कलीसिया (चर्च) परम्परांए एंव विधर्म - पर्व, आर्थिक समृद्धि लाते हैं - भाग 24
पर्व, आर्थिक समृद्धि लाते हैं
इक्लीसिया का प्रतिक चिन्ह दीवट (मेनोराह) ही है। (प्रकाशित वाक्य 1ः20)
अपनी मेहनत की कमाई का दसवां भाग फलरहित चर्च के कार्यक्रमों के लिये देना, दसवांश देना नहीं है। परन्तु खोए हुए लोगों को छुटकारा दिलाके, उन बची हुई आत्माओं का बलिदान चढ़ाना ही दसवांश देना है। (व्यवस्था विवरण 8ः17,18; रोमियों 15ः16) इसका उपयोग पास्टरों और प्रीचरों को तनख्वाह देने के लिये नहीं परन्तु भवनों को बनाने और कोर्ट में मुकदमेबाजी करने के लिये होता है, यह दिन दहाडे़ डाका डालने जैसी बात है, क्योंकि यह पैसा गरीबों और यात्री प्रचारकों (प्रेरितों) का है। जो पैसा पतरस के पावों के पास रखा गया, वह प्रत्येक को उसकी आवश्यक्तानुसार बांट दिया गया था। (प्रेरितों के काम 4ः35; 7ः48,49)
दसवांशः दसवांश गरीबों और जरूरत मंदों के लिये है (रोमियों 15ः26; गलातियों 2ः10ं)। इन पर्वों के समय में कोई भी जन याहवेह को खाली हाथ मुंह नहीं दिखाता था (निर्गमन 23ः15)। यरूशलेम पशुओं के चिल्लाने की आवाजों से भरा रहता था, जिन्हें बलिदान चढ़ाने के लिये लाया जाता था। वहां भोजन, मांस, अनाज, दाखमधु, प्रथम फल, और तेल की भारी मात्रा इकट्ठी की जाती थीं। मंदिर में केवल तीन पर्व मनाए जाते थे, वहां गरीब, अन्यजातियों और लेवियों की भी चिन्ता की जाती थी। (व्यवस्था विवरण 16ः11,14,16)
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