कलीसिया (चर्च) में मूर्तिपूजक परम्परांए एंव विधर्म - अनिवार्य पर्व - भाग 11
पवित्र भवन, ऊंचे घण्टाघर, क्रूस, रवि-वार (सन-डे), यहां तक कि प्रभु यीशु (लॉर्ड जीसस) और बहुत सी बातें हमारी मूर्तिपूजक विधर्मिता की बपौती हैं।
इक्लीसिया का प्रतिक चिन्ह दीवट (मेनोराह) ही है। (प्रकाशित वाक्य 1ः20)
अनिवार्य पर्व
मन्दिर में, पुरूष केवल तीन पर्वों पर सहभागी होते थे।
1. अखमीरी रोटी का पर्व (लांघन का पर्व)
2. पिन्तेकुस्त (कटनी) का पर्व,
3. झोपड़ियों या बटोरन का पर्व।
1. अखमीरी रोटी का पर्व (लांघन का पर्व)
यह साल का पहला पर्व (निसान) है। यह त्यौहार अपने आप में सात दिनों को कवर करता है जिसमें पहले और आखिरी दिन उच्च सब्त होते हैं जिसमें कोई काम नहीं किया जाता है। इसकी शुरुआत फसह के स्मारक से हुई। दोनों पर्वों को एक माना जाता था और नामों को अक्सर एक दूसरे के स्थान पर इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन उद्देश्य में वे थोड़े अलग थे। फसह मिस्र के बंधन और गुलामी से इस्राएलियों के छुटकारे की याद दिलाता है (निर्ग. 12:13) जबकि अखमीरी रोटी जल्दबाजी का एक स्मारक था जिसमें इस्राएलियों ने मिस्र छोड़ दिया था।
“4 फिर यहोवा के पर्ब्ब जिन में से एक एक के ठहराये हुए समय में तुम्हें पवित्र सभा करने के लिये प्रचार करना होगा वे ये हैं। 5 पहिले महीने के चौदहवें दिन को गोधूलि के समय यहोवा का फसह हुआ करे। 6 और उसी महीने के पंद्रहवें दिन को यहोवा के लिये अखमीरी रोटी का पर्ब्ब हुआ करे; उस में तुम सात दिन तक अखमीरी रोटी खाया करना। 7 उन में से पहिले दिन तुम्हारी पवित्र सभा हो; और उस दिन परिश्रम का कोई काम न करना। 8 और सातों दिन तुम यहोवा को हव्य चढ़ाया करना; और सातवें दिन पवित्र सभा हो; उस दिन परिश्रम का कोई काम न करना॥” (लैव्यव्यवस्था 23:4-8; निर्गमन 13:4-10; गिनती 28:16-25; व्यवस्थाविवरण 16: 2-4, 8)।
खमीर का प्रतीक
परमेश्वर स्पष्ट था कि उस पर्व में रोटी अखमीरी होनी चाहिए क्योंकि खमीर पाप का प्रतिनिधित्व करता है (निर्ग. 12:15)। अखमीरी रोटी इस बात का प्रतीक थी कि लोग मिस्र के किसी भी प्रदूषणकारी प्रभाव में नहीं बल्कि जीवन की शुद्ध रोटी में भाग ले रहे थे। बाइबल के अनुसार, रोटी परमेश्वर के वचन का प्रतिनिधित्व करती थी। तो, अखमीरी रोटी खाना परमेश्वर के शुद्ध वचन को खाने का एक प्रकार है।
पौलुस ने अखमीरी रोटी का पर्व मनाने के संदर्भ में जीवन से पाप को दूर करने के बारे में बात की, “6 तुम्हारा घमण्ड करना अच्छा नहीं; क्या तुम नहीं जानते, कि थोड़ा सा खमीर पूरे गूंधे हुए आटे को खमीर कर देता है।
7 पुराना खमीर निकाल कर, अपने आप को शुद्ध करो: कि नया गूंधा हुआ आटा बन जाओ; ताकि तुम अखमीरी हो, क्योंकि हमारा भी फसह जो मसीह है, बलिदान हुआ है।
8 सो आओ हम उत्सव में आनन्द मनावें, न तो पुराने खमीर से और न बुराई और दुष्टता के खमीर से, परन्तु सीधाई और सच्चाई की अखमीरी रोटी से” (1 कुरिन्थियों 5:6-8)।
खमीर को हटाया जाना था क्योंकि यह घृणा और बुराई (1 कुरिं. 5:8), और झूठे सिद्धांत का प्रतिनिधित्व करता था, जैसा कि फरीसियों, सदूकियों और हेरोदियों की शिक्षाओं में दिखाया गया है (मत्ती 16:6, 12; मरकुस 8) :15)। फरीसियों का खमीर लालच और अन्याय है (मत्ती 23:14), असत्य उत्साह (पद 15), आत्मिक मानकों का गलत अनुमान (पद 16-22), न्याय की निगरानी, दया (व. 23), व्यर्थ सटीक (पद 24), दिखावा (पद 25-28), पूर्वाग्रह (पद 29-33), और निर्दयता (पद 34-36)।
सदूकियों का खमीर अविश्वास (मत्ती 22:23) और पवित्रशास्त्र और परमेश्वर की शक्ति के ज्ञान की कमी है (पद 29)। और हेरोदियों का खमीर चापलूसी, सांसारिकता, और कपट (पद 16-21), और परमेश्वर के सेवकों के विरुद्ध दुष्टता की योजना बनाना है (मरकुस 3:6)।
वे सभी जो यीशु मसीह के द्वारा उद्धार को स्वीकार करते हैं, उन्हें शुद्ध होना चाहिए, “जैसा वह पवित्र है” (1 यूहन्ना 3:2, 3; अध्याय 2:6)। मसीह ने विश्वासियों को मसीही जीवन जीने का आदर्श उदाहरण दिया। उसका जीवन परमेश्वर की शक्ति के द्वारा पाप पर विजयी अनुभव का एक निरंतर उदाहरण है (1 कुरि 1:4–8)।
किसी को भी छूछे हाथ आने या मुंह दिखाने की इजाजत नहीं थी। पैसा नहीं पर भोजन चढ़ाया जाता था, उसमें से अधिकांश लौटा दिया जाता था। ताकि उसे गरीबों विधवाओं, अनाथों और परेदेशियों में बांट दिया जाए। बाकी सभी पर्व घरों में मनाए जाते थे। (व्यवस्थाविवरण 16ः11,14,16)
2. पिन्तेकुस्त (कटनी) का पर्व,
पेंतेकुस्त (कटनी) का पर्व से शुरुआत महान आदेश का अन्तर-राष्ट्रीय वर्ष
“जाओ सब जाति के लोंगो को शिष्य बनाओ,
उन्हे बप्तिस्मा दो और आज्ञाकारी बनाकर भेज दो.” (मत्ती 28:18-20)
“जब पवित्र आत्मा तुम पर आएगा,
तो तुम सामर्थ्य पाकर पृथवी कि छोर तक मेरे गवाह होगे” (प्रेरितों के काम 1:8)
पेन्तेकुस्त का दिन कलीसिया का जन्मदिवस और कलीसिया युग की शुरुवात है । 2023 वर्ष पहिले पतरस प्रेरित ने इसी दिन 3000 बपतिस्मा देकर अपना खाता खोला था, जिन्होंने पश्चाताप किया, पानी और पवित्रात्मा का बपतिस्मा पाया और शीघ्र हजारों हज़ार नए बिश्वासी जुड़ते गए । (प्रे.के काम 2:41, 21:20)
नए नियम की कलीसिया का विस्फोटक और गुणात्मक वृद्धि :
प्रे.के काम 2:47 – प्रभु प्रतिदिन नए विश्वासियों को जोड़ते जाता था।
प्रे.के काम 4:4 – 5000 और अन्य विश्वासी जुड़ गये।
प्रे.के काम 5:28 – येरूशलेम शहर छोटी छोटी गृह कलीसियाओं से संतृप्त हो गया।
प्रे.के काम 6:1,7 - शिष्यों के संख्या में विस्फोटक वृद्धि।
प्रे.के काम 8:12 – फ़िलिप जो एक साधारण भोजन परोसने वाला इंसान था उसने सामरिया में बहुत से दुष्टात्मायें निकाली और बपतिस्मा दिया।
प्रे.के काम – 9:31 – य़ेरुशालेम, यहूदिया और गलील में कलिसियायें उन्नति पर।
प्रे. के काम 16:5 – परिपक्व कलीसियाओं की संख्या में प्रतिदिन उन्नति।
प्रे.के का. 19:8-10 – सारे आसिया में सुसमाचार फ़ैल गया।
रोमियो 15:19,20 – य़ेरुशालेम से इल्लिरिकुम तक (2000 कि.मी.) सुसमाचार, सामर्थ्य के चिन्हों और चमत्कार के द्वारा पूरी तरह प्रचारित।
रोमी. 15:23 – अब कोई जगह नहीं बची।
प्रभावशाली बदलाव से अप्रत्याशित फसल :
1. एक मंदिर में मिलने के बदले वे हजारों घरों में मिलने लगे. इस तरह इब्राहीम के साथ वाचा, कि “तुम दुनिया के सब कुलों के लिए आशीष का कारण बनोगे,” पूरा हुआ। (उत्पति 12:3)
2. मुर्दा जानवर की बलि चढ़ाने के बदले वे अब जीवित आत्माओं को बलिदान स्वरुप चढ़ाकर आराधना करने लगे। (रोमियो 15:16)
3. मूसा की व्यवस्था में आँख के बदले आँख, दाँत के बदले दाँत और जान के बदले जान की शिक्षा देने के बदले अब वे पड़ोसी से प्रेम, एक दूसरे से प्रेम, यहाँ तक कि अपने शत्रु से भी प्रेम करने लगे। (लूका 10:27; 16:16 युहन्ना 13:34,35; 14:15)
4. सिनेगोग (आराधनालय) में पुल्पिट से भाषण सुनने के बदले आपसी वार्तालाप से अब वे स्वयं धर्मशास्त्र से सच्चाई की खोज करने लगे। (प्रे. का. 17:11)
5. पहिले वे अन्य जातियों से छुआछूत करते थे, लेकिन अब वे उनके घरों में भोजन की संगती करने लगे। (लूका 10:5-8; प्रे. का. 10:23-34; 1कुरिन्थियों 14:24-26)
6. पहिले वे पश्चाताप का बपतिस्मा लेते थे लेकिन अब वे पवित्र आत्मा और आग का बपतिस्मा भी सामर्थ्य पाने के लिए लेने लगे। (मत्ती 3:11; प्रे. काम 2:37-39)
7. मंदिर में दिन में तीन बार प्रार्थना करने के बजाय, अब वे घरों में हियाव से वचन सुनाने और सामर्थ्य के कार्यों के लिये प्रार्थना करने लगे। (प्रे. का. 2:42; 4:28-30)
8. मंदिर के रख-रखाव के लिए दसवांश देने के बदले अब वे गरीबों के लिए और प्रेरितों के पैर चलायमान करने के लिए, स्वेच्छादान देने लगे। (प्रे. का. 2:44-45; 1कुरु.9:6,7)
9. आराधनालय में बांज भेड़ों की खिदमत करने के बदले अब वे खोई हुई भेड़ों को खोजने और उनका उद्धार कराने में संलग्न हो गए। (लूका 15:7, 10; 19:10)
10. सब्त, बलिदान, खतना और धार्मिक विधि विधान रखने के बदले अब वे शिष्य बनाकर और कलीसिया रोपण करके राजपदधारी याजक और प्रभु के राज्य के राजदूत बन गए। (2कुरु. 5:20; 1पत. 2:9; प्रे. 6:7; 16:5)
आज के दिन में महान आदेश के लक्ष्य को पूरा करने में कौन अवरोधक बन गए हैं?
हमने तलाश किया तो पता चला कि अपराधी हम और “हमारा चर्च” ही है। सदियों से हम पवित्र इमारत, पुलपिट, प्रोग्राम्स, पॉलिटिक्स और बजट के दलदल में फंस गए हैं और प्रभु द्वारा निर्धारित लक्ष्य से भटक गए हैं। हमारी कलिसियाँयें सब जातियों के लिए प्रार्थना का घर नहीं रहीं (मरकुस 11:17)। हमारे अगुवे ऐसे पेड़ों को खाद पानी डालकर पाल रहे हैं जो फल नहीं लाते। हमारे बाइबिल स्कूल विद्वान तैय्यार करते हैं न कि मनुष्यों को पकड़ने वाले मछुवारे। हमारे प्रचारक एक ही जगह में बसे रहते हैं जबकि संत पौलुस स्थानीय अगुवे खड़ा करके आगे बढ़ जाता था। हमारे प्रार्थना और बाइबिल अध्यन समूह, प्रार्थना योद्धा और बाइबिल ज्ञाता तैय्यार करते हैं जिनके पास विजातियों को शिष्य बनाने कि योग्यता नहीं होती। (मत्ती 4:19)
प्रभुजी ने केवल महान आदेश नहीं दिया लेकिन करके दिखाया:
• जाओ: वे प्रतिदिन जाते थे और कर वसूली करनेवाले भ्रष्ट जक्कई और गदारा के दुष्टात्मा से ग्रसित जैसे भटके हुए लोगों को खोजकर उनका उद्धार करते और उन्हे अपने लोगों के मध्य प्रभु का राज्य स्थापित करने के लिए ‘शांति के संतान’ में परिणित करके वापस भेज देते थे। (मरकुस 1:38;6; लूका 10:6)
• शिष्य बनाओ: प्रभु ने 12 शिष्य बनाया और उन्हे 2x2 करके भेज दिया, जिन्होंने 70 और शिष्य बनाया। प्रभु ने दूसरी पीढ़ी को भी 2x2 करके भेजा ताकि वे तीसरी पीढ़ी तैयार करें। शिष्य वे हैं जो बहुतायत से शिष्य बनाते हैं। (लूका 10:1,2; यह. 15:16)
• बपतिस्मा दो: अपने शिष्यों के द्वारा प्रभु ने युहन्ना बपतिस्मा देनेवाले से कहीं ज्यादा बपतिस्मा दिया. महानादेश हर एक विश्वासी को बपतिस्मा देने का अधिकार देता है। (युहन्ना 4:1,2)
• उन्हे आज्ञाकारी बनाओ: प्रभुजी स्वयं मृत्यु तक आज्ञाकारी रहे. उन्होंने अपने भक्तों से कहा कि, “यदि तुम मुझसे प्रेम रखते हो तो मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे।” प्रभु के सब शिष्य शहीद हुए। (फिलिप 2:8; युहन्ना 14:15)
महान आदेश का अन्तर्राष्ट्रीय वर्ष: ये वह समय है जिसमे दुनिया के सब मसीही अपने मदभेदों को ताख पर रखकर एक संकल्प लें कि हम सब एकजुट होकर हमारे प्रभु के महानादेश को पूरा करेंगे. “पहिले राज्य और धर्म कि खोज करो...” चाहे जो भी कीमत पटाना पड़े. अपने प्रार्थना और प्रयास से अपने पड़ोस, कार्यस्थल और नगर को अपनी कलीसिया मानकर, परमेश्वर के राज्य में परिणित करेंगे, जहां राज्य के मूल सिद्धांत जैसे: प्रेम, न्याय, शान्ति और धार्मिकता इत्यादि, विरोध के बावजूद, स्थापित करेंगे, ताकि जैसे प्रभु की इच्छा स्वर्ग में पूरी होती है वैसे ही हमारे क्षेत्र में भी पूरी हो। (मत्ती 6:10,33)
हम जानते हैं कि परमेश्वर का अंत दर्शन ये है कि हर जाति, कुल, गोत्र और भाषा के लोग सफ़ेद वस्त्र पहिने हुए और अपने हांथों में खुजूर कि डालियाँ पकड़े हुए, राजाओं के राजा के तख़्त के सामने उसकी भव्य भक्ति और इबादत करेंगे (प्रकाशित 7:9,10; 21:24)। ये केवल धर्मी लोग नहीं होंगे लेकिन जिन्होंने भूखे को खाना खिलाया, प्यासे को पानी पिलाया, नंगे को कपड़े पहनाया, परदेसी को पनाह दिया, बीमारों और जो बंदीगृह में हैं, उनकी सुधि ली। (मत्ती 25:31-46)
इसलिए ये जरूरी है कि हम अपने रिश्तेदारों, पड़ोसियों, सह्कर्मिओं, दोस्तों और दूसरों को इस योग्य बनाएं कि वे भी उस भव्य भक्ति में भाग ले सकें। हमें हर भटके हुए इन्सान को ऐसा देखना है जैसे एक डूबते हुए इंसान को, एक कुशल तैराक देखता है और तुरंत खतरे से भरे गहरे पानी में कूदकर बचाता है। हमें उनके लिए केवल प्रार्थना नहीं करना है लेकिन हमारा लक्ष्य उन्हे बचाकर कुशल तैराक बनाना है ताकि वो भी दूसरे डूबते हुओं को बचा सके। हमें उन्हें शिष्य बनानेवाले, बपतिस्मा देनेवाले, तथा आज्ञाकारी बनाकर महानादेश की पूर्ति करने के लिए भेजना है, “जैसे पिता ने मुझे भेजा है, वैसे मैं भी तुमको भेजता हूँ।” (युहन्ना 20:21)। येशु भक्त होना पर्याप्त नहीं है, लेकिन अपने क्षेत्र के रखवाले की जिम्मेदारी लेकर, केवल प्रचार द्वारा नहीं, लेकिन जरूरतमंदो की सेवकाई करके, अपनी कलीसिया को बदल देना है ताकि कलीसिया फलवन्त क्षेत्रपालकों की सफल मण्डली बन जाये। (मत्ती 4:19; इफी. 4:12)
ऐसा कोई इंसान या स्थान छूट न जाये :
इस पैगाम को हर एक मसीही के पास पहुंचाना जरुरी है। इसे आप अपने व्यक्तिगत सम्पर्क से या आधुनिक संसाधनों से या प्रशिक्षण के माद्ध्यम से जागरूकता ला सकते हैं। हमारे कलीसियाओं में अनेक वरदानी सदस्य बैठे हैं जिनकी योग्यता, साधन और वर्चस्व का सकारात्मक सदुपयोग नहीं किया जा रहा है। यदि उन्हें सही प्रशिक्षण देकर महान आदेशीय बनाकर भेजा जाये तो एक ऐसी क्रांति शुरू हो जाएगी जिसे रोकना असंभव हो जायेगा और वे जो अंधकार और मृत्यु कि छाया में बैठे हैं वे सब उद्धार और संपन्न जीवन का अनुभव करेंगे। अंत में हम सब को अपने जीवन का लेखा देना पड़ेगा। हमारा नाम मेम्ने कि पुस्तक में लिखे जाने के लिए हमें नादान भेड़ों के समान, खूंखार भेड़ियों के बीच जाकर, और उन्हें वश में करके, महान आदेश का आन्दोलन शुरू करना होगा। इस प्रक्रिया को तब तक गतिशील रखना होगा जब तक कि हमारे क्षेत्र में कोई ऐसा इंसान न रह जाये जिसने प्रभु का नाम नहीं सुना और न कोई एसी जगह रह जाएँ जहाँ उसका नाम नहीं पंहुचा हो। इस तरह दुनिया के सारे राज्य हमारे प्रभु के हो जायेंगे और हम सब उसके साथ युगानुयुग राज्य करेंगें। (प्र.वाक्य 11:15; मत्ती 4;16; यहेज्किएल 3:18; दानिएल 7:18,27; 12:1-3; लूका 10;20; याकूब 5:20; रोमियों 15:23)
3. झोपड़ियों या बटोरन का पर्व।
मिलामपवाले तम्बू का पर्व
यहूदियों द्वारा इस पर्व को 40 वर्षों तक जंगल में अपने प्रवास की याद के रूप में मनाया गया था l जब वे अस्थायी तम्बू / झोपड़ी में रहते थे। आज, वे इन अस्थायी तम्बू / झोपड़ी को पेड़ों की ताजा शाखाओं के साथ घर के सामने बनाते हैं और फल और फूलों से सजाते हैं। वे चटाई या दरी बिछाकर, परिवार और दोस्तों के साथ सात दिन बिताते हैं और खुद को याद दिलाते हैं कि स्वयं परमेश्वर उनके बीच एक तम्बू में रहते थे और सुरक्षित रखकर उन्हें भोजन खिलाया, पानी पिलाया, यहाँ तक कि उनके कपड़े और जूते नहीं फटे थे। बेशक, परमेश्वर ने उन्हें सोने के बछड़े की मूर्तिपूजा में शामिल होने के लिए भी दंडित किया।
तो उस हजार साल के साम्राज्य में कौन प्रवेश करेगा?:
1. आखिरी दृश्य यह है कि सभी 16,700 जातियों, 6500 भाषाएं और अनगिनत जनजातियों की बेशुमार भीड़ सिंहासन के सामने खड़े होकर परमेश्वर की स्तुति करेंगें। (प्रकाशितवाक्य 7: 9, 10)
प्रश्न - जो कुछ भी आप कर रहे हैं, जैसे चर्च जाना और उसके सभी कार्यक्रमों में भाग लेने से, क्या आपके प्रयास से उस भीड़ में किसी भी जनजाति या भाषा के समूह को परमेश्वर के सिंहासन के सामने खड़ा हो सकेंगे ? यदि नहीं तो सतर्क हो जाइये।
2. क्योंकि पृथ्वी परमेश्वर के महिमा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी जैसे समुद्र जल से भरा रहता हैl (हबक्कूक 2:14)
प्रश्न - जो कुछ भी आप कर रहे हैं, जैसे बाइबिल का गहन अध्धयन, लम्बी लम्बी प्रार्थना, आकर्षक गीत गाना और उसे आराधना कहना या दसवांअंश देना इत्त्यादी, क्या ये सब पृथ्वी को परमेश्वर के महिमा के ज्ञान से भर देंगे ? यदि नहीं तो सतर्क हो जाइये।
3. और राज्य के इस सुसमाचार को सारे जगत में गवाही के रूप में प्रचारित किया जाए गा और फिर अंत आ जाएगा। (मत्ती 24:14; रोमियों 10: 13-17)
प्रश्न- जो कुछ भी आप कर रहे हैं, क्या यह इस पृथ्वी पर वापस पभु यीशु की वापसी में तेजी लाएगा। (2 पतरस 3: 10-12)
4. यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, "मेरे पीछे चलो मैं तुम्हें मनुष्यों के पकड़नेवाले मछुआरे बनाउंगा।" (मत्ती 4:19)
प्रश्न – क्या आपकी कलीसिया ने आपको सफल मछुआरे के रूप में प्रशिक्षित किया है? यदि नहीं, तो तुरंन्त उस बेबीलोनियन (स्वार्थी) कलीसिया से बाहर निकलकर अपना खुद का मछुआरे बनाने का प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करें। याद रखें कि आपका न्याय आपकी धार्मिकता पर निर्भर नहीं है जो मैंले चिथड़ों की तरह है, लेकिन आपका न्याय आपके फलवन्त होने पर है याने कि आपने कितनी आत्माओं को बचाया है, "फलदायी बनें, गुनात्मक रूप से वृधि करें और पृथ्वी में भर जाये, उस पर प्रभुता रखें और राज्य करें।" (मत्ती 07:20; इफिसियों 4: 11-13; (प्रकाशितवाक्य 18: 4; उत्पत्ति 1:28; यशायाह 64: 6)
5. प्रभु यीशु मसीह इस संसार में भटकी हुई भेड़ों को खोजने और उनका उद्धार करने आये थे। (लूका 19:10) यदि आप अपने प्रभु का अनुसरण नहीं कर रहें है, तो आप यीशु भक्त कैसे हो सकते है?
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