कलीसिया (चर्च) परम्परांए एंव विधर्म - बलिदान और इक्लीसिया की गुणात्मक वृद्धि - भाग 25

बलिदान और  इक्लीसिया की गुणात्मक वृद्धि

   पवित्र भवन, ऊंचे घण्टाघर, क्रूस, रवि-वार (सन-डे), यहां तक कि प्रभु यीशु (लॉर्ड जीसस) और बहुत सी बातें हमारी मूर्तिपूजक विधर्मिता की बपौती हैं।

इक्लीसिया का प्रतिक चिन्ह दीवट (मेनोराह) ही  है। (प्रकाशित वाक्य 1ः20)

बलिदान: बलिदान, दसवांश से अलग प्रकार के हैं, वे विशेष प्रकार के दान हैं, जो समृद्ध लोगों द्धारा विशेष अभिप्राय हेतु दिये जाते थे। इन्हें दान देने का विशेष वरदान होता था जैसे कुरनेलियुस (रोमियों 12ः8; प्रेरितों के काम 10ः4) तथा कुछ धनाड्य महिलाएं जिन्होंने अपने धन से याहशुआ की सेवा की (लूका 8ः3; मत्ती 27ः55), परन्तु वे कभी भीड़ से पैसा जमा करने नहीं गए, और न ही पौलुस ने ऐसा किया (प्रेरिमों के काम 17ः4,12)।  

प्रत्येक विश्वासी, याहवेह का मन्दिर है और किसी मन्दिर का दूसरे मन्दिर को दसवांश देना, तर्कसंगत नहीं है। यात्री सुसमाचार प्रचारकों (Itinerant Ministry) जो चलते फिरते मन्दिर हैं को उदारतापूर्वक विशेष दान देना चाहिये, ताकि उनके भण्डार भर रहें (2कुरिन्थियों 6ः16; मलाकी 3ः7, 10; रोमियों 10ः15)। 

हम लेवी तो नहीं है परन्तु हम याहशुआ की तरह मलिकिसिदक की रीति पर राजा और याजक हैं, जिसने इब्राहीम को रोटी और दाखमधु दिया, और तुरन्त इब्राहीम ने भी दसवांश उसे दिया। (उत्पत्ती 14ः18,20)। सभी विश्वासियों के साथ ठहराए गए पर्वों को दानों और बलिदानों के साथ मानने में यह शक्ति है कि वह समुदाय से गरीबी को उखड़ दे और उसमें सभी सेवा करने वालों के लिये आर्थिक समृद्धि ले आए।

इक्लीसिया की गुणात्मक वृद्धिः अब हम पशुओं की बलि नहीं चढ़ाते हैं परन्तु हमें पश्चातापी, बचाई गई आत्माओं को जीवित बलिदान के रूप में, दसवांश जैसा चढ़ाना चाहिये (रोमियों 15ः16; यशायाह 56ः3-8; मलाकी 1ः11)। प्रत्येक, विश्वासी के द्वारा, ‘‘टूटे और पिसे हुए मनों का बलिदान, राज्य में केवल साधारण बढ़ोत्तरी नहीं परन्तु आत्याधिक गुणात्मक वृद्धि लाएगी (मलाकी 3ः7,10; भजन संहिता 51ः17)। यह पास्टरों की, प्रति सप्ताह, धर्मशास्त्र विरूद्ध पैसों की मांग को भी बंद कर देगा।



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