पाप की असाध्यता
पाप की असाध्यता
दुर्भग्यवश, मानवीय प्रयासों से मनुष्य की इस प्रकृति का उपचार एकदम असम्भव है। जब हम मनुष्य सम्बोधन का प्रयोग करते है तो इसका अर्थ है, वे सब लोग जो पुरूष, नारी, युवा या बालक है! मनुष्य - स्वभाव नीम वृक्ष के स्वभाव के समान है। मान लीजिए एक साधन सम्पन्न व्यक्ति नीम वृक्ष के स्वभाव को बदलने हेतु इस उद्देश्य से तत्पर हो जाए कि भविष्य में इस पेड़ के कड़वे फल मीठे फलों में बदल जाए ताकि उसके बेटे - पोते इस पर चढ़ कर मीठे फल खाने का मज़ा ले सकें। मजदूरो से नीम वृक्ष के चारों ओर गहरी खाई खुदवाकर वह उसके बड़ी मात्रा में गुड या शक्कर का शीरा भरवा देता है और प्रतिदिन उसे शुद्ध जल से सींचता है। क्या आप सोचते है कि नीम वृक्ष इस उपचार को ग्रहण कर अगले वर्ष मीठी निम्बोलियो की फसल देगा? अपने स्वभाव से ही नीम कडुवाहट से भरा है; कोई प्रयास उसके स्वभाव - गुण को नही बदल सकता, सिवाय इसके कि जड़ से काटा जा कर उसे दूसरे मीठे स्वाद के वृक्ष के तने में पैबन्द या कलम करवा दिया जाए। बाइबल ग्रन्थ का कथन हैःक्या हबशी अपना चमड़ा, व चीता अपने धब्बे बदल सकता है? यदि वे ऐसा कर सकें,
तो तू भी, जो बुराई करना सीख गई है, भलाई कर सकेगी। (यिर्मयाह 13ः23)
पवित्र बाइबल की मान्यता है कि मनुष्य पापी है, उसमें कोई भी अच्छाई वास नहीं करती, रोमियों 7ः18, उसकी बुद्धि अंधकारमय हो गई है, इफिसियों 4ः18, 1कुरिन्थियों 2ः14, उसका हृदय तो सबसे अधिक धोखेबाज हैं, यिर्मयाह 17ः9-10, उसका विवेक भ्रष्ट हैं, रोमियों 7ः18; वह परमेश्वर से दूर हो गया है, यशायाह 59ः2 उसका उत्तम से उत्तम भी कंटीले झाड़ो के समान है, मीका 7ः4, यशायाह 1ः6, अययूब 14ः4।
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