कलीसिया (चर्च) में मूर्तिपूजक परम्परांए एंव विधर्म - यौन क्रिया के नियम (Sex Laws), शौच व प्रसाधन के नियम - भाग 19
पवित्र भवन, ऊंचे घण्टाघर, क्रूस, रवि-वार (सन-डे), यहां तक कि प्रभु यीशु (लॉर्ड जीसस) और बहुत सी बातें हमारी मूर्तिपूजक विधर्मिता की बपौती हैं।
इक्लीसिया का प्रतिक चिन्ह दीवट (मेनोराह) ही है। (प्रकाशित वाक्य 1ः20)
यौन क्रिया के नियम (Sex Laws), शौच व प्रसाधन के नियम
यौन क्रिया के नियम (Sex Laws): अन्य जातीय विधर्मी संसार में, समलिंग कामुकता, स्वच्छन्द सम्भोग, विवाह पूर्व संभोग, कौटुम्बिक व्याभिचार, पशुगमन और तलाक अधिकाई के साथ होते थे (उत्पत्ती 19ः4,5), और यूनान के महान तर्कशास्त्री जैसे एरिस्टॉटल और प्लेटो और यहां तक कि पाप समर्थक लोगों पर भी पुरूषा गामी होने और मृदा की बीमारी के दोष लगाए गए। अब ये पाप या तो चर्च मण्डलियों में क्रियाशीलता के साथ फैल रहे हैं और या उन्हें चुपचाप बर्दाश्त किया जा रहा है। यह दूषित गंदे दिमागों द्वारा उत्पादित है जो देश को भृष्ट करते और उस पर श्राप ले आते हैं। धर्मशास्त्र में दी गई धर्म विधियों का कड़ाई के साथ पालन करने से अवैध यौन क्रियाओं द्वारा फैलने वाली बीमारियों, जैसे एड्स को और पीड़ित परिवारों के अकश्य दुःखों को समाप्त किया जा सकता है। (लैव्यवस्था 18 अध्याय; रोमियों 1ः26-32)
शौच व प्रसाधन के नियमः प्रति वर्ष लाखों लोग, अतिसार, दस्त, पेचिश (रक्ततिसार), डेल्हि बेल्ली, है जा, आन्त्राज्वर (Typhoid), पीलिया इत्यादि से मर जाते हैं। इसका मुख्य कारण गरीबों में और विशेषकर बच्चों में सफाई का कुप्रबन्ध व अस्वच्छता है। दो तिहाई विश्व में करोड़ों लोग हैं जिनके लिये सम्भव नहीं है। दो तिहाई विश्व में करोड़ों लोग हैं जिनके लिये सम्भव नहीं है। दो तिहाई विश्व में अपने लिये स्वक्षालन। फ्लश शौचालय बना सकें। यहूदियों के लिये भी जंगल की मरूभूमि में फ्लश शौचालय नहीं था परन्तु उन्हें इनमें से कभी कोई बीमारी नहीं हुई (निर्गमन)। याहवेह ने उन्हें आज्ञा दिये थे कि वे अपने साथ एक खनती रखें ताकि छोटा गड़हा खोदकर उसमें अपने मल को मिट्ठी से ढंक सकें। इस सस्ते और प्रभावी उपाय में शक्ति थी कि बहुत सी होने वाली बीमारियों को रोककर समाप्त कर दे और भूमि को भी उपजाऊ बना दे। (व्यवस्था विवरण 23ः12-14)
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