उद्धारक परमेश्वर का हस्तक्षेप
उद्धारक परमेश्वर का हस्तक्षेप
ऐसे पाप दासत्व का फिर क्या उपचार है, और हम कहां जायें? क्या परमेश्वर अपनी संतानो का रक्षक है या वह उनकी परवाह नही करता? धर्म ग्रन्थ बाइबल तो जानती है कि परमेश्वर सारी मानवता का पिता एंव तारणहार है। ऋग्वेद भी परमेश्वर को त्राता तथा पितृतमः पितृणां - सारे पिताओं से भी श्रेष्ठ परमपिता - ग्रहण करता है, 4ः17ः17। पिता -माता अपनी संतानो के लिए क्या करते है? हमारे देश के गावों में बहुत सारे बिना ढके हुए कुए हैं। यदि दुर्घटनावश कोई बालक उसमें गिर जाए तो मातृ - प्रेम से विवश उसकी माता भी पुत्र के प्राण रक्षार्थ कुंए में छलांग लगा लेती है - विचार भी नहीं करती कि कैसी वेदना या प्राणों का संकट होगा। अथवा दूसरा उदाहरण लीजिए: मुम्बई जैसे महानगर में, जहां अनेकों बहुमंजली इमारतें हैं, अक्सर अग्निकाॅड होते रहते है। एक भवन पूरा आग से घिर गया है और पांचवी मंजिल पर एक बालक असहाय स्थिति में आग में फंसा है। उसका पिता अपने कार्यकाल से दौड़ा और वहां आ कर क्या करता है? अपने पुत्र के रक्षार्थ वह बेतहाशा सीड़ियों की ओर भागता है - यद्यति ऐसा करके वह स्वंय आग और धुंए का शिकार तो होगा ही।गहरे प्रेम के स्पन्दन से विवश, दूसरे की सारी पीड़ाओं को स्वंय अपने ऊपर उठाकर उसका मध्यस्थ बन जाना - इसी को कहते है। हमारा पिता और सृजनहार यदि इन सांसारिक माता-पिताओं से कहीं श्रेष्ठतम प्रेम हमसे नहीं रखता तो हमें कितनी भारी निराशा होती? तब न तो हम उसे पिता कहकर पुकारते और न ही उसे प्रेम करते। परन्तु क्योंकि वह हमारा रचनाकार है इसलिए हमारे को उसका भय मानना एंव आज्ञा पालन ही शेष रह जाता हैं।
लेकिन, ऐसी तिमिरग्रस्त स्थिति में आकाश मंडल में एक रजत रेखा का दर्शन होता है। इतिहास भी साक्षी है कि लगभग दो हजार वर्ष पूर्व ऐसे समय में जब कि सभी प्रमुख धार्मिक दर्शन अपने शिखर पर पहुंच चुके थे - यूनानी, साॅख्य, वेदान्त, योग, यहूदी, जैन, बौद्ध, फारसी तथा अन्य सभी दर्शन-और उनका सूर्य ढलने लगा था, मानवता आत्मिक क्षितिज पर बुझी जा रही थी; तब परमेश्वर ने प्रभु यीशु ख्रीष्ट में देहधारी होकर पूर्णावतार लिया। वह इसलिए प्रकट हुआ कि मानवजाति के कर्मदण्ड तथा मृत्युबन्ध को सदा के लिए क्रूस पर स्वंय भोग ले। और यह करके उसने कहा - पूरा हुआ और कब्र में सो गया और तीसरे दिन पुनरूत्थान की सामर्थ से जी उठा ताकि वे सब नर-नारी जो उसकी शरण में आए, पाप एंव मृत्यु की दासत्व से सदा -सदा के लिए स्वतन्त्र हो जायें।
मद्रास के एक ब्राम्हण युवा सी.टी. बेणुगोपाल ने कहा, यदि यह सत्य नहीं है तो इसे सत्य होना चाहिए। और विश्वास के द्वारा शीघ्र एक ही दिन वह परमेश्वर की शांति एंव आनन्द में प्रवेश पा गया।
बयालीस वर्ष पूर्व, मेरी जवानी में, एक दिन मैं भी परमेश्वर की उद्धारक प्रीति के कारण उसके चरणों पर गिर पड़ा था और तत्काल उसकी शांति, उसके आनन्द एंव धन्य जीवन में डूब गया। मेरा पाप दासत्व टूट गया, शोक एंव भय का बोझ मुझसे उठ गया। मेरे जैसे पापी के लिए परमेश्वर ने यह सब किया। मेरे लिए ही नहीं, विश्व में अपनी सभी सन्तानो के लिए उसने यह सम्भव कर दिया है। परमेश्वर का वचन कहता है, ‘‘क्योंकि परमेश्वर ने जगत् से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकमात्र पुत्र दे दिया, कि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु शाश्वत जीवन पंाए। ’’ (यूहन्ना 3ः16)
अश्रद्धा परमं पापं, श्रद्धा पाप प्रमोचिनी। (महाभारत, शांतिपर्व, 264ः15-19)
विश्वासी होना मानतम पाप है, लेकिन विश्वास पापों को मिटा देता है।
शांति!
इति प्रथं अध्याय
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