कलीसिया (चर्च) में मूर्तिपूजक परम्परांए एंव विधर्म - भाग 9

   पवित्र भवन, ऊंचे घण्टाघर, क्रूस, रवि-वार (सन-डे), यहां तक कि प्रभु यीशु (लॉर्ड जीसस) और बहुत सी बातें हमारी मूर्तिपूजक विधर्मिता की बपौती हैं।

इक्लीसिया का प्रतिक चिन्ह दीवट (मेनोराह) ही  है। (प्रकाशित वाक्य 1ः20)

सन्-डे, रवि-वारीय आराधना

270 सी. ई. मे औरेलियन (सूर्य सम्राट Sun Emperor) ने जुपिटर सूर्य देवता की आराधना की, जिसका जन्म दिन 25 दिसम्बर पर होता है। रोमी सम्राट कॉन्स्टेन्टाईन, सूर्य और याहशुआ दोनों की उपासना करता था, और यहूदियों से, याहशुआ को घात करने के कारण, घृणा करता था। 321 सी. ई. में कॉन्स्टेन्टाईन ने आज्ञा दिया कि सब्त बन्द कर दिया जाए और सूर्य की आराधना की जाए अन्यथा मृत्यु दण्ड दिया जाएगा। 

इसके लिये उसने ऊंची ऊंची मीनारें, स्टीपल, गुम्बद और ऊंचे घण्टाघर बनवाए। जैसे ही मीनार पर सूर्य की पहिली किरण पड़ती थी, घण्टे बजाए जाते थे और तब सूर्य-दिवस (Sun-Day) के दिन, बडे़ जोश के साथ सूर्य की उपासना की जाती थी। बाद में चर्च भवन भी इन घण्टाघरों में जोड़ दिये गए। बहुत से अन्यजातीय मूर्तिपूजक याजकों ने, बिना किसी आत्मिक अनुभव के, अपने मन्दिरों को रातों रात चर्च घोषित कर दिया, ताकि उन्हें सरकार की ओर से मिलने वाली राशी के लिये पात्रता मिल जाए और सीधे सादे भक्तों के धन की लूट पाट की जा सके।

 उस समय से हालात बहुत नहीं बदले हैं और व्यवसाय करने वाले उपदेशकों द्वारा व्यवस्थाहीन (बिना तोरह के) एक मुश्त धर्म, लगातार चलाया जा रहा है। याहशुआ ने पतरस से केवल मेम्नें को चराने के लिये कहा था, उनका ऊन कतरने के लिये नहीं (यहेजकेल 8ः16)। 

प्रभु का दिन (The Lords Day)

 यह अभिव्यक्ति धर्म शास्त्र में केवल एक बार आई है (प्रकाशित वाक्य 1ः10)। इसका रविवार की सुबह होने वाली आराधना से कोई सम्बन्ध नहीं है। यह पलटा लेने का वह दिन होगा जब याहवेह पृथ्वी पर पलटा लेने के लिये विध्वंस करेंगे। यह उन लोगों के लिये आनन्द कने का दिन होगा, जिनके नाम मेम्ने की पुस्तक में लिखे हैं और उन लोगों के लिये विलाप करने का दिन होगा जो छोड़ दिये जाएंगे, उनमें सारे चर्च भी शामिल होंगे, क्योंकि वे अपने ही तरह की आराधना करने में और अन्य कार्यक्रमों में इतने व्यस्त थे कि वे अपने पड़ौस के समुदायों को और अपने शहरों को परिवर्तित करने में असफल रहे, इसलिये किसी भी प्रकार की कटनी बटोरने का कार्य नहीं हो सका (यशायाह 34ः8; सपन्याह 1ः8,18; मत्ती 25ः45)। सप्ताह का पहिला दिन भी रविवार की आराधना नहीं है, क्योंकि वह तो 7वें दिन शनिवार की शाम को आरम्भ होता था, जो कि यहूदी सब्त का अन्त होता था (प्रेरितों के काम 20ः7; 1कुरिन्थियों 16ः2)। सब्त को अब पूरी तरह टी. वी., खेलकूद, शराब पीने, पेटूपन, सेटिरनेलिया में बदल दिया गया है। सब्त के मानने से आप सेवन्थ डे एकवेन्टिस्ट नहीं बन जाते, क्योंकि सेवन्थ डे एडवेन्टिस्ट लोग, दूसरे अन्य सब्त के पर्वों को नहीं मानते। 

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