कलीसिया (चर्च) में मूर्तिपूजक परम्परांए एंव विधर्म - सिनेगॉग - भाग 22

   पवित्र भवन, ऊंचे घण्टाघर, क्रूस, रवि-वार (सन-डे), यहां तक कि प्रभु यीशु (लॉर्ड जीसस) और बहुत सी बातें हमारी मूर्तिपूजक विधर्मिता की बपौती हैं।

इक्लीसिया का प्रतिक चिन्ह दीवट (मेनोराह) ही  है। (प्रकाशित वाक्य 1ः20)

सिनेगॉग: सिनेगॉग का अर्थ कोई भवन नहीं है। यह कम से कम दस यहूदियों की मण्डली या असैम्बली है। वे इससे कम संख्या में भी इकट्ठे हो सकते हैं किन्तु ऐसी स्थिती में वे कुछ निर्णय नहीं ले सकते थे, जैस किसी रब्बी को तनख्वाह पर रखना। वे सब्त के दिन केवल आराधना नहीं करते थे, परन्तु प्रतिदिन प्रार्थना के लिये जमा होते थे, तोराह (आदेशों और हिदायतों) और भविष्यद्धक्ताओं की पुस्तकों में से सिखाने के लिये, संवाद करने, उत्सवी भोजन करने, प्राणों को दुखित करने, भजन करने और नाचने इत्यादि के लिये जमा होते थे। यह पूरी जाति के लिये, यहूदियों के जीवन को प्रतिबिम्बत करता था। वे सुबह की प्रार्थना के लिये जमा होते थे जिसे शाहारित कहते थे। और शाम की प्रार्थना को माखि और दोपहर की प्रार्थना को मिन्हाह कहते थे। वे उन लोगों के लिये लगातार प्रार्थना करते थे जो अब तक याहवेह के नहीं हुए थे (होशे 2ः23)। 


आत्मिक कार्यों के बीच में ही, व्यवसायिक कार्यों के लिये समय दिया जाता था। हम इससे उलटा करते हैं। एक पत्नी का पहिला काम होता है कि वह अपने घर को बनाने वाली हो, उसके लिये व्यवस्था करने वाली बाद में। उन दिनों में यहूदी लोगा विशेष वस्त्र पहिनते थे जिन्हें ‘‘टाल्लिट’’ कहते थे, जो टिज़टज़िट (Tgitgit कुदने झब्बे या पुष्पबेल) के साथ होते थे और नीला उनके राजकीय होने को दर्शाता था। अब याहशुआ का रक्त हमें राजकीय याजक बना देता है (1पतरस 2ः9; प्रकाशित वाक्य 5ः9,10), जो याद दिलाता है, कि हम न केवल उनकी आराधना करते हैं, परन्तु हमें याहवेह द्वारा दिये गए राज्य में शासन भी करना है। जबकि वे अपने माथे और बाहों पर टेफिलिन (Tefillim) नाम छोटी पेटी बांधते थे जिसमें धर्मशास्त्र के पद लिखे रहते थे (व्यवस्थाविवरण 6ः4-9), वे सगाई में विश्वासयोग्य बने रहने के पदों को होशे 2ः19-20, में से उच्चारित जाते थे जिससके उनके याहवेह के साथ विवाह बन्धन का स्मरण होता था। उनकी दोनों आंखों के बीच का वचन उन्हें उनके दर्शन के विषय में अगुवाई करता था (व्यवस्था विवरण 6ः8)।

औपचारिक कार्यवाहियों केवल एक याजक (काहिन) द्वारा ही सम्पन्न नहीं की जाती थी परन्तु सात प्राचिनों द्वारा जो उपदेश के पाठों को पढ़ते, आदेश देते और बीमाह (Bimah चौडे़ पुलपिट) पर से आर्शीवाद देते थे। 

सिनेगॉग मनुष्यों के बनाए हुए नियम विरूद्ध ढ़ांचे थे जिनके लिये पुराने नियम में कोई आज्ञा नहीं थी। उन्होंने लोगों का उम्र और लिंग के हिसाब से स्तरीकरण कर दिया और व्यवस्थाविवरण 6ः4-7 के विरूद्ध, पेशेवर रब्बियों को नियुक्त कर दिया, जो शिक्षा देते थे। शाऊल (पौलूस) हमेशा स्थानीय सिनेगॉग पर धावा करते थे, ताकि वहां से विश्वासियों को निकाल सकें, जिनके प्रथम इक्लीसिया अर्थात नई दुल्हिन का निर्माण हुआ। (प्रेरितों के काम 17ः1-6) सिनेगॉगों को ‘‘मिलान’’ की राजाज्ञा द्वारा प्रतिबन्धित कर दिया गया (313 सी. ई.), और सब्त को लौदीकिया की परिषद ने 370 सी. ई. में प्रतिबन्धित कर दिया गया। जो कोई सब्त को मानता था, यहूदी मत का मानने वाला जूडाईजर कहलाता था, और दण्ड पाता था। 

सम्राट कॉन्स्टेन्टाईन के राजनीति फैसले के बाद से चर्च, सन-डे के दिन आराधना करने लगे और बहुत से दूसरे रीति रिवाजों को अपनाने लगे जिनके लिये कोई भविष्यवाणी कि, ‘‘एक राजा उठेगा जो, ‘‘समयों और व्यवस्था’’ को बदल देगा’’ पूरी हो गई (दानियेल 7ः24,25; यहेजकेल 20ः16)

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