अटल कर्मबन्ध

 अटल कर्मबन्ध

महाभारत, जो विश्व का सबसे लम्बा वीरगाथा महाकाव्य है, स्पष्ट ही उल्लेख करता है कि कर्म के स्वचलित; निराशायुक्त तथा दयारहित भवचक्र को कोई भी प्राणी धोखा नहीं दे सकता। जैसे किसी गाय का बछड़ा हजारों अन्य गायों के झुण्ड के माध्य में भी अपनी माता को ढूंढ़ लेता है, वैसे ही कर्म ही उस भक्ति को, जिसका सम्बन्ध उससे है, खोज लेने में कभी नही चूकता। दूसरे शब्दों में, हर एक मनुष्य के माथे पर उसके कर्म की छाप लगी है और उसी के द्वारा जीवात्मा का भाग्य निर्बाध गति से निश्चित किया जाता है। 

दुर्भाग्यवश, इस सिद्धान्त में, वास्तविकता को समझ पाने का ऐसा कोई साधन शेष नहीं बचता कि मै या आप हमारे किसी विशेष जन्म या पुनर्जन्म में बंधे क्यों पीड़ा उठाते है, ना ही हमारे लिए कोई ऐसा अवसर होता है ताकि पूर्व कर्मो का अथवा भविष्य में होने वाली भूलों को सुधारा जा सके।

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