कलीसिया (चर्च) परम्परांए एंव विधर्म - गृह इक्लीसिया का इतिहास - भाग 31
गृह इक्लीसिया का इतिहास
पवित्र भवन, ऊंचे घण्टाघर, क्रूस, रवि-वार (सन-डे), यहां तक कि प्रभु यीशु (लॉर्ड जीसस) और बहुत सी बातें हमारी मूर्तिपूजक विधर्मिता की बपौती हैं।
- प्रथम 300 वर्षों तक इक्लीसिया किसी भी जगह, जैसी भी स्थिती में थी, उसी में बडे़ प्यार और लचीलेपन के साथ विश्वासियों के घरो में मिला करती थी। उस समय कोई चर्च भवन, पास्टर, रविवारीय आराधना, सुसमाचार अभियान, सेमनरियां या दसवांश देना इत्यादि नहीं था। इन समयों में इक्लीसिया विश्वास में और संख्या में तेजी से बढ़ती गईं। (प्रेरितों के काम 16ः5)
- पौलूस ने परमेश्वर के सम्पूर्ण ज्ञान को घर घर में बांटा। अगुवों का प्रशिक्षण कलीसियाई आधार पर था। इन गृहइक्लीसियाओं को 380 ए. डी. में कानूनी तौर पर बंद कर दिया गया था। उस समय कलीसिया की आत्मा खो गई और वह हजार वर्ष के अन्धकार में प्रवेश कर गई (प्रेरितों के काम 20ः20,27-29)।
- सान्ता नीकुलेईटन्स जो ‘‘सामान्य जनों पर हावी’’ होने पर विश्वास करता था और ऊंचे वर्ग का होने का दावा करता था, ने कलीसिया को संदेश बोलने वालो और सुनने वालों में विभाजित कर दिया। यीशु इस विभाजन से घृणा करते थे और उन्होंने इसकी उपमा, प्रथम प्रेम के ठण्डा पड़ने, मूर्तिपूजा और अनैतिकता से दी। तौभी आधुनिक चर्च इस विभाजन को जारी रखे हुए है। (प्रेरितों के काम 6ः5; प्रकाशित वाक्य 2ः4,6,14,15; मत्ती 12ः25)
- गृह इक्लीसियाओं को रोमियों द्वारा बहुत दुःख उठाना पड़ा। कॉन्स्टेन्टाईन ने सौर (सूर्य) क्रूस का दर्शन देखा, उसने चढ़ाई किया और महा सम्राट बन गया। उसने पहला केथेड्रल बनवाया और तनख्वाह पर पुरोहितों (क्लर्जी) को रखा और केथोलिक चर्च का आरम्भ कर दिया। (312-325 ए. डी.)।
- सूर्यीकरण (रविवार, सन् डे को सूर्य की ओर मुंह करके प्रार्थना करना) और चर्च का व्यापकीकारण (केथोलिकीकरण) करने के परिणाम स्वरूप चर्च में, नाम की मसीहियत बहुत तेजी से बढ़ी। अन्यजातीय प्रीस्टों व पुरोहितों को उनके मूर्तिपूजक रीति रविाजों के साथ अभिषिक्त किया गया जो चर्च में आजतक चल रहे हैं अर्थात उनके चोगे, पुलपिट, धर्मोंपदेश, सेक्रामेन्ट (संस्कार) और वेदी इत्यादि। हमारे चर्चों को यूनानी गोयिक मूर्तिपूजक गृहनिर्माण कला से बनाया गया है। क्लर्जी/ पुरोहितों और अधिकारियों पर आधारित चर्च प्रशासन, रोमी प्रशासन व्यवस्था पर आधारित है।
- 321 ईस्वी के बाद, कॉन्स्टेन्टाईन ने राजाज्ञा दी जिसकी अनाज्ञाकारिता में मृत्यु दण्ड भी था, और जिसके अन्तर्गत सूर्य दिवस (रविवार ैनद . क्ंल) को सोलइनविक्टस अर्थात अजेय सूर्य की आराधना के लिये ठहराया गया। गगन चुम्बी मीनारों और ऊंची चोटी वाले घण्टाघर बनाए गए ताकि सूर्य की प्रथम किरणों को पकड़ सकें और घण्टों को बजाकर उसे उत्सव के रूप में मनाया जाए। रोम का बिषप पोन्टीफेक्स मेक्जीमस (पोप) बन गया अर्थात परमेश्वर और मनुष्य के बीच ‘‘पुल’’।
- नये नियम की इक्लीसिया पवित्र आत्मा द्वारा संचालित थी, जो उसमें भजन, प्रगटीकरण, शिक्षाएं और भविष्यद्वाणी देते थे और नए विश्वासी प्रतिदिन जुड़ते जाते थे। ग्रेगोरी ने सन् 500 में आराधना को पूरी तरह बिगाड़ दिया जब उसने आराधना क्रम को,उ क्रमानुसार कर दिया अर्थात - गीत, धर्म शास्त्र पठन, धर्मोपदेश और सेक्रामेंट जो आज भी वैसे ही चल रहे हैं जिससे आराधना में विश्वासियों की खुली भागीदारी, कलीसिया से समाप्त हो गई (1कुरिन्थियों 14ः26)।
- पोप लियो (440 ए. डी.) ने सेलीबेसी (धर्म सेवकों को अविवाहित रहना) को प्रारम्भ कर दिया और धर्मशास्त्र के अनुसार प्राचीनों को रखना बन्द कर दिया, जिनकी एक ही पत्नी हाती थी। 416 ए. डी., शिशु बपतिस्मा अनिवार्य बना दिया गया। क्रूसेडर्स ने सन् 1096 में यहूदियों और मुस्लिमों का नरसंहार किया। 1000 वर्षों के धर्म परीक्षण (Inquisition) के परिणाम स्वरूप 830 लाख विश्वासियों को विधर्मी घोषित कर दिया गया और उन्हें सता सता कर मार डाला गया। सी बीच धार्मिक अगुवों ने धर्मशास्त्र के साथ क्रमानुसार शरारत करके, उसे बिगाड़ डाला।
- सन् 1517 में मार्टिन लूथर ने केथोलिक चर्च के खिलाफ 95 शोध वचन लिखकर, धर्म संशोधन की आग सुलगा दी। 1526 में गृह इक्लीसियाओं का दृढ़ता पूर्वक समर्थन करने के बाद उसने चर्च के सामने आत्म समर्पण करके, 1530 में गृह इक्लीसियाओं के अगुवों पर मृत्यु दण्ड की घोषणा करा दी।
- सच्ची इक्लीसिया इन सारी सदियों में किसी संरचना युक्त चर्च में नहीं परन्तु धर्म शहीदों के घरों में जीवित बची रही। लूथर का संशोधन केवल धार्मिक शिक्षाओं या धर्म विज्ञान पर ही था अर्थात, ‘‘विश्वास द्वारा अनुग्रह ही से उद्धार’’। परमेश्वर अब फिरसे कलीसियाई संरचना को नई मशकों (गृह इक्लीसियाओं) में बना रहे हैं, ताकि उनसे पूरे विश्व में कटनी काट सकें।
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