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Showing posts from October, 2023

अन्ताकिया की इक्लीसिया - एक आदर्श नमूना

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 अन्ताकिया एक सुन्दर बड़ा नगर था जिसे पूर्व की रानी कहा जाता था। यहां का मुख्य देवता चारोन (Charon) था जो मृतक आत्माओं को अधोलोक में ले जाता था। वे अपोलो की भी उपासना करते थे और वहां अनैतिकता फल फूल रही थी। आठ वर्षों के अन्दर, यहूदी यरूशलेम को कलीसियाओं की स्थापना से भर देने का कार्यक्रम पूरा हो गया। वास्तव में वह शहर पश्चीय - मसीह (Post Christion) युग में प्रवेश कर चुका था क्योंकि सताव के कारण हजारों मसीही शहर छोड़कर भाग चुके थे। बहुतेरे तो दूसरी जगहों पर इक्लीसियाएं स्थापित कर रहे थे। यहूदी नमूना, यरूशलेम के नमूने का ही रूप था, परन्तु प्रेरित जो मुख्य नायक थे अब वहां नहीं थे, यद्यपि वे समय पर यात्रा करके उनसे मिलते रहते थे। राज्य के विस्तार का दूसरा भाग, अन्यजाति कुकरनेलियुस के पवित्र आत्मा के बपतिस्मा से प्रारम्भ हुआ, जो यहूदियों के लिये एक क्रान्तिकारी घटना थी। वास्तव में वह सभी जातियों और एक अन्य जातीय पिन्तेकुस्त की प्रतिज्ञा का पूरा होना था ( प्रेरितों के काम 11ः19,20 )।  प्रेरितों ने तुरन्त ही एक वरिष्ठ अगुवे को भेजा, जिसने साक्षात सब कुछ देखा। उसने महसूस किया कि इस अन्य...

क्या यह सब बड़ी कलीसियाओं में सम्भव है?

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1. ‘ ‘तुम आपस में एक दूसरे के साम्हने अपने अपने पापों को मानलो, और एू दूसरे के लिये प्रार्थना करो जिससे चंगे हो जाओ’’। ( याकूब 5ः16 ) छोटे झुण्डों में भी यह कार्य मुश्किल होता है कि सब जन एक दूसरे के साम्हने अपने अपने पापों को मान लें और एक दूसरे के लिये प्रार्थना करें परन्तु बड़े झुण्डों में तो यह एक दम असम्भव होता है। 2. ‘‘एक दूसरे को समझाते (उत्साहित करते) रहो’’ ( इब्रानियों 3ः13 )। क्या सप्ताह में एक दिन होने वाली रविवारीय सभा में यह सम्भव है? प्रतिदिन समझना और उत्साह वर्धन करना प्रतिदिन की सभाओं में ही सम्भव है। 3. ‘‘तू वचन को प्रचार कर, समय और असमय तैयार रह, सब प्रकार की सहनशीलता और शिक्षा के साथ उलाहना दे और डांट और समझा’’ ( 2तीमुथियुस 4ः2 )। डांटना और समझानां कहां सम्भव है? यह केवल छोटे झुण्डों के अंतरंग सम्बन्ध वाले वातावरण में ही हो सकता है।  4. ‘‘और प्रेम और भले कामों में उस्काने के लिये एक दूसरे की चिन्ता किया करें’’ ( इब्रानियों 10ः24,25 )। यदि आप बड़ी मण्डलियों में किसी को इस प्रकार की सलाद दें तो हो सकता है कि वह बुरा मान जाएं और आपसे कह दे कि आप अपना काम देंखें।...

प्रश्न जो उत्तरों की मांग करते हैं!

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1. ‘‘तब प्रभु ने अपने चेलों से कहा, पके खेत जो बहुत हैं पर मजदूर थोड़े हैं, इसलिये खेत के स्वामि से बिनती करो कि वह अपने खेत काटने के लिये मजदूर भेज दे’’ ( मत्ती 9ः37,38 )। तब प्रभु ने सत्तर और चेलों को दो दो करके भेजा कि वे ‘‘शान्ति/मेल के पुत्रों’’ को खोजें ‘‘और उन्हें आज्ञा दी कि उन्हें बपतिस्मा दें और चेले बनांए ( लूका 10ः1-9; मत्ती 28ः19 )। उसने उन्हें पवित्र आत्मा की सामर्थ दिया और उन्हें जगत के अन्त तक भेजा कि वे जाकर परमेश्वर के राज्य को स्थापित करें। ( प्रेरितों के काम 1ः8 )।  प्रश्न: क्या आपका चर्च/मण्डली यह सब कुछ कर रही है? यदि नहीं तो क्यों नही? 2. एक इक्लीसिया का मुख्य कार्य यह है कि वह चेलों को सुसज्जित करे ताकि उससे मसीह की देह उन्नति पाए ( इफिसियों 4ः12 )। एक इक्लीसिया सुसज्जित करने का स्थान है जहां नये विश्वासी लगातार पोषित और तैयार किये जाते हैं और कटनी काटने के लिये बाहर भेजे जाते हैं। आज भारत को 10 लाख ‘‘शान्ति के पुत्रों की आवश्यक्ता है ताकि उस क्षेत्र के हर एक गांव, मोहल्ले और कॉलोनी में उनकी अपनी घरेलू  इक्लीसिया एं हो जाएं। यदि आज की प्रत्येक घरेलू इक...

एक चेला या शिष्य कौन है ?

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प्रभु यीशु ने कहे, ‘‘तुम जाकर... चेला बनाओं’’.....। मैं ... अपनी कलीसिया बनाऊंगा’’ (मत्ती 16ः18; 28ः19)। यह शब्द ‘‘चेला’’ (शिष्य) बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह बाईबिल में 269 बार आया है।  एक चेले के गुण क्या है? एक चेला अपने गुरू की आज्ञा मानता हैः ‘‘यदि तुम मेरे वचनो में बने रहोगे तो सचमुच मेरे चेले ठहरोगे, और सत्य को जानोगे और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा’’ ( यूहन्ना 8ः31,32 )। स्वाभाविक है कि एक चेले को अपने गुरू का आज्ञाकारी होना चाहिये, नही तो वे सच्चे चेले नहीं है।  जब प्रभु ने पतरस यूहन्ना और अन्य मछुवारों को बुलाया, उन्होंने तुरन्त अपनी मछलियों से भरी नावों को छोड़ दिया और प्रभु के पीछे हो लिये ( लूका 5ः4-11 )। जब प्रभु ने उन्हें आज्ञा दी कि उन्हें प्रभे के गवाह के रूप में यरूशलेम यहूदिया, सामरिया और जगत के छोर तक जाना है तो उन्होंने मृत्यु पर्यन्त उनकी आज्ञाओं को माने। एक सच्चे चेले की हैसियत से सफल होने के लिये हमें अपने प्रभु की आज्ञा को मानना चाहिये कि हम जांए और दूसरे विश्वास के लोगों को चेला बनाए। यह सच्ची शिष्यता होगी। एक चेला वह है जो चेले बनाते जाता हैः ‘‘मेरे...

TRANSFORMATION OF THE TEMPLE

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 TRANSFORMATION OF THE TEMPLE I AM The DOOR: Yeshua is the way the truth and life. No one comes to the Father except through him. ( John 10:7,9; John 14:6 ) The Altar transferred to Gentile home. ( Mal. 1:11; Acts 10:44 )  Sacrifice changed from four footed animal to two footed broken and contrite heart. ( Ps. 51:17; Romans 15:16 ) Golden Table of incense transferred to Gentile home.  ( Mal. 1:11 ) Sabbath and timing of sacrifice changed to from the rising of the sun to its going down. ( Mal 1:11; Heb 10:25 ) Menorah – We became the light of the world. ( Matt. 5:14,16 ) Manna became the bread (Yeshua) that came down from heaven  Bread became the Body of Christ to be broken from house to house. ( John 6:58 ) Wine became the symbol of the blood of Jesus. ( 1 Cor. 11:25 ) The Spirit of god left the Holy of Holies and we became the temple of the Holy Spirit. ( 1Cor. 3:16 ) The Law written on stone was replaced by love written on our hearts. ( Romans 13:8; 2 Cor. 3:3 ) T...

आत्मा और सच्चाई में आराधना

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 आराधना आराधना शब्द का कलीसिया में पूरी तरह से दुरुपयोग किया जाता है। कानफोडू वाद यंत्र के साथ ऊची आवाज में गाना, नाचना, बड़बडाना और चिल्लाना और नीचे गिर जाना इत्यादि आज आत्मिक आराधना समझी जाती है। क्योंकि हम प्रभु यीशु या पतरस या पौलूस को इस प्रकार की हरकत करते नही पाते, इसलिए हम दाऊद राजा की नक़ल करने की कोशिश करते हैं। दाउद राजा जब औबेद अदोम के घर से वाचा के सन्दूक को सात मील दूर यरूशलेम ला रहा था तब वो सारी ताकत से नाच रहा था। लेकिन चर्च में नाचने वालों को मालूम होना चाहिए कि दाउद ने पहिले हर छै कदम पर एक बैल और बछड़ा का बलिदान किया था और फिर नाचा था । दूसरी बात ये है कि वो चर्च में नहीं बल्कि सड़क पर नाचा था । तीसरी बात उसने इसके पहिले अमिनादाब के घर से गाजे बाजे और बड़ी भीड़ के साथ एक बैल गाड़ी पर वाचा के संदूक को लाने की कोशिश की थी जबकी उसको लेविओं के कन्धों पर बलिदान चढ़ाते हुए ले जाना था । नतीज़ा ये हुआ कि उज्जा की मौत हो गयी थी। ( 2शमुएल 6:1-15 )   पुराने नियम में आराधना बहुदा खूनी बलिदान से जुड़ी हुई होती थी। कोई परमेश्वर के सामने खाली हाँथ नहीं आ सकता था ( व्यवस्था 16:...

गुप्त सहभागिता

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  इक्लीसिया एक गुप्त सहभागिता है।  इक्लीसिया मछली उद्योग की तरह हैः आधुनिक चर्च एक व्यावसायिक संगठन की तरह है जहां हम खुले तौर पर हर एक को घंटियां बजाकर आमंत्रित करते हैं जिनमें बाहरी क्षेत्रो के लिये प्रचार अभियान और बडी आवाज करने वाली प्रचार सभाओं का आयोजन किया जा रहा है। जबकि, नये नियम की इक्लीसिया में लगातार वृद्धि के कारण सताव भी लहरों की तरह एक के बाद एक आता जाता था और इसलिये नये नियम की इक्लीसियाएं छोटे छोटे झुण्डों में गुप्त रीति से मिलती थी। वे अपने घरों पर मछली का चिन्ह लगाया करते थे। इब्रानी भाषा में मछली के लिये ‘‘इक्सथस’’ (ixthus = Ixque) शब्द आया है जो ‘‘प्रभु और उद्धारकर्ता, यीशु मसीह का परिवर्णी (Acronym) शब्द है।  इक्लीसिया का अर्थ है, सप्ताह के सातों दिन और दिन के चौबीसों घंटे (24 घंटे 7दिन), एक दूसरे के साथ सम्बन्धः  हम मसीह की देह है जो नसों, स्नायु, और अस्थि पंजरों द्वारा एक दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं। हम परमेश्वर की ओर से दी जाने वाली वृद्धि से बढ़ने के लिये एक दूसरे के साथ जोड़े गए हैं ( कुलुस्सियों 2ः19 )।  हम किसी इक्लीसिया को नही जातें, क्...

कलीसिया का एकमात्र दायित्व आत्मा बचाना है चेतावनी

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‘‘यदि तुम एक पापी को उसकी आत्मा बचाने के लिये उसके पाप के बारे में उसे चेतावनी नहीं देते हो, तो वह पापी उसके अधर्म में मर जाएगा, परन्तु उसके खून का लेखा मैं तुझी से लूंगा। परन्तु यदि तू उस पापी को चिताए तो तू अपने प्राण को बचाएगा। ( यहेजकेल 3:18,19 ) कृपया निम्नलिखित वचनों के आधार पर स्वयं का मूल्याकन करके देखिये कि आप की स्तिथी क्या है? क्या आप दो पैर वाली मछली पकद्नेवाले, या भटकी हुई भेड़ों को बचानेवाले या बहुतायत से फल लानेवाले या आत्मिक फसल काटनेवाले बन पाए? क्या आप के पास विधर्मियों को कायल करके प्रभु में लाने की क्षमता है? 1.   प्रभु यीशु मसीह खोये हुए को खोजने और उद्धार करने आया है। ( लूका 19:10 ) 2.   प्रभु यीशु ने कहा: एक मन फिरानेवाले पापी के विषय में स्वर्ग में इतना ही आनन्द होगा, जितना कि निन्नानवे ऐसे धर्मियों के विषय नहीं होता, जिन्हें मन फिराने की आवश्यकता नहीं। ( लूका 15:7-16 ) 3.   प्रभु यीशु ने कहां मेरे पीछे चले आओं और मैं तुमको मनुष्यों को पकड़नेवाले मछुवे बनाउंगा। ( मत्ती 4:19 ) 4.   प्रभुजी ने कहां ‘‘फसल तो तैयार’’ है पर फसल काटने वाले मज़दूर (आत्...

MATURE VS IMMATURE CHRISTIAN

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Mature Christian is not only a follower of Christ but a prolific fisher of men. Matt. 4:19 Mature Christian is not only a shepherd of the tame sheep but also a seeker of the lost sheep. Luke 19:10 A mature Christian does not just pray in the comfort of his home or the church or in the prayer cell but goes out weeping (interceding) with the seed (gospel) and comes back rejoicing with sheaves (harvest). Psalm 126:5,6 A mature Christian is not only a sower of the seed but also a reaper of thirty, sixty and hundredfold harvest. Matt. 13:8 A mature Christian knows that singing devotional songs is not worship but the best way to glorify God is to bring abundant fruit that remains (continuously reproduces). John 15:8,15 A mature Christian is not only a saved soul but knows that he is saved to save others by breaking bread and sharing the whole wisdom of God from house to house. Col. 1:26-28; 1 Timothy 1:15; Acts 2:46; 20:20,27 A mature Christian is not just a gifted minister but uses his gift...

CHRIST CENTERED AND HARVEST FOCUSED PRAYERS

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Yeshua commanded us to, “Pray to the Lord of the harvest to send forth laborers into his harvest field.” ( Luke 10:2 ). The good news is that the harvest has been ready for the last 2000 years. The bad news is that the laborers are few and far between. Our prayers should have LASER like focus that results in a super abundance of laborers (disciple makers and church planers), being sent out to every nook and corner of the earth, beginning at our household, neighborhood and workplace. What does Christ Centered mean? : Christ came to do the will of the Father.   Like Paul we need to model Christ.  “What you have learned and received and heard and seen in me--practice these things, and the God of peace will be with you.” ( Philippians 4:9 ) What is the will of the Father? 1. That none should perish but come to the knowledge of truth and be saved. ( 1 Peter 3:9; 1Tim. 2:4 ). 2. He said, “Ask of Me and I will give nations for an inheritance and the uttermost parts of the eart...