क्या यह सब बड़ी कलीसियाओं में सम्भव है?

1.‘तुम आपस में एक दूसरे के साम्हने अपने अपने पापों को मानलो, और एू दूसरे के लिये प्रार्थना करो जिससे चंगे हो जाओ’’। (याकूब 5ः16)

छोटे झुण्डों में भी यह कार्य मुश्किल होता है कि सब जन एक दूसरे के साम्हने अपने अपने पापों को मान लें और एक दूसरे के लिये प्रार्थना करें परन्तु बड़े झुण्डों में तो यह एक दम असम्भव होता है।

2. ‘‘एक दूसरे को समझाते (उत्साहित करते) रहो’’ (इब्रानियों 3ः13)। क्या सप्ताह में एक दिन होने वाली रविवारीय सभा में यह सम्भव है? प्रतिदिन समझना और उत्साह वर्धन करना प्रतिदिन की सभाओं में ही सम्भव है।

3. ‘‘तू वचन को प्रचार कर, समय और असमय तैयार रह, सब प्रकार की सहनशीलता और शिक्षा के साथ उलाहना दे और डांट और समझा’’ (2तीमुथियुस 4ः2)। डांटना और समझानां कहां सम्भव है? यह केवल छोटे झुण्डों के अंतरंग सम्बन्ध वाले वातावरण में ही हो सकता है। 

4. ‘‘और प्रेम और भले कामों में उस्काने के लिये एक दूसरे की चिन्ता किया करें’’ (इब्रानियों 10ः24,25)। यदि आप बड़ी मण्डलियों में किसी को इस प्रकार की सलाद दें तो हो सकता है कि वह बुरा मान जाएं और आपसे कह दे कि आप अपना काम देंखें। 

5.‘हे भाईयों जब तुम इकट्ठे होते हो तो हर एक के हृदय में भजन या उपदेश या अन्य भाषा या प्रकाश या अन्य भाषा का अर्थ बताना रहता है, सब कुछ आत्मिक उन्नति के लिये होना चाहिये’’ (1कुरिन्थियों 14ः26)। इस आदेश की सभी चर्चो में अवहेलना होती है, क्योंकि बड़ी मण्डलियों में यह सम्भव नहीं है कि प्रत्येक को अपनी बात व्यक्त करने का अवसर दिया जा सके, जो उन्नति के लिये बहुत आवश्यक है। 

6. जब आप उपवास के साथ प्रार्थना करते हैं, जैसा कि अन्ताकिया की कलीसिया ने किया था, तो क्या पवित्र आत्मा को यह अधिकार मिला हुआ है कि वह आपकी इक्लीसिया को यह बता सके कि मिशनरी/धर्म प्रचारक की हैसियत से किसको जाना है? (प्रेरितों के काम 13ः1-3) हो सकता है आपका चर्च अपने ही कार्यक्रमों में इतना व्यस्त हो कि उसके पास पवित्र आत्मा की आवाज सुनने के लिये समय ही न हो। क्या आपकी इक्लीसिया सच में परिपक्व हो सकती है जब तक वह सुसमाचार प्रचारकों को भेजने न लग जाए?

7. ‘‘मसीह के वचन को अपने हृदय में अधिकाई के साथ बसने दो और सिद्ध ज्ञान सहित एक दूसरे को सिखाओ और चिताओ और अपने अपने मन में अनुग्रह के साथ परमेश्वर के लिये भजन और स्तूति गान और आत्मिक गीत गाओ’’ (कुलुस्सियों 3ः16) यदि आप किसी भी भर्त्सना करना चाहे या आत्मा की अगुवाई में होकर बड़ी सभा में अपने आप गाना गाने लगे तब वहां के स्वंय संवकों द्वारा आप बहुत जल्दी बाहर ले जाए जाएंगे।

8.‘‘और मसीह के भय से एक दूसरे के आधीन रहो’’ (इफिसियों 5ः21)। बड़ी मण्डलियों में आप कितने लोगों की आधीनता में आ सकते है? उनमें कुछ तो नया जन्म प्राप्त भी नहीं होंगे, हो सकता है आप उनमें से बहुत सों के आधीन होने से इन्कार कर दें। परन्तु परमेश्वर की सच्ची इक्लीसिया में प्रत्येक जन एक दूसरे के आधीन हो जाता है। 

9. प्रभु ने एक नई आज्ञा दी; एक दूसरे से इतना अधिक प्रेम रखो कि दूसरे विश्वास के लोग प्रभु में विश्वास करने लग जाएं (यूहन्ना 13ः34,35) इस प्रकार के प्रेम का दर्शाया जाना बड़ी मण्डलियों में सम्भव नहीं है, यह केवल छोटे झुण्डों के एक घराने जैसे माहौल में सम्भव है। 

10. ‘‘शान्ति का परमेश्वर शैतान का सिर कुचला जा रहा है? शैतान के सिर को कुचलने के लिये जानना होगा कि उसका सिर कहां है, और फिर प्रार्थना भ्रमण कीजिये, उसे पैरों से रौंदिये, परमेश्वर से उस क्षेत्र का दावा करके मांग लीसिये और स्थिर निवास के लिये एक इक्लीसिया की स्थापना कर दीजिये। 

11. ‘‘उस समय वह सारी प्रधानता और सारा अधिकार और सामर्थ का अन्त करके, राज्य को परमेश्वर पिता के हाथों में सौंप देगा’’। (1कुरिन्थियों 15ः24) क्या आपकी कलीसिया प्रभु के अचानक किसी भी घड़ी लोने वाले द्वितीय आगमन के लिये, गम्भीरता पूर्वक तैयारी कर रही है? यदि नहीं तो अच्छा होगा कि आप गन्दी नालियों की सफाई करें और शहर को झण्डों, फूलों, तोरणों, से सजा डालें, और एक बड़ी भीड़ उनके स्वागत के लिये जमा कर लें। 

12. ‘‘आपस में पवित्र चुम्बन से नमस्कार करो’’ (रोमियों 16ः16; 1पतरस 5ः14)।

क्या आपके चर्च के सदस्यगण आपस में एक दूसरे से पवित्र चुम्बन के साथ मिलते है? यदि नहीं तो क्यों नहीं? क्या ऐसा इसलिये है कि इस तरह के आत्मीय प्रदर्शन का गलत अर्थ लगा लिया जाएगा? तब ऐसे स्थान पर सदस्यता रखिये जहां ऐसा करना व्यवहारिक हो। दूसरे जन नई बस्तियों में नई इक्लीसियाएं आरम्भ कर सकते हैं।

लालसा की कबरेंः धर्मशास्त्र का सरसरी तौर से किया गया अध्ययन ‘‘एक दूसरे’’ के विषय में बहुत से आदेशों और हिदायतों को प्रगट करता है, जो वर्तमान कार्य प्रणाली वाले ढांचे में व्यवहारिक नही है। आज्ञाकारिता के लिये माप (Sige) और ढांचागत कार्य प्रणाली बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखते है। अच्छा होगा यदि देह की छटाई की जाए और अतिरिक्त चरबी निकाल दी जाए, जब तक वह परमेश्वर की आज्ञाओं को पूरा करने योग्यता न प्राप्त करले (यूहन्ना 4ः21-23)। 

इक्लीसिया कहलाने के लिये केवल दो या तीन विश्वासियों को प्रभु के नाम में जमा होने की आवश्यक्ता है, जो ऊपर दिये गए सारे आदेशों का पालन कर सकती है। वे परमेश्वर से कुछ भी मांग सकते हैं, केवल यह समझना चाहिये कि वे इस समझौते के अन्तर्गत हैं कि इससे परमेश्वर की महिमा होगी। सच्चाई यह है कि परमेश्वर उसका आदर करेंगे यद्यपि वे इससे सहमत नहीं है, जैसा कि उन्होंने इस्राएलियों साथ किये थे जब उन्होंने बियाबान जंगली स्थान में मांस खाने की लालसा किये थे। परमेश्वर ने उन्हें बटेरें खाने के लिये दिये परन्तु तब उन्होंने वहां ‘‘जंगल के बियाबान में मारा (भजन संहिता 106ः 14,15; गिनती 11ः31-33)। 

वह जगह जहां यह हादसा हुआ था ‘‘किब्रोथ त्तावा’’ कहलाया जिसका अर्थ है ‘‘लालसा (तृष्णा) की कबरें’’। हो सकता है शायद आप खाड़ी देशों में नौकारी पाने की लालसा रहखते हो, और परमेश्वर इसे आपको दे भी दें परन्तु यह अपनी कबर खोदने जैसा होगा क्योंकि हो सकता है यह परमेश्वर की योजनाओं के अन्तर्गत न हो। 

केवल नमूने के अनुसारः ऊष्मा गति की (Thermodynamic) कि दूसरे सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक वस्तु क्षरण या नष्ट होने की प्रक्रिया में से गुजरती है। लकड़ी सड़ जाती है, लोहे में जंक लग जाता है, जीवित प्राणी एक दिन मिट्टि बना जाएंगे और यह विश्व भी धीमी गति से हो रही मृत्यु से मर रहा है। आधुनिक चर्च भी कोई अलग चीज नहीं है। प्रथम महायाजक हारून के पुत्र नादाब और अबीहू ने परमेश्वर के नमूने को बदलने की कोशिश किये और मर गए। हमेशा तब बने रहने के लिये इक्लीसिया को मनुष्यों के द्वारा बनाए गए कानूनों के अनुसार नहीं चलना है वरन अक्षरशः परमेश्वर के द्वारा दिये ‘‘नमूने के अनुसार’’ कार्य करना है (लैव्यवस्था 10ः1-2; निर्गमन 25ः9; इब्रानियों 8ः5)

सभी मसीही एक तरफ से इतिहास में लौटकर परम्पराओं को खोजने कलीसियाई पितरों (Church Fathers) के पास जाते है।

परमेश्वर कहते हैः ‘‘यहोवा यों कहता है, सड़कों पर खड़े होकर देखो, और पूछो कि प्राचीन काल का अच्छा मार्ग कौनसा है, उसी में चलो, और तुम अपने अपने मन में चैन पाओगे। पर उन्होंने कहा, ‘‘हम उस पर न चलेंगे’’ (यिर्मयाह 6ः16)। 

‘‘जो आंसू बहाते हुए बोते हैं वे जयजयकार करते हुए लवने पाएंगे। चाहे बोने वाला बीज बोकर रोता हुआ चला जाए परन्तु वह फिर पूलियां लिये जय जयकार करता हुआ निश्चय लौट आएगा। (भजन संहिता 126ः5,6)

‘‘तब राजा अपनी दाहिनी ओर वालों से कहेगा, ‘‘हे मेरे पिता के धन्य लोगों, आओ उस राज्य के अधिकारी हो जाओ। जो जगत के आदि से तुम्हारे लिये तैयार है’’। (मत्ती 25ः34

‘‘हे छोटे झुण्ड मत डर, क्योंकि तुम्हारे पिता को यह भाया है कि तुम्हें राज्य दें’’। (लूका 12ः32)

बहुत से मिशनरी/सुसमाचार धर्म प्रचारक अपनी प्रेरितीय बुलाहट को खो देते हैं, जब वे एक इक्लीसिया स्थापित करते हैं और वहां स्थानीय पास्टर बनकर स्थाई रूप से रूक जाते हैं।

यीशु ने साधारण मनुष्यों को लेकर उन्हें चेले बनाने के लिये तीन वर्षों का समय लिये। और उसके बाद पवित्र आत्मा ने काम सम्भाला और उन्हें प्रेरित अर्थात ‘‘भेजे हुए’’ बना दिया। 

कोई भी अच्छा स्कूल नहीं चाहता कि कोई बच्चा एक ही क्लास में हमेशा बना रहे। 

कोई भी जन जो वर्षों तक उसी चर्च का सदस्य बना रहता है, एक दूध पीने वाला मसीह है, क्योंकि उस समय तक तो उसे शिक्षक (सिखाने वाला) बन जाना चाहिये था। या तो वह एक मन्द बुद्धि चेला है और या उसे सिखाने और परामर्ष देने वाले सुस्त हैं। (इब्रानियों 5ः12-14; मत्ती 10ः24,25)

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