कलीसिया का एकमात्र दायित्व आत्मा बचाना है चेतावनी

‘‘यदि तुम एक पापी को उसकी आत्मा बचाने के लिये उसके पाप के बारे में उसे चेतावनी नहीं देते हो, तो वह पापी उसके अधर्म में मर जाएगा, परन्तु उसके खून का लेखा मैं तुझी से लूंगा। परन्तु यदि तू उस पापी को चिताए तो तू अपने प्राण को बचाएगा। (यहेजकेल 3:18,19)

कृपया निम्नलिखित वचनों के आधार पर स्वयं का मूल्याकन करके देखिये कि आप की स्तिथी क्या है? क्या आप दो पैर वाली मछली पकद्नेवाले, या भटकी हुई भेड़ों को बचानेवाले या बहुतायत से फल लानेवाले या आत्मिक फसल काटनेवाले बन पाए? क्या आप के पास विधर्मियों को कायल करके प्रभु में लाने की क्षमता है?

1. प्रभु यीशु मसीह खोये हुए को खोजने और उद्धार करने आया है। (लूका 19:10)

2. प्रभु यीशु ने कहा: एक मन फिरानेवाले पापी के विषय में स्वर्ग में इतना ही आनन्द होगा, जितना कि निन्नानवे ऐसे धर्मियों के विषय नहीं होता, जिन्हें मन फिराने की आवश्यकता नहीं। (लूका 15:7-16)

3. प्रभु यीशु ने कहां मेरे पीछे चले आओं और मैं तुमको मनुष्यों को पकड़नेवाले मछुवे बनाउंगा। (मत्ती 4:19)

4. प्रभुजी ने कहां ‘‘फसल तो तैयार’’ है पर फसल काटने वाले मज़दूर (आत्मा बचाने वाले) कम है। (लूका 10:2)

5. प्रभु यीशु ने महान आदेश दिया कि ‘‘जाओ सब जाति के लोगों को शिष्य बनाओं, उन्हें बप्तिस्मा दो और उन्हें आत्मा बचाना सिखाकर भेज दो।“ (मत्ती 28:19-20)

6. प्रभु यीशु ने कहा ‘‘हरएक आत्मा’’ संसार के सारे धन और दौलत से कहीं अधिक बहुमूल्य है।“ (मत्ती 16:26)

7. प्रभुजी ने अंतिम आदेश दिया कि ‘‘तुम जाओ और पृथ्वी के छोर तक मेरी गवाही देकर आत्माओं को बचाओ। (प्रेरितों के काम 1:8)

8. प्रभु यीशु ने कहा ‘‘जाओं, आत्माओं को बचाओं’’ उनकी आत्मिक आँखें खोलो, उनको अन्धकार से ज्योंति में और शैतान के राज्य से निकालकर परमेश्वर के राज्य के वारिस बनाओ । (प्ररितों के काम 26:18)

9. प्रभु यीशु ने कहा ‘‘जैसे पिता ने मुझे भेजा वैसे मैं भी तुम्हे भेजता हूं’’ कि आत्माओं को बचाओं। (यूहन्ना 20:21)

10. प्रभु ने ‘‘पांच प्रकार के वरदानी सेवक (प्रेरित, भविष्यवक्ता, प्रचारक, रखवाला और शिक्षक) अपनी कलीसिया को दिया, ताकि कलीसिया भटकी हुई आत्माओं को बचाने का कार्य करे। (इफिसियों 4:11,12)

11. जो एक पापी को गलत रास्ते से फेर लाये, वह उसकी आत्मा को मृत्यु से बचायेगा और अनेक पापों को ढांपेगा। (याकूब 5:20)

12. प्रभु परमेश्वर नही चाहता कि एक भी आत्मा नाश हो, परन्तु सब सच्चाई (यीशु) को जाने और उद्धार पायें। (1तिमोथी 2:4)

13. एक परिपक्व मसीही वह है जो एक अविश्वासी से वार्तालाप करके उस की आत्मा को बचाता है। (तीतुस 1:9)

14. जो रोता (आंसुओं से प्रार्थना) करता हुआ बहुमुल्य बीज लेकर बोने जाता है, (सुसमाचार सुनाने) वह आवश्य खुश हो कर लौटेगा और अपने पूले (उद्धार पाई हुई आत्माओं) को अपने साथ लायेगा। (भजन संहिता 126:5)

15. पौलुस प्रेरित ने कहा कमजोरों के लिए मैं कमजोर हो गया, कि मैं कमजोरो को जीत सकूं, मैं सभी मनुष्यों के लिए सभी चीजें बन गया, ताकि मैं हर तरह से कुछ आत्मओं को बचा सकूं। (1कुरिन्थियों 9:19-22)

16. धर्मी का फल जीवन का वृक्ष है, और जो बुद्धिमान है, वह आत्माओं को बचाता है। (नीतिवचन 11:30)

17. यदि तुम अपने मुख से यीशु को प्रभु स्वीकार करो, और हृदय में विश्वास करो कि परमेश्वर ने उसे मृतकों में से जीवित किया, तो तुम उद्धार पाओगे। "जो भी प्रभु के नाम से पुकारता है, बच जाएगा।" (रोमियों 10: 9-13)

18. पुराने नियम में याजक मंदिर में पशु का बलिदान चढ़ाता था, लेकिन पौलुस प्रेरित प्रभु यीशु का याजक होकर, कलीसिया में अन्यजातियों को उद्धार दिलाकर जीवित बलिदान के रूप में चढ़ाता था । (रोमियों 15:16)

19. पौलुस प्रेरित ने कहा, '' मेरे मन कि उमंग ये है जहाँ मसीह का नाम नहीं लिया गया है वहाँ पवित्र आत्मा कि सामर्थ से चिन्हों और चमत्कार से पूरी तरह सुसमाचार का प्रचार करके आत्माओं को बचाऊँ । (रोमियों 15:19,20)

20. प्रभुजी ने चेतावनी दी कि आपका न्याय आपके फल (बचाए हुए आत्माओं) पर निर्भर करेगा। (मत्ती 7:20

21. प्रभु यीशु ने कहा, “परमेश्वर की महिमा इससे होती है जब आप बहुतायत से फल (बचाई हुई आत्माएं) लाते हैं, तब ही आप मेरे शिष्य होंगे”। (यूहन्ना 15: 8)

22. प्रभु यीशु ने आत्माओं को बचाने के लिए 70 शिष्यों को दो दो करके भेजा। उसने उनसे कहा कि इसलिए आनन्दित न हो क्योंकि दुष्ट आत्माएं तुम्हारे नियंत्रण में हैं लेकिन इसलिए आनंद मनाओ क्योंकि तुम्हारे नाम स्वर्ग की पुस्तक में लिखे गए हैं। (लूक 10: 1-9; 19,20)

23. रेप्चर या अलगाव के दिन प्रभु जी बादलों में आएंगे और जिन्दे और मुर्दे बिश्वासी, सात साल के सताव के पहिले उठा लिए जायेंगे । ये वे होंगे जिनके नाम जीवन कि पुस्तक में होंगे और ये वो होंगे जिन्होंने आत्माए बचाई। 

24. और जो भूमि के नीचे सोए रहेंगे उन में से बहुत से लोग जाग उठेंगे, कितने तो सदा के जीवन के लिये (आत्मा बचानेवाले), बाकी शर्मनाक होंगें और हमेशा की सजा भोगेंगे। (दनिएल 12: 2)

25. तब बुद्धिमान (आत्मा बचानेवाले) जिसका नाम मेमने की पुस्तक में लिखा पाया जायेगा), आकाश में चमकेगा, और जिन्होंने आत्माओं को बचाया, वे सितारों कि तरह हमेशा हमेशा के लिए चमकेंगे । (दानिएल 12: 1-3)

26. यहाँ पर आप अपनी प्रतिदिन की डायरी लिखतें हैं या नहीं परन्तु स्वर्ग में आपकी प्रतिदिन की डायरी लिखी जाती है। तो क्या उसमे कुछ ऐसे पृष्ट मिलेंगे जहाँ लिखा होगा कि आज इन्होने दो पैर वाली मछली पकड़ी; या इन्होने एक भटकी हुई भेड़ को सही रास्ते पर लाया; या इन्होने मजदूर के तरह आत्मिक फसल काटा; या इन्होने एक अन्यजाती को अपनी गवाही सुनाकर प्रभु में लाया; और या फिर इन्होने पवित्र आत्मा की सहायता से सामर्थ के काम किये जिससे लोगो ने प्रभु येशु पर ईमान लाया; या इन्होने बहुत सा फल लाकर परमेश्वर की महिमा की है; या इन्होने एक शिष्य बनाया; यदि ऐसा पाया जायेगा तब ही आपका नाम जीवन की पुस्तक में निश्चय  लिखा जायेगा। यदि आपकी डायरी के सारे पृष्ट कोरे मिलेंगे तो परिणाम भयानक हो सकते हैं इसलिए मूल्याकन कीजिये और अपने जीवन शैली में जरूरी बदलाव लाइए ताकि आप दिलेरी से परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर सकें । (मत्ती 7:20; प्रकाशित वाक्य 20:12.15)

27.यदि आप एक ऐसी कलीसिया के सदस्य हैं जिनको खोई हुई भेड़ों को उद्धार दिलाने का कोई बोझ नहीं है और जो आपको आत्मा बचाने का प्रशिक्षण नहीं देते हैं तो ऐसी कलीसिया के किताब में नाम दर्ज होने से आपको कब्रिस्तान में जगह जरूर मिल जाएगी परन्तु स्वर्गीयस्थान में जगह प्राप्त होना संभव नहीं है। प्रभुजी की आज्ञानुसार इस कलीसिया से बाहर निकलना जरूरी है । आपको दूसरी कलीसिया से नहीं जुड़ना है क्योंकि आज मनुष्यों  द्वारा निर्मित परमपरागत कलीसियायें (जहाँ भवन, तन्खाधारी अगुवे, गीत संगीत, भाषण, दसवांअंश को महत्वता दी जाती है परन्तु गुमराह आत्माओं को उद्धार दिलाने का कोई बोझ नहीं होता) करीबन सब ही का यही हाल है । या तो आप किसी बाइबिल पर आधारित गृह कलीसिया (घर घर शिष्य बनाना और रोटी तोड़ना) से जुड़िये या फिर पहिले आप बदलिए, फिर अपने परिवार को बदलिए और फिर अपने परिवार सहित दूसरों को परिवर्तित करके परमेश्वर का घराना स्थापित कीजिये । प्रभुजी का वायदा है कि जहाँ दो या तीन मेरे नाम से इकट्ठे होते हैं वहां मै उपस्थित होता हूँ। (2 कुरिन्थियों 6:16,17; इफिसियों 2:19,20; प्रेरित 2:37-39; 46,47; मत्ती 18:18-20)

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