प्रभु की बियारी (प्रभु भोज)
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प्रभु की बियारी (प्रभु भोज) फसलः यहूदी लोग, मिस्त्रियों के दासत्व से आजादी की यादगार में प्रतिवर्ष अपने घरों में फसह का पर्व मानते हैं। यह वह रात थी जिस दिन इस्त्राएलियों ने मूसा के साथ प्रतिज्ञा किये हुए देश की ओर लम्बी यात्रा प्रारम्भ की थी। उस रात्रि, प्रत्येक घराने ने एक मेम्ना बलिदान किया था, उसके रक्त को उन्होंने अपने-अपने घरों की चौखटों पर लगाया था और उन्होंने उस मेम्ने का मांस बिना उसकी किसी हड्डी को तोडे़ खाया था। मृत्यु का दूत यहूदियों के घरों को लांघकर आगे निकल गया था, जिनके घरों की चौखटों पर लोहू का निशान लगा हुआ था, जबकि मिस्त्रियों के घरों के सभी पहिलौठे क्या मनुष्य क्या पशुओं के सभी पहिलौठे पर गए (निर्गमन 12 अध्याय)। यहूदियों के वंशज आज भी इस फसह के पर्व को मानते है। हिन्दु भी अपने घरों की चौखटो पर यूनानी क्रूस के चिन्ह लाल स्वास्तिक को लगाते हैं। संस्कृत मे श्वास्त का अर्थ होता है ‘‘अच्छा स्वास्थय’’। फसह का भोजन अब प्रभु की बियारी (प्रभु भोज) में बदल गयाः फसह के भोज के लिये प्रभु ने अपने चेलों को भुंजा हुआ मेम्ना, कडुवा सागपात और रोटी (अखमीरी समतल रोटी) खान...