
प्रभुजी आगे कहतें है, “तुमने सुना है कि कहा गया था; कि अपने पड़ोसी से प्रेम रखना, और अपने बैरी से बैर । परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सतानेवालों के लिये प्रार्थना करो । जिससे तुम अपने स्वर्गीय पिता की सन्तान ठहरोगे क्योंकि वह भलों और बुरों दोनो पर अपना सूर्य उदय करता है, और धर्मियों और अधर्मियों दोनों पर मेंह बरसाता है” (मत्ती 5:43-45)
कलीसिया पर सताव के कारण
वैसे तो प्रायः सभी देशों में मसीहियों को प्रताड़ित किया जाता है लेकिन वर्तमान में सबसे ज्यादा मसीहियों को लक्षित करके नरसंहार की स्तिथि में: उत्तरी कोरिया, बर्मा, चीन, प्रायः सभी मुस्लिम मुल्क, नाइजीरिया, क्यूबा, इस्राएल, विएतनाम और भारत भी शामिल हैं ।
सताव कई प्रकार के होते हैं:
- जब परमेश्वर द्वारा परीक्षा के लिए शैतान को छूट देना - जैसे अय्यूब के साथ हुआ था ।
- यह सरकार द्वारा प्रायोजित हो और उसके नुमाइंदे के द्वारा संचालित हो ।
- जहां परिवार और समाज उन्हें गद्दार समझ कर प्रताड़ित करता है ।
- जब पारंपरिक चर्च, गृह कलीसिया को प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखते हैं । रूस में, रूढ़िवादी चर्च ने सरकार पर दबाव डालकर गृह कलीसियाओं पर प्रतिबंध लगवाया ।
- जहाँ शोर गुल वाली संगीत और आराधना होती है या जहाँ पहिले कोई मसीही नहीं था वहाँ भवन बनाना इत्यादि विरोधियों को आकर्षित करते हैं ।
- जहां कोई सताव नहीं होता क्योंकि शैतान ने उनको भटका दिया है और अंतर्कलह से खुद नाश हो रही है । शैतान ऐसे चर्च से खुश रहता है और उसको सताने की कोई जरूरत नहीं समझता ।
पूरे भारत में, धार्मिक कट्टरपंथियों के हमलों का एक निर्धारित रणनीति है । वे पहले स्थानीय ईसाई सभाओं का पता लगाते हैं और उनका नक्शा बनाते हैं । फिर वे अप्रत्याशित रूप से मंडली में घुस जाते हैं और ईसाई पादरी या अगुवे पर जबरन धर्म परिवर्तन में शामिल होने का आरोप लगाते हैं । ईसाइयों के साथ दुर्व्यवहार करने के बाद, वे उस स्थान पर तोड़फोड़ करते हैं, विश्वासियों को पीटते हैं और उन्हें दोबारा कलीसिया के रूप में इकट्ठा न होने की धमकी देते हैं । अक्सर कट्टरपंथियों के साथ पुलिस और धार्मिक समर्थक मीडियाकर्मी भी होते हैं । ये मीडियाकर्मी छापे को रिकॉर्ड करते हैं और ईसाइयों को खराब छवि में चित्रित करने के लिए इसे संपादित करते हैं । फिर वे सताए गए ईसाइयों को बदनाम करके अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए इसे सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं ।
हाल ही में ग्रामीण इलाकों में कई गृह चर्चों पर भी हमले हुए हैं । जब चरवाहे पर हमला होता है तो भेड़ें तितर-बितर हो जाती हैं । उन गरीब और असहाय लोगों को दोषी ठहरा कर उनके बीच भय और अनिश्चितता पैदा करती हैं । कुछ लोग हमले का अनुभव होने के बाद आराधना सेवा में जाने से इनकार कर देते हैं क्योंकि उन्हें पीटा जाता है और समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है । कुछ को स्थानीय नौकरियों से इनकार कर दिया जाता है और वे आर्थिक रूप से संघर्ष करते हैं । अत्यंत खेद की बात है इस बीच परंपरागत चर्च पूरी तरह से निष्क्रिय रहती है ।
दुर्भाग्य से, अगुवे ऐसे समय के लिए ना तो खुद को और ना कलीसिया को तैयार करते हैं और जब मुसीबत आती है तो उसको संभाल नहीं पाते । प्रभु यीशु ने एक भी भेड़ न खोने पर जोर दिया । उसने 99 भेड़ों को छोड़ दिया ताकि वह खोई हुई भेड़ को ढूंढ सके! यह हमारी नियमित प्रार्थनाओं के दौरान हमारे भाइयों और बहनों को याद करने और सहायता करने का सही समय है ।
कलीसिया को मज़बूत करना
पूरे भारत में ईसाई पासबान, अगुवों और मिशनरियों को परमेश्वर की कलीसिया को अन्दर से मज़बूत करने के लिए भरसक कोशिश करनी चाहिए । पौलुस ने कलीसिया को मज़बूत करने के लिए पत्रियां लिखीं ताकि सताव, भय, झूठी शिक्षा आदि के समय में, हम पीछे न हटें बल्कि उस दौड़ को पूरा करें जो प्रभु ने हमें सौंपी है । अगर हम इन पेड़ों को मजबूत नहीं करेंगे तो हवा चलने पर ये उखड़ जायेंगे। हमें कदम उठाने चाहिए ताकि परमेश्वर की कलीसिया अब दूध पीने वाले शिशुओं की तरह न रहे, क्योकि:
“वास्तव में इस समय तक तो तुम्हें शिक्षा देने वाला बन जाना चाहिए था । किन्तु तुम्हें तो अभी किसी ऐसे व्यक्ति की ही आवश्यकता है जो तुम्हें नए सिरे से परमेश्वर की शिक्षा की प्रारम्भिक बातें ही सिखाए । तुम्हें तो बस अभी दूध ही चाहिए, ठोस आहार नहीं । जो अभी दुध-मुहा बच्चा ही है, उसे धार्मिकता के वचन की पहचान नहीं होती । किन्तु ठोस आहार तो उन बड़ों के लिए ही होता है जिन्होंने अपने अनुभव से भले-बुरे में पहचान करना सीख लिया है ।” (इब्रानी 5:12-14)
एलीशा ने विश्वासघाती सेवक गेहजी को यह कहते हुए डांटा, "क्या यह समय है पैसे लेने का या कपड़े लेने का - या जैतून के बाग और अंगूर के बगीचे, या भेड़-बकरी और गाय-बैल, या दास-दासी लेने का?" (2 राजा 5:26)
नामान ने एलीशा को उसे कोढ़ से करने के लिए इनाम देना चाहा, लेकिन एलीशा ने इनकार कर दिया था । इसी तरह, चर्चों को बड़े भवन बनाने, सामग्री और उपकरण खरीदने, संपत्ति अर्जित करने, अपनी सदस्यता बढ़ाने आदि की लालसा का विरोध करना चाहिए । क्या हम परमेश्वर की निरंतर बुलाहट का जवाब दे रहे हैं ? यदि हमने शीघ्र प्रतिक्रिया नहीं दी, तो बहुत देर हो सकती है । आइए गेहांजी की तरह न बनें, जिसके लालच और स्वार्थ ने उसे और उसके वंशज को भी मौत और विनाश दिया ।
आपकी कलीसिया क्या एक समाधान है या एक समस्या
हमारे देश की समस्याओं का समाधान किसी भी प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, विधायक, सांसद या किसी अन्य अधिकारी के पास नहीं है। समाधान हम हैं, परमेश्वर की कलीसिया, जिसके पास सभी समाधान हैं। हम जगत की ज्योति हैं! हम सारी समस्याओं के समाधानकर्ता हैं। हमारी मदद सरकार से नहीं बल्कि परमेश्वर से मिलती है। चाहे वह युद्ध, महामारी, अकाल, अशांति, विनाश आदि हों, परमेश्वर के लोगों ने ही नियंत्रण किया और परमेश्वर की महिमा के लिए असाधारण परिणाम प्राप्त करने में सक्षम हुए। बदले में, वे सरकार और देश के लिए वरदान साबित हुए। परमेश्वर की कलीसिया को उठकर हर असंभव स्थिति पर नियंत्रण रखना चाहिए और प्रभु यीशु के नाम पर परमेश्वर के सामने आत्मसमर्पण करना चाहिए।
उसने हमें अपने नाम का उपयोग करने का अधिकार दिया है और हम उसके नाम पर जो कुछ भी मांगेंगे, वह हमें देगा, “मैं ने तुम्हें साँपों और बिच्छुओं को रौंदने, और शत्रु की सारी शक्ति पर विजय पाने का अधिकार दिया है; तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचाएगा” (लूका 10:19)
“दुष्ट चोरी करने, हत्या करने और नष्ट करने पर तुला हुआ है । वर्तमान स्थिति को देखते हुए, परमेश्वर का वचन भविष्य में क्या होने वाला है इसका स्पष्ट संकेत देता है । लोग परमेश्वर को खोज रहे हैं । हमारे हिन्दू भाई और बहन परमेश्वर की खोज में दूर दराज स्थानों में स्नान और दर्शन के लिए जाते हैं । मुसलमान भाई काले पत्थर को चूमने के लिए मक्का के काबा जाते हैं । वे नहीं जानते की सच्चा परमेश्वर नदी, नालें पहाड़ों और पत्थरों में नहीं रहता बल्कि हमारे दिलों में रहता है । (2 कुरिन्थ 6:16,17)
लेकिन सच्चे परमेश्वर का ज्ञान रखने वाले डरपोंक मसीही उसे अपने घरों और गिरजा घरों में कैद करके रखे हैं । इससे बढकर और क्या मक्कारी हो सकती है? लेकिन परमेश्वर पारंपरिक चर्च के सदस्यों के तरह मुक दर्शक होकर उनके चुर्चों के भवन के बेंचों में नहीं बैठा है लेकिन गृह कलिसियाओं के द्वारा खोए हुओं के बीच पहुँचना शुरू कर दिया है । गृह कलिसियाओं को बढ़ावा देने के लिए यह सटीक समय है । समय आ गया है कि हर एक मसीही, खास कर उनके अगुवे छोटे छोटे गृह समूहों का संचालन करने के लिए नम्रता और गंभीरता से प्रशिक्षण लें और दूसरों को प्रोत्साहित करें अन्यथा सारा मुल्क नरक में चला जाएगा और आपको ऊपरवाले को न्याय के दिन हिसाब देना मुश्किल हो जायेगा ।
सताव - कलीसिया विस्तार के लिए एक वरदान
बाइबल स्पष्ट रूप से बताती है कि कैसे मसीहियों के सताव ने कलीसिया के विस्तार के लिए उत्प्रेरक का काम किया । जब यरूशलेम में मसीहियों के खिलाफ सताव शुरू हुआ, तो कलीसिया यहूदिया और सामरिया जैसी जगहों तित्तर बित्तर हो गयी और सुसमाचार में विस्फोटक विस्तार हुआ । स्तिफनुस के शहीद होने के साथ ही सताव फिर से दस्तक देने लगा । कलीसिया येरूशलेम से अन्ताकिया तक फैल गयी और वहां से, एशिया माइनर, एजियन तटों और अंततः रोम और बाकी दुनिया में फैल गयी जैसा कि प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की थी, “ परन्तु जब पवित्र आत्मा तुम पर आएगा तब तुम सामर्थ पाओगे; और यरूशलेम, सारे यहूदिया और सामरिया में, और पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होगे“ (प्रेरित 1:8)
आज, भारत में ईसाइयों के लिए एक बड़ी चुनौती है जहाँ इसाई एक देश द्रोही गद्दार हो गया और धर्म्परिवर्तन एक जुर्म हो गया है जिससे मसीहियों के प्रति देश में शत्रुता और असहिष्णुता का माहौल फैलाया जा रहा है । हालाँकि घरेलू कलीसियांयें समुदाय के संस्कृति में घुलमिल जाते हैं, जिससे वे उत्पीड़कों को कम दिखाई देते हैं । ईसाइयों के खिलाफ घृणा अपराध के मामले लगातार बढ़ रहे हैं । भारत आरंभिक कलीसिया जैसी परिस्थितियों से गुज़र रहा है । ये आँकड़े दुखद हैं; लेकिन एक बात निश्चित है, कि सताव और भी बढ़ेगा, जिससे सुसमाचार और भी तेजी से फैलेगा । सताव कलीसिया के विस्तार के लिए एक वरदान साबित हो रहा है ।
शरीर एक, अंग और वरदान अनेक
“तुम सब मिलकर मसीह की देह हो, और उसके अलग अलग अंग हो । परमशॆवर ने कलीसिया में अलग अलग व्यक्ति नियुक्त किए हैं; प्रथम प्रेरित, दूसरे भविष्यद्वक्ता, तीसरे शिक्षक, फिर सामर्थ के काम करनेवाले, फिर चंगा करनेवाले, और उपकार करनेवाले, और प्रधान, और नाना प्रकार की भाषा बालनेवाले । क्या सब प्रेरित हैं? क्या सब भविष्यद्वक्ता हैं? क्या सब शिक्षक हैं? क्या सब सामर्थ के काम करनेवाले हैं? क्या सब को चंगा करने का बरदान मिला है? क्या सब अनेक भाषा बोलते हैं? क्या सब अनुवाद करते हैं? तुम बड़ी से बड़ी बरदानों की धुन में रहो!”(1कुरिन्थ, 12:27-31)
यदि एक उंगली में दर्द होता है, तो पूरे शरीर को दर्द होता है । क्या हम सताए गए कलीसिया को एक ही शरीर का हिस्सा मानते हैं? या हम अपने कामों में व्यस्त हैं और परमेश्वर के बारे में भूल रहे हैं? आइए अपने आराम क्षेत्र से बाहर निकलें और प्रत्येक सताए हुए बिश्वासी को मसीह के शरीर का एक हिस्सा मानकर चाहे वे विभिन्न संस्थाओं या संस्कृतियाँ, भाषाएँ, रंग, गाँव या शहर आदि से, हमें विशेष रूप से सताए हुए लोगों को अपने जैसा प्यार और देखभाल करना चाहिए ।
यिर्मयाह कहता है, “वे जल के किनारे लगाए गए वृक्ष के समान होंगे जिसकी जड़ें जलधारा के पास फैलती हैं । गर्मी आने पर उसे डर नहीं लगता; इसकी पत्तियाँ सदैव हरी रहती हैं। सूखे के वर्ष में भी इसे कोई चिंता नहीं होती और यह फल देने में कभी असफल नहीं होता'' (यिर्मयाह 17:8)
गृह कलीसिया अंत समय के लिए सटीक नमूना
प्रभु यीशु ने अंत समय के बारे में बहुत सी भविष्यवाणियाँ कीं जो तेजी से पूरी हो रही हैं - जैसे युद्ध और युद्धों की अफवाहें, जाति के विरुद्ध जाति, अकाल, महामारियाँ, भूकंप, आकाश में चिन्ह, मेरे नाम के कारण सभी लोग तुमसे घृणा करेंगे, कई झूठे भविष्यवक्ता उठ खड़े होंगे और बहुतों को धोखा देंगे; अधर्म बहुत बढ़ जाएगा, बहुतों का प्रेम ठंडा हो जाएगा । परन्तु जो अन्त तक स्थिर रहेगा, वही उद्धार पाएगा ।
पारंपरिक कलीसिया विदेशी नमूना होने की वजह से उसका पतन निश्चय है जबकि समाज के संस्कृति में ढली गृह-कलीसिया में पारिवारिक प्रेम सम्बन्ध होने के कारण जल्द ही आने वाले गंभीर सताव के विनाश के दौरान न केवल जीवित रहने बल्कि विस्फोटक रूप से पनपने की संभावना रखता है ।
आप जानो या न जानो – आप मानो या न मानो – आप कुछ कर्रो या न करो लेकिन निश्चित है कि “राज्य का यह सुसमाचार सब जातियों पर गवाही के लिये सारे जगत में प्रचारा जाएगा; और तब अंत आ जाएगा” (मत्ती 24:6:14).
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