कलीसिया (चर्च) परम्परांए एंव विधर्म - शालोम अलईखेम - भाग 28

शालोम अलईखेम

   पवित्र भवन, ऊंचे घण्टाघर, क्रूस, रवि-वार (सन-डे), यहां तक कि प्रभु यीशु (लॉर्ड जीसस) और बहुत सी बातें हमारी मूर्तिपूजक विधर्मिता की बपौती हैं।

इक्लीसिया का प्रतिक चिन्ह दीवट (मेनोराह) ही  है। (प्रकाशित वाक्य 1ः20)

शालोम अलईखेम - तुम्हें शान्ति मिलेः (यूहन्ना 20ः21), याहशुआ हमेशा अपने चेलों को अभिवादन में ‘‘शालोम अलईख़ेम’’ अर्थात ‘‘तुम्हें शान्ति मिले’’, कहते थे, और हमें भी ऐसा ही करने के लिये आज्ञा दिये हैं (यूहन्ना 20ः21; लूका 10ः5)। मुस्लिम हमेशा ‘‘सलाम अलैईखुम’’ कहकर अभिवादन करते हैं परन्तु मसीहियों ने अन्यजातीय विधर्मी परम्परा ‘‘शुभ दिन’’ (Good Day) कहना अपना लिया है। समय आ गया है कि हम पश्चाताप करें और वापस हों और लोगों को न केवल शब्दों में वरन सम्पूर्ण मन से, परोपकारिता के साथ आशीष दें। (उत्पत्ती 13ः3; गिनती 6ः22-26; यूहन्ना 1ः2)। 

याहशुआ, आत्माओं की एक बड़ी कटनी काटने के लिये मशकों (घरेलू कलीसियाओं) को तैयार कर रहे है, किसी परम्परागत चर्च से नहीं। आज एक तुरही की पुकार व शब्द की आवश्यक्ता है, जिससे इन मूर्तिपूजक विधर्मिता से भरे रीति रिवाजों से इक्लीसिया को शुद्ध किया जा सके (दानियेल 12ः10; इफिसियों 5ः27)। 

परन्तु पहिले इस अन्यजातीय जंगली जलपाई की डाली को उत्तम यहूदी जलपाई के पेड़ में सांटा जाना चाहिये (रोमियों 11ः26-31)। तभी हमारे इलोहीम का, सभी जातियों व देशों को शान्ति पहुंचाने (Shalom to the ethne) का वृहद कार्यक्रम पूरा हो सकेगा। (लूका 10ः5-9; मत्ती 28ः19; प्रकाशित वाक्य 7ः9,10; 1कुरिन्थियों 14ः33

‘‘हे मेरे लोगों उसमें से (समझौता करने वाले चर्च) निकलों कि तुम उसके पापों में भागी न हो, और उसकी विपत्तियों में से कोई तुम पर आ न पड़े’’ (प्रकाशित वाक्य 18ः4)। ‘‘गला खोलकर पुकार, कुछ न रख छोड़, नरसिंगे का सा ऊंचा शब्द कर, मेरी प्रजा को उसका अपराध अर्थात याकूब के घराने को उसा पाप जता दे’’। (यशायाह 58ः1) ‘‘बहुत लोग तो अपने को निर्मल और उजले करेंगे और स्वच्छ हो जाएंगे, परन्तु दुष्ट लोग दुष्टता ही करते रहेंगे और दुष्टों में से कोई ये बातें न समझेगा, परन्तु जो बुद्धिमान हैं वे ही समझेंगे’’। (दानियेल 12ः10

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