कलीसिया (चर्च) में मूर्तिपूजक परम्परांए एंव विधर्म - बपतिस्मा, ख़तना - भाग 18

   पवित्र भवन, ऊंचे घण्टाघर, क्रूस, रवि-वार (सन-डे), यहां तक कि प्रभु यीशु (लॉर्ड जीसस) और बहुत सी बातें हमारी मूर्तिपूजक विधर्मिता की बपौती हैं।

इक्लीसिया का प्रतिक चिन्ह दीवट (मेनोराह) ही  है। (प्रकाशित वाक्य 1ः20)

बपतिस्मा: यह एक वैवाहिक उत्सव है जिसमें दुल्हिन अन्य सभी विवाहार्थियों को छोड़ देती है, संसार के लिये मर जाती है, शुद्धिकरण का स्नान करती है, अपने लिये अपने पति का नाम रख लेती है, उससे लगी लिपटी रहती है और वायदा करती है कि वह उसके प्रति सदा वफादार बनी रहेगी, उसके आधीन रहेगी, और उसके लिये सन्तान उत्पन्न करेगी (व्यवस्थाविवरण 10ः16,20)। पति उसे वैसा ही प्रेम करने का वचन देता है, जैसा वह अपनी देह से करता है और उसकी और उनके बच्चों की हर एक आवश्यक्ता की पूर्ती करने और उनका पालन पोषण करने का भी वचन देता है (इफिसियों 5ः21-33)।  विवाह एक वाचा (beryth) है, जिसका अर्थ होता है काटना (Cut)। याहशुआ काट डाले गए और उनकी दुल्हिन पर उनके रक्त की मुहर लगा दी गई। पुराने नियम की वाचा को पुरूषों की खलड़ी को काटकर बांधा गया था, परन्तु नये नियम का खतना, पुरूषों और महिलाओं दोनों के लिये, हृदय का है, और बपतिस्मा के समय वैवाहिक वाचा की मुहर लग जाती है। शैतान की रणनीति है कि वह इस वैवाहिक वाचा को अशुद्ध करदे और नाश करदे। उसने यह काम पुराने नियम की वाचा (अहद) में कर चुका है, और अब नई वाचा में भी कर रहा है, जो कि हृदय का मार्मिक सम्बन्ध है, और कोई रीति रिवाज़ नहीं है (रोमियों 2ः29; यिर्मयाह 4ः4; व्यवस्थाविवरण 30ः6)। इसीलिये इस्राएल को भी व्याभिचारिणी और वेश्या कहा गया था (नहूम 3ः4)। और चर्च/कलीसिया को जो जानकर या अनजाने में मूर्तिपूजा व विधर्म को अपनाती है उसे ईजबेल कहा गया है। आज दुल्हिन सफेद मलमल पहिने हुए नहीं है परन्तु वह लाल, किरमिजी, काले और दूसरे अन्यजातीय विधर्म के वस्त्र पहिने हुए है (प्रकाशित वाक्य 2ः20-23; 19ः8; 17ः4)।

ख़तनाः उस दिन जब परम पवित्र स्थान का परदा फट गया था, सभी रिवाजी नियम, जिनमें खतना भी सम्मिलित था समाप्त हो गए। परन्तु तौभी जिस प्रकार हवाई जहाज में, उड़ान भरते समय आपको सुरक्षा की दृष्टि से बैल्ट लगाना पड़ता है, और उस सुरक्षा बैल्ट को सांकेतिक चिन्ह का बटर ऑफ होने के बाद भी लगाए रहना पड़ता है। खोज प्रगट करते हैं कि यहूदी महिलाओं को अपेक्षाकृत गर्भाशय कैंसर (Cervix) कम होते हैं। यह महिलाओं में साधारणतः होने वाले केन्सरों में से एक है, दूसरा केंसर स्तन का होता है। खलड़ी के अन्दर स्मेग्मा होता है जो जलन या खुजान उत्पन्न करता है। आठवें दिन खतना कराने का एक विशेष महत्व है। एक शिशु जब अपनी माता के गर्भाशय में रहता है तब वह आक्सीजन की कम मात्रा वाले वातावरण में रहता है, और उसकी पूर्ति अपने अन्दर खून में लाल कणों को अधिक मात्रा में उत्पादन करके पूरी कर लेता है। जब वह बाहर स्वच्छ हवा में स्वांस लेने लगता है, तब इनकी आवश्यक्ता नहीं पड़ती, अतः जितने खून में अतिरिक्त लाल कण थे वे नष्ट हो जाते हैं और कलेजे पर ज्यादा भार कर देते हैं जिससे पीलिया हो जाता है और वह क्लाटिंग प्रणाली में व्यवधान करता है। तौभी कलेजा फिरसे बल प्राप्त कर लेता है और आठवें दिन एक शिशु में सबसे अधिक प्रोथ्रोम्बिन (Prothrombin) क्षमता होती है, यह क्लाटिंग घटक है जो रक्त रिसाव को रोकता और किसी भी शल्य चिकित्सा को सुरक्षित कर देता है। खतना अब वाचा का चिन्ह नहीं रहा, क्योंकि अब प्रत्येक जन को हृदय के खतने से जाना होता है, परन्तु धर्मशास्त्र में लिखित स्वास्थ्य नियम अभी भी युक्ति संगत हैं और कभी कभी सांस्कृतिक आवश्यक्ता भी। (रोमियों 2ः29; 4ः11; प्रेरितों के काम 16ः1-3)



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