कलीसिया (चर्च) में मूर्तिपूजक परम्परांए एंव विधर्म - तुरहियों का पर्व - भाग 21

   पवित्र भवन, ऊंचे घण्टाघर, क्रूस, रवि-वार (सन-डे), यहां तक कि प्रभु यीशु (लॉर्ड जीसस) और बहुत सी बातें हमारी मूर्तिपूजक विधर्मिता की बपौती हैं।

इक्लीसिया का प्रतिक चिन्ह दीवट (मेनोराह) ही  है। (प्रकाशित वाक्य 1ः20)

तुरहियों का पर्वः यह सातवें महीने के पहिले दिन मनाया जाता था। वास्तव में यह सातवां महीना बड़ा व्यस्त महीना होता था, जिसमें तुरहियों के पर्व के तुरन्त बाद में दसवें दिन को प्रायश्चित का दिन (योम किप्पूर) होता था, जब सारे इस्राएली अपने प्राणों को दुख देते थे और पन्द्ररहवे दिन से झोपड़ियों का पर्व, एक सप्ताह तक मनाया जाता था। प्रत्येक जन को इनमें भाग लेना पड़ता था और यथोचित बलिदान और चढ़ावा चढ़ाना पड़ता था। 

पूरे इस्राएल में तुरहियां फूंकी जाती थी, ताकि कृषि वर्ष के अन्त का और नये कृषि वर्ष के आरम्भ का स्मरण दिलाया जा सके। मेढ़े के सींग जिसे शोफार कहा जाता था, को सम्भवतः इसहाक के बदले में मेढ़े के बलिदान की याद में उपयोग में लाया जाता था। यही बाद में यरीहो की दीवार को डहाने के लिये उपयोग में लाया गया था। शोफार बंधुआई से आजादी का उद्दघोषक है। यह प्रत्येक 50 वर्ष की जुबली में फंूका जाता था जिससे दासों को दासत्व से आजादी की घोषणा मिलती थी कि वे अब अपने कुटुम्ब में वापस जा सकते हैं और उनकी मीरास भी उन्हें वापस मिल जाएगी (लैव्यवस्था 25ः10)।

 इस पर्व के अवसर पर पूरे देश में तुरहियों का फंूका जाना महत्वपूर्ण था जो हमें याद दिलाता है कि याहवेह के दिन में पिछली तुरही फूकी जाएगी और मुरदे जी उठेंगे कुछ तो महाआनन्द में महिमा के लिये और कुछ अनन्त दण्ड के भागीदार होने के लिये। (1कुरिन्थियों 15ः52)

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