कलीसिया (चर्च) परम्परांए एंव विधर्म - याहवेह का कार्यक्रम जातियों व देशों के लोगों की चंगाई है - भाग 26

याहवेह का कार्यक्रम जातियों व देशों के लोगों की चंगाई है

   पवित्र भवन, ऊंचे घण्टाघर, क्रूस, रवि-वार (सन-डे), यहां तक कि प्रभु यीशु (लॉर्ड जीसस) और बहुत सी बातें हमारी मूर्तिपूजक विधर्मिता की बपौती हैं।

इक्लीसिया का प्रतिक चिन्ह दीवट (मेनोराह) ही  है। (प्रकाशित वाक्य 1ः20)

‘‘जातियों’’ या देशों के लोग’’ शब्द धर्मशास्त्र में 2000 बार आया है (व्यवस्था विवरण 4ः6)। याहशुआ के मानफिराव के सुसमाचार (लूका 24ः47) का अर्थ है, लौटकर फिरसे मूल मार्ग (तोरह) पर आ जांए। शाऊल (पौलूस) ने हमें चेतावनी दिया है, ‘‘मेरे जाने के बाद, फाड़ने वाले भेड़िये तुममें आएंगे जो झुण्ड को न छोडेंगे..... जो चेलों को अपने पीछे खींच लेने को टेढ़ी मेंढ़ी बातें कहेंगे। (प्रेरितों के काम 20ः29,30) एज्रा भविष्यद्वक्ता आया और यहूदावाद में से सारी अशुद्धियों को साफ किया जिनमें व्याभिचारिणी, रखैलियां भी शामिल थीं (एज्रा 7ः10; 10ः1,2)। ये कई वर्षों से बहुत संख्या में जमा हो गई थी। अब फिरसे समय आ गया है कि हम कलीसिया को, विधर्म, मूर्तिपूजक घृणित नामों, परम्पराओं, रिवाजों और पेशेवर व्यवसायी उपदेशकों से शुद्ध करें (इफिसियों 4ः14) जिस प्रकार याहशुआ ने ऊन कतरने वालों को कोड़ले से खदेड़ा था। हमें पश्चाताप करना चाहिये क्योंकि याहवेह का शासन और राज्य और भी अधिक निकट आ गया है; ‘‘जो कोई याहवेह (यहां याहवेह की जगह स्वतक लार्ड नहीं कहें क्योंकि स्वतक लार्ड बाल देवता को कहते हैं) का नाम लेगा वह उद्धार पाएगा’’। (प्रेरितों के काम 2ः21; रोमियों 10ः13) ‘‘क्योंकि मैं याहवेह बदलता नहीं’’ (मलाकी 3ः6)। 

सम्पूर्ण बदलाव: मासियाख़ (मसीहा आरामी भाषा में) ने हमें महान आदेश दिये हैं, कि हम सब जातियों व देशों के लोगों को आज्ञा मानना सिखाएं (मत्ती 28ः19,20)। याहशुआ विधर्म, (दासत्व) से घृणा करते हैं परन्तु वे विधर्मियों व मूर्ति पूजकों (दासत्व) में पड़े लोगों) से प्यार करते हैं। याहशुआ ने उनके लिये अपना जीवन व प्राण दे दिये और अब वे उन्हें जो पहिले विद्रोह करने वाले थे, अपने वरदान दे रहे हैं (भजन संहिता 68ः18,19; इफिसियों 4ः8)। वे हमारी राह देख रहे हैं कि हम उन्हें उनके पास लाएं, ताकि वे उन्हें प्रतिज्ञा की सन्तानों से भी उत्तम स्थान देवें (यशायाह 56ः4-7; 60ः5-7)। उनका दर्शन है कि याहवेह के पितृत्व की आधीनता में, अन्यजातीय उड़ाऊ पुत्रों को उनके बड़े भाई यहूदीम से मिला दें। याहवेह कहते हैं, ‘‘उदयाचल से अस्ताचल तक अन्यजातियों में मेरा नाम महान है, और हर कहीं मेरे नाम पर धूप (प्रार्थना, स्तूति, आराधना) और शुद्ध भेंट (पवित्र किये गए पश्चातापी अन्यजातीय लोग) चढ़ाई जाती है, क्योंकि अन्यजातियों में मेरा नाम महान है। (मलाकी 1ः11)। याहवेह ने हमें आदेश दिये हैं कि हम नगर में शान्ति (शालोम ैींसवउ) के लिये प्रार्थना करें (यर्मियाह 29ः7) ताकि वे पूरे शहर को हमारी प्रार्थनाओं के द्वारा, ‘‘अदन की वाटिका’’ में बदल दें। (उत्पत्ती 2ः15; यशायाह 32ः15-18, 51ः3; यहेजकेल 36ः35

Comments

Popular posts from this blog

पाप का दासत्व

श्राप को तोड़ना / Breaking Curses

भाग 6 सुसमाचार प्रचार कैसे करें?