अन्ताकिया की इक्लीसिया - एक आदर्श नमूना

 अन्ताकिया एक सुन्दर बड़ा नगर था जिसे पूर्व की रानी कहा जाता था। यहां का मुख्य देवता चारोन (Charon) था जो मृतक आत्माओं को अधोलोक में ले जाता था। वे अपोलो की भी उपासना करते थे और वहां अनैतिकता फल फूल रही थी। आठ वर्षों के अन्दर, यहूदी यरूशलेम को कलीसियाओं की स्थापना से भर देने का कार्यक्रम पूरा हो गया। वास्तव में वह शहर पश्चीय - मसीह (Post Christion) युग में प्रवेश कर चुका था क्योंकि सताव के कारण हजारों मसीही शहर छोड़कर भाग चुके थे। बहुतेरे तो दूसरी जगहों पर इक्लीसियाएं स्थापित कर रहे थे। यहूदी नमूना, यरूशलेम के नमूने का ही रूप था, परन्तु प्रेरित जो मुख्य नायक थे अब वहां नहीं थे, यद्यपि वे समय पर यात्रा करके उनसे मिलते रहते थे।

राज्य के विस्तार का दूसरा भाग, अन्यजाति कुकरनेलियुस के पवित्र आत्मा के बपतिस्मा से प्रारम्भ हुआ, जो यहूदियों के लिये एक क्रान्तिकारी घटना थी। वास्तव में वह सभी जातियों और एक अन्य जातीय पिन्तेकुस्त की प्रतिज्ञा का पूरा होना था (प्रेरितों के काम 11ः19,20)। 

प्रेरितों ने तुरन्त ही एक वरिष्ठ अगुवे को भेजा, जिसने साक्षात सब कुछ देखा। उसने महसूस किया कि इस अन्यजातीय इक्लीसिया को धर्मशास्त्र के गहरे ज्ञान की आवश्यक्ता है, इसलिये वह स्वंय तरसुस गया और पौलूस को सब बाते समझाकर ले आया। बरनबास और पौलूस दोनों ही अन्यजातीय देशों में बढ़े थे और वे घर पर तो इब्रानी भाषा बोलते थे और बाजार में यूनानी भाषा बोलते थे। वे दोनों यूनानी संस्कृति से परिचित थे। भाषाई और सांसकृतिक अड़चनों के कारण यरूशलेम से कोई धुरन्धर प्रेरित भी वहां किसी काम नहीं होता। दोनों ने मिलकर उन्हें एक वर्ष तक वचन से समझाया जिसके परिणाम स्वरूप इस इक्लीसिया के भविष्यद्वक्ता और वरदानयुक्त शिक्षक हो गए थे। इस इक्लीसिया का प्रशासन इतना समतल था कि वहां कोई प्राचीन भी नही था। ये चेले प्रथम थे जो मसीही कहलाए (प्रेरितों के काम 13ः1-3; 11ः25,26)।

एक दिन उपवास और प्रार्थना करते समय उन्होंने पवित्र आत्मा की आवाज सुना और उसके अनुसार उनके वरिष्ठ अगुवों पर हाथ रखे और पौलूस और बरनबास को पूर्ण कालिक मिशनरी धर्म प्रचारक के रूप में भेज दिया। 

वे यहूदी जो खतने और सब्त के नियमों का समर्थन करते थे, मसीही बनने की पहली जरूरत के रूप में इन रीति रिवाजों को पूरा कराने के लिये वहां आ गए। यहां तक कि पतरस और बरनबास भी उनकी बातों में आ गए परन्तु पौलूस ने साहसपूर्वक उन्हें डांटा। तब यरूशलेम में आयोजित परिषद ने अन्यजातियों को यहूदी परम्पराओ के दासत्व से मुक्ति का समाचार दिया (प्रेरितों के काम 15ः5; गलातियों 2ः11-14)। इस हादसे के बाद उस पूरे क्षेत्र में परमेश्वर का वचन फैल गया (प्रेरितों के काम 13ः48,49)

अन्ताकिया की कलीसिया एक आदर्श नमूना है, क्योंकिः 

1. क्योंकि वह साधारण विश्वासियों द्वारा स्थापित की गई थी (प्रेरितों के काम 11ः19-20)।

2. पौलूस और बरनबास ने वहां वरदानों से युक्त बहुत सी जातियों से मिलकर मण्डली की स्थापना की थी। 

3. यह इक्लीसिया किसी एक अगुवे द्वारा शासित नहीं थी परन्तु वहां क्षैतिजी बहुत से वरदानों से युक्त अगुवे थे, जैसे शिक्षक, भविष्यद्वक्ता, और दूसरे भाई। 

4. वे पवित्र आत्मा द्वारा दिये गए प्रगटीकरणों के प्रति अति संवेदनशील, ध्यान देने वाले और जवाब देह थे। वे उपवास और प्रार्थना करते थे, उन्होंने अपने वरिष्ठ अगुवों पर हाथ रखे और उन्हें मिशनरियों की हैसियत से भेज दिया। 

5. यहां तक कि अपने प्रारम्भिक दिनो में ही, इस इक्लीसिया ने यरूशलेम ने भीषण अकाल से पीड़ित लोगों के लिये आर्थिक मदद भेजी। (प्रेरितों के काम 11ः20,30)

6. वह यरूशलेम से भी आगे निकल गई और रणनीतिक कार्यो का केन्द्र बन गई और अन्यजातीय विश्व में कार्य आरम्भ करने के लिये एक सुस्थापित केन्द्र बन गई। 

7. पौलूस और बरनबास इस इक्लीसिया के लिये जिम्मेदार थे और समय समय पर वापस लौटकर उन्हें अपने काम की प्रगति सूचना देते रहते थे (प्रेरितो के काम 14ः26,27)।

अन्ताकिया नमूने में हमारे लिये बहुत से महत्वपूर्ण सबक रखे हुए हैं। पथम तो यह कि एक कम समय की इक्लीसिया द्वारा भी सुसमाचार प्रचारक व मिशनरी भेजे जा सकते हैं। दूसरी बात यह है कि वरिष्ठ अगुवों को इक्लीसिया की जिम्मेदारी स्थानीय विश्वासियों को सौंप देना चाहिये। यह अर्थपूर्ण है कि इक्लीसिया ने पौलूस और बरनबास को कोई आर्थिक सहायता नहीं दी। उन्हें अपना खर्च स्वंय वहन करना था। यह आधुनिक मिशनरियों को महत्वपूर्ण सूचना देता है (फिलिप्पियों 4ः14-19)। यदि वे वहां रूक जाते तो वे कलीसिया को सम्भालते रहते। आजकल बहुत से सुसमाचार प्रचारक व मिशनरी यही गलती करते हैं। तीसरी बात यह है कि हमें कभी भी अपने कार्यक्रमों में इतना व्यस्त नहीं होना चाहिये कि हमें पवित्र आत्मा की सौम्य कोमल आवाज भी सुनाई न दे। इस इक्लीसिया ने विश्व का सुसमाचार प्रचारीक नक्शा ही बदल दिया। 

आओ इक्लीसिया

मनुष्य के द्वारा बनाया गया चर्च ‘‘आओ चर्च’’ होता है। यीशु मसीह की इक्लीसिया ‘‘जाओ इक्लीसिया है। प्रभु प्रतिदिन नये चेले बनाने जाते थे और अपने चेलों को दो दो करके उन स्थानों पर भेजते थे, जहां पर वे आप जाने वाले होते थे (लूका 10ः1)।

यह जानने का सबसे अच्छा तरीका, कि आपकी कलीसिया ‘‘आओ चर्च’’ है या ‘‘जाओ इक्लीसिया है, यह है कि आपको उपदेश के बाद ध्यान पूर्वक सुनना चाहिये कि स्थानीय पास्टर क्या सूचना सुनाते हैं। यदि पास्टर कहता है सोमवार भ्राता सभा होगी जरूर आईये, मंगलवार महिलाओं की सभा में जरूर आईये, बुधवार को युवक युवति संघ की सभा होगी आवश्य आईये, बृहस्पतिवार को घरेलू मीटिंग होगी जरूर आईये, शुक्रवार को पास्टर की कमेटी सभा होगी आईये, और रविवार तो आप जानते ही हैं हम यही जमा होंगे अवश्य आईये, परन्तु अपना दान लाना न भूलें। अब आप पहिचान गए होंगे कि यह कलीसिया ‘‘आओ चर्च’’ है। 

जाओ इक्लीसिया

और यह समय है कि आप जाकर स्वंय चेले बनाएं और अपनी स्वंय की ‘‘जाओ इक्लीसिया’’ बनालें।

परमेश्वर कहते हैं देखो, ‘‘सभों के प्राण तो मेरे हैं’’ उनकी महान इच्छा यह है कि वे उद्धार पाए हुओं और उद्धार-रहित लोगों के बीच की दरार को भर दें। वे ऐसे लोगों को ढूढ़ रहे हैं जो परम्परावादी सन्दूक में से बाहर निकल आएं औश्र उस बीच की खाली जगह में खड़े हो जाए (यहेजकेल 18ः4, 23; 22ः30)।

परमेश्वर ने योन से कहा, कि वे सारे नगर वासियों के लिये चिन्तित हैं, जिसमें वहां के पशु और पर्यावरण भी सम्मिलित है क्योंकि वे नहीं चाहते कि कोई नाश हो। यदि आपका दर्शन केवल आपके कुटुम्ब की अच्छाई या अपने चर्च/कलीसिया तक ही सीमित था, तो अब आप परमेश्वर के दर्शन के साथ बाहर आ चुके हैं, ये संसार में काम आरम्भ करने के लिये केवल एक मंच मात्र है। 

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