पाप की उत्पत्ति
पाप की उत्पत्ति
मनुष्य की प्रकृति या स्वभाव में पाप की यह उग्र विनाशकता कैसे आई? वृहदारण्यक उपनिषद् 4ः3ः8 कहती है कि जीव अपने जन्म के साथ ही आपाचार का अधिकारी हो जाता है। इस्लाम के अनुसार जन्मने के समय ही शैतान प्रत्येक मनुष्य को छू लेता है। बाईबल तो बताती ही आई है कि मनुष्य जन्म से ही पापी है - देख, मैं अधर्म के साथ उत्पन्न हुआ, और पाप के साथ अपनी माता के गर्भ में पड़ा। (भजन संहिता 51ः5)
यह नहीं कि बालक के जन्मने का सिद्धान्त ही पापमय है परन्तु यदि माता पिता दोषग्रस्त है, तो उनकी सन्तान भी वैसी ही उत्पन्न होगी। उत्पत्ति की पुस्तक का वृतान्त प्रकट करता है कि आदम एंव हव्वा के द्वारा परमेश्वर की इच्छा की सर्वप्रथम अनज्ञाकारिता के कारण पाप का अविभार्व हुआ। तब से उनकी सारी वंश परम्परा, परमेश्वर की रचना नहीं है तथापि यह अपने सृजनहार के विरूद्ध मनुष्य का विद्रोह है।
यहां पे हम देखते है कि विश्व के सभी प्रमुख धर्मो में पाप का यह सिंद्धान्त सर्वमान्य है। पाप की दासता मनुष्य जीवन की एक मात्र समस्या है। आत्मिक दृष्टि से कहें तो समस्त मानवता एक गहरे महासागर में डूबते हुये किसी जहाज में सहयात्रा कर रही है। हम सबकी एक ही आवश्यक्ता है कि डूबने से उबर जायें। आप इसे मुक्ति या छुटकारा कुछ भी कहें।
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