कलीसिया (चर्च) में मूर्तिपूजक परम्परांए एंव विधर्म - क्रिश्चियन (Christians), चर्च (The Church) भाग 16
पवित्र भवन, ऊंचे घण्टाघर, क्रूस, रवि-वार (सन-डे), यहां तक कि प्रभु यीशु (लॉर्ड जीसस) और बहुत सी बातें हमारी मूर्तिपूजक विधर्मिता की बपौती हैं।
इक्लीसिया का प्रतिक चिन्ह दीवट (मेनोराह) ही है। (प्रकाशित वाक्य 1ः20)
क्रिश्चियन (Christian): यह अपमानजनक शब्द, धर्मशास्त्र में तीन बार आया है। इसका स्रोत लेटिन भाषा का शब्द ‘‘क्रटिन’’ (Kretin), या स्विस-फ्रेंच का शब्द ‘‘क्रेस्तिन’’ (Krestin) है, जिसका अर्थ है ‘‘मूर्ख’’ या ‘‘जड़ बुद्धि’’ (Idiot)। चिकित्सकीय भाषाओं में, क्रेटिन उस बच्चे को कहा जाता है जो थाईराईड हारमोन की कभी के साथ पैदा होता है और जो मानसिक तौर से मध्यमार्गी और शारीरिक दृष्टि से अवरूद्ध विकास वाला होता है। अन्य जातीय लोग अपने विकास को बचाने के लिये दूसरे विश्वास को नीचे गिराते और नष्ट कर देते हैं, परन्तु याहशुआ के विश्वासीगण मूर्ख हैं जो अपने विश्वास के लिये मर जाना स्वीकार करते हैं। यहूदीम (यहूदी Jews, जा माशियाख अर्थात मसैयाह (Messiah) अभिषिक्त, (Anointed) पर विश्वास करने वाले हैं, को मसैयानिक यहूदीम कहा जाता है, या नाजरीन्स या ‘‘मार्ग के लोग’’ कहा जाता है, क्रिश्चियन नहीं। याहशुआ को भी रब्बी (गुरू) या नाजरीन कहा जाता था। (1कुरिन्थियों 1ः26-31; 4ः9-16; 18ः26; यूहन्ना 3ः2; प्रेरितों के काम 4ः10)चर्च (The Church): एक केथोलिक प्रीस्ट जिसका नाम जौन विक्लिफ (1320-1364) था, ने धर्मशास्त्र का अनुवाद अंग्रेजी भाषा में किया। उसने यूनानी भाषा के शब्द ‘‘इक्लीसिया’’ और इब्रानी भाषा के ‘‘काहल’’ शब्द का सही अनुवाद, कांग्रीगेशन (भक्त मण्डली) या असैम्बली शब्द में किया और किसी भवन के रूप में नहीं। इस अपराध के लिये उसे चर्च द्वारा सजा दी गई। उसकी हड्डियों को खोदकर निकाल लिया गया और जलाकर उसकी राख को बिखेर दिया गया ताकि वह मरने के बाद भी चैन से न रह सके। अंग्रेजी शब्द ‘‘चर्च’’ की उत्पत्ती स्कोटिश ‘‘किर्क’’ या जर्मनी का ‘‘किरचे’’ है जिसका उदगम ‘‘किरसे’’ (Circe) है जो एक सूर्य देवता हेलिओस (Helios) की बेटी थी। किरसे (जर्मनी में किरचे), एक तान्त्रिक थी जिसने आदमी को सुअर बना दिया। 325 सी. ई. में कॉन्स्टेन्टाईन ने जो यहूदियों से घृणा करने वाला और एन्टी सेमिटिक मसीही था, ने नाईसीन की कौउन्सिल आयोजित की जिसमें 220 प्राचीन (बिशप) थे, ताकि वे अन्यजातीय मूर्तिपूजक रीति रिवाजों को अपनाकर या उनका शुद्धिकरण करके चर्च को और अधिक व्यापक (Universalige) बना दें (केथोलिक का अर्थ होता है व्यापक (Universal)। इन रीति रिवाजों को अपनाना था, जैसे - मन्दिर पोप, प्रीस्ट, नन्स, मृतक संतगण, धूप जलाना, मोमबत्तियां, पवित्र पानी, पवित्र दिन, प्रीस्टों के चोगे, संतो के देहों के अवशेष या दूसरे धार्मिक स्मृति चिन्ह (Relics), वेदियां, शादी के छल्ले और बहुत से अन्य मूर्तिपूजक रिवाज। मनुष्यों के बनाए हुए रीति रिवाज और दुष्टात्माओं की शिक्षाओं को मानना और उनसे समझोता करना, धर्मशास्त्र में सख्त मना है चाहे वे अज्ञानता में ही क्यों न किये जांए। (व्यवस्था विवरण 12ः1-3; 30-32; गिनती 15ः27-36; मरकुस 7ः7; 1तीमुथियुस 4ः1) चर्च को और ‘‘व्यापक’’ बनाने के लिये उन्हें सख्त और दूसरे वार्षिक उत्सवों को निषेधित करना पड़ा परन्तु तौभी सख्त का मानना तो नई सृष्टि में अनिवार्य होगा (यशायाह 66ः23)। याहशुआ का उद्धेश्य यह था और अभी भी है, कि जाएं और खोई हुई भेड़ों को ढूढ़कर झुण्ड में लांए और उन्हें राज्य सौपदें और कभी भी मूर्तिपूजक परम्पराओं वाले चर्चों की चार दीवारी में कैद होकर न रहें। (यूहन्ना 10ः16; लूका 12ः32)
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