कलीसिया (चर्च) में मूर्तिपूजक परम्परांए एंव विधर्म - जीसस, Jesus, याहशुआ - भाग 15
पवित्र भवन, ऊंचे घण्टाघर, क्रूस, रवि-वार (सन-डे), यहां तक कि प्रभु यीशु (लॉर्ड जीसस) और बहुत सी बातें हमारी मूर्तिपूजक विधर्मिता की बपौती हैं।
इक्लीसिया का प्रतिक चिन्ह दीवट (मेनोराह) ही है। (प्रकाशित वाक्य 1ः20)
अभिव्यक्ति ‘‘राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु’’ को मूल इब्रानी और यूनानी भाषाओं में बडे़ केपिटल अक्षर नहीं होते हैं। शाऊल को बदलकर पौलूस कर दिया गया, क्योंकि यूनानी लोग ‘‘श’’ (Sh) का उच्चारण नहीं कर पाते थे। अंग्रेजी का जीसस (Jesus), ग्रीक का आइसाउस (Isis) का पुत्र था। यह आईसिस, चंगा करने वाले देवता एस्क्लेपियुस की पुत्री थी जो सूर्य देवता अलोल्लो का पुत्र था। इन दोनों के बीच कोई सम्बन्ध नहीं है।
याहशुआ जिसका अर्थ है याह जो उद्धार करते हैं या सहायता करते हैं और जीसस (Jesus), एक यूनानी देवता का नाम है। यहां तक कि संक्षिप्त रूप में य,शुआ भी उपयोग में नहीं लाना चाहिये क्योंकि पिता का नाम याह/याहू उसमें नहीं है। हमारे इलोहीम ने हमें आज्ञा दिये हैं कि, ‘‘दूसरे देवताओं के नाम की चर्चा न करना वरन वे तुम्हारे मुंह से सुनाई भी न दें’’ (निर्गमन 23ः13)। धर्म शास्त्र की इब्रानी भाषा की मूल प्रतियां, याहवेह की प्रेरणा से दिये गए वचन हैं, जबकि बाकी दूसरे अनुवाद, अनुवादकों और उनके आर्थिक मददगारों की सनक और कल्पना के आधीन किये और लिखे गए हैं। पुराने नियम में धर्मशास्त्र के वचनों और परमेश्वर (याहवेह) के नाम के बदले में कोई भी अन्य शब्द को लिखना सख्त मना था (व्यवस्था विवरण 4ः2; 12ः1-4; यूहन्ना 1ः38; मत्ती 12ः24; प्रकाशित वाक्य 19ः16) यह रूचिकर है कि शैतान ने यह निश्चित किया कि उसका नाम, सभी भाषाओं में अपरिवर्तित रहे।
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